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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, March 30, 2013

जेल से भेजी मारुती मजदूरों ने अपील

जेल से भेजी मारुती मजदूरों ने अपील

28 MARCH 2013

समर्थन में आज से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू 

मारुती कंपनी प्रबंधन, सरकार और प्रशासन के दमन के खिलाफ 24 मार्च से हरियाणा के कैथल जिले में चल रहा अनिश्चितकालीन धरना आज से आमरण अनशन में बदल गया है. संघर्षरत मज़दूरों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के पक्ष में व्यापक समर्थन की अपील की है. इस मौके पर हम जेल में बंद 147 मजदूरों की और से जारी पत्र को प्रसारित कर रहे हैं...


हम मारुति सुजुकी के वो मजदूर है जिनको 18-7-2012 की दुर्घटना का इल्जाम लगाकर बिना किसी न्यायिक जांच के जेल में डाल दिया गया हैं. हम 147 मजदूर अभी भी गुडगाँव सेंट्रल जेल के सलाखों के पीछे बंध हैं. जुलाई के बाद लगभग 2500 पक्के और कच्चे कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया. पिछले 8 महीनों से हम हरियाणा और केन्द्रीय सरकार के बहुत सारे उच्च अधिकारियों, हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री जी को भी कई बार अपील कर चुके हैं.

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संघर्ष के दौरान मारुती मजदूर                                        फाइल- फोटो

 लेकिन न तो हमारी कहीं सुनाई हो रही है, न ही हमें जमानत दी जा रही है. और तो और, जो हरियाणा पुलिस ने चार्जशीट कोर्ट में पेश की है, उसमें किसी गवाह का नाम नही है और वह आधी अधूरी है. हमारा लोकतान्त्रिक अधिकारो का हनन लगातार हो रहा हैं, और कानून को कंपनी मालिकों के स्वार्थ में व्यवहार किया जा रहा हैं. इस दौरान बहत से कर्मचारियों ने अपने परिवार के सदस्य के साथ-साथ बहत कुछ खो दिया है. काफी मजदूर ऐसे भी है जिनके माता-पिता नहीं हैं और पुरे परिवार का पालन पोषण का भार उन्ही पर है.

काफी ऐसे भी साथी हैं, जब उन्हें जेल में डाला गया, तब उनकी पत्नियाँ गर्भवती थी. उनकी डिलीवरी के समय भी कर्मचारियों को न तो जमानत दी गयी, न ही पे-रोल पे छुट्टी दी गयी और न ही पे-रोल कस्टडी में ही भेजा गया. परिवार में अकेली होने के कारण व पति के जेल में होने के कारण, पता नहीं किन परिस्थितियों में उनकी डिलीवरी हुई है. इसके हम निचे कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है:-

हमारे एक साथी सुमित S/O स्वर्गीय श्री छत्तर सिंह के घर में सुमित और उनकी पत्नी के अलावा कोई अन्य पारिवारिक सदस्य नहीं है. लेकिन फिर भी दिनांक 6.12.2012 को उनकी पत्नी की डिलीवरी गुडगाँव के एक अस्पताल में हुई और उनकी देखभाल के लिए सुमित को कोई भी राहत प्रदान नहीं की गई.

हमारे एक साथी विजेंद्र S/O स्वर्गीय श्री दलेल सिंह अपने परिवार का पालन पोषण करनेवाला अकेला सदस्य है. उसके घर में उसकी पत्नी व बिमार माँ है. उसकी पत्नी की डिलीवरी 10.01.2013 को झज्जर के एक अस्पताल में हुई. विजेंद्र के माँ के बिमार होने के कारण उसकी पत्नी कि डिलीवरी के समय देखभाल करनेवाला कोई नहीं था. लेकिन फिरभी विजेंद्र को पत्नी के देखभाल के लिए डिलीवरी के समय कोई राहत नहीं दी गई.

हमारे साथी रामबिलास S/O स्वर्गीय श्री सीलक राम की दादीमा 26.02.2013 को रामबिलास के वियोग में बिमार हो कर स्वर्ग सिधार गई, क्योकि वह उसकी दादीमा का बहुत लाडला था. और तो और उसे दाह-संस्कार में सामिल होने या दादीमा के अंतिम दर्शन करने के लिए पेरोल कस्टडी में भी नहीं ले जाया गया. कुछ ही दिनों के बाद जब उसकी पत्नी कि डिलीवरी होनी थी तो उसकी जमानत या छुट्टी के लिए याचिका लगाई गई तब भी उसे कोई राहत नहीं दी गई. इससे उसके ऊपर बड़ा मानसिक आघात हुआ है.

