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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, March 26, 2013

खून मुस्लिमों का कभी महंगा न होगा

खून मुस्लिमों का कभी महंगा न होगा


श्रीकृष्ण आयोग रिपोर्ट का क्या हुआ

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 31 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रावाई करने की सिफारिश की थी तब से लेकर आज तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ जबकि कांग्रेस और एनसीपी मिलकर 1999 से महाराष्ट्र पर राज कर रही हैं...

वसीम अकरम त्यागी

आखिर 20 साल बाद सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना ही पड़ा और 1993 मुंबई सीरियल बम विस्फोट के अभियुक्तों को सजा सुनानी पड़ी.कुछ की सजा कम की गई है और कुछ अभियुक्तों की सजा को बराकर रखा गया है.उल्लेखनीय है कि 12 मार्च 1993 को मुंबई में 12 जगहों पर हुए धमाकों में 257 लोगों की मृत्यु हुई थी और करीब 700 लोग घायल हुए थे. अब सवाल ये है कि क्या इन धमाकों से दो लगभग दो महीने पहले दिसंबर 1992 में से लेकर जनवरी 1993 तक मुंबई में हुऐ सांप्रदायिक दंगों के अपराधियों को भी सजा मिलेगी ?

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1993 दंगों में मरे गये शाहनवाज वागले फोटो- हिन्दू

क्या उनके लिये भी कोई अदालत है जो उन्हें सजा दिला सके ? क्या कोई सरकार है जो दंगों की जांच के लिये बने जस्टिस श्री कृष्णा आयोग की सिफारिशों को लागू करा सके ? शायद नहीं...... दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में तो नहीं.क्योंकि जांच आयोग ने दंगों में जिन लोगों को मुख्य आरोपी माना था वो आज सत्ता का सुख भोग रहे हैं.एनसीपी नेता छगन भुजबल, नारायण राणे जो उस मसय़ शिवसेना में हुआ करते थे आज कांग्रेस और एनसीपी की मिली जुली सरकार में मंत्री हैं. और खुद शरद पवार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में कृषि मंत्री हैं और सत्ता का सुख भोग रहे हैं.इन्हें भी आयोग ने अपनी जांच में दोषी पाया था.

श्री कृष्ण आयोग ने 1998 में ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, जिसमें उसमें इन तीनों नेताओं के साथ – साथ शिवसेना के नेताओं को भी दंगों का दोषी ठहराया था.आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 31 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रावाई करने की सिफारिश की थी तब से लेकर आज तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ जबकि कांग्रेस और एनसीपी मिलकर 1999 से महाराष्ट्र पर राज कर रही हैं. वर्ष 1999 में कांग्रेस और एनसीपी की मिली-जुली सरकार बनने के बाद क्या-क्या हुआ ये साफ समझ में आ जाएगा कि जब-जब मुंबई दंगों की बात होती है, तब-तब दोहरे मानक और पाखंड क्यों दिखाई देता है. 

मुंबई दंगों के दौरान संदिग्ध भूमिका और बर्ताव की वजह से 31 पुलिसवालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की गई थी. उन 31 में से 11 को कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने दोषमुक्त करार दे दिया. यह तब हुआ जब बहुत सारे लोगों ने उनके खिलाफ श्रीकृष्णा आयोग के सामने गवाही तक दी थी. एक ऐसे सिपाही को सिर्फ फटकार लगाकर छोड़ दिया गया जिसने एक मूक-बधिर ( गूंगे ) मुस्लिम बच्चे को दंगाइयों की भीड़ के हवाले कर दिया था. जाहिर है भीड़ ने उस बच्चे को मार डाला. कुछ पुलिसवालों की तनख्वाह बरसों तक रोके रखी गई. दंगों के समय एसीपी रहे आर.डी. त्यागी के खिलाफ सबसे गंभीर आरोप थे. वर्ष 2001 में दर्ज की गई चार्जशीट में त्यागी और उनकी टीम पर आरोप लगाए गए कि उन्होंने 9 जनवरी 1993 को सुलेमान बेकरी के कर्मचारियों पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें 9 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. उन पर कत्ल का आरोप था. 

