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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, January 17, 2015

मैं चुपके से कहता अपना प्यार: जॉन बर्जर

मैं चुपके से कहता अपना प्यार: जॉन बर्जर

Posted by Reyaz-ul-haque on 1/17/2015 07:45:00 PM


फ्रांस के दक्षिणी इलाके के एक गांव में रहने वाले ब्रिटेन के चर्चित लेखक जॉन बर्जर का यह लेख सिर्फ नाजिम हिकमत की याद को ही ताजा नहीं करता, एक नाउम्मीदी भरे वक्त में उम्मीद की पड़ताल भी करता है. प्रतिलिपि-9 में प्रकाशित यह अनुवाद भारत भूषण तिवारी का है और यह निबंध बर्जर के निबंधों की किताब होल्ड एवरीथिंग डियर में संकलित है. बर्जर अपनी किताब वेज ऑफ सीइंग के लिए जाने जाते हैं, जो मूलत: बीबीसी पर प्रसारित एक डॉक्युमेंटरी है. 

(जनवरी 2002)

शुक्रवार.

नाजिम, मैं मातम मना रहा हूँ और इसे तुमसे साझा करना चाहता हूँ, जिस तरह तुमने बहुत सी उम्मीदें और बहुत से ग़म हमसे साझा किये थे.

रात में तार मिला
सिर्फ तीन लफ्ज़:
'वह नहीं रहा.'[1]

मैं मातम मना रहा हूँ अपने दोस्त ह्वान मून्योस के लिए. वह नक्काशियाँ और इन्स्टलेशन बनाने वाला एक अद्भुत कलाकार था.कल अड़तालीस की उम्र में स्पेन के किसी समुद्र-तट पर मर गया.

एक बात जो मुझे हैरान करती है वह मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ. किसी चीज़ का शिकार हो जाने, मार दिए जाने या  भूख से मर जाने से अलहदा एक कुदरती मौत के बाद पहले तो एक झटका लगता है. और अगर मरने वाला लम्बे समय तक बीमार न रहा हो, तो फिर भयावह किस्म का हानि-बोध होता है खासकर जब मरनेवाला जवान हो-

दिन निकल रहा है
पर मेरा कमरा
एक लम्बी रात से बना है.[2]

- और उसके बाद आता है दर्द जो अपने बारे में कहता है कि वह कभी ख़त्म न होगा.फिर दर्द के साथ चोरी-छुपे कुछ और आता है जो लगता तो मज़ाक है मगर है नहीं (ह्वान बहुत मजाकिया था). कुछ ऐसा जो छलावा पैदा करे, करतब दिखाने के बाद के किसी जादूगर के रूमाल जैसा कुछ, एक किस्म का हल्कापन जो सर्वथा विपरीत है उसके जो आप महसूस कर रहे होते हैं. तुम समझ रहे हो न कि मैं क्या कह रहा हूँ? यह हल्कापन एक ओछापन है या कोई नई हिदायत?

तुमसे यह पूछने के पाँच मिनट बाद ही मेरे बेटे इव का फैक्स आया जिसमें कुछ पंक्तियाँ हैं जो उसने ह्वान के लिए अभी-अभी लिखी हैं.

तुम हमेशा एक हँसी
एक नई तरकीब के साथ
नमूदार हुए.

तुम हमेशा गायब हुए
अपने हाथ
हमारी मेज़ पर छोड़ कर.
तुम गायब हुए
अपने ताश के पत्ते
हमारे हाथों में छोड़कर.

तुम फिर दिखाई दोगे
एक नई हँसी के साथ
जो होगी एक तरकीब.

