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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, August 6, 2016

बांग्लादेश के इस्लामी आतंकवादी ही नहीं,भारत में बहुजनों के सफाये पर तुले सत्तावर्ग विभाजनपीड़ित हिंदुओं के सफाये पर आमादा है। कोलकाता में लगातार तीन दिन बहुजनों का भारी प्रदर्शन विभाजन पीड़ितों ने धर्मोन्माद के खिलाफ ऐतिहासिक जुलूस निकाला।हजारों महिलाएं और मतुआ शामिल थे इस जुलूस में।बंगाल में हवा बदली तो बाकी देश पर असर लाजिमी। तेजी से सीरिया बन रहे बांग्लादेश के धर्मोन्म�


बांग्लादेश के इस्लामी आतंकवादी ही नहीं,भारत में बहुजनों के सफाये पर तुले सत्तावर्ग विभाजनपीड़ित हिंदुओं के सफाये पर आमादा है।

कोलकाता में लगातार तीन दिन बहुजनों का भारी प्रदर्शन

विभाजन पीड़ितों ने धर्मोन्माद के खिलाफ ऐतिहासिक जुलूस निकाला।हजारों महिलाएं और मतुआ शामिल थे इस जुलूस में।बंगाल में हवा बदली तो बाकी देश पर असर लाजिमी।

तेजी से सीरिया बन रहे बांग्लादेश के धर्मोन्माद से पूरे एशिया को खतरा और कहीं भी कोई सुरक्षित नहीं है।


पलाश विश्वास


बंगाल में भी हवा बदलने लगी है।परसो बहुजनसमाज पार्टी का जुलूस निकला देशभर में दलित उत्पीड़न के खिलाफ तो कल बंगाली विभाजन पीड़ितों का महाजुलूस निकला कोलकाता की सड़कों पर।


निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति  का अराजनैतिक ऐतिहासिक जुलूस निकला बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए,धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद और आतंक,हिंसा , नरसंहार और बलात्कार अभियान,बेदखली के खिलाफ,भारतभर में हो रहे दलित उत्पीड़न के विरुद्ध और विभाजनपीड़ितों की नागरिकता,मातृभाषा और सभी राज्यों में अनुसूचितों को आरक्षण की मांग लेकर।


निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति  की ओर से कोलकाता में बांग्लादेश हाईकमीशन को ज्ञापन भी दिया गया।


इस महाजुलूस में मतुआ अनुयायियों के साथ बंगाल में बहुजनों और शरणार्थियों के सारे सगठनों के कार्यकर्ता नेता उपस्थित थे।


सियालदह से निकलकर धर्मतल्ला तक पहुंचकर धरना सभा में बदले इस जुलूस में मतुआ नगाड़े से लेकर बांग्ला कविगान के अलग अलग रंग थे और शाम को रिमझिम बारिश तक जारी इस अभूतपूर्व प्रदर्शन में सुंदरवन इलाके की विधवाओं समेत दो हजार से ज्यादा महिलाएं थीं।


निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति के अध्यक्ष डा. सुबोध विश्वास और महासचिव एटवोकेट अंबिका राय से लेकर मतुआ गवेषक डां.विराट वैद्य और बंगाल के सबसे लोकप्रियलोककवि असीम सरकार तक ने सीमाओं के आर पार अमन चैन बहाल रखने के हक में आवाज बुलंद की तो 2003 साल के काला नागरिकता कानून रद्द करने की भी मांग की वक्ताओं ने दलित उत्पीड़न रोकने की मांग की तो सुंदरवन इलाके की महिलाओं और अन्य लोगों के हक हकूक की लड़ाई जारी रखने की भी शपथ ली।


कोलकाता में परसो और कल निकले जुलूसों की कोलकाता के टीवी चैनलों और अखबारों में कोई खबर नहीं थी।बहरहाल निखिल भारत के प्रदर्शन पर सिर्फ एक बांग्ला अखबार युगशंख ने खबर बनायी औऱ एक टीवी चैनल ने कुछ फुटेज दिखाये।आज फिर कोलकाता में बहुजनों और छात्रों का भारी जुलूस कालेज स्क्वायर से निकला।मीडिया में अभीतक यह खबर नहीं दिख रही है।


देशभर में दलितों और बहुजनों के आंदोलन की जो सुर्खियां बनती हैं और बन रही हैं,वे बंगाल में असंभव है।बंगाल में मीडिया बिना राजनीति से नत्थी बहुजनों के किसी आयोजन की खबर नहीं बनाता।


