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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, August 3, 2012

घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने!मंगल में जीवन हो या न हो, भारत में जीवन विलुप्त होने को है, अगर नरसंहार की संस्कृति इसी तरह बेलगाम जारी रहे!

घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने!मंगल में जीवन हो या न हो, भारत में जीवन विलुप्त होने को है, अगर नरसंहार की संस्कृति इसी तरह बेलगाम जारी रहे!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने! जब इक्कीसवीं सदी का सबसे बड़ा सूखा मुल्क के सामने है और कुछ ही दिनों पहले लगभग आधा देश अंधेरे में डूबा हुआ था,भारत अगले साल मंगल पर अपना अंतरिक्ष यान भेजने की तैयारी में है। कुछ लोग कह रहे हैं कि ये अंतरिक्ष में पहुंचने के लिए एशिया के मुल्कों के बीच नई प्रतिस्पर्धा की शुरूआत होगी।मंगल में जीवन हो या न हो, भारत में जीवन विलुप्त होने को है, अगर नरसंहार की संस्कृति इसी तरह बेलगाम जारी रहे!इसरो के मुताबिक मंगल मिशन का मुख्य मकसद वहां जीवन की संभावना तलाशना और जलवायु और भूगर्भीय अध्ययनों को अंजाम देना होगा। इसके लिए पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी-एक्सएल) के इस्तेमाल से एक ऑर्बिटर को मंगल के ऑर्बिट में लॉन्च करने पर विचार किया जा रहा है। इस ऑर्बिटर को 500*80,000 किलोमीटर के ऑर्बिट में लॉन्च किया जाएगा। ऑर्बिटर 25 किलो तक वैज्ञानिक उपकरण ले जा सकेगा।बीबीसी के मुताबिक साल 2008 में भारत ने चंद्रमा पर एक मानवरहित यान - चंद्रयान 1 - भेजा था जिसने इस बात के सबूत इकट्ठा किए थे कि वहां पानी मौजूद है।अब भारत मंगल के लिए इसी तरह की योजना लागू करने की प्रक्रिया में है।भारत का मंगल ग्रह मिशन नवंबर 2013 में श्रीहरिकोटा से लांच किया जा सकता है, जिसके लिए फिर से पीएसएलवी का प्रयोग होगा।भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने बैंगलोर में कहा है कि संगठन अब पीएसएलवी जैसे रॉकेट और संचार सैटेलाइट की बजाए अग्रणी टेक्नालॉजी डेवलप करने में ध्यान केंद्रित करेगा।
उन्होंने कहा कि रॉकेट निर्माण जैसे क्षेत्र में निजी कंपनियों को लगाया जा सकता है।भारत सरकार मंगल ग्रह मिशन के लिए चार करोड़ दस लाख डॉलर आवंटित कर दिए हैं। इसपर प्रस्तावित 11.2 करोड़ डॉलर ख़र्च आएगा।



देश में सूखा पड़ने के आसार काफी बढ़ गए हैं। मौसम विभाग के मुताबिक अब तक पूरे देश में 19 फीसदी कम बारिश हुई है।पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अब तक करीब 70 फीसदी तक कम बारिश हुई है। वहीं सौराष्ट्र और कच्छ समेत पूरे गुजरात में करीब 80 फीसदी तक कम बारिश हुई है। आगे भी मॉनसून के सुधरने की संभावना नहीं है। अल नीनो की वजह से सितंबर में हालात और खराब होने के आसार जताए जा रहे हैं।खेती चौपट है। हर साल मौसम का रोना है। उच्च तकनीक सिर्फ रक्षा, सूचना, मनोरंजन और अंतरिक्ष अभियान के लिए है, किसानों के​ ​ लिए नहीं है। जल संसाधनों के सुनियोजित इस्तेमाल और बदलते मौसम चक्र के मुताबिक मानसून संकट की हालत में जो अनुसंधान ​​होने चाहिए, उनके लिए सरकारे के पास पैसे नहीं है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मंटेक सिंह आहलूवालिया उर्वरकों में सब्सिटी घटाने के​ ​ बाद डीजल की कीमत बढ़ाने की सिफारिश करते हुए खेती को और बाट लगाने के पिराक में है। जब अपने देश में लाखों किसान  आत्महत्या करने को मजबूर हो और सरकार उनकी कोई मदद करने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में नासा के दिशा निर्देश में यह अंतरिक्ष अनुसंधान किसके काम की चीज है?बारिश में कमी से देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। केयर रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस के मुताबिक इस साल देश की जीडीपी 6 फीसदी तक रह सकती है। ऐसे में सरकार को वित्तीय घाटा बढ़ना तय है।