शनिवार

मुझे पक्का यकीन नहीं है कि मैं नाजिम हिक्मत से कभी मिला हूँ. मैं सौगंध उठा लूँगा कि मिल चुका हूँ पर ब्यौरेवार सबूत नहीं दे सकता. मुझे लगता है मैं उनसे लन्दन में 1994 में मिला था. उनके जेल से रिहा होने के चार सालों बाद, उनकी मृत्यु से 9 साल पहले. रेड लायन स्क्वेयर में हुई एक राजनीतिक बैठक में वे बोल रहे थे. पहले उन्होंने कुछ शब्द कहे और फिर चंद कविताएँ पढीं. कुछ अंग्रेजी में, और कुछ तुर्की में. उनकी आवाज़ दमदार, शांत, अत्यंत आत्मीय और बेहद सुरीली थी. मगर ऐसा नहीं लग रहा था कि आवाज़ उनके गले से आ रही है- या उस क्षण तो आवाज़ उनके गले से आती नहीं लग रही थी. लगता था जैसे उनके सीने में कोई रेडियो रखा है जो वे अपने चौड़े, हल्के काँपते हाथों से शुरू और बंद कर रहे थे. मैं इसे ठीक तरह बयान नहीं कर रहा हूँ क्योंकि उनकी उपस्थिति और निश्छलता एकदम ज़ाहिर थी. अपनी एक लम्बी कविता में वे छह लोगों का वर्णन करते हैं जो तुर्की में चालीस के दशक के किसी शुरूआती साल में रेडियो पर शोस्ताकोविच की एक सिम्फ़नी सुन रहे हैं. उन छह में से तीन व्यक्ति (उन्हीं की तरह) जेल में है. सीधा प्रसारण हो रहा है, उसी वक़्त हजारों किलोमीटर दूर मास्को में वह सिम्फ़नी बजाई जा रही है. रेड लायन स्क्वेयर में उन्हें अपनी कविताएँ पढ़ते हुए सुनकर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे उनके शब्द दुनिया के दूसरे हिस्से से भी आ रहे हैं. इसलिए नहीं कि उन्हें समझना मुश्किल था (ऐसा बिल्कुल नहीं था), इसलिए भी नहीं कि वे अस्पष्ट और सुस्त थे (वे धैर्य की क्षमता से भरपूर थे), बल्कि इसलिए क्योंकि वे शब्द कहे जा रहे थे किसी भी तरह दूरियों पर फतह पाने के लिए और बेअंत हिज्रों पर मात करने के लिए. उनकी सभी कविताओं का यहीं और कहीं है.

एक टमटम प्राग में-
एक ही घोड़े वाली गाड़ी
पुराने यहूदी कब्रगाह के आगे से गुज़रती है.
टमटम भरी है किसी दूसरे शहर की हसरतों से

गाड़ीवान मैं हूँ.[3]

बोलने के लिए खड़े होने से पहले जब वे चबूतरे पर बैठे हुए थे, तब भी यह देखा जा सकता था कि वे असामान्य तौर से लम्बे-चौड़े आदमी हैं. 'नीली आँखों वाला दरख्त' यह नाम उन्हें यूं ही नहीं दिया गया था. जब वे खड़े हुए, तो ऐसा महसूस होता था कि वे बहुत हल्के भी हैं, इतने हल्के कि उनके हवा में उड़ जाने का खतरा है.

शायद मैंने उन्हें कभी नहीं देखा. क्योंकि यह मुमकिन नहीं कि लन्दन में इंटरनेशनल पीस मूवमेंट द्वारा आयोजित बैठक में हिक्मत को कई जहाज़ी तारों की मदद से चबूतरे से बाँध कर रखा गया हो जिससे कि वे ज़मीन पर बने रहें. फिर भी यह मेरी स्पष्ट स्मृति है. उनके शब्द बोले जाने के बाद आसमान में ऊपर उठ जाते थे – वह बैठक बाहर खुले में हो रही थी- और उनका शरीर मानो उनके लिखे शब्दों के पीछे पीछे जाने के लिए ही बना था, जैसे वह शब्द उठाते जाते थे स्क्वेयर के ऊपर और थियोबाल्ड्स रोड की उन पूर्ववर्ती ट्रामों की चिंगारियों से ऊपर जो तीन-चार साल पहले चलनी बंद हो गई थीं.

