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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, February 23, 2016

यह रमन नहीं दमन है : छत्तीसगढ़ में पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर बर्बर हमले


संघर्ष संवाद


यह रमन नहीं दमन है : छत्तीसगढ़ में पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर बर्बर हमले


छत्तीसगढ़ में पत्रकार,वकील,सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हमले : आदिवासियों के ऊपर हो रहे अन्याय,अत्याचार के खिलाफ जो भी मशाल जलायेगा, उस मशाल को सरकार कुचल देगी ?
नक्सल उन्मूलन की सच्चाई उजागर करना इन्हें पुलिसिया प्रताड़ित होकर चूकना पड़ रहा


छत्तीसगढ़ के  बस्तर में आदिवासियों के ऊपर हो रहे अन्याय,अत्याचार के खिलाफ जो भी मशाल जलायेगा, उस मशाल को सरकार कुचल देना चाहती है | बस्तर में अभी वर्तमान में सोनी सोरी के ऊपर हुए हमले से यह साबित होता है की बस्तर में काम कर रहे पत्रकार,सामाजिक कार्यकर्त्ता, और वकीलों जो निशुल्क क़ानूनी लड़ाई लड रहे है सब पुलिस के दुश्मन है, वो ये समझते है की नक्सल उन्मूलन के कार्य में ये हामारी सच्चाई बया करा डालते है | वो हर उस झूट को बेनकाब कर डालते है जो प्रायोजित नक्सल उन्मूलन के नाम पर रची जाती है |

नतीजा यह है की अब सारे पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओ वकीलों पर लगातार एक-एक कर बस्तर में हमले हुए है |  सच्चाई उजागर करना इन्हें पुलिसिया प्रताड़ित होकर सहना पड़ रहा है | अभिव्यक्ति,न्याय की आजदी पर पुलिसिया पहरा लगा दिया गया है |

बस्तर में हाल के दिनों में पुलिसिया दमन की कुछ घटनाये

1) बस्तर में बीते सप्ताह पुलिसिया दमन और उसके द्वारा पोषक मंच के द्वारा  पहला हमला महिला पत्रकार मालिनी सुब्रमणयम के निवास में घर के सामने हुडदंग मचाते हुए कार के शीशे तोड़ते हुए धमकी दी जाती है | देश की जानी मानी महिला पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता मालनी सुब्रह्मण्यम के घर गाली गलौच और धमकी चमकी की गई | यह सब कायरता को इस लिये अंजाम दिया गया क्योकि मालिनी बस्तर में नक्सल उन्मूलन के नाम पर चल रहे आदिवासियों की मार -काट की जगदलपुर में रह कर जमीनी स्तर की निष्पक्ष पत्रकारिता को अंजाम दे रही थी वह स्क्रूल मिडिया के लिए लिखती थी | http://scroll.in/authors/1202 इस लिंक में उनकी सारी साहसिक खबरे मौजूद है जो बस्तर में वर्तमान में नक्सल उन्मूलन में नाम पर किस तरह मार -काट -लूट मची हुई है उन्होंने बेबाकी से बस्तर के आदिवासियों पर हो रहे अन्याय,अत्याचार के खिलाफ कलम चलाई थी |

अब सवाल उन पुलिस के महकमे से आखिर मालिनी के लिखने  से पुलिसिया अधिकारियो को दिक्कत क्या था ? क्या वो जो मिशन 2016 के नाम पर लगातार आत्मसमर्पण, और मुठभेड़ो की घटनाएँ एक झूट है , जिसकी पोल न खुल जाये इसके चलते एक पत्रकार को प्रताडित  कर उसके साथ धमकी चमकी किया जाता है | की वाह बस्तर में चल रहे सरकार के नक्सल उन्मूलन के नाम पर खुनी मंजर को लिख न सके | हा पुलिस ने उसे प्रताड़ित किया है , और जिन लोगो ने उनके घर पर हमला किया उसको भी पुलिस का पोषक ही माना जाता है |

2) दूसरा हमला बस्तर में पुलिसिया दमन का शिकार न्याय पर भी हुआ | बड़े ला यूनिवर्सिटी से पढ़कर अपना लाखों का कैरियर छोड़कर आये लीगल एड संस्था के युवा वकीलों ने बस्तर में नक्सल उन्मूलन के नाम पर बेगुनाहों को फ़साये जाने की वकालत करते थे (http://naidunia.jagran.com/madhya-pradesh/mandsaur-forbes-magazine-named-neemuch-isha-khandelwal-303564)
                        

आदिवासियों का निशुल्क क़ानूनी  मामला लड़ने वाले लीगल एड के महिला वकीलों ईशा और शालनी के ऊपर बस्तर के बड़े पुलिस अधिकारी मिडिया की प्रेस वार्ता में हमेशा इन पर आरोप लगाते रहे, नक्सल समर्थक बनाने में तुले रहे, वहा के वकीलों ने भी वकालत पर पाबन्दी लगानी चाही , प्रताड़ित किया जाता रहा, पोषक मंच के द्वारा नारे बाजी हुडदंग मचाते रहे इन्हें इतना प्रताड़ित किया गया की ये बस्तर छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया,  इन्हें प्रताड़ित करने का कारण यह था की सैकड़ों आदिवासियों के खिलाफ पुलिस  के काली नीति के तहत बस्तर में बनाये हजारों फर्जी मामलों की यह पैरवी करती थी निर्दोषों, बेगुनाहों की जो फर्जी मामलो में फ़साये गये है उनकी क़ानूनी लड़ाई लड़  न्यायालय से उन्हें बाइज्जत बरी करा लेती थी |
                            
