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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, May 3, 2015

भारतीय सेना को 200 लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहरा रहा नेपाली मीडिया

भारतीय सेना को 200 लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहरा रहा नेपाली मीडिया

भारतीय सेना को 200 लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहरा रहा नेपाली मीडिया 

धोती की कठपुतली सरकार

Earthquake-china-tent भारतीय सेना को 200 लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहरा रहा नेपाली मीडिया

भारतीय सेनाका कारण २ सय भूकम्प पीडितको ज्यान गयो 

नई दिल्ली। ताजा मामला इस 'बहादुर' देश की सार्वभौमिकता से नहीं जुड़ता बल्कि उससे कहीं ज्यादा संगीन व अपराधिक है। नेपाल से छपने वाले तमाम छोटे-छोटे वेब न्यूज़ साईट और सोशल साईट इस घटना की गंभीरता से द्रवित हैं। सिन्धुपालचौक, राजधानी काठमांडू से 80 किमी दूर, चीन की सीमा से सटा हुआ एक दुर्गम पहाड़ी जिला है, जो भूकंप से जबरदस्त क्षतिग्रस्त हुए जिलों में से एक है। इस जिले में अभी तक के नेपाल सरकार आँकड़ों के अनुसार, 90 प्रतिशत गाँव तबाह हुए हैं, अभी 2 दिनों से ही (1 मई से) इस इलाके में बचाव कार्य शुरू हो पाया है और अभी तक करीबन 1000 लोगों के शव बरामद हुए हैं। नेपाली समाचार वेब पोर्टल yeskathmandu.com में दो मई को सबसे पहले यह घटना "भारतीय सेनाका कारण २ सय भूकम्प पीडितको ज्यान गयो" शीर्षक से छपी है और इसके बाद करीबन दर्जन भर अन्य वेब पोर्टल फेसबुक/ ट्विटर जैसी सोशल मीडिया में लगातार चर्चाएँ जारी हैं)। यहाँ हुई एक दर्दनाक घटना में 25 अप्रैल के भूकंप के दो दिन बाद आये दूसरे भूकंप से पैदा हुए हिम स्खलन में 200 लोग मारे गए हैं। घटना का विवरण इस प्रकार है कि इस तबाह जिले में भूकंप के पहले दिन ही प्रभावित चीनी सीमा के नजदीक बसे नेपाली गाँवों में रहने वाले लगभग 500 लोग घरबार क्षतिग्रस्त होने पर चीन के इलाके तिब्बत के खासा क्षेत्र में पहुंचे थे। भूकंप से उत्पन्न विपत्ति के इस समय में चीन सरकार ने उनके साथ मानवीय व्यवहार करते हुए उसी दिन तिरपाल और भोजन की व्यवस्था की थी। लेकिन कुछ घंटे बाद नेपाली लोगों को सुरक्षित लाने के नाम पर भारतीय सेना के सैन्य हेलीकॉप्टर चीन के हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने की जुगत में मंडराने।

भारतीय सेना के इस आपत्तिजनक व्यवहार को देख चीन सरकार ने नेपाली ग्रामीणों को तत्काल चीन की सीमा छोड़ कर चले जाने का आदेश दिया। उनमें से एक ग्रामीण संदीप नेपाल के अनुसार, 'बावजूद इसके भी हम लोग एक दिन ख़ासा क्षेत्र में ही रहे, लेकिन तिब्बत के खासा क्षेत्र में भारतीय सेना के हेलीकॉप्टरों की लगातार उपस्थिति और नेपाली लोगों को बचाने के नाम पर प्रवेश करने लगने पर अंततः चीन सरकार के आदेश ने हमें वहां से वापस अपने इलाके भागने पर मजबूर कर दिया।'

 बकौल संदीप जिसने मात्र अभी तक इस दर्दनाक घटना का विवरण दिया है, बिलकुल इस बेहद दर्दनाक हादसे के एक पात्र की तरह सुनाते हुए आगे कहा कि "सोमवार (यानि 27 अप्रैल) को जब वे 500 लोग नेपाल में अपने इलाके वापस आने के लिए रास्ते में थे, तभी 6.8 रेक्टर स्केल का एक बड़ा भूकंप आया, जिसे काठमांडू सहित अन्य पहाड़ी जिलों में भी महसूस किया गया था। इस प्रक्रिया में पैदा हुए हिम स्खलन के कारण 200 लोग मारे गए। रास्ते में कई गाड़ियाँ समेत दफन हो गयी। मेरी आँखों के सामने दूर के रिश्ते में लगने वाले मेरे बड़े भाई पर एक बर्फीला छोटा पहाड़ आकर गिरा। अभी मेरे साथ उन्होंने उठने का प्रयास किया ही था कि दोबारा एक बड़ा पहाड़ उनके ऊपर गिरा और वे उसमे दबकर वहीँ खून में सनकर चूर-चूर हो गए। हमारी करीबन 5 दर्जन ग्रामीणों की टोली के 50 लोग इस हिमस्खलन में मारे गए, मैं कुछ अन्य लोगों किसी तरह से बच निकला।" वे आगे कहते है,"यदि चीन की क्षेत्र में भारतीय सैन्य टोली अपनी जासूसी गतिविधियाँ नहीं करती, तब शायद यह दर्दनाक घटना नहीं होती"।