कैबिनेट ने मिशन मून की कामयाबी के बाद मंगल ग्रह के लिए उपग्रह छोड़ने की शुक्रवार रात मंजूरी दे दी। सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में मंगल का अध्ययन करने के लिए उसकी कक्षा में उपग्रह भेजने के अंतरिक्ष विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। संभावना है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 25 किलोग्राम वैज्ञानिक पेलोड के साथ उपग्रह को मंगल के लिए अगले साल नवंबर तक छोड़ सकता है। यदि इसरो अगले साल मंगल अभियान शुरू करने में असफल रहता है तो उसके पास 2016 और 2018 में संभावनाएं मौजूद हैं।मंगल अभियान के दौरान उपग्रह के माध्यम से ग्रह के वातावरण का अध्ययन किया जाएगा। उपग्रह को इसरो के रॉकेट ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) से छोड़ा जाएगा। सरकार से मिशन की मंजूरी भी अब मिल गयी है।जब अर्थ व्यवस्था पटरी से उतरी हुई है, आम लोगों के लिए जीवन निर्वाह करना असंभव हो गया है। वित्तीय घाटा, महंगाई मुद्राश्पीति और सरकारी खर्च पर कोई लगाम नहीं है, तब महाशक्ति बनने की यह महत्वांकाक्षा कितनी जायज है?कमजोर मानसून के कारण चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि घटकर 6.0 प्रतिशत पर आ सकती है। पिछले वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत थी।कुछ अर्थशास्त्री तो यहां तक कहने लगे हैं कि देश की विकास दर पांच फीसदी तक गोता लगा सकती है। रिजर्व बैंक का अनुमान 6.5 फीसदी का है और बजट में 7.2 फीसदी का लक्ष्य रखा गया था।कभी भारत की विकास दर 9.5 फीसदी थी और इस लिहाज से अर्थव्यवस्था तीन से साढ़े तीन फीसदी का गोता लगाने जा रही है। कम सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का अर्थ है गरीबी उन्मूलन में कटौती और सरकार के पास संसाधनों का कम हो जाना। सरकार का वित्तीय घाटा पहले ही काफी ऊंचे स्तर पर है और अगर इसे ठीक नहीं किया गया, तो उसका क्रेडिट रेटिंग पर और असर पड़ेगा। तमाम दूसरी परेशानियों के अलावा इससे महंगाई भी बढ़ेगी। वैसे ही यह महंगाई रिजर्व बैंक को क्रेडिट पॉलिसी में बड़े बदलाव करने से रोक रही है। कम विकास का अर्थ है कम राजस्व, ऐसे में अगर खर्चो में कमी नहीं की गई, तो वित्तीय दबाव और बढ़ सकता है।