जिस माकान  में यह लोग रह रहे थे उसके माकान मालिक को डरा धमका कर जबरन माकन खाली करवाने को कहा गया, यही नही फिर पुलिस पोषक मंच के द्वारा उनके दफ्तर के सामने नारे बाजी की गई, उन पर मानसिक इतना दबाव बनाया गया की वाह किसी निर्दोष आदिवासी की वकालत ही नही कर पाये| यह दूसरा हमला बस्तर में न्याय व्यवस्था पर था |
       
अब सवाल पुलिसिया महकमे से आखिर इनकी वकालत से पुलिस इतनी डरती क्यों थी ? पुलिस को मालूम था कि हम जिन लोगो को नक्सली बता रहे है वाह लोग निर्दोष -बेगुनाह है और यह लोग उनकी वकालत कर उन्हें बाइज्जत बरी करा लेंगे ? जिससे सरकार और पुलिसिया नुमाइंदो की नाक कट जाएगी? मिशन 2016 धरी की धरी रह जाएगी ? पुलिस इन महिला वकीलों से डरती थी ? इनकी वकालत से डरती थी ? क्योकि इन्होने सैकड़ो बेगुनाहों की पैरवी कर उन्हें निर्दोष साबित किया था | पुलिस चाहती है की नक्सल उन्मूलन के नाम पर जिन बेगुनाहों की की वकालत की जाती है क्या उनकी वकालत कोई न करे उन्हें वैसे ही सड़ने दिया जाए जिसके चलते पुलिस इनसे डरती है ? 

3 ) तीसरा सबसे बड़ा हमला बस्तर में  आप नेत्री सोनी सोरी पर हुआ इस हमले ने सबको झंझोर कर रख दिया | जब वाह अपने घर जा रही थी तब अज्ञात हमलावरों ने उन्हें रोका कर एसिड जैसा ही काला ज्वलन शील पदार्थ उनके चेहरे पर मल कर भाग गये | इस हमले को भी पुलिसिया दमन निति से जोड़ा जा रहा है जिसका कारण है की सोनी सोरी को लगातार धमकी भरे पत्र मिल रहे थे पोषक मंच के द्वारा लगातार उन्हें धमकाया जा रहा था, सोनी पुलिस के निशाने पर थी | हाल ही उसने पुलिस के एक बड़े अधिकारी के खिलाफ fir दर्ज कराने चाहि लेकिन पुलिस ने नही लिया वो लगातार गुहार लगाती रही है मुझे जान का खतरा है लेकिन सरकार और पुलिस ने एक न सुनी | और
 
सोनी सोरी को जान का खतरा और पुलिसिया दमन की शिकार इस लिये हो रही थी क्योकि बस्तर में बेगुनाह आदिवासियों की बुलंद आवाज बन चुकी थी सोनी सोरी |
नक्सल उन्मूलन के नाम जितने मुठभेड़ हो रही है उसकी तहिकिकात कर उसे जनता के सामने ला रही थी सोनी सोरी |

आदिवासियों के हक़ का अधिकार के रैली को नक्सल रैली बताने वालो का विरोध कर रही थी सोनी सोरी |
तमाम धमकियों से जूझते हुए बेबाकी से निडर हो कर आदिवासियों के दमन,शोषण,आत्याचार,अन्याय के खिलाफ आदिवासियों की एक बुलंद आवाज बन चुकी थी सोनी सोरी| मुझे उनके भूतकाल के बारे में चर्चा नही करनी है उनका भूतकाल  पुलिसिया आत्याचार का इतना भयानक रूप था की रोंगटे खड़े हो जाते है |

                     
वही इससे पहले संतोष यादव /सोमारू नाग इसी पुलिस की रणनीति की भेट चढ़ गए | वो भी आदिवासियों की आवाज बनने की जुर्रत कर रहे थे उन्होंने भी हिम्मत दिखाई उनकी हिम्मत को भी काल कोठारी में बंद कर दिया गया |

जाहिर सी बात है जब सरकार और बस्तर पुलिस के नक्सल उन्मूलन की पोल जब ये सामाजिक कार्यकर्त्ता, वकील, पत्रकार खोल रहे है तो उन्हें प्रताड़ित करेगी ही हर वो तरिका अपनाएगी जिससे ये मानसिक तरह से प्रताड़ित हो कर आदिवासियों की आवाज न उठाये , बेगुनाहों की जान जाये, निर्दोष जेल में ठुसे जाए कोई आवाज नही आनी चाहिए और आवाज लगा दिया तो उस आवाज तो दबा दिया जाता है |
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