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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, August 1, 2016

स्मृति शेष के बाद बेन की विदाई तो फिर किसकी होगी विदाई? गांधी ने हिंदू समाज को बंटने नहीं दिया लेकिन संघ परिवार हिंदुत्व से दलितों को घर बाहर करने पर आमादा! पलाश विश्वास

स्मृति शेष के बाद बेन की विदाई तो फिर किसकी होगी विदाई?

गांधी ने हिंदू समाज को बंटने नहीं दिया लेकिन संघ परिवार हिंदुत्व से दलितों को घर बाहर करने पर आमादा!

पलाश विश्वास

स्मृति अब शेष है तो गुजरात से बेन की विदाई की तैयारी है।केसरिया सुनामी संघ परिवार के नियंत्रण में नहीं है और लगता है कि बजरंगी रथी महारथी भी हाशिये पर है।गोरक्षकों से संघ परिवार अपना रिश्ता मानने से इंकार कर रहा है।गोरक्षकों के बचाव में हालांकि गुजरात की मुख्यमंत्री बदलने के लिए संघ परिवार तैयार है लेकिन दलितों,अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और पिछड़ों का दमन और उत्पीड़न का सिलसिला थम नहीं रहा है क्योंकि संघ परिवार का हिंदुत्व समता और न्याय के खिलाफ है।कानून के राज के खिलाफ है संघ परिवार और संविधान के खिलाफ भी है संघ परिवार।


जैसा कि आनंद तेलतुंबड़े ने लिखा है कि हिंदुत्व और दलितों की मुक्ति का रास्ता एक नहीं है।हिंदू राष्ट्र बनाने के फिराक में हिंदुत्व के सिपाहसालारों ने हिंदुत्व से दलितों को अलग कर देने की पूरी तैयारी कर ली है।पुणे करार के लिेए गांधी ने अंबेडकर को तैयार किया जो दलितों के लिए स्वतंत्र मताधिकार की मांग कर रहे थे।गांधी इसे हिंदू समाज का विभाजन मान रहे थे और विभाजन टालने के लिेेए पुणे करार के तहत दलितों के लिए आरक्षण की नींव पड़ी।भारतीय संविधान के निर्माताओं ने उस पुणे करार का दायरा बढ़ाते हुए जनजातियों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान किया।तो बंबासाहेब पिछड़ों को बी आरक्षण के दायरे में लाना चाहते थे और आगे चलकर मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत आरक्षण के तहत सभी वर्गों को जीवन के हर क्षेत्र में समान अवसर देने के बुनियादी सिद्धांत के तहत हिंदू समाज का वजूद गांधी और अंबेडकर के रास्ते मजबूत हुआ।


गांधी की हत्या को अंजाम देने वालों को हिंदुत्व के ईश्वर के तौर परप्रतिषिठित करने वालों ने आरक्षण खत्म करने की रणनीति पर चलते हुए अंबेडकर को भगवान विष्णु का अवतार तो बना दिया लेकिन गांधी को किनारे करके आखिरकार हिंदू समाज का बंटवारा उसी तरह कर दिया जैसे हिंदुत्व के नाम पर उनके पूर्वजों ने अखंड भारतवर्ष को टुकड़ा टुकड़ा बांटकर हिंदू राष्ट्र की नींव बनाने की कोशिश की।देश का बंटवारा फिर फिर करने पर आमादा उन्हीं लोगोने हिंदुत्व के नाम पर अपनी पैदल बजरंगी सेना पर ऐसा धावा बोला गोरक्षा के नाम पर कि दलितों की राजनीति के तहत बार बार यूपी जीतने वाली मायावती ने भी अपने अनुयायियों के साध धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बनने की धमकी दे दी है।फिरभी गोरक्षकों पर किसी तरह का अंकुश नहीं है।दलितों की महारैली का मिजाज अब बहुसंख्यबहुजनों का मिजाज है और उनमें सिर्फ दलित नहीं हैं।