इसी बीच मंगल ग्रह पर जीवन का पता लगाने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यान शनिवार को अपने अभियान पर रवाना हो गया। फ्लोरिडा स्थित केनवेरेल एयरफोर्स स्टेशन से मानवरहित एटलस-5 विमान इस यान को लेकर रवाना हुआ।नासा का यह अब तक का सबसे महंगा प्रोजेक्ट है। इस अभियान पर 2.5 अरब डालर का खर्च आने का अनुमान है। 'लाल ग्रह' तक पहुंचने में इस विमान को करीब नौ महीने का समय लगेगा। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य मंगल पर मानव जीवन की संभावनाओं की तलाश करना है। इसके जरिये मंगल के क्रमिक विकास से संबंधित दुर्लभ जानकारियां जुटाई जाएंगी। परमाणु ऊर्जा से संचालित क्यूरोसिटी रोवर नामक नासा के यान में 17 कैमरे और दस उपकरणों के अलावा मिंट्टी व चंट्टानों के नमूनों की जांच के लिए रसायन प्रयोगशाला भी है। क्यूरोसिटी मंगल पर भेजे गए पूर्व के रोवर से पांच गुना भारी है।

भारत ने मंगल ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिशें तेज कर दी हैं। स्पेस डिपार्टमेंट के एक टॉप अधिकारी की मानें तो जल्द ही मंगल मिशन की शुरूआत हो सकती है। मिशन अगले साल नवंबर में शुरू होने की संभावना है। मिशन का मकसद वहां पर जीवन की संभावनाओं का पता लगाने सहित और कई तरह की स्टडी करना है।इसरो के चेयरमैन और डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस में सेके्रटरी के. राधाकृष्णन ने रिपोर्टरों से कहा, मंगल मिशन को लेकर काफी स्टडी की गई है। मैं आश्वस्त हूं कि जल्द ही हमें मंगल मिशन की घोषणा का समाचार सुनने को मिलेगा। इसरो के अधिकारियों के मुताबिक प्रस्तावित मंगल मिशन को लेकर काफी काम हुआ है और वैज्ञानिक उपकरणों का भी चयन कर लिया गया है। सरकार से मिशन की मंजूरी भी अब मिल गयी है। भारत अगले महीने तीन उपग्रहों और इस साल के अंत तक दो और उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के डायरेक्ट पी एस वीरराघवन ने कहा कि हम अगले महीने पीएसएसवी-सी21 (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) रॉकेट के जरिए एक फ्रांसीसी उपग्रह स्पॉट-6 व एक छोटे जापानी उपग्रह का प्रक्षेपण करेंगे। तीसरा एक संचार उपग्रह जीसैट-10 है।


मजबूत यूरोपीय संकेत और निचले स्तरों पर आई खरीदारी ने बाजार को संभाला।वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के वित्त मंत्री पद से इस्तीफा देने के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय की कमान अपने हाथों में ले ली। मनमोहन सिंह के वित्त मंत्रालय की कमान संभालते ही आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया रफ्तार पकड़ने लगी। इसके बाद मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय का जिम्मा पी चिदंबरम को सौंप दिया।इंडस्ट्री के साथ बाजार के जानकार भी पी चिदंबरम के वित्त मंत्री बनने का स्वागत कर रहे हैं। जानकारों का मानना है कि पी चिदंबरम के कार्यकाल में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया जरूर रफ्तार पकड़ेगी। यही वजह है कि बाजार के दिग्गज जानकार आर्थिक सुधार के रफ्तार पकड़ने पर बाजार में मजबूती आने की उम्मीद जता रहे हैं।हालांकि देश के शेयर बाजारों में शुक्रवार को गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 26.43 अंकों की गिरावट के साथ 17197.93 पर और निफ्टी 12.05 अंकों की गिरावट के साथ 5215.70 पर बंद हुआ। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 59.88 अंकों की गिरावट के साथ 17164.48 पर और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक निफ्टी 32.15 अंकों की गिरावट के साथ 5195.60 पर खुला।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संभावनाएं उतनी प्रबलनहीं दिख रही हैं। केंद्रीय बैंक ने कहा कि बाहरी एजेंसियों और अर्थशास्त्रियों ने जो अनुमान व्यक्त किए हैं उनमें इस बात की स्पष्ट झलक दिख रही है। आरबीआई ने वृहद आर्थिक हालात और मौद्रिक विकास की पहली तिमाही समीक्षा रिपोर्ट 2012-13 में कहा, 'वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता के बीच मंदी, ऊंची महंगाई, बढ़ते चालू और वित्तीय घाटे  और निवेश में कमी जैसे कारकों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है।'रिपोर्ट में कहा गया है कि एनसीएईआर बिजनेस इंडेक्स जुलाई 2012 में एक बार फिर नीचे आ गया है। अप्रैल 2012 के दौरान इंडेक्स ने कारोबारी महौल में सुधार दर्शाया था। आरबीआई ने कहा कि खराब वैश्विक हालात और घरेलू स्तर पर मौजूदा चिंताओं जैसे औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में कमी, महंगाई का ऊं चा स्तर, चालू खाता घाटा आदि के कारण वित्त वर्ष 2012-13 के लिए विकास के अनुमान में 0.2-0.8 प्रतिशत अंक तक की कमी की गई है।

