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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, February 25, 2014

अब सीधी लड़ाई मोदी और ममता के बीच है

अब सीधी लड़ाई मोदी और ममता के बीच है

लेकिन मोर्चों के घटाटोप के मध्य बंगाल में बन रहे दलित मुस्लिम मोर्चे का खामियाजा भुगतने को तैयार रहे हर पार्टी

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

नमोमय भारत निर्माण की दिशा में मीडिया सर्वेक्षणों के मुताबिक संघ परिवार का अश्वमेधी घोड़ा सरपट दौड़ रहा है और खबरों से तो लगता है कि अब नरंद्र मोदी को रोकने वाली कोई ताकत इस देश में बची नहीं है।आम आदमी के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से लेकर दिल्ली की सत्ता तक की यात्रा से जो खलबली मच गयी थी,दिल्ली सरकार के पतन के साथ अब अमन चैन है और प्रधानमंत्रित्व की दावेदारी के लिए जिस हैरतअंगेज तरीके से अरविंद केजरीवाल का नाम उछला था,उसी करिश्मे की तरह आप की दावेदारी अब दिल्ली तक ही सीमाबद्ध हो गयी है।कांग्रेस सैकड़े से नीचे लगातार फिसलती जा रही है।लेकिन नागपुर के संघ मुख्यालय के रिमोट कंट्रोल से चल रहे भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के मसीहा अरविंद केजरीवाल के बदले बंगाल की अग्निकन्या ममता बनर्जी के प्रधानमंत्रित्व के लिए मैदान में उतर गये हैं।दर्जनों विशषज्ञ दीदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए सक्रिय हो चुके हैं।दिल्ली में अन्ना के साथ दीदी की रैली से एक और बवंडर उठनेवाला है।मंगलवार को वाम के आखिरी किले पर दीदी ने जो धावा बोला है और लगातार बंगाल में विपक्ष के सफाये का परिदृश्यबन रहा है और बाकी पार्टियां साइन बोर्ड में तब्दील होने लगी है तो जैसे हम पहले से कह रहे थे,हालत वही बन रही है कि मोदी के मुकाबले न केजरीवाल है,न राहुल गांधी, न तीसरे मोर्चे का कोई चेहरा,अब ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच सीधा मुकाबला है।


पहलीबार संघ परिवार ने चाकचौबंद इंतजाम कर लिया है कि कांग्रेस हारने के बावजूद कोई कठपुतली सरकार के जरिये सत्ता पर काबिज न रहे। मोदी नहीं तो ममता के जरिये कांग्रेस को रोकेगी भाजपा ,ऐसा इंतजाम कर लिया गया है।इसीके मध्य छोटे दलों का भाजपा में विलय का सिलसिला जारी है।इंडियन जस्टिस पार्टी के भाजपा में विलयऔर लोक जनशक्ति पार्टी से संभव गठजोड़ के जरिये दलित वोट बैंक जहां साध लिया गया है,वहीं गुजरात में प्रबल प्रतिद्वंद्वी केशुभाई पाटिल के सुपुत्र समेत तमाम बागी फिर केशरिया झंडे की छांव में शरणागत है।उत्तर प्रदेश में वोट काटू अपना दल का भी भाजपा में देर सवेर विलय तय है।कुछ और बहुजन मसीहा संघ खेमे में देर सवेर शामिल होने वाले हैं।


वामदलों ने हर लोकसभा चुनाव से पहले जो वे करते रहने के विशेषज्ञ हैं, वैसा करिश्मा कर दिखाया है,ग्यारह दलों के गठबंधन का आज दिल्ली में ऐलान कर दिया गया है,जिसमें शामिल हर क्षत्रप मसलन मुलायम,जयललिता,नीतीशकुमार,देवेगौड़ा वगैरह वगैरह प्रधानमंत्रित्व के दावेदार हैं और किसी दूसरे के लिए एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है।इनकी रणनीति लोकसभा चुनाव धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता के केंद्रीय मुद्दे पर लड़ने की है तो शंघ परिवार ने मुसलिम नाराज वोट बैंक को सहेजने के लिए मुस्लिम मोर्चा भी बना लिया और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अगर कोई गलती हुई होगी तो उसके लिए माफी तक मांग लेने की मंशा जगजाहिर कर दी है।