गुजरात से संघ परिवार का तंबू उखड़ने लगा है और मुख्यमंत्री बदलकर हिंदुत्व की इस प्रयोगशाला को बचा लेने की खुशफहमी में हैं संघ परिवार।दलितों की महारैली के बाद भी हिंदुत्व का परचम लहराने से बाज नहीं आ रहा है नागपुर में सत्ता,राजकाज का केंद्र।  बहरहाल आनंदीबेन पटेल ने अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी है लेकिन उनकी विदाई पर आखिरी मुहर इससे पहले 15 जुलाई को प्रधानमंत्री आवास पर हुई बैठक में लग चुकी है। आनंदीबेन की विदाई के कार्य्रक्रम को बेहद भव्य रूप दिया जाएगा। उनकी विदाई सम्मानजनक तरीके से होगी और खुद प्रधानमंत्री भी उस कार्यक्रम में शामिल होने अहमदाबाद जाएंगे। हालांकि उससे पहले बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक होगी जिसमें विधायक दल की बैठक की तारीख तय की जायेगी और विधायक दल की बैठक में औपचारिक रूप से नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होगी।


यह फिरभी बेहतर है क्योंकि गुजरात नरसंहार के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री को राजधर्म निभाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पदमुक्त करना चाहते थे और संघ परिवार ने तब इसकी इजाजत नहीं दी थी।तत्कालीन मुख्यमंत्री अब प्रधानमंत्री है और गुजरात में हिंदुत्व के धर्मसंकट के मौके पर वहां से उठ रही  हिंदुत्व से दलितों के अलगाव की सुनामी को रोकने के मकसद से वे मौजूदा मुख्यमंत्री को हटा रहे हैं।लेकिन गुजरात में हुई दलितों की महारैली दावानल की तरह पूरे देश में हिंदुत्व के एजंडे का सत्यानाश करने के लिए फैलने लगी है और सामने यूपी और पंजाब के चुनाव हैं,जहा दलितों के वोट निर्णायक होंगे।


गौरतलब है कि संघ परिवार के सर्वेसर्वा मोहन भागवत का फिरभी दावा है कि देश अब सुरक्षित है क्योंकि संघ परिवार के खास लोग सरकार के प्रमुख पदों पर हैं।उनका आशय यही है कि भारत अब मुकम्मल हिंदू राष्ट्र है।


इसके विपरीत,संघ परिवार के दलित मंत्री रामदास अठावले का सवाल है कि आप गाय की रक्षा कर रहे हैं तो बताये मनुष्यों की रक्षा कौन करने वाला है।इन्ही अठावले के तंज के जवाब में बहन मायावती ने हिंदू धर्म त्यागने की चेतावनी दी है और बाबासाहेब के हिंदुत्व त्याग के बाद भारत में दलितों के हिंदुत्व से प्रस्थान का यह सबसे बड़ा मौका बनने ही वाला है।अगर बहन जी सचमुच हिंदू धर्म से दलितों को अलग कर लेती हैं तो भारत के सवर्णों की कुल जनसंख्या मुसलमानों की तुलना में कितनी रह जायेगी,यह हिसाब संघ परिवार के लोग जोड़ लें तो बेहतर होगा।


शायद संघ परिवार को मालूम नहीं है कि जाति की पहचान मजहबी पहचान पर भारी है।बिहार में सिर्फ दो जातियों यादवों और कुर्मियों के गठबंधन ने हिंदू राष्ट्र के एजंटे को धूल चटा दिया।ऐसे गठबंधन अब बनते रहेंगे।संघियों ने राजमार्ग तैयार कर दिया है।


दूसरी ओर,संघ परिवार से जुड़े हर संगठन के नेता कार्यक्रता अपनी अपनी जाति को ही मजबूत करने में लगे हैं।हिंदू राष्ट्र से पहले उनकी जाति है।