अगले साल यानी वर्ष 2013 में एक बड़ा आर्थिक झंझावात आने वाला है जिसके परिणामस्वरूप भूमंडलीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठहर जाएगी। यह भविष्यवाणी किसी सिरफिरे ने नहीं, बल्कि एक सम्मानित अर्थशास्त्री ने की है। उनका नाम है- नूरियल रूबिनी। वे न्यूयार्क विश्वविद्यालय के स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं।रूबिनी का जन्म 29 मार्च 1959 को इस्ताम्बुल में हुआ था। उनके मां-बाप ईरानी मूल के यहूदी थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इटली में हुई और उच्च शिक्षा अमेरिका के प्रतिष्ठित हार्वर्ड विश्वविद्यालय में। वे चर्चा में वर्ष 2006 में तब आए जब उन्होंने 7 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रकोष द्वारा आयोजित एक बैठक में अति मंदी के आने की बात बड़े आत्मविश्वास और दृढ़ता के साथ कही। कई लोग अचंभित हो गए तो अन्य ने उनके कथन को बेतुका बतलाया। जिस समय रूबिनी ने आसन्न दीर्घकालिक मंदी की बात कही उस समय अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रत्यक्षतया काफी मजबूत स्थिति में थी। कई लोग स्वर्णकाल होने की बात कह रहे थे। रूबिनी ने कहा कि रेहन पर आवास खरीदने वाले जब अपनी किश्तें नहीं चुका पाएंगे तब वित्तीय व्यवस्था का विध्वंस आरंभ होगा जिसके व्यापक असर होंगे और सारी विश्व अर्थव्यवस्था उसकी चपेट में आ जाएगी।

जून 2012 में आरबीआई के कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे में उपभोक्ताओं की धारणा कमजोर दिखी थी। इससे मौजूदा अवधि के लिए उपभोक्ताओं के विश्वास में और गिरावट दर्ज की गई। इसी तरह, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आरबीआई के इंडस्ट्रियल आउटलुक सर्वे में आलोच्य अवधि और 2012-13 की दूसरी तिमाही के लिए भी कारोबारी धारणा कमजोर पडऩे की बात सामने आई।

आरबीआई ने यह भी कहा कि विनिर्माण और सेवा (जून 2012) दोनों ही के लिए सीआईआई बिजनेस कॉन्फिडेंस इंडेक्स और एचएसबीसी मार्किट पर्चेजिंग मैंनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) से निराशा ही सामने आई। हालांकि सीआईआई कान्फिडेंस इंडेक्स में थोड़ा सुधार हुआ और बिक्री को लेकर आशा जगी वहीं पीएमआई ने कारोबारी माहौल और उत्पादन में बढ़ोतरी का संकेत दिया।
आरबीआई ने आगे कहा कि कई कारोबारी मानदंडों पर आधारित बिजनेस एक्सपेक्टेशन इंडेक्स (बीईआई) ने भी आलोच्य (पहली तिमाही) और दूसरी तिमाहियों के लिए अनुमान में कमी का संकेत दिया।

