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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, August 12, 2016

राष्ट्र कहां है? विभाजन और विखंडन राष्ट्र का सच है और इसीलिएसीमाओं के आर पार कश्मीर जल रहा है तो समूचा महादेश सीमाओं के आर पार आतंक और हिंसा के शिकंजे में है।धर्म कहां है? विधर्मियों, शरणर्थियों,आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों,बहुजनों शिशुओं, युवाओं, मेहनतकशों,किसानों और स्त्रियों की अबाध हत्यालीला रासलीला है। मनुष्य से बड़ा कोई सत्य होता नहीं है और न मनुष्यता से बड़ा कोई धर्म होता है�


राष्ट्र कहां है?

विभाजन और विखंडन राष्ट्र का सच है और इसीलिएसीमाओं के आर पार कश्मीर जल रहा है तो समूचा महादेश सीमाओं के आर पार आतंक और हिंसा के शिकंजे में है।धर्म कहां है? विधर्मियों, शरणर्थियों,आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों,बहुजनों शिशुओं, युवाओं, मेहनतकशों,किसानों और स्त्रियों की अबाध हत्यालीला रासलीला है।

मनुष्य से बड़ा कोई सत्य होता नहीं है और न मनुष्यता से बड़ा कोई धर्म होता है।

मध्यभारत में,दंडकारण्य में और समूचे आदिवासी भूगोल में इस सैन्य राष्ट्र का वीभत्सतम चेहरा बेपर्दा है।जहां राष्ट्र, संविधान, कानून का राज, लोकतंत्र का एक ही मायने है सलवा जुड़ुम और अनंत विस्थापन।

हमारी नागरिकता और हमारी स्वतंत्रता का एक ही मायने रह गया है क्रयशक्ति।

विकास का मतलब है अबाध विदेशी हितऔर अबाध विदेशी पूंजी।

पलाश विश्वास

हमने खाड़ी युद्ध शुरु होते न होते लिखना शुरु किया था अमेरिका से सावधान।अब बूढा हो गया हूं और आय के स्रोत बंद हो जाने के बाद सड़कों पर हूं।सर पर छत भी नहीं है और हमारे लिए सारे दरवाजे,खिड़कियां और रोशनदान तक बंद हैं।देश विदेश के लाखों लोगों के साथ निरंतर संवाद के बाद कहीं कोई मित्र नहीं है तो जीजिविषा छीजती जा रही है।वरना हालातइतने तेजी से बदल रहे हैं कि हमें सचमुच लिखना चाहिए धर्मोन्मादी इस सैन्यराष्ट्र बारत से सावधान।


राष्ट्र कहां है?विभाजन और विखंडन राष्ट्र का सच है और इसीलिएसीमाओं के आर पार कश्मीर जल रहा है तो समूचा महादेश सीमाओं के आर पार आतंक और हिंसा के शिकंजे में है।धर्म कहां है?विधर्मियों,शरणर्तियों,आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों,बहुजनों और स्त्रियों की अबाध हत्यालीला रासलीला है।


हम आहिस्ते आहिस्ते अमेरिका बन गये हैं।धर्मोन्मादी हमारे राष्ट्रनेता और युद्धोन्मादी अमेरिकी कर्णदार दोनों सभ्यता,मनुष्यता और प्रकृति के खिलाफ हैं।


जो हम खाड़ीयुद्ध की शुरुआत से कह रहे थे अब अमेरिका के भावी राष्ट्रपति बनने के प्रबल दावेदार डोनाल्ड ट्रंप कह रहे हैं और काफी जिम्मेदारी से कह रहे हैं क्योंकि उनके राष्ट्रपति बनने की प्रबल संभावना है।


ट्रंप खुलेआम चुनाव अभियान में  इस्लाम के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर चुके हैं तो बाकी लोग लगातार इस्लाम और दूसरे धर्मों के खिलाफ धर्मयुद्ध का नेतृत्व करते रहे हैं और करेंगे।चाहे जो भी जीतें।क्योंकि अमेरिका का मतलब है कि बाकी देशों की स्वतंत्रता और संप्रभुता का विध्वंस अमेरिकी सत्ता वर्ग के हितों के मुताबिक।


हमारे यहां ऐसे धर्मोन्मादी अविराम चुनाव प्रचार अभियान को हम लोकतंत्र मानने लगे हैं बाकी हमारी मानसिकता उतनी ही युद्धोन्मादी धर्मोन्मादी है,जितनी कि अमेकरिकी राष्ट्रनेताओं की घृणा और हिंसा की कोख में रची बसी मानसिकता है।


हमारे यहां वही हिसां और घृणा को महोत्सव,वही श्वेत आधिपात्य,वहीं निर्मम रंगभेद जाति व्यवस्था और मनुस्मृति की बुनियाद पर राजकाज,राजनय और राजधर्म हैं।हम अमेरिका और इजराइल के मनुष्यता विरोधी,प्रकृति विरोधी विश्वयुद्ध में उनके सर्वोच्च वरीयता वाले पार्टनर हैं।


इस युद्ध के मुक्तबाजार में माफ करें फ्री में हमें हिंसा,बेदखली,शरणार्थी सैलाब,अशांत भूगोल, सैन्यशासन, गृहयुद्ध, युद्ध, आतंक, दमन, उत्पीड़न,नागरिक और मनावाधिकारों के हनन के अलावा कुछ भी नहीं मिलने वाला है।


जो विपदा,आपदा और संकट के रचनाकार हैं,हमने राष्ट्र और राष्ट्र की सुरक्षा आंतरिक सुरक्षा उनके हवाले कर दिया है।