तुम अनातोलिया के
एक पहाड़ी गाँव हो,
तुम मेरे शहर हो,
बेहद खूबसूरत और अत्यधिक दुखी
तुम हो मदद की एक गुहार- यानी तुम मेरे देश हो;
तुम्हारी और दौड़ते कदम मेरे हैं.[4]

सोमवार की सुबह

मेरे लम्बे जीवन में मेरे लिए महत्त्वपूर्ण रहे लगभग सभी समकालीन कवियों को मैंने अनुवाद में और कदाचित ही उनकी मूल भाषा में पढ़ा है. मैं सोचता हूँ कि बीसवीं सदी से पहले किसी के लिए ऐसा कहना असंभव होता. कविता के अनुवादयोग्य होने या न होने पर बहस सदियों तक चली – पर वे सब चेम्बर आर्ग्युमेंट्स थे – चेम्बर म्यूज़िक की तरह. बीसवीं सदी के दौरान बहुत सारे चेम्बर्स धराशायी हो गए. संचार के नए माध्यम, वैश्विक राजनीति, साम्राज्यवाद, विश्व बाज़ार वगैरह ने अंधाधुंध और अप्रत्याशित तरीके से लाखों लोगों को साथ ला दिया और लाखों लोगों को दूर कर दिया. नतीजतन कविता की अपेक्षाएँ बदलीं; श्रेष्ट कविता ने और भी ज्यादा उन पाठकों पर भरोसा किया जो दूर-बहुत दूर थे.

हमारी कवितायें
मील के पत्थरों की तरह
रास्ते के किनारे खड़ी रहे.[5]

बीसवीं सदी के दौरान, कविता की कई विवस्त्र पंक्तियाँ अलग-अलग महाद्वीपों के बीच, परित्यक्त गाँवों और दूरस्थ राजधानियों के बीच टाँगी गई थीं. तुम जानते हो यह बात, तुम सभी; हिक्मत, ब्रेष्ट, वायेखो, अतिल्ला योज़ेफ़, अदोनिस, ह्वान गेलमन…

सोमवार की दोपहर

जब मैंने पहली बार हिकमत की कुछ कविताएँ पढ़ीं तब मैं किशोरावस्था के आखिरी दौर में था. ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के तत्त्वावधान में छपने वाली एक गुमनाम सी अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका में वे कविताएँ प्रकाशित हुई थीं. कविता के बारे में पार्टी की नीति बकवास थी, पर प्रकाशित होने वाली कविताएँ और कहानियां अक्सर प्रेरक होती थीं.

उस समय तक मायरहोल्ड को मास्को में मौत की सजा दे दी गई थी. अब मैं खासकर मायरहोल्ड के बारे में सोचता हूँ तो इसलिए कि हिक्मत उनके प्रति श्रद्धा भाव रखते थे, और 1920 के दशक के शुरूआती सालों में जब वे पहली बार मास्को गए थे तब वे मायरहोल्ड से खासे प्रभावित भी थे.

'मायरहोल्ड के थिएटर का मैं बहुत ऋणी हूँ. 1925 में जब मैं तुर्की वापिस लौटा तो मैंने इस्तंबुल के एक औद्योगिक जनपद में पहले श्रमिक रंगमंच का गठन किया. इस थिएटर के साथ निर्देशक और लेखक के तौर पर काम करने पर मुझे महसूस हुआ कि दर्शकों के लिए और उनके साथ काम करने की नई संभावनाएं हमारे लिए मायरहोल्ड ने खोलीं.'

1937 के बाद, उन नई संभावनाओं की कीमत मायरहोल्ड को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, पर उस पत्रिका के लन्दन स्थित पाठकों को यह बात मालूम नहीं हुई थी.