पूरे देश में अब हिंदुत्व के बहाने दरअसल जातियों में गृहयुद्ध के हालात रोज रोज संगीन से संगीन बनते जा रहे हैं।जिसतरह दलितों की पिटाई के खिलाफ पूरे गुजरात में.यहां तक कि प्रधानमंत्री के गांव तक में दलितों का भारी आंदोलन शुरु हो गया है।


महारैली अब हर राज्य में होने की संभावना प्रबल है।मायावती क्या इस वक्त इस दलित उभार के साथ देश में बहुजनों का नेतृत्व कर पायेंगी या नहीं,इस पर राजनीतिक समीकरण बनेगें या बिगड़ेंगे लेकिन हकीकत संघ परिवार के लिए कमसकम गुजरात में बेहद खतरनाक है क्योंकि महारैली जो हुई सो हुई,रैली, धरना प्रदर्शन के बाद अब दलित हड़ताल की नौबत आ गयी है तो इससे लगता है कि हिंदू राष्ट्र के दलित अब सीधे हिंदू राष्ट्र से टकराने के तेवर में हैं।वे इतने भारी पैमाने पर संगठित हो रहे हैं कि अब सैन्य राष्ट्र भी उनका दमन नहीं कर सकता।अब  पूरे देश में दलित कह रहे हैं कि गाय उनकी माता नहीं है और न वे कोई गंदा काम करेंगे।


जाहिर है कि जुल्मोसितम की इंतहा हो गयी है और मजहब के मलहम से जख्म भरने वाले नहीं हैं।हालिया खबरों से साफ है कि मौत सेभी डर नही रहे हैं दलित और वे लाठी गोली खाकर भी आंदोलन के रास्ते से हटने को तैयार नहीं है।थोक भाव से आत्महत्या की कोशिशों से उनके शहादती तेवर के सबूत अब जगजाहिर हैं।


मसलन हिंदुत्व की बेसिक प्रयोगशाला गुजरात में दलितों की रैली और हड़ताल से साफ जाहिर है कि हिंदुत्व की अस्मिता के मुकाबले दलित अस्मिता तेजी से सुनामी में तब्दील है जो हिंदू राष्ट्र के ख्वाब का गुड़गोबर कराने वाला है।


कहां तो घर वापसी का कार्यक्रम था,अब गुजरात में मरी हुई गायों की खाल पर बवाल की वजह से धर्मांतरण का नया दौर शुरु हो गया है।


सियासत पर भी इसका असर घना है तो समझ लीजिये कि चुनावी समीकरण भी बदलना लाजिमी है।जातियों के घठबंधन के साथ मुसलमान वोट बैंक जुड़ता चला गया,तो हिंदुत्व का अश्वमेध अभियान भव्य राममंदिर बनाने के बजाय देश भर में धर्मांतरण का माहौल बनायेगा और नतीजतन हिंदू राष्ट्र दो बनेगा नहीं, बल्कि भारत में हिंदू ही अल्पसंख्यक बनने वाले हैं।क्योंकि अब सवर्ण ही हिंदू रहेंगे क्योंकि गोरक्षकों ने दलितों को हिंदुत्व से बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया है।


आगे तुरंत यूपी,पंजाब और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हैं।संघ परिवार का दलित एजंडा का यही नजारा रहा और मायावती,केजरीवाल और यहां तक कि मुलायमसिंह यादव,हरीश रावत और किशोरी उपाध्याय ने तनिक दिमाग से कमा लिया तो केसरिया बाहुबलियों का काम तमाम होना तय है।


फिर दिल्ली भी बहुत दूर नहीं है।क्योंकि दलितों की हड़ताल एकबार कामयाब हो गयी तो हर राज्य में देर सवेर दलितों की हड़ताल होगी और हिंदुत्व का बेड़ा गर्क होगा।

अगर समृति अब स्मृति शेष हैं और बेनजी की विदाई हो गयी,तो ये सिरफिरे हिंदुत्व के राजसूयके अश्वमेधी दिग्विजयी घोड़े का क्या करेंगे और क्या कर सकते हैं,इसका अंजदाजा हमें नहीं है।