आरबीआई ने कहा कि उद्योग और सेवा क्षेत्र के माध्य वृद्धि अनुमानों में कमी आई है लेकिन चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में इसमें तेजी आने की संभावना है। आरबीआई ने समीक्षा में कहा, 'अर्थव्यवस्था में जान फंूकने और लोगों में विश्वास बहाल करने साथ ही विकास बरकरार रखने के वास्ते मौद्रिक नीति के इस्तेमाल के लिए निर्णायक पहल और वृहद आर्थिक वातावरण से जुड़े  असंतुलन को दूर करना आवश्यक है।'

संचार क्रांति की कीमत भी अब ग्रहकों से वसूलने की पूरी तैयारी है।सरकार ने 2-जी स्पेक्ट्रम की प्रस्तावित नीलामी के लिए न्यूनतम मूल्य 14 हजार करोड़ रुपये रखा है। ट्राई की ओर से तय किए गए न्यूनतम मूल्य 18 हजार करोड़ से यह 20 फीसदी कम है, जबकि टेलिकॉम इंडस्ट्री 80 फीसदी तक कटौती की मांग कर रही थी। अब कॉल दरें बढ़ने का अंदेशा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2-जी स्पेक्ट्रम के 122 लाइसेंस रद्द कर कर नए सिरे से इनकी नीलामी करने के निर्देश दिए थे। शुक्रवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में नीलामी के लिए न्यूनतम मूल्य पर सहमति बनी। कैबिनेट ने स्पेक्ट्रम के उपयोग के लिए वार्षिक शुल्क 3 से 8 प्रतिशत के बीच रखे जाने को मंजूरी दी है, जो टेलिकॉम कंपनियों की आय के विभिन्न स्तरों पर निर्भर होगा। यह नीलामी यूनिनॉर तथा सिस्टेमा श्याम टेलिसर्विसेज जैसी कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके पास अपनी सेवाएं देने के लिए 7 सितंबर तक का समय है। यदि ये कंपनियां नीलामी प्रक्रिया में लाइसेंस पाने में नाकाम रहती हैं, तो उन्हें अपनी सर्विस बंद करनी पड़ेगी। इनके लगभग 2 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता देश में हें। ट्राई ने कहा है कि इनके उपभोक्ता मोबाइल नंबर पोर्टेबलिटी सर्विस की मदद ले सकते हैं।

सरकारी नीति निर्धारण के तौर तरीके से साफ जाहिर है कि हाथी के दांत खाने के और है , दिखाने के और।बहरहाल सामान्य से कम बारिश को देखते हुए सरकार भी हरकत में आ गई है। कृषि मंत्री शरद पवार के मुताबिक प्रधानमंत्री ने राज्यों को सूखे के हालात से निपटने के लिए अलर्ट कर दिया है।वहीं ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के मुताबिक सरकार राज्यों को सूखे की समस्या से बचाने के लिए अलग-अलग कदम उठा रही है।

जयराम रमेश का कहना है कि राज्यों की ओर से 480 करोड़ रुपये की मांग आई है, जिसे 1 महीने में पूरा करने की कोशिश की जाएगी। पानी के मैनेजमेंट पर 320 करोड़ रुपये का खर्च होगा। वहीं, नरेगा की सीमा बढ़ाकर 150 दिन की जाएगी।