जब मैंने पहले-पहल हिक्मत की कविताएँ पढ़ीं तो जिस चीज़ ने मुझे आकृष्ट किया वह थी उनकी स्पेस; तब तक मेरी पढ़ी हुई अन्य कविताओं में मुकाबले उनमें सबसे ज़्यादा स्पेस मौजूद  थी. उनकी कविताएँ स्पेस को बयान नहीं करती थीं बल्कि उस स्पेस से होकर आती थीं, वे पहाड़ों को लाँघती थीं. वे एक्शन के बारे में भी थीं. वे संदेहों, तन्हाई, वियोग, उदासी को जोड़ती थीं. ये भावनाएँ कर्त्तव्य का एवज नहीं थीं, बल्कि कर्त्तव्य उन भावनाओं का अनुगमन करता था. स्पेस और एक्शन साथ साथ चलते हैं. जेल उनकी प्रतिपक्षता है, और तुर्की की जेलों में ही राजनीतिक कैदी के तौर पर हिक्मत ने अपना आधा साहित्य रचा.

बुधवार

नाजिम, मैं जिस मेज़ पर लिख रहा हूँ उसका वर्णन मैं तुम्हें सुनाना चाहता हूँ.  यह बगीचे  में रखी जाने वाली सफ़ेद धातु की बनी हुई टेबिल है, ठीक वैसी जैसी बोस्फोरसi पर बनी किसी यालीii के मैदान में नज़र आती है. यह टेबिल तो पेरिस के दक्षिण-पूर्वी उपनगर के छोटे से घर के ऊपर से ढँके बरामदे में रखी हुई है. यह घर 1938 में बना था, यहाँ उस समय दस्तकारों, कारीगरों, कुशल श्रमिकों के लिए बनाये गए अनेक घरों में एक घर. 1938 में तुम जेल में थे. तुम्हारे बिस्तर के ऊपर दीवार पर एक घड़ी कील के सहारे लटक रही थी. तुम्हारे ऊपर वाले वार्ड में ज़ंजीरों में बँधे तीन कैदी मौत की सजा का इंतज़ार कर रहे थे.

इस टेबिल हर समय बहुत सारे कागज़ पड़े होते हैं. हर सुबह सबसे पहले मैं कॉफ़ी की चुस्कियां लेते हुए इन कागज़ों को तरतीब से रखने की कोशिश करता हूँ.  मेरी दाहिनी तरफ गमले में एक पौधा है, जो मुझे यकीन है तुम्हें पसंद आएगा. इसकी पत्तियाँ बेहद गहरे रंग की हैं.  नीचे की तरफ पत्तियों का रंग डैम्सन जैसा है, ऊपर की तरफ रौशनी ने रंग को थोडा मटमैला कर दिया है. पत्तियां तीन-तीन के समूह में हैं, जैसे कि वे रात को मंडराने वाली तितलियाँ हों- उनका आकार तितलियों जितना ही है- जो उस फूल से अपना खुराक हासिल करती हैं.  इस पौधे के फूल छोटे-छोटे, गुलाबी रंग के और गाना सीखते प्राइमरी स्कूल के बच्चों कि आवाज़ों की तरह मासूम हैं. यह एक बड़े से तिपतिया घास की तरह है. खासकर यह पोलैंड से मँगाया गया है जहाँ इस पौधे को कोनिकज़िना कहा जाता है. यह मुझे एक मित्र की माँ ने दिया था जिन्होंने यूक्रेन की सरहद के पास स्थित अपने बगीचे में इसे उगाया था. उनकी नीली आकर्षक आँखें हैं और वे बगीचे में टहलते हुए और घर में चहलकदमी करते हुए पौधों को वैसे ही छूती रहती हैं जैसे कुछ दादियाँ अपने नन्हे नाती-पोतों के माथों को छुआ करती हैं.