सत्ता संघर्ष का सारा फोकस दिल्ली में होने की वजह से बंगाल में दलित मुख्यमंत्री और मुस्लिम उपमुख्यमंत्री की प्रस्तावना के साथ जिस दलित मुसलिम सामाजिक न्याय मोर्चे का ऐलान माकपाई किसान सभा के राष्ट्रीय नेता और वाम जमाने के धाकड़ मंत्री रज्जाक मोल्ला ने कोलकाता में किया है,उस तरफ भाई लोगों का ध्यान नहीं है।


ध्यान रहे कि बंगाल में इसी दलित मुस्लिम गठजोड़ ने ही महाराष्ट्र में पराजित बाबासाहेब अंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया था और यही नहीं,आजादी से पहले बंगाल में बनी तीनों अंतरिम सरकारें इसी गठबंधन की बनी थीं।


बंगाल में मुसलमानों का करीब तीस फीसद का बड़ा वोटबैंक है। जिसके बूते वाम शासन पैंतीस साल तक चलता रहा।अब इसी वोट बैंक के दम पर मोदी के मुकाबले दीदी खड़ी हैं।दलितों के इक्कीस फीसद वोट हैं तो आदिवासियों के सात फीसद।सवर्ण महज आठ फीसद हैं।बाकी आबादी शूद्रों की है। अगर जोगेंद्र नाथ मंडल या गुरुचांद ठाकुर जैसा करिश्माई नेतृत्व मिल गया और फजलुल हक जैसे धाकड़ मुसलमान नेता पैदा हो गये,तो न केवल बंगाल में पूरे देश में सत्ता समीकरण उलट जाने का अंदेशा है।


फिलहाल मोल्ला जमीनी नेता हैं और वे कोई हवा में तलवार बाजी नहीं कर रहे हैं,वाम सत्ता में जिन किंग लियर और विदूषकों के खिलाफ उन्होंने बगावत का झंडा उठाया है,वाम जनाधार में उनके खिलाफ प्रचंड जनाक्रोश है,जिसकी आंच पूर्वोत्तर के त्रिपुरा तक में हमसूस की जा रही है। सांगठनिक कवायद में बूढ़े घोड़ों को बहाल रखकर जो भूल माकपा ने की है,उसके नतीजे शुरुआती तौर पर वाम खेमे में असवर्ण वोट ध्रूवीकऱण बतौर आगामी लोकसभा चुनाव में भी आ सकते हैं।लेकिन 2016 के विदानसभा चुनाव में इसकी जद में सत्ता दल के भी उखड़ जाने के काफी संगीन खतरे हैं।


मोल्ला,नजरुल इस्लाम,कांति विश्वास,लक्ष्मम सेठ, सिदिकुल्ला चौधरी जैसे लोग फिलहाल नेतृत्व संभालने को तैयार हैं लेकिन जमीन पक जाने पर बंगाल की धरती से फिर वैकल्पिक नेतृत्व उभरने के लिए कोई ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।


भारतीय इतिहासबोध की विडंबना यह है कि जोगेंद्रनाथ मंडली की भूमिका की आधुनिक भारत के निर्माण के संदर्भ में कहीं चर्चा तक नहीं होती।इस अज्ञान की वजह से बंगाल में तोजी से बन रहे नये समीकरण की तऱफ किसी की नजर नहीं है। लेकिन बंगाल,महाराष्ट्र और पंजाब भले ही उत्तरप्रदेश की तरह मजबूत राजनीतिक प्रदेश नहीं रहे हों अब,लेकिन इन तीनों राज्यों में से किसी एक में बनते बिगड़ते समीकरण से देश की किस्मत बदल ही सकती है।


ताजा सबूत खुद ममता बनर्जी हैं।


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