हमारे एक साथी प्रेमपाल S/O श्री छिद्दीलाल के उपर पुरे परिवार के पालन पोषण का भार है, वह जब जेल में आया था तब उसके परिवार की रोजी-रोटी उसी के बलबूते पर टिकी हुई थी. परन्तु उसके जेल में आने के बाद उसकी इकलौती बेटी जो मात्र दो साल की थी, जो अपने पापा के वियोग में बीमार होकर पापा-पापा करते हुए भगवान को प्यारी हो गई. ये जख्म अभी हरा ही था कि तभी कुछ दिन बाद प्रेमपाल की माँ बेटे के वियोग में व अपनी लाडली पोती के वियोग में बीमार होकर स्वर्ग सिधार गई. हद तो तब हो गई जब उसकी एक सप्ताह कि छुट्टी भी ख़ारिज कर दी गई व उसे मात्र एक घंटे के लिए दाह-संस्कार होने के अगले दिन पे-रोल कस्टडी में भेजा गया. जबकि गुडिया व माताजी के देहांत के दुःख में घर में अकेली उसकी पत्नी भी बीमार होने के कारण अस्पताल में दाखिल करवानी पड़ी जो अभी भी बिमार है तथा उसकी देखभाल करनेवाला कोई नहीं है. और इस कारण प्रेमपाल बहुत अधिक मानसिक दबाव में है.

हमारे एक साथी राहुल S/O श्री विनोद रतन जो घर में अपने माँ-बाप का एक इकलौता बेटा है व उसकी एक ही बहन है. उसकी बहन कि शादी दिनांक 16.11.2012 को हुई. परन्तु उसे कस्टडी में भी अपनी बहन के शादी के कन्यादान के लिए नहीं भेजा गया जिसके कारण घर की इकलौती बेटी की शादी होते हुए भी घर में मातम जैसा माहौल रहा और राहुल मानसिक दबाव में है.

हमारे एक साथी सुभाष S/O श्री लाल चंद जो कि अपनी दादीमा का बहुत लाडला था. जब वह जेल में आया तो उसके वियोग में उसके दादीमा खाना-पीना छोड़ दिया व कुछ दिन में ही अपने पोते को याद करते हुए स्वर्ग सिधार गई. परन्तु सुभाष को दाहसंस्कार या अंतिम दर्शन के लिए पे-रोल कस्टडी में भी नहीं भेजा गया.

ऐसी और कितनी ही दुख भरी घटनाएँ है, जिन्हें लिखते लिखते एक पूरी किताब बन जाये .

हमारे बारे में: परिचय, परिवार, नौकरी

हम सभी किसान या मजदूरों के बच्चे हैं. माँ-बाप ने हमे बड़ी मेहनत से खून-पसीना एक करके 10वी-12वी या ITI शिक्षा दिलवाई व इस लायक बनाया कि इस जीवन में कुछ बन सके व अपने परिवार का सहारा बन सके.

हम सभी ने कंपनी द्वारा भर्ती प्रक्रिया में लिखित व् मौखिक परीक्षायों को पास करके व् कंपनी की जो जो भी नियम व शर्ते थी, उनपर खरे उतर कर मारुति कंपनी को ज्वाइन किया. जोइनिंग करने से पहले, कंपनी ने सभी प्रकार से हमारी जांच करवाई थी, जैसे- घर की थाने तहसील की व क्रीमिनल जांच करवाई गई थी! पिछले समय का हमारा कोई क्रिमिनल रिकार्ड नहीं हैं.

जब हमने कंपनी को ज्वाइन किया तब, कंपनी का मानेसर प्लांट निर्माणाधीन था. हमने अपने कड़ी मेहनत व लगन से अपने भविष्य को देखते हुए, कंपनी को एक नयी उचाई पर ले गए. जब पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी छायी हुई थी, तब हमने प्रतिदिन दो घंटे एक्स्ट्रा टाइम देकर साल में 10.5 लाख गाड़ियों का निर्माण किया था. कंपनी की लगातार बढ़ते मुनाफा का हम ही पैदावार रहे हैं, जबकि आज हमे अपराधी और खूनी ठहराया जा रहा हैं.

हम लगभग सभी मजदूर गरीब मजदूर-किसान परिवारों से हैं जिनकी जीविका हमारी नौकरी पर ही निर्भर हैं. हमनें अपने व अपने परिवार के भविष्य के सपने बुन रखे थे, कि हमारा भी अपना घर होगा. भाई-बहन व बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलाएंगे, ताकि उनका भविष्य भी उज्जवल हो सके व माता-पिता जिन्होंने इतने कष्ट उठाकर हमें इस लायक बनाया कि हम अपने पैरों पे खड़े हो सकें, उनका जीवन आरामदायक बनायेंगे.

कंपनी में हमारा हर प्रकार से शोषण हो रहा था, जैसे कि-

किसीको भी तबियत ख़राब होने पर डिस्पेंसरी न जाने देना व बिमारी की हालत में भी पूरा काम करवाना.

यहाँ तक कि टॉयलेट भी नहीं जाने दिया जाता था. केवल लांच या टि-टाइम में ही जाने दिया जाता था.