मेरे  महबूब, मेरे  गुलाब
पोलैंड  के मैदानों  से  होकर गुजरने वाले मेरे सफ़र का  हो चुका आग़ाज़:
मैं हूँ एक छोटा सा बच्चा  खुश और हैरतज़दा
लोगों
जानवरों
चीज़ों, पौधों
वाली  अपनी पहली तस्वीरों की किताब को देखता हुआ
एक छोटा सा बच्चा.[6]

दास्तानगोई में सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि क्या पहले आएगा और क्या बाद में. वास्तविक क्रम तो शायद ही ज़ाहिर हो पाता है. ट्रायल एंड एरर. कई कई बार.  और इसलिए कैंची और स्कॉच टेप की एक रील भी टेबिल पर है. टेप की  रील उस चीज़ में नहीं फिट की गई है जिससे टेप की पट्टी को काट कर अलग करना आसान हो जाता है. मुझे टेप पट्टी कैंची से काटनी पड़ती है. मुश्किल काम है टेप का सिरा खोजना और फिर उसे खींचना.

मैं बेसब्री से, खीजते हुए अपने नाखूनों से खुरचकर ढूँढता हूँ. नतीजतन जब मुझे सिरा मिल जाता है तो उसे टेबिल के सिरे से चिपका देता हूँ और रील को तब तक खुलने देता हूँ जब तक वह फर्श को न छूने लगे. और फिर उसे वैसे ही लटकता छोड़ देता हूँ.

कभी कभी मैं इस बरामदे से उठकर बगल वाले कमरे में चला जाता हूँ जहाँ मैं बतियाता हूँ, खाता हूँ या अखबार पढता हूँ.  कुछ दिनों पहले इसे कमरे में जब मैं बैठा तो एक हिलती सी चीज़ की और मेरा ध्यान गया.  टेबिल के सामने रखी मेरी खाली कुर्सी के पैरों के पास बरामदे की फर्श पर टपक रहा था झिलमिलाते पानी का बेहद छोटा सा सोता, हिलोरे लेता हुआ. आल्प्स  से निकलने वाली नदियों का उद्गम भी इस टपकन से ज़्यादा कुछ नहीं होता.

खिड़की से अन्दर आते हवा के झोंके से झकझोरी जाने वाली टेप की रील भी कभी कभी पहाड़ों को हिला देने के लिए काफी होती है.

गुरुवार की शाम

दस साल पहले इस्तंबुल में हैदर-पाशा स्टेशन के पास वाली एक इमारत के सामने मैं खड़ा था जहाँ संशयितों से पुलिस पूछ-ताछ कर रही थी. इमारत की सबसे ऊपर वाली मंजिल पर राजनीतिक कैदियों को रखा जाता था और उनसे सवाल पूछे जाते थे, कभी कभी हफ़्तों तक. 1938 में वहाँ हिक्मत से भी पूछ-ताछ की गई थी.

उस इमारत का ढाँचा किसी कैदखाने की तरह नहीं बल्कि एक विशाल प्रशासकीय दुर्ग की तरह बनाया गया था. यह  इमारत अविनाशी प्रतीत होती है और ईंटों और ख़ामोशी से बनी है. वैसे तो कैदखानों की मनहूस मगर अक्सर मायूस कामचलाऊ सी फिजा भी होती है. मसलन, बुर्सा के जिस कैदखाने में हिक्मत ने दस साल बिताये उसे अपनी अजीब सी बनावट के कारण 'पत्थर के हवाई जहाज़' के नाम से जाना जाता था. इसके विपरीत इस्तंबुल में स्टेशन  के पास वाले  जिस अचल दुर्ग को मैं देख रहा था उसमें  मौन के स्मारक  की तरह एक निश्चय और प्रशांति थी.

यह इमारत संयत स्वरों में घोषणा करती है कि जो भी इसके  अन्दर है या इसके भीतर जो कुछ  भी होता है, वह भुला दिया जाएगा, रिकार्ड से हटा लिया जायेगा, योरप और एशिया के बीच की दरार में दफन कर दिया जाएगा.

और उस वक़्त मैंने उनकी कविता की अनोखी और अनिवार ऊर्जा को समझा; उसे लगातार अपने कारावास से पार पाना होता था. दुनिया भर के कैदियों ने हमेशा ग्रेट एस्केप के ख्वाब देखे हैं, मगर हिक्मत की कविता ने कभी नहीं.

