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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, May 2, 2012

एक आभिजात्‍य सनक में बदलता जा रहा है तैमूर का “लाल”

http://mohallalive.com/2012/05/02/why-laal-split/

 विश्‍वविद्यालयशब्‍द संगत

एक आभिजात्‍य सनक में बदलता जा रहा है तैमूर का "लाल"

2 MAY 2012 3 COMMENTS

♦ शहराम अजहर

तैमूर रहमान द्वारा लिखा गया नोट और कल शाम जेएनयू में उनकी बातचीत वास्तव में शहराम अजहर के इस आरोप की पुष्टि ही करते हैं कि लाल एक 'अभिजातीय सनक में तबदील' हो रहा है। राजनीतिक शब्दावलियों और लफ्फाजियों के बावजूद वास्तविक राजनीतिक सवालों से कतराना, सोवियत संघ और चीनी सांस्कृतिक क्रांति को लेकर मध्यवर्गीय नैतिकता से ओत-प्रोत फैसले सुनाना इसे जाहिर करने के लिए काफी थे कि लाल मुश्किल से सीपीएम-सीपीआई की शैली वाली 'क्रांतिकारिता' के करीब ही पहुंच सका है। इसकी इस थोथी अभिजात राजनीतिक समझ में ही गिरावट और भटकाव के बीज छिपे हुए हैं। यही राजनीतिक समझ एक तरफ मे-डे कैफे के नाम से क्रांति की दुकान चला रही है, तो दूसरी तरफ मशहूरियत और कामयाबियों के लिए राजनीतिक सरोकारों और मकसद को बेच रही है। इसीलिए हैरानी की बात नहीं है कि भारत में लाल के बड़े तरफदारों में वही लोग शामिल हैं, जिन्होंने यहां क्रांति को धोखा दिया है और जनता के हितों के खिलाफ खड़े हैं : रेयाज उल हक

इससे पहले लाल बैंड के तैमूर रहमान की लिखी पोस्‍ट पढ़ि‍ए… उठो मेरी दुनिया, गरीबों को जगा दो!


मैं.चाहूंगा कि मैं उस भ्रम को दूर करूं जो हाल ही में एक्सप्रेस ट्रिब्यून को दिये गये मेरे इंटरव्यू से पैदा हो सकता है। मैं शुरू में ही कहना चाहूंगा कि (लाल बैंड में आयी) यह दरार किसी निजी मतभेद की वजह से पैदा नहीं हुई है, न ही यह लाल के मुख्य गायक के रूप में काम करते रहने की किसी चाहत से पैदा हुई है। 2010 में जब तैमूर ने यह साफ कर दिया था वे गायक के रूप में काम करना चाहते हैं, तो मैंने उनको अनेक मौकों पर लिखा और कहा कि 'मैं खुद को आंदोलन के एक सिपाही के रूप में देखता हूं और देखता रहूंगा : जो आंदोलन सामाजिक बदलाव की एक तलाश है जिसे फैज और जालिब ने शुरू किया था।'