मीडिया में इस बात पर जबरदस्त हंगामा खड़ा हो गया था कि माफिया और आतंक से लडऩे वाली पुलिस पर इसका कितना बुरा असर पड़ेगा. दंगों के बाद आर.डी. त्यागी को मुंबई पुलिस कमिश्नर के सम्मानित पद पर बिठा दिया गया उन्हें सरकार ने मजलूम लोगों का कत्ल करने का ईनाम दिया गया. और बाकी कमी सेशन कोर्ट ने पूरी कर दी 2003 में सेशन कोर्ट ने त्यागी और उनकी टीम को निर्दोष करार देते हुए कहा कि वे अपनी ड्यूटी कर रहे थे. अब जरा याद कीजिये इसी तरह के गुजरात दंगों के अपराधियों के खिलाफ कथित सैक्यूलर पार्टियों ने किस तरह का रवैय्या अख्तियार किया था.यहां मेरा मकसद गुजरात के आरोपियों की शान में कसीदे गढ़ना नहीं है, अगर होश से काम लिया जाये तो यही कांग्रेस बार बार चुनाव के समय मोदी का हौवा खड़ा करती है, मगर क्या आज तक मोदी की निंदा की ?

क्या कभी राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने मोदी के कारनामे को गलत बताया नहीं....मुझे तो याद नहीं है. दरअस्ल इस देश की सबसे बड़ी सांप्रदायिक पार्टी ही कांग्रेस है.क्या मुंबई दंगों में मारे गये लोग इस देश के नागरिक नहीं थे ? क्या वे इंसान नहीं थे ? हां... थे .......मगर ....... मगर वे इन सबसे पहले मुसलमान थे. जिसकी वजह से कांग्रेस की आंखों पर सैक्यूलरिज्म का झूठा चश्मा लग गया. जिसकी वजह से आज दो दशक बाद भी दंगा पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सका. वे आज भी जानवरों जैसी जिंदगी गुजारने पर मजबूर है जिसकी जिम्मेदार है एनसीपी और कांग्रेस. क्योंकि 1999 में से यही पार्टी महाराष्ट्र में शासन कर रहीं हैं.

दूसरे राज्यों की अगर बात करें तो बिहार में 1989 के भागलपुर दंगों के मामले में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद तेजी से फैसला हुआ. उड़ीसा में कंधमाल दंगों के तुरंत बाद भी ऐसा ही हुआ, जो शायद आधुनिक भारत में दंगों के मामले में सबसे तेजी से हुआ फैसला रहा. फिर भी, मुंबई के शर्मनाक दंगों के मामले में फैसला न होने का कारण क्या है ? खैर न्याय मिलना तो अलग रहा 1993 में हुऐ मुंबई दंगों के घायलों को अगर मुआवजे की बात की जाये तो मृतकों को एक लाख रुपये और घायलों को 1500 रुपये का झुनझुना थमा दिया गया थोड़ा पीछे जाय़ें तो पायेंगे कि 1983 को नेली ( असम ) के दंगे में मारे गये 3000 लोगों को मात्र 2000 रुपये ही दिये गये थे जबकि 1984 के दिल्ली के सिख दंगा पीड़ितों को 30 लाख रुपये दिये गये.यहां पर अगर मुनव्वर राना के शेर में थोड़ा संशोधन कर दें तो बेईमानी न होगी ...... शेयर बाजार में कीमत उछलती गिरती रहती है
मगर ये खून ऐ मुस्लिम है कभी महंगा नहीं होगा

ऐसा दौगला व्यवहार आखिर कब तक एक तरफ हमारे नेता दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की, सैक्यूलरिज्म, की दुहाई देते नहीं थकते. दूसरी और एसा भेदभाव, क्या यही लोकतंत्र ? क्या यही है कथित सैक्यूलर पार्टियों का सैक्यूलरिज्म ? सुप्रिम कोर्ट ने जो फैसला आज दिय़ा उसका स्वागत है मगर मुंबई दंगा पीड़ितों को इंसाफ कब मिलेगा ? जिनमें एक हजार से भी अधिक लोगे की जानें गईं थी. जिनकी प्रतिक्रिया में ये विस्फोट हुऐ थे.

और जो इन दंगों के लिये जिम्मेदार थे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 बाबरी मस्जिद शहीद कराकर इस देश को सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंका था उनको सजा तो दूर क्या उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है ? ........ सवाल लोकतंत्र से है.... सवाल सैक्यूलरिज्म का नाटक करने वाली सियासी जमातों से है और सवाल देश की अदालत से है ... मुझे ये सब लिखते - लिखते मुनव्वर राना याद आजाते हैं और उनका ये शेर मेरे मुंह से बरबस ही निकल पड़ता है...
अगर दंगाईयों पर तेरा कोई बस नहीं चलता
तो फिर सुनले हकूमत हम तुझे नामर्द कहते हैं।

wasim-akram-tyagiवसीम अकरम त्यागी युवा पत्रकार हैं.

http://www.janjwar.com/janjwar-special/27-janjwar-special/3830-khoon-muslimon-ka-hai-kabhi-mahanga-na-hoga-waseem-akram-tyagi

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