उनकी कविता ने, शुरू होने से पहले ही, कैदखाने को दुनिया के नक़्शे पर एक बिंदु की तरह रख दिया.

सबसे खूबसूरत समंदर
अब तक पार नहीं किया गया.
सबसे खूबसूरत बच्चा
अब तक बड़ा नहीं हुआ.
सबसे खूबसूरत दिन हमारे
हमने अब तक देखे ही नहीं.
और सबसे खूबसूरत लफ्ज़ जो मैं तुमसे कहना चाहता था
वो मैंने अब तक कहे ही नहीं.

उन्होंने हमें कैद कर लिया है,
बंद कर दिया है:
मुझे दीवारों के अन्दर
और तुम्हें बाहर.

मगर यह कुछ भी नहीं है.
सबसे बुरा तब होता है
जब लोग- जाने अनजाने
अपने अन्दर कैदखाने लिए चलते हैं
बहुतेरे लोगों को ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया है.

ईमानदार, मेहनतकश, भले लोग
जिन्हें प्यार किया जाना चाहिए
उतना ही जितना कि मैं तुमसे करता हूँ.[7]

उनकी कविता ज्यामितीय कम्पास की तरह वृत्त बनाती थी, कभी नज़दीकी तो कभी चौड़े और वैश्विक, जिसका सिर्फ नुकीला बिंदु जेल की कोठरी में गड़ा होता था.

शुक्रवार की सुबह

एक बार मैं मद्रीद के एक होटल में ह्वान मून्योस का इंतज़ार कर रहा था. वह लेट हो गया था क्योंकि जैसा मैंने बताया रात में मेहनत करते वक़्त वह कार सुधारते मैकेनिक की तरह होता, और समय का हिसाब नहीं रखता.

आख़िरकार जब वह आया, मैंने उसे कारों के नीचे पीठ के बल लेटने की बात कहकर छेड़ा. और बाद में उसने मुझे एक चुटकुला फैक्स किया जो मैं तुम्हें सुनाना चाहता हूँ, नाजिम. पता नहीं क्यों. क्यों यह जानना शायद मेरा काम नहीं. मैं तो सिर्फ दो मृत व्यक्तियों के बीच के एक डाकिये का काम कर रहा हूँ.

'आपको मैं अपना परिचय देना चाहूँगा – मैं एक स्पैनिश मैकेनिक हूँ (सिर्फ कारें, मोटर-साइकिलें नहीं) जो अपना ज़्यादातर समय इंजिन के नीचे पीठ के बल लेटे हुए उसे देखने में गुजारता है. मगर, और यह महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, मैं कभी कभी कलाकृतियाँ भी बना लेता हूँ. ऐसा नहीं कि मैं कोई कलाकार हूँ. ना. मगर मैं चीकट कारों के अन्दर और नीचे रेंगने का बकवास काम छोड़ना चाहता हूँ और कला की दुनिया का कीथ रिचर्ड बनना चाहता हूँ. और अगर यह संभव न हो तो मैं पादरियों की तरह काम करना चाहूँगा, केवल आधे घंटे के लिए, और वह भी वाइन के साथ.

यह ख़त मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ क्यों कि मेरे दो दोस्त (एक पोर्टो में और एक रोतेर्दम में) तुम्हें और मुझे पुराने शहर पोर्टो के बॉयमंस कार म्यूजियम और दीगर बेसमेंट्स ( उम्मीद है जो अधिक मदिर होंगे) में आमंत्रित करना चाहते हैं.

उन्होंने लैंडस्केप  के बारे में भी कुछ कहा था जो मेरी समझ में नहीं आया. लैंडस्केप. मुझे लगता है शायद वह गाड़ी में घूमने और यहाँ वहाँ भटकने के बारे में था, या गाड़ी चलाते हुए इधर उधर निहारने के बारे में…

सॉरी सर! अभी अभी कोई दूसरा ग्राहक आया है. वाह! ट्रायम्फ स्पिटफ़ायरiii.

