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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Thursday, March 28, 2013

खौफ आंबेडकरवाद का एच एल दुसाध

                     खौफ आंबेडकरवाद का

                              एच एल दुसाध  

विद्यार्थी जीवन में मेररा  यह स्वप्न था कि कलकत्ता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में लाल पताका फहराने वाली रैलियां निकट भविष्य में किसी दिन चमत्कार करेंगी समानता के आधार पर विवेकपूर्ण समाज के निर्माण का;एक राष्ट्र का जो जाति,सम्प्रदाय अथवा वंश रूपी चीनी दीवार में बंटा हुआ नहीं अपितु परस्पर प्रेम और भाईचारे रूपी दृढ सेतु से मिला हुआ होगा.मेरा सपना था कि 'ये आज़ादी झूठी है-मेहनती जनता भूखी है' का उद्घोष करनेवाले मार्क्सवादी स्थापना करेंगे एक ऐसे समाज की स्वतंत्र विचारों की  धारा को जिसे निरर्थक तथा पुरातन शास्त्रीय क्रियाकलाप रूपी रेतीला रेगिस्तान अवरुद्ध नहीं कर पायेगा.अकस्मात एक रात 'मरिच झापी' के डेल्टा पर आर्थिक अवरोधों तथा मार्क्सवादी कहे जानेवाले शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा मनचाहा जीवन जीने के इच्छुक असहाय शरणार्थियों के नरसंहार के भयावह स्वप्न ने मुझे झकझोर कर जगा दिया व मैंने अपने आपको उस मृगी की दशा में पाया जो वर्षों से मृग-मरीचिका के पीछे भाग रहा रही है.मैं सदमे से उबरा तथा इस असफलता के कारणों की खोज में लग गया...कलकत्ता के उसी परेड ग्राउंड से महान चिन्तक कांशीराम ने प्रश्न किया,'सर्वोच्चता का उपभोग करनेवाले ब्राह्मणवादियों को क्या मार्क्सवाद का नेतृत्व क्लारना चाहिए?'मैंने इसे कुछ दूरी से सुना और मेरे सामने सत्यता के द्वार खुल गए.शोषित,पीड़ित और  दुखित लोग ही विद्रोह करते हैं,शोषक भला क्यों विद्रोह करने जायेंगे?

मित्रों उपरोक्त पंक्तियां मेरे गुरु एस के विश्वास की हैं जो उन्होंने अपनी चर्चित  पुस्तक 'भारत में मार्क्सवाद की दुर्दशा' की भूमिका में लिखा है.उसी पुस्तक में एक जगह कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र के निम्न अंश में मार्क्स को उद्धृत करते हुए विश्वास साहब लिखते हैं.

'यूरोप एक खौफ से त्रस्त है-खौफ साम्यवाद का.इस भूत-बाधा को दूर करने के लिए पुरातन यूरोप की सभी शक्तियों ने एक पवित्र गठबंधन किया है:पोप और जार ,मैटरनिच तथा  गिजोत,फ़्रांस के पुरातन पंथी तथा जर्मनी के जासूस ...अब समय आ गया है कि साम्यवादी संसार के सामने स्पष्ट रूप से अपने विचार लक्ष्य और प्रवृतियां प्रकाशित कर दें और दल एवं स्वयं साम्यवाद के खौफ की शिशु-कथा के साथ अपने घोषणा पत्र के साथ समरस हों.'

मार्क्स की इस विचारधारा ने भारत के आलावा सभी देशों में सत्ता के शीर्ष पर बैठे सामर्थ्यवानों को सर से पैर तक कंपा दिया.किन्तु भारत के सामर्थ्यवानों ने इसका खुले दिल और मुक्त हांथों से स्वागत किया .भारतीय शासक वर्ग जबकि मार्क्स की इस भयानक विचारधारा को समाज के लिए आनंददायक और स्वास्थ्यकारी मानता है,एक शब्द 'बाबासाहेब' और एक विचारधारा 'आंबेडकरवाद' सुनते ही वह भय और घृणा से कांपने लगता है.भारतीय ब्राह्मण मार्क्सवाद का प्रचार-प्रसार करते हैं जबकि वे आंबेडकरवाद को अस्वीकार करते हैं.यह तथ्य हमें भारतीय मार्क्सवादियों की संदिग्ध भूमिका के प्रति जिज्ञासु एवं सचेत बनाता है.'जिससे ब्राह्मणों को प्रसन्नता प्राप्त होती है वह दलित-बहुजन के कल्याण में बाधक होनी ही चाहिए तथा ब्राह्मण जिससे दुखित हो उसे दलित-बहुजा के लिए अच्छा होना ही चाहिए'.भारतीय मार्क्सवादियों की भूमिका पर संदेह करनेवाले विश्वास साहब अगली कुछ पंक्तियों के बाद लिखते हैं कि भारत में हम उसी प्रसंग को दोहरा सकते हैं,जिसे कार्ल मार्क्स ने इतिहास के पन्नों पर उकेरा है-