इसके विपरीत योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने लागत से काफी कम दाम पर बेचे जा रहे डीजल के दाम बढ़ाने पर जोर देते हुये आज कहा कि डीजल के दाम बढ़ाये या फिर ग्रिड ठप होने जैसी स्थिति का सामना करने को तैयार रहें। उल्लेखनीय है कि हाल में दो दिन लगातार ग्रिड ठप्प होने के कारण 20 राज्यों में घंटों बिजली गायब रही।उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा 'असली सवाल यह है कि यदि हम ऐसे कड़े फैसले :डीजल की कीमत बढ़ाने: नहीं लेते हैं तो अलग किस्म के परिणाम होंगे। ग्रिड ठप होने जैसी चीज आपने देखी यदि वितरण कंपनियां बिजली का भुगतान नहीं कर पा रहीं तो आपको कुछ मुश्किल होगी।'

डीजल की कीमत बढ़ाने के बारे में अहलूवालिया ने कहा 'जब वे कीमत बढ़ाएंगे तो शुरूआत में इसका असर होगा लेकिन कीमत न बढ़ाने का मतलब होगा कि तेल कंपनियों का नुकसान जारी रहेगा।'

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां डीजल की बिक्री उसकी वास्तविक लागत से 13.65 रुपये प्रति लीटर कम दाम पर कर रही है, जबकि घरेलू रसोई गैस सिलेंडर को 231 रुपये कम पर बेच रही हैं। इसके अलावा राशन में बिकने वाले मिट्टी तेल पर तेल कंपनियों को 29.97 रुपये लीटर का नुकसान हो रहा है।

इन पेट्रोलियम पदार्थों के दाम नहीं बढ़ाये जाने की सूरत में सरकार को इसकी भरपाई के लिये 1,60,000 करोड़ रुपये की सहायता उपलब्ध करानी होगी। अहलूवालिया ने कहा 'यह सोचना गलत होगा कि डीजल के दाम बढ़ाने से मुद्रास्फीति बढ़ेगी जैसे कि यह समझा जाता है कि उन्हें कम रखने और छुपी हुई सब्सिडी से मुद्रास्फीति नहीं बढ़ती है।'उन्होंने कहा यदि डीजल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनुरुप नहीं बढ़ाये जाते हैं 'या तो बजट से उसकी भरपाई करनी होगी या फिर हमारा उर्जा क्षेत्र लगातार कमजोर बना रहेगा, इन दोंनों में कोई भी मुद्रास्फीति के लिये अच्छा नहीं है।'

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने  संवाददाताओं से कहा, 'अगर कृषि क्षेत्र की स्थिति मजबूत नहीं रही तो वृद्धि दर घटकर 6 प्रतिशत पर आ जाएगी। मुझे नहीं लगता कि औद्योगिक क्षेत्र अभी पटरी पर आया है।'' उन्होंने कहा कि इस आधार पर 12वीं योजना (2012-17) में सालाना औसत आर्थिक वृद्धि दर करीब 8.2 प्रतिशत रह सकती है दृष्टि पत्र में इसके 9.0 प्रतिशत रहने की बात कही गयी है। कमजोर मानसून तथा वैश्विक आर्थिक समस्याओं को देखते हुए रिजर्व बैंक ने हाल ही में 2012-13 के लिये वृद्धि अनुमान को 7.3 प्रतिशत घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है।

यह पूछे जाने पर कि क्या सूखे जैसी स्थिति से निपटने के लिये विशेष योजनाओं की जरूरत है, अहलूवालिया ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि प्रोत्साहन की जरूरत है। इन मुद्दों से राज्य सरकारों को निपटना है। सामान्य तौर पर वे सुधारात्मक कदम उठाने को लेकर गंभीर रहते हैं।' उन्होंने आगे कहा कि ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या से निपट सकता है।

अहलूवालिया ने कहा कि देश पहले भी कई बार कमजोर मानसून देख चुका है। ऐसी संभावना है कि आने वाले महीनों में स्थिति सुधरेगी।

उन्होंने कहा, 'मौसम विभाग ने कहा है कि आगामी दो महीने में मानसून की स्थिति पिछले दो महीने के मुकाबले बेहतर रहेगी। लेकिन कुल मिलाकर बारिश सामान्य से कम रहेगी। इसमें कुछ भी नया नहीं है।'