मुझे ह्वान की हँसी सुनाई देती है, उस स्टूडियो में गूँजती हुई जहाँ वह अपनी निशब्द आकृतियों के साथ तनहा है.

शुक्रवार की शाम

कभी कभी मुझे लगता है कि बीसवीं सदी की महानतम कविताएँ – चाहे वे पुरुष द्वारा लिखी गई हों या स्त्री द्वारा- शायद सर्वाधिक भ्रातृत्व वाली भी हैं. अगर ऐसा है तो इसका राजनीतिक नारों से कोई लेना-देना नहीं है.  यह बात लागू होती है रिल्के के लिए जो अराजनीतिक थे, बोर्हेस के लिए जो प्रतिक्रियावादी थे और हिक्मत के लिए जो ताउम्र कम्युनिस्ट रहे.  हमारी सदी अभूतपूर्व नरसंहारों वाली रही, फिर भी जिस भविष्य की इसने कल्पना की (और कभी कभी उसके लिए संघर्ष भी किया) उसमें भाईचारे का प्रस्ताव था. पहले की बहुत कम सदियों ने ऐसा प्रस्ताव रखा.

यह लोग, दीनो
जो रोशनी के तार-तार चीथड़े उठाये हैं
इस अँधेरे में
वे कहाँ जा रहे हैं, दीनो?
तुम, मैं भी:
हम उनके साथ हैं, दीनो.
नीले आसमान की झलक
हमने भी देखी है दीनो.[8]

शनिवार

नाजिम, शायद इस बार भी मैं तुमसे मिल नहीं रहा हूँ.  फिर भी सौगंध खा लूँगा कि मिल रहा हूँ. बरामदे में तुम मेरी मेज़ की दूसरी तरफ बैठे हो. कभी गौर किया है कि अक्सर सिर की बनावट उसके अन्दर आदतन चल रही विचार पद्धति की ओर इशारा करती है. कुछ सिर हैं जो लगातार गणनाओं की गति दर्शाते हैं. कुछ हैं जो खुलासा करते हैं पुरातन विचारों के दृढ़ अनुसरण का. इन दिनों कई सारे तो अनवरत हानि की अबोध्यता को धोखा देते हैं. तुम्हारा सिर- इसका आकार और तुम्हारी त्रस्त सी नीली आँखें- मुझे दिखाती हैं अलग अलग आसमानों वाली कई सारी दुनियाओं का सह-अस्तित्व, एक के भीतर दूसरा, अन्दर; डरावना नहीं शांत, मगर भीड़-भड़क्के का आदी.

मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ इस दौर के बारे में जिस में हम जी रहे हैं. जो कुछ भी तुम मानते थे कि इतिहास में हो रहा है, या समझते थे कि होना चाहिए, वह भ्रामक साबित हुआ. तुम्हारी कल्पना का समाजवाद कहीं नहीं बनाया जा रहा. कार्पोरेट पूँजीवाद बेरोक आगे बढ़ रहा है- यद्यपि उत्तरोत्तर प्रतिरोध के साथ – और वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर के टावर उड़ा दिए गए हैं. अत्यधिक भीड़ से भरी दुनिया दिन पर दिन गरीब होती जाती है. अब कहाँ है वह नीला आसमान जो तुमने दीनो के साथ देखा था?

तुम जवाब देते हो, हाँ, वे उम्मीदें तार-तार हैं, फिर भी वास्तव में इससे फ़र्क क्या पड़ता है? न्याय अब भी एक शब्द वाली प्रार्थना है, जैसा कि आज के तुम्हारे समय में ज़िगी मारली गाता है. सारा इतिहास ही उम्मीदों के बचे रहने,खो जाने और फिर नए होने का है. और नई उम्मीदों के साथ आते हैं नए विचार.