'भारतीय ब्राह्मणवादी गढ़ के सत्ता के गलियारों में एक खौफ व्याप्त –खौफ आंबेडकरवाद का.इस खौफ को दूर करने के लिए पुरातन आर्यवर्ती आस्था के रक्षक यथा राष्ट्रवादी और पुरातन पंथी,साम्यवादी और परम्परावादी प्रगतिशील और दक्षिण पंथी प्रतिक्रियावादी सभी ने एक गठबंधन कर लिया है... अब समय आ गया है कि मूल भारतीय उत्पादक वर्ग ,शूद्र्जन संसार के सम्मुख स्पष्ट रूप से अपने विचार,लक्ष्य और प्रवृतियां प्रकाशित कर दें और वे स्वयं इस पुरातन उपनिवश के अनाथों के घोषणा पत्र के माध्यम से आंबेडकर वाद की इस शिशु–कथा के साथ समरस हों.'

मित्रों, कुछ दिन पूर्व जब जब मैंने चंडीगढ़ की पांच दिवसीय संगोष्ठी से निकले १२ निष्कर्षों को आधार बनाकर, आपसे मार्क्स वादियों का योग्य प्रत्युत्तर देने के लिए जब एक अपील जारी किया,तब उसे एक इंट्रेस्टिंग ग्राउंड पर नकारते हुए एक मार्क्सवादी,जो संभवतः हिंदी पट्टी का था, ने लिखा था-'एक कथिक आंबेडकरवादी ने दावा किया है कि बंगाल में ३३ वर्ष बिताने तथा हिंदू साम्राज्यवादियों से बहुजनों को निजात दिलाने के ५० से अधिक किताबें लिखने के कारन वह मार्क्सवादियों के चरित्र को औरों से बेहतर जानते हैं.लेकिन हम जानते कि किताबे छापना उनका धंधा है,इसलिए उनकी अपील को ऍम विज्ञापन मानकर खारिज करते हैं.'तो मित्रों मार्क्सवादियों ने मुझे किताबों का व्यापारी समझकर संकेत दे दिया है कि वे मुझे इस लायक नहीं समझते जिसकी बात का जवाब दिया जा सके.उनका यह आचरण देखकर अस्पृश्य लेखक दुसाध के अंदर बैठे स्वाभिमानी व्यक्ति को भी गवारा नहीं कि वह उच्च-वर्णीय मार्क्स वादियों से कोई संवाद करे.मार्क्सवादी चाहें तो जश्न मन सकते हैं कि दुसाध भाग गया.किन्तु बंधुगण मार्क्स और भारतीय मार्क्स वादियों को लेकर मेरे मन में इतने सवाल है कि अगर इस समय उनका बहिर्प्रकाश नहीं होता है तो मैं बौद्धिक घुटन का शिकार बन जाऊंगा.इसीलिए मैंने गतकाल एक लेख पोस्ट/मेल किया था.अतः मैं  अपनी घुटन दूर करने के लिए आप गैर-मार्क्सवादी मित्रों के समक्ष उन प्रश्नों को रख रहा हूँ.प्रश्नों और लेखों का सिलसिला लंबे समय तक चलेगा.उम्मीद करता हूँ लेखक दुसाध को घुटन से बचाने के लिए आप एकाध महीने तक कष्ट झेलते रहेंगे.तो मित्रों शुरू होता है मेरा सवाल.     

1-क्या आपको भी लगता है कि पुरातनपंथी व प्रगतिशील,दक्षिण पंथी तथा वामपंथी सभी ही अम्बेडकरवाद से खौफज़दा है इसीलिए वे आंबेडकर को खारिज करने के लिए समय-समय पर तरह-तरह का उपक्रम चलाते रहते हैं,जिसकी ताज़ी कड़ी चंडीगढ़ में आयोजित पांच दिवसीय संगोष्ठी है?

2-क्या विस्वाश साहब की तरह आपको भी लगता है कि जिस मार्क्सवाद ने दुनिया के तमाम सामर्थ्यवान लोगों में खौफ की  लहरें पैदा कर दिया, उसे अगर भारत में शक्ति के स्रोतों(आर्थिक,राजनितिक और धार्मिक) पर ८०-८५ प्रतिशत कब्ज़ा जमानेवाले तबके ने  खुशी-खुशी अपनाया,तो जरुर कोई दाल में काला है?

3-क्या विश्वास साहब की तरह आपको यह भी लगता है कि जिस बात से ब्राह्मण-सवर्णों  को खुशी होती है वह बहुजन समाज के लिए दुखदायी और विपरीत उसके जो बात उनके लिए दुखदायी है वह बहुजनों के लिए सुखदायी हो सकती है?

तो मित्रों ,आज के लिए इतना ही .कल फिर कुछ सवालों के साथ आपसे मिलते हैं.            

दिनांक:28 मार्च,2013

       


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