सूखे का कीमत स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'यह सही है कि मुद्रास्फीति समस्या रही है। हालांकि यह दोहरे अंक से नीचे आयी है लेकिन अभी भी 7 प्रतिशत के आसपास है और यह अच्छा नहीं है।'' उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति अगर 5 से 6 प्रतिशत के बीच है तो इसे नियंत्रण में समझा जाएगा लेकिन इससे उपर रहती है तो यह चिंता का कारण है। थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जून महीने में 7.25 प्रतिशत रही जबकि खुदरा स्तर पर यह 10.02 प्रतिशत थी।

मंगल ग्रह पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रोबोटिक वाहन क्यूरोसिटी रोवर के उतरने का सीधा प्रसारण यहां के निवासी देख सकेंगे। नगर के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल टाइम्स स्क्वायर पर इसे बड़े स्क्रीन पर दिखाने की व्यवस्था की गई है। रोवर पर 2.5 अरब डॉलर [करीब 138 अरब रुपये] की लागत आई है। यह नासा का सबसे महंगा मंगल मिशन है। इसकी लैंडिंग पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हैं। लैंडिंग के दौरान सात मिनट के भीतर क्यूरोसिटी की हजारों किमी की रफ्तार पर ब्रेक लगाना है वरना अभियान असफल हो जाएगा।

नासा के विज्ञान मिशनों के लिए एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर जॉन ग्रुन्सफेल्ड ने बताया, 'नगर के निवासी इस ऐतिहासिक घटना का सीधा प्रसारण देख सकेंगे। मंगल पर उतरने वाले रोवर के प्रसारण के लिए इससे अच्छी जगह नहीं हो सकती है।' मंगल पर क्यूरोसिटी को छह अगस्त को उतरना है। यह करीब दो वर्ष तक मंगल पर अनुसंधान करेगा। यह लाल ग्रह पर जल और जीवन की संभावना के बारे में भी पता लगाएगा। क्यूरोसिटी को नंवबर, 2011 में प्रक्षेपित किया गया था। इसके मंगल पर उतरने का प्रसारण नासा के कैलिफोर्निया स्थित जेट प्रोपल्शन लैबोरेट्री के मिशन कंट्रोल से किया जाएगा। इसी ने रोवर को डिजाइन किया है और यही मिशन का प्रबंध कर रहा है।

सफलता के लिए कामना : वायुमंडल के करीब पहुंच चुके क्यूरोसिटी की रफ्तार फिलहाल 13,000 मील [20,800 किमी] प्रति घटा है। लैंडिंग के दौरान सात मिनट के भीतर इसकी गति को शून्य पर लाना होगा। अगर ऐसा हुआ तो मिशन के सफल होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

-\क्यूरोसिटी की खासियत

इसका आकार एक स्पो‌र्ट्स कार की तरह है। यह सात फुट चौड़ा, 10 फुट लंबा और 900 किलोग्राम वजनी है। क्यूरोसिटी से पहले 1997 में सोजर्नर मंगल ग्रह पर पहुंचा था। इसके बाद 2004 में 180 किलोग्राम वजनी स्पिरिट और ऑपरच्युनिटी नाम के रोवर भी मंगल पर उतरे, लेकिन क्यूरोटिसी इन सबमें सबसे बड़ा है। परमाणु ऊर्जा से संचालित क्यूरोसिटी में 17 कैमरे और दस उपकरणों के अलावा मिंट्टी व चंट्टानों के नमूनों की जांच के लिए रसायन प्रयोगशाला भी है। नासा के मुताबिक इसका मकसद मंगल ग्रह पर उन संकेतों को खोजना है, जो बता सकें कि मंगल पर कभी जीवन था। नासा 2030 तक मनुष्य को मंगल पर भेजने की तैयारियों में जुटा हुआ है।

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