मगर भारी भीड़ के लिए, उनके लिए जिनके पास बहुत थोड़ा है या कभी-कभी साहस और प्यार के सिवाय कुछ भी नहीं है, उनके लिए उम्मीद अलग तरह से काम करती है. फिर उम्मीद दाँतों के बीच रखकर चबाने की चीज़ हो जाती है. यह बात मत भूलो. यथार्थवादी बनो. दाँतों के बीच में उम्मीद रखे हुए ताक़त आती है उस वक़्त आगे बढ़ने की  जब थकन उठने नहीं देती. ताक़त आती है ज़रुरत पड़ने पर असमय न चीख पड़ने की. और सबसे बढ़कर ताक़त मिलती है किसी पर न गुर्राने की. ऐसा व्यक्ति जो अपने दाँतों के बीच उम्मीद रखे है, उस भाई या बहन की  सभी इज्ज़त करते हैं. वास्तविक दुनिया में बिना उम्मीद वाले लोग अकेले होने के लिए अभिशप्त हैं. वे ज्यादा से ज्यादा दया दिखा सकते हैं. और जब रातें काटने और एक नए दिन के तसव्वुर की बात आती है तो क्या फर्क पड़ता है कि दाँतों के बीच रखी उम्मीदें ताज़ा हैं यार तार-तार. तुम्हारे पास थोड़ी कॉफ़ी होगी?
मैं बनाता हूँ.

मैं बरामदे से निकलता हूँ. जब तक मैं दो कप लिए रसोईघर से लौटता हूँ- और कॉफ़ी तुर्की है- तुम जा चुके हो. मेज़ पर, जहाँ स्कॉच टेप चिपका है उसके एकदम पास, एक किताब है जिसमें उघरी है एक कविता जो तुमने 1962 में लिखी थी.

गर मैं होता गूलर का पेड़ तो उसकी छांह में दम लेता
गर मैं किताब होता
बिन ऊबे पढ़ता उन रातों में जब आँखों में नींद न होती
गर होता कलम तो खुद की उँगलियों के बीच भी नहीं चाहता फँसना
गर दरवाज़ा होता
तो खुलता भलों के लिए और बुरों के लिए बंद हो जाता
गर मैं होता खिड़की, बिना पर्दों वाली खुली चौड़ी खिड़की
अपने कमरे में सारे शहर को ले आता
गर मैं लफ्ज़ होता
तो पुकारता खूबसूरत को सच्चे को खरे को
गर मैं लफ्ज़ होता
मैं चुपके से कहता अपना प्यार.[9]

मूल नोट्स

1.नाजिम हिक्मत, दि मास्को सिम्फ़नी, अनुवाद, तनेर बायबार्स, रैप एंड व्हिटिंग लि. 1970.
2.वही.
3.हिक्मत, प्राग डॉन, अनुवाद, रैंडी ब्लासिंग और मुतेन कोनुक, पेर्सिया बुक्स, 1994.
4.हिक्मत, यू, अनुवाद, ब्लासिंग और कोनुक, वही.
5.अनुवाद, जॉन बर्जर.
6.हिक्मत, लेटर फ्रॉम पोलैंड, अनुवाद जॉन बर्जर.
7.हिक्मत, 9-10पीएम. पोएम्स. अनुवाद ब्लासिंग और कोनुक.
8.हिक्मत, ऑन अ पेंटिंग बाइ अबिदीन, एंटाइटल्ड दि लॉन्ग मार्च. अनुवाद जॉन बर्जर.
9.हिक्मत, अंडर दि रेन. अनुवाद ओज़ेन ओज़ुनर और जॉन बर्जर.

अनुवादक के नोट्स

i.तुर्की के यूरोपीय हिस्से और एशियाई हिस्से को जोड़ने वाला जलडमरू मध्य जिसे इस्तंबुल स्ट्रेट भी कहा जाता है.
ii.इस्तंबुल की समुद्र तट से सटी विशाल कोठियाँ.
iii.एक ब्रिटिश स्पोर्ट्स कार का मॉडल


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