फिरभी कहना होगा कि बंगाल में हवा इस नस्ली रंगभेदी वर्चस्व के बावजूद तेजी से बदल रही है।शुरुआत नवजागरण से जुड़े भारत सभा हाल में बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे पर छात्रों की संगोष्ठी से हुई।


फिर यादवपुर विश्वविद्यालय,कोलकाता विश्वविद्यालय,आईआईएम कोलकाता, आईआईटी खड़गपुर से लेकर विश्वभारती के छात्र संस्थागत हत्या के शिकार रोहित वेमुला की प्रेरणा से जात पांत से आजादी की आवाज बुलंद करने लगे।


कोलकाता में लगातार तीसरे दिन दलित उत्पीड़न के खिलाफ,धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद और हिंसा के खिलाफ, नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर के विभाजन पीड़ित बंगाली शरणार्थियों के साथ सात बंगाल के सुंदरवन इलाके की बहुजन शरणार्थी आबादी के हकहकूक के लिए जो जुलूस निकले और खास तौर पर शरणार्थी जुलूस में हजारों महिलाओं की भागेदारी इस बदलती हुई हवा के सबूत हैं,जिसे मीडिया दर्ज करने से इंकार कर रहा है।


उस पार बांग्लादेश तेजी से धर्मनिरपेक्ष,लोकतातांत्रिक और प्रगतिशील ताकतों के हाथों से बेदखल होकर इस्लामी आतंकवादियों के हवाले हो रहा है।


जो ताकतें,जो रजाकर वाहिनी 1971 के नरसंहार और थोक देशव्यापी बलात्कार अभियान में हमलावर हत्यारी पाक फौजों से बढ चढ़कर कहर बरपा रही थीं,जो बांग्लादेश की स्वतंत्रता और उसमें भारत की भूमिक के सख्त खिलाफ रही हैं,वे अब बांग्लादेश में युद्धअपराधियों की फांसी के बाद हर हालत में वहां अबभी रह गये करीब ढाई करोड़ हिंदुओं,बौद्धों,ईसाइयों,आदिवासियों के सपाये के साथ साथ हसीना की सरकार के तख्ता पलट और बंगालादेश में धर्मनिरपेक्ष लोकतातांत्रिक प्रगतिशील ताकतों का सफाया करने पर आमादा हैं।


वे बांग्ला राष्ट्वाद की बजाय इस्लामी राष्ट्रवाद के तहत बांग्लादेश को विशुद्ध इस्लामी राष्ट्र बनाने के लिए गैरमुसलमानों का सफाया कर देना चाहते हैं और ग्लोबल आतंकगिरोह इनके जरिये बांग्लादेश को तेजी से सीरिया बनाने लगे हैं।


यह मसला अब सिर्फ अल्पसंख्यक उत्पीड़न,बेदखली और नरसंहार तक सीमाबद्ध नहीं है।सीरिया ने जिसतरह दुनियाभर में शरणार्थी सैलाब पैदा कर दिया और अभूतपूर्व हिंसा,आतंक और नरसंहार का ग्लोबीकरण कर दिया,जिस आग से समूचा यूरोप जल रहा है सिर्फ अरब वसंत के शिकंजे में फंसी अरब दुनिया नहीं,वैसा कुछ बांग्लादेश में दोहराने की तैयारी है।


सीरिया जिसतरह आतंकवादियों के शिकंजे में एक बेहद रणनीतिक भूगोल है,बांग्लादेश भी वही बनने जा रहा है।जो देर सवेर सीरिया से ज्यादा विस्पोटक बनने जा रहा है।


इससे शरणार्थी समस्या तो जटिल होगी ही,भारत और एशिया के दूसरे देशों में युद्ध और गृहयुद्ध का माहौल तैयार हो रहा है।


सीमावर्ती राज्यों बंगाल,बिहार,असम,समूचे पूर्वोत्तर में इन्हीं धर्मोन्मादी जिहादियों की गहरी पैठ हो गयी है,जिससे भारत में कहीं भी कुछभी घटित हो सकता है।


असम और पूर्वोत्तर में पहले से अनेक भारतविरोधी संगठन सक्रिय हैं और विभिन्न राज्यों में सत्ता में भी उनकी भागेदारी है।


अब इन राज्यों में या बंगाल और बिहार में स्लीपिंग सेल,शेल्टर का जो आलम है,बांग्लादेश के लगातार सीरिया बनते जाने के बाद कल असम में कोकराझाड़ में जो आतंकवादी हमला हो गया,उसी तर्ज पर कहां कौन सा आतंकवादी गिरोह क्या करेगा,इसका अंदाजा लगाया नहीं जा सकता।