बहरहाल दलितों में अब कमसकम बीस फीसद लोग इस तेवर में हैं कि वे अपने को हिंदू मानने को तैयार नहीं हैं।दलितों की अबाध हत्या,दलित स्त्रियों से रोज रोज बलात्कार, दलितउत्पीड़न की वारदातें जिस तेजी से घट रही हैं,उससे दलितों का दलितों का ध्रूवीकरण हिंदुत्व के खिलाफ देर सवेर हो जायेगा।हो रहा है।


जाहिर है कि संघ परिवार अपने लिए मौत का कुँआ बनाने लगा है।


संसद और संसद के बाहर दलितों के हक में जो राजनीतिक गोलबंदी होने लगी है,वह हिंदुत्व के सिपाहसाारों और बजरंगी फौजों के लिए रेड अलर्ट है।गोरक्षक इसीतरह बेलगाम रहे,तो संघ परिवार हिंदू राष्ट्र बना सकें या नहीं,हिंदू समाज को अल्पसंख्यक बना ही देगा,इस पर हिंदुत्ववादी गंभीरता से सोचें जिन्हें हिंदुत्व से प्रेम है।


गौरतलब है कि भैंस और बकरी बचाओ आंदोलन शुरु हो गया है तो पूर्वी बंगाल की तर्ज पर दलित मुसलमान गठजोड़ भी बनने लगा है।इससे धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण की संघ परिवार की परंपरागत रणनीति को शिकस्त मिलना तया है।


मरी हुई गाय की खाल उतारने का पेशा जाति व्यवस्था के तहत पुश्तैनी और जनमजात आजीविका है और इसी जनमजात आजीविका की नींव पर जाति का वजूद कायम है।


गोरक्षा के बहाने मरी हुई गायों की खाल उतारने पर दलितों पर हो रहे लगातार हमले गोमांसविरोधी आंदलोन की तरह मुसलमानों के किलाफ नहीं है,सीधे तौर पर यह दलितविरोधी राजसूय अभियान है।जिसके तहत हिंदू राष्ट्र के जंडेवरदार मनुस्मृति की व्यवस्था और अनुशासन दोनों तोड़ रहे हैं।


अब भी भारत में दलित सर पर मैला उठाते हैं और समाज और पर्यावरण की शुद्धता बनाये रखने में इन्हीं अशुद्ध लोगों की एकाधिकार भूमिका है।इस मायने में दलितों की यह दलील कि गाय तुम्हारी माता है तो उसका अंतिम संस्कार तुम ही करो,इसके दूरगामी और दीर्घस्थाई परिणाम होंगे।


फिलहाल गुजरात में दलितहड़ताल पर है और मरे हुए जानवरों की लाश लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।अछूत अब अपनी अपनी जाति के लिए तय आजीविका के तहत परंपरागत काम छोड़ दें तो हिंदुत्व की विशुद्धता का क्या होगा,सोचने की बात है।


मसलन आज जैसे मरी हुई गायों की लाशें सार्वजनिक स्थलों पर रखकर प्रदर्शन हो रहे हैं वैसे ही सफाई कर्मचारी सारा मैला सार्वजनिक स्थानों पर जमा करके छोड़ दें तो दलित तो फिरभी इस गंदगी के अभ्यस्त जनमजात हैं,सवर्णों के लिए फिर घर से निकलना बंद हो जायेगा।


भारत की राजधानी नई दिल्ली में ऐसा नजारा सारा देश हाल में देख चुका है।


इस पूरे प्रकरण में अच्छी बात यह है कि दलित गंदा काम करना छोड़ दें तो जातिगत आजीविका की मनुस्मृति व्यवस्था जो औद्योगीकरण ,शहरीकरण और ग्लोबीकरण के बावजूद नहीं टूटी,वह बहुत जल्द टूट जायेगी।


जाहिर है कि संघ परिवार वाकई समरसता के एजंडे पर अमल करने लगा है।


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