अपने नागरिकों के इस तरह से मारे जाने पर अभी तक नेपाली कठपुतली सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। जब भूकंप के कारण राहत व बचाव के नाम पर आये अरबों डालरों पर नेपाली संसदीय दलों, यथा नेपाली कांग्रेसी प्रधानमंत्री सुरेश कोइराला से लेकर झापाली एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी जैसे अभी के 'सरकारी कामरेड' व आजकल विपक्ष में बैठे प्रचंड-बाबूराम फॅमिली लिमिटेड के कैश माओवादी तथा मधेशवादी विजय गच्छेदार से लेकर सबकी नजर आये राहत पैकेज, कमीशन राशि व अपनी गद्दी बचाने पर पर टिकी हुई हो, तो हम इसकी कोई उम्मीद भी कैसे सकते हैं?

भारतीय सेनाका कारण २ सय भूकम्प पीडितको ज्यान गयो

काठमाडौं । नेपालमा गएको विनाशकारी भूकम्पले बिचल्लीमा परेका पीडितलाई उद्धार गर्न आएको भारतीय सेनाका कारण उल्टो २ सय नेपालीको ज्यान गएको छ । भूकम्पले विचल्लीमा परेका पीडितको उद्धार गर्न आएको भारतीय सेनाको टोली चीन प्रवेश गरेपछि २ सय सिन्धुपाल्चोक बासीले ज्यान गुमाएका छन् ।
अघिल्लो शनिवार ७.८ रेक्टर स्केलको भूकम्प गएपछि सिमा क्षेत्रका करिव ५ सय ब्यक्ति सुरक्षित स्थानको खोजी गर्दै चीनको खास्सा पुगेका थिए । पहिलो दिन चीन सरकारले उनीहरुका लागि बस्ने त्रिपालसहितको ब्यवस्था पनि गरेको थियो । तर त्यही बेला पीडितलाई भेट्ने निहुँमा भारतीय सेनाको टोली हेलिकप्टरसहित खास्सा प्रवेश गर्न थालेपछि चीनले भूकम्प पीडित नेपालीलाई भगायो । 'आश्रय लिइरहेको ठाउँमा भारतका कारण चीन सरकारले बस्न नदिएपछि हामी घरतिर फर्कियौ', पीडित संदिप नेपालले भने 'पहिलो दिन बस्न दिएको थियो तर हामी बसेको ठाउँमाथी भारतीय सेनाको हेलिकप्टर देखा परेपछि लखेट्यो ।'
भूकम्प पीडितलाई सहयोग गर्ने निहुँमा भारतीय सेनाको हेलिकप्टर चीन प्रवेश गरेपछि सवै नेपालीलाई चीन सरकारले सिमा बाहिर जान आदेश दिएको थियो । चीन सरकारको आदेशमा लस्करै लागेर फर्किने क्रममा सोमवार फेरी ६.८ रेक्टर स्केलको अर्काे ठुलो भूकम्प गयो । त्यही बेला सडकमा पहिरो गयो, र २ सय जनाले ज्यान गुमाए, खास्साबाट फर्किदै गरेका संदिपले भने 'हामी ५ सय जनाजति फर्किदै थियो त्यो मध्येमा २ सयको ज्यान पहिरोमा गयो ।'
संदिपका अनुसार चीन सरकारले फिर्ता पठाएपछि लहरै लागेर सिन्धुपाल्चोकबासी फर्किदै थिए । दोस्रो ठुलो भूकम्पले सडकमा पहिरो गएपछि कयौ गाडी समेत पुरिएका थिए । त्यो कहाली लाग्दो समय सम्झदै संदिपले भने 'मेरै भाई नाता पर्ने भाई र मसँगै थियो, फर्किदै गर्दा माथीबाट पहिरो आयो, पहिलो ढुंगा उसलाई लाग्यो, फेरी उठेर हिड्न खोजेको थियो अर्काे पहाडै आएर लियो' आँखाभरी आँशु पार्दै संदिपले भने 'त्यही पहिरोमा मात्र ५० भन्दा बढिले ज्यान गुमाए तर म भने बाँचे ।' खास्सामै बस्न पाएको भए त्यति ठुलो मानवीय क्षति नहुने ठहर उनले गरेका छन् ।

http://yeskathmandu.com/2015/05/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A5%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%AF-%E0%A4%AD%E0%A5%82/

पवन पटेल

photo भारतीय सेना को 200 लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहरा रहा नेपाली मीडिया

About The Author

पवन पटेल, लेखक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में पीएचडी हैं और आजकल वे 'थबांग में माओवादी आन्दोलन' नाम से एक किताब पर काम कर रहे हैं; वे भारत-नेपाल जन एकता मंच के पूर्व महा सचिव भी रह चुके हैं।

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