हालातत हसीना सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं और इसी के खिलाफ शरणार्थियों के महाजुलूस को जैसे ब्लैक आउट कर दिया गया,वह बंगाल के सभी क्षेत्रों में काबिज सत्तावर्ग की मानसिकता है,जिसने पूर्वी बंगाल को भारत विभाजन के जरिये भारत से सिर्प अलहदा नहीं किया,वहां की बहुजन दलित आबादी को इतिहास भूगोल के दायरे से बाहर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


विभिन्न राज्यों में बसे शरणर्थी फिर बी बेहतर हालत में हैं जहां उन्हें कमोबेश पुनर्वास और रोजगार मिला है।लेकिन बंगाल में पुनर्वास के नाम पर घर के लिए जमीन का पट्टा पुराने शरणार्थी शिविरों रानाघाट,धुबुलिया, ताहेर पुर और त्रिवेणी जैसे इक्के दुक्के इलाके में दिया गया।


शरणार्थियों ने कोलकाता के उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम में हर उपनगर कस्बे में जो सैकड़ो कालोनियां बसायीं,उनको राजनीतिक वोटबैक बनाने के अलावा कुछ किया नहीं है।


1947 के विभाजन के बाद जो शरणार्थी बंगाल में रह गये और खासतौर पर जो 1971 के बाद आये,उनको शत्रु समझता है बंगाल का सत्तावर्ग।


इसी वजह से बंगाल के सत्ता वर्ग ने उनकी नागरिकता,पुनर्वास और संरक्षण की कोई आवाज नहीं उठायी और विभिन्न राज्यों में बसे इन शरणार्थियों के देश निकाले के लिए बंगाली सत्ता वर्ग की सर्वदलीय सहमति के साथ 2003 के नागरिकता संशोधन कानून के तहत इन्हें एकमुश्त बेनागरिक कीड़े मकोड़ो में तब्दील कर दिया गया,जिन्हें कहीं भी कभी भी कुचला जा सकता है।


और खास बात ये हैं कि ये विभाजन पीड़ित हिंदू शरणार्थी अपने हिंदुत्व के खातिर धर्मांतरण से बचने के लिए नरकयंत्रणा बर्दाशत करके भारत आये और इनमें से निनानब्वे फीसद वे दलित हैं जो हरिचांद गुरुचांद ठाकुर की अगुवाई में दलित आंदोलन में शामिल थे तो इन्हींके नेता जोगेन्द्र नाथ मंडल और मुकुन्द बिहारी मल्लिक की अगुवाी में पूर्वी बंगाल ने बाबासाहेब अंबेडकर को चुनकर संसद भेजा।


बांग्लादेश के इस्लामी आतंकवादी ही नहीं,भारत में बहुजनों के सफाये पर तुले सत्तावर्ग विभाजनपीड़ित हिंदुओं के सफाये पर आमादा है।


बंगाल का शरणार्थी आंदोलन अब तक विशुद्ध तौर पर राजनीतिक रहा है।

सत्ता वर्ग की राजनीति के तहत बंगाल में सत्तावर्ग के हितों के मुताबिक शरणार्थी और दलितआंदोलन होते रहे हैं।इसलिए बंगाल में बहुजनों के हित में बदलाव की बयार भी निषिद्ध है।


बाकी देश में दलितों,शरणार्थियों और बहुजनों,आदिवासियों और अल्पसख्यकों के हक हकूक के आंदोलन को जिस तरह सभी वर्गों को समर्थन मिलता है,बंगाल में वह असंभव है।

निखल भारत बंगाली उद्वास्तु समिति अराजनीतिक संगठन है और बारत के बाइस राज्यों में उसके सक्रिय संगठन हैं।उत्तर भारत से लेकर महाराष्ट्र और दंडकारण्य,आंध्र और कर्नाटक,असम और त्रिपुरा में वे शरणार्थियों के हक हकूक का आंदोलन चला रहे हैं।हाल में उन्होंने छत्तसगढ़ विधानसभा का घेराव किया और असम और त्रिपुरा में बी उन्हें भारी समर्थन मिला है।

उनके कोलकाता अभियान की भारी कामयाबी और रलागतार छात्रों और युवाओं के समर्थन के साथ तेज हो रहे अंबेडकरी आंदोलन की सुर्खियां भले न बने,अब यह तयहै कि बंगाल में भी हवा बदल रही है और इतिहाल गवाह है कि बंगाल की वहा का असर बाकी देश पर बेहद गहरा और व्यापक होता है।


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