अधिकारीयों का कर्मचारियों के साथ भद्दा व्यवहार व गालिया देना और कभी कभी तो दंड देने के लिए थप्पड़ मारना व मुर्गा बना देना.

यदि किसी कर्मचारी के साथ या उसके परिवार के किसी सदस्य के साथ दुर्घटना या कोई समस्या होने पर या यहाँ तक की किसी सम्बन्धी की मृत्यु होने पर यदि कर्मचारी दो या चार दिन की छुट्टी लेता था, तो उसकी सेलरी का आधा भाग, लगभग नौ हज़ार रुपये काट लिया जाता था.

इस प्रकार शोषण के कारण कर्मचारियों को यूनियन कि जरूरत महसूस हुई. कंपनी यूनियन के खिलाफ थी, जिनके कारण हमारी साल 2011 में तीन हड़ताल हुई, जिसमे हमारे तीस साथियों को नौकरी से निकाल दिया गया. लेकिन आख़िरकार हमने फरवरी 2012 में यूनियन का रजि. करवाया, जिसमे हमारी मदद एच.आर. मैनेजर स्वर्गीय श्री अवनिश कुमार देव ने कि थी. हमारी मदद करने के कारण कंपनी देव जी से बहुत खफा हो गई थी, जिसके चलते देव जी ने नौकरी से अपना इस्तीफा दे दिया था. कंपनी ने पोल खुलने के डर से उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया था. यूनियन को तोडवाने व देव जी को रास्ते से हटाने के लिए एक योजनाबंध तरीके से बाउन्सरों व गुंडों को बुलाकर 18 जुलाई 2012 की 'दुर्घटना' को अंजाम दिया.

अबकी स्थिति

हम 147 मजदूरों को बिना किसी न्यायिक जाँच किये जेल में डाल दिया गया. हमारा जेल में बंध रहते 8 महीनें से ज्यादा समय हो चुका है. यहाँ जेल में हम बहुत मानसिक दबाव झेल रहे है. कई लोगों को टी. बी., पिलिया व किसीको दौरे पड़ रहे है. और बहुत सारे कर्मचारियों को अन्य काफी बिमारियों का सामना करना पड़ रहा है.

हमारे लगभग सभी परिवारों में कमाने वाले केवल हम थे जो जेल में बंध हैं. जिसके कारण परिवारों को भूखे मरने की नोबत आ गई है. औरोतों और बच्चों कि शिक्षा तक भी छुट गई है जो कि उनका मौलिक अधिकार है. हमारा और हमारे परिवार का भविष्य अंधकार हो गया है. हमारे परिवार के सभी सदस्य भी मानसिक तौर पर बहुत परेशान है. हमे डर हैं कि वो परेशानी के कारण कोई गलत कदम न उठाये.

जेल से बाहर कर्मचारियों कि मौजूदा स्थिति 

147 कर्मचारियों को जेल में डालने के साथ साथ कंपनी ने लगभग 2500 कच्चे और पक्के कर्मचारियों की बिना किसी न्यायिक जाँच के नौकरी से निकाल दिया और वह बेरोजगार हो गए. उनकी परिवारों की स्थिति भी गंभीर है. यहा तक कि उनके पास कोई एक्सपीरियंस डोकुमेंट प्रूफ नहीं है और उनका पूरा कैरियर बर्बाद हो चूका है और उनमे से जो भी कोई हमारी पैरवी करने के लिए आगे आता है, उसे भी उठाकर जेल में डाल दिया जाता है (जैसे साथी ईमान खान के साथ किया गया, जिसका नाम कोई एफ.आई.आर., चार्जशीट या एस.आई.टी. रपट में नहीं था; 65 मजदूरों के ऊपर अभी भी गैर-जमानती वारंट जारी हैं). जेल में बंध कर्मचारियों और बाहर बेरोजगार कर्मचारियों के पास अपनी जीविका चलाने का कोई भी साधन नहीं है, जिसके चलते सभी मानसिक दबाव में है. लेकिन इन हालातों के बीच भी जेल के बहार के हमारे साथी जो न्याय के लिए संघर्ष जारी रखे हैं, उससे हमे इन सलाखों के पीछे भी आशा और उर्जा मिलती हैं. आठ महीने के उपर चल रहे इस संघर्ष में हमे देश के अलग अलग प्रान्त से मजदूर, मेहनतकश और आम जनता के समर्थन के खबरे आती रही हैं, जो भी हमे उम्मीद देती रही हैं.

हम अपनी जाँच की मांगों को लेकर सरकार के लगभग सभी मंत्रियों से मिल चुके हैं. राज्य उद्योग मंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री से भी न्याय की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन सरकार हरियाणा के मजदूर-कर्मचारियों की बजाये कंपनी मालिकों की ही तरफ झुकी हुई है. हम अंतिम बार सरकार से अपील करते है कि मरने या मारने के इस मुकाम तक पहुचने से पहले हमारे साथ न्याय हों.

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