2008 में जब बैंड बना था, तो यह साफ था कि हम इसे उत्पीड़ित, शोषित और समाज के दबे-कुचले तबकों के अधिकारों से सरोकार रखने वाले मसलों पर जागरुकता पैदा करने के लिए एक मंच के बतौर इस्तेमाल करेंगे। यह व्यापक दर्शकों तक पैगाम ले जाने का एक मौका था। हम संगीत उद्योग में प्रभुत्व के लिए होड़ नहीं कर रहे थे, हम इस तहरीक से नौजवानों को प्रेरित करने की कोशिश कर रहे थे। हमें जो ताकत प्रेरित कर रही थी वह इनकलाब थी, न कि निजी मशहूरियत। लाल का एक तहरीक के रूप में गिरावट और इसके एक तिजारती शोर-शराबे में बदल जाने ने इसके सबसे प्रतिबद्ध नौजवान बुद्धिजीवियों को यह सवाल करने पर मजबूर किया है और उनका यह पूछना जायज ही है कि : कहां है वह इनकलाबी तहरीक, जिसे हम खड़ी करना चाहते थे? क्या फैशन शो में प्रस्तुतियां करना इसे खड़ा करने का रास्ता है? क्या टी-शर्ट बेचना वह मकसद है, जिसे हमने खुद के लिए तय किया था? लाल में मेरी गैरमौजूदगी और इसमें आयी गिरावट को लेकर मुझे अपने दोस्तों और प्रशंसकों के सैकड़ों पैगामात मिले तो मैंने आठ महीने पहले फैसला किया कि लोगों के सामने मैं सच्चाई को पेश करूं। हालांकि लाल ब्रिगेड के मेरे कॉमरेडों ने मुझसे कहा कि मेरा बयान उनके उन कामों पर पूरी तरह पानी फेर देगा, जिन्हें वे लाल के मंच का इस्तेमाल करते हुए किसी तरह कर रहे थे। मैंने उनकी सलाह मानी और चुप रहा। मेरी खामोशी मेरे कॉमरेडों की सामूहिक इच्छा के नतीजे में पैदा हुई थी और इसीलिए मैंने अब इसे तोड़ने का फैसला किया है। इसे एक और एलीटिस्ट सनक में बदल जाने के पहले इसके पीछे के दर्शन को बचा ले जाना जरूरी है।

यह बदकिस्मती ही है कि कैसे वे विचार और विजन जो अपने मूल रूप में बहुत साफ थे, सिर के बल खड़ी हो गये हैं। निजी तौर पर मेरे लिए मुख्यधारा की कामयाबी (या इसकी कमी) केवल उसी हद तक मायने रखती है, जब तक यह हमारे मकसद को आगे बढ़ाने में मदद करती है। तब भी यह ऐसा था और अब भी ऐसा ही है। जब मैंने जालिब का यह शेर गाया तो मैं इसे दिल से मानता भी था :

ऐ मेरे वतन के फनकारो जुल्मत पे ना अपना फन वारो
ये महल सराओं के वासी कातिल हैं सभी अपने यारों


अपने संघर्ष के हर कदम पर मैंने तैमूर की मशहूरियत की तमन्ना और लाल ब्रिगेड के सदस्यों के इनकलाबी जोश के बीच पुल को तलाशने की कोशिश की। मैं अपने बेहतरीन दोस्त की मकबूलियत की ललक और उन नौजवानों के बीच झूलता रहा, जो एक तहरीक से कम किसी भी चीज की चाहत नहीं रखते। और मैंने इस दूसरी चीज को चुना है। मैं मानता हूं कि नौजवानों की एक ईमानदार इनकलाबी तहरीक ही हमारे देश को बेहतर बना सकती है, रूपांतरित कर सकती है। मैं मानता था और अब भी मानता हूं कि फैज और जालिब के पैगामों में हमारे वतन को बदल देने की ताकत है अगर ये समाज के उत्पीड़ित, शोषित तबकों के दिलो-दिमाग में पैठ जाएं। हमें तिजारती मुनाफों की कसौटियों के आगे घुटने टेकने की जरूरत नहीं है। अगर यह आदर्शवाद है, तो मैं इस आदर्शवाद के साथ खड़ा हूं।

हाशिया से कॉपी/पेस्‍ट

शहराम अजहर पाकिस्‍तान के मशहूर मार्क्‍सवादी अर्थशास्‍त्री हैं, राजनीतिक कार्यकर्ता हैं और गायक हैं। वे लाल बैंड के मुख्‍य गायक थे। लाहौर यूनिवर्सिटीज ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज से ग्रैजुएट होने के बाद उन्‍होंने वारविक यूनिवर्सिटी से मास्‍टर्स की डिग्री ली। हबीब जालिब की एक नज्‍म उन्‍होंने गायी, मैंने कहा… इस नज्‍म को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहचान मिली।

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