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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, February 28, 2016

‪#‎मनुस्मृति_ईरानी‬ के लिए ‪#‎सुषमा_असुर‬ का एक संदेश..

‪#‎मनुस्मृति_ईरानी‬ के लिए ‪#‎सुषमा_असुर‬ का एक संदेश...🌳🌴
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स्मृति ईरानी जी,
जोहार. मेरी मां का देहांत हो गया है इसलिए पहाड़ों से उतर कर नीचे नहीं आ पा रही हूं. 3 मार्च को उसका अंतिम संस्कार होना है। पर अभी-अभी मालूम हुआ कि आपने संसद में 'महिषासुर शहादत दिवस' मनाने वालों को देशद्रोही कहा है। क्या आपको पता है 'असुर' संवैधानिक रूप से भारत सरकार द्वारा अनुसूचित एक आदिम जनजातीय समुदाय है? जो यह मानते हैं कि महिषासुर उनका पुरखा था। यही नहीं ‪#‎संताल और ‪#‎कोरकु‬ आदिवासी समुदायों की तरह देश के अन्य कई मूलवासी समुदाय भी महिषासुर को अपना पुरखा मानते हैं। फिर मंत्री पद पर रहते हुए आपने कैसे ऐसा नस्लीय और अभारतीय बयान दे दिया?

मैं एक संसाधनविहीन असुर समुदाय की बेटी हूं. भारत के सभी नागरिकों से अपील करती हूं, कि वे ऐसे नस्लीय और असंवैधानिक बयान का संज्ञान लें और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर हम असुरों के सम्मान की रक्षा करने में हमारी मदद करें।

- सुषमा असुर, गांव सखुआपानी, जोभीपाट, नेतरहाट (झारखंड)


वैशाली की नगरवधू और सोप ओपेरा में तब्दील लोकतंत्र का बेनकाब चेहरा
पलाश विश्वास
हकीकत की जमीन,हिमांशु कुमार की जुबानः
अगर आप किसी पतीली में उबलते हुए पानी में मेढक को डाल दें तो वह मेढक झट से कूद कर बाहर आ जाएगा
लेकिन अगर आप एक पतीली में ठंडा पानी भरें और उसमें एक मेंढक को डाल दें
और उस पतीली को आग पर रख दें तो मेंढक बाहर नहीं कूदेगा
और पानी उबलने पर मेंढक भी उसी पानी में मर जाएगा
ऐसा क्यों होता है ?
असल में जब आप मेंढक को उबलते हुए पानी में डालते हैं तो वह जान बचाने के लिए बाहर कूद जाता है .
लेकिन जब आप उसे ठन्डे पानी में डाल कर पानी को धीरे धीरे उबालते हैं
तब मेंढक अपने शरीर की ऊर्जा खर्च कर के अपने शरीर का तापमान पानी के तापमान के अनुसार गरम करने लगता है ,
धीरे धीरे जब पानी इतना गर्म हो चुका होता है कि अब मेढक को जान बचाना मुश्किल लगने लगता है तब वह पानी से बाहर कूदने का इरादा करता है
लेकिन तब तक उसमें कूदने की ऊर्जा नहीं बची होती
मेढक अपनी सारी ऊर्जा पानी के तापमान के अनुरूप खुद को बदलने में खर्च कर चुका होता है
और मेढक को गर्म पानी में उबल कर मर जाना पड़ता है
यह कहानी आपको सुनानी ज़रूरी है
अभी भारत के नागरिकों को भी गरम पानी की पतीली में डाल दिया गया है
और आंच को धीरे धीरे बढ़ा कर पानी को खौलाया जा रहा है
भारत के नागरिक अपने आप को इसमें चुपचाप जीने के लिए बदल रहे हैं
लेकिन यह आंच एक दिन आपके अपने अस्तित्व के लिए खतरा बन जायेगी
तब आपके पास इसमें से निकलने की ताकत ही नहीं बची होगा
मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूँ
सरकार नें अमीर कंपनियों के लिए छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासियों के साढ़े छह सौ गाँव जला दिए
सारे देश नें चुपचाप सहन कर लिया
सरकार नें आदिवासियों को गाँव से भगाने के लिए महिलाओं से बलात्कार करना शुरू किया
सारे देश नें चुपचाप सहन कर लिया
सरकार नें आदिवासियों के लिए आवाज़ उठाने के लिए सोनी सोरी को थाने में ले जाकर बिजली के झटके दिए
और उसके गुप्तांगों में पत्थर भर दिए
सारे देश नें सहन कर लिया
अब सरकार नें सोनी सोरी के चेहरे पर एसिड डाल कर जला दिया
हम सब चुप हैं
सरकार अमीर सेठों के लिए ज़मीन छीनती है
हम चुप रहते हैं
सरकार के लोग दिल्ली की अद्लातों में लोगों को पीट रहे हैं हम चुप हैं
हम चाहते हैं हमारा बेटा बेटी पढ़ लिख लें
हमारे बच्चों को एक नौकरी मिल जाएँ
हमारे बच्चे सेटल हो जाएँ बस
हम क्यों पचडों में पड़ें
हम महज़ पेट के लिए चुप हैं
कहाँ गया हमारा धरम , नैतिकता , बड़ी बड़ी बातें ?
मेंढक की तरह धीरे धीरे उबल कर मर जायेंगे
लाश बचेगी बस
पता भी नहीं चलेगा अपने मर जाने का
लाश बन कर जीना भी कोई जीना है
जिंदा हो तो जिंदा लोगों की तरह व्यवहार तो करो



संदर्भः
  • 'वैशाली की नगरवधू' चतुरसेन शास्त्री की सर्वश्रेष्ठ रचना है। यह बात कोई इन पंक्तियों का लेखक नहीं कह रहा, बल्कि स्वयं आचार्य शास्त्री ने इस पुस्तक के सम्बन्ध में उल्लिखित किया है -
मैं अब तक की अपनी सारी रचनाओं को रद्द करता हूँ, और वैशाली की नगरवधू को अपनी एकमात्र रचना घोषित करता हूँ।
  • भूमिका में उन्होंने स्वयं ही इस कृति के कथानक पर अपनी सहमति दी है -
यह सत्य है कि यह उपन्यास है। परन्तु इससे अधिक सत्य यह है कि यह एक गम्भीर रहस्यपूर्ण संकेत है, जो उस काले पर्दे के प्रति है, जिसकी ओट में आर्यों के धर्म, साहित्य, राजसत्ता और संस्कृति की पराजय, मिश्रित जातियों की प्रगतिशील विजय सहस्राब्दियों से छिपी हुई है, जिसे सम्भवत: किसी इतिहासकार ने आँख उघाड़कर देखा नहीं है।



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