इस्लामिक स्टेट के जनक के बतौर डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति  राष्ट्रपति बराक हुसैन को चिन्हित किया है तो उनकी पहली विदेश मंत्री और राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक प्रत्याशी हिलेरी क्लिंटन को आतंकवादी नेटवर्किंग का सूत्रधार बताया है।सच यह है कि वे सच कह रहे हैं।


विकीलीक्स के दस्तावेज और दूसरे पारामाणिक दस्तावेज से बी यही साबित हो रहा है।साबित हो गया कि सद्दाम हुसैन निर्दोष थे।दुनियाभर के मीडिया के पापकर्म का खुलासा भी हो गया है।हालांकि मीडिया के युद्ध अपराधों को आमतौर पर आम माफी है।मीडियाअब सार्वभौम है।


डोनाल्ड ट्रंप का एजंडा हम जानते हैं और डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयानों से साफ है कि उनमें और मैडम हिलेरी में कोई फर्क नही है जैसे जार्ज बुश और ओबामा में कोई फर्क नहीं था।यह इन लोगों का चरित्र नहीं है यह अमेरिकी साम्राज्यवाद का चरित्र है।



इसीतरह भारत के तमाम राजनेताओं में कोई बुनियादी फर्क अब नहीं रह गया है जो एकसाथ मिलकर लोकगणराज्य भारत को अमेरिकी उपनिवेश बतौर धर्म राष्ट्र बनाने लगे हैं।विचारधारा ,रंग,जाति ,धर्म,क्षेत्र,भाषा की विभिन्नता के बावजूद भारतीय राजनीति और राजनय,राजधर्म का ,सामाजिक यथार्थ यही है जिसका समाना हम कर नही रहे हैं क्योंकि सत्य, अहिंसा और प्रेम की भारतीयता के वंशज अब हम नहीं हैं ।


हम सभी लोग नवउदारवादी मुक्तबाजार की संतानें हैं जो ज्यादा से ज्यादा क्रयशक्ति हासिल करने के लिए आपस में मारकाट कर रहे हैं और मनुष्यता को रौंदते हुए  सारे प्राकृतिक संसाधन और देश तक बेच रहे हैं।


हम सभी,हां,हम सभी इस देशबेचो गिरोह के छोटे बड़े गैंगस्टार उसीतरह है जैसे कि हमारे तमाम बजरंगवली गोरक्षक हैं।हम भी कम गोरक्षक नहीं है।


राष्ट्र कहां है?

उपनिवेशों की न्यूनतम सव्तंत्रता हम दलितों, बहुजनों, अल्पसंख्यकों, विस्थापितो, शरणार्थियों, आदिवासियों और स्त्रियों को देने को तैार नहीं है और रंगभेदी सत्ता विमर्श हमारा इतिहासबोध और विज्ञान दोनों है।


मनुष्य से बड़ा कोई सत्य होता नहीं है और न मनुष्यता से बड़ा कोई धर्म होता है।


विश्व की तमाम प्राचीन सभ्यताओं का बुनियादी जीवनदर्शन यही है तो धर्म कमसकम भारत में प्रकृति से मनुष्य का तादात्म्य है,जो नैतिकता के सर्वोचच् मानदंड पर आधारित है और वे मानदंड भी प्रकृति और मनुष्यता के गहरे रिश्ते पर आधारित हैं।


भारत में प्राचीन बौद्ध धर्म और आधुनिकतम सिखधर्म में ईश्वरा का कोई अस्तित्व नहीं है।समाज उनका प्रस्थानबिंदू है और समता,न्याय,बंधुता,भ्रातृत्व,प्रेम और शांति तमाम मूल्यों के साध्य हैं।


यहीं नहीं,जिस अधर्म के नाम धर्मोन्मादी राष्ट्र बनाने पर आमादा हैं मनुष्यविरोधी प्रकृति विरोधी वैश्विक शक्तियां और जिसे हिंदुतव कहा जाता है,उसमें तमाम नस्लों की सभ्यताओं और सामाजिक मूल्यों का प्राचीनकाल से समायोजन होता रहा है।


इसी हिंदुत्व ने पृथक दो धर्मों बुद्धधर्म और जैन धर्म के प्रवर्तकों महात्मा गौतम बुद्ध और महावीर को अपने सर्वोच्च संस्थापक आराध्य भगवान विष्णु का अवतार उसीतरह माना है जैसे विजेता आर्यों ने पराजित अनार्यों के तमाम देव देवियों को शिव,विष्णु और चंडी का अवतार बना दिया है।


सिखों के सारे गुरु हमारे भी गुरु है और हर भारतीयके लिए बोधगया और अमृतसर के स्वर्णमंदिर का वही महत्व है जितना की समस्त हिंदू धर्मस्थलों का है।उसीतरह अजमेर शरीफ पर सदियों से चादर चढाने वाले सिर्फ मुसलमान नहीं है।


पीर के दरगाह पर हिंदुओं ने हमेशा मत्था टेका है।भारत में जो भक्ति आंदोलन हुआ या फिर अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जो नवजागरण हुआ,वहां ईश्वर का सर्वथा निषेध है और दिव्यता के बदले,ईश्वर की सत्ता के बदले सबसे ऊपर मनुष्य का स्थान है।


संस्कृत के अंतिम माहकवि ने हिंदुत्व के संस्थापक भगवान श्रीकृष्ण को उसीतरह हाड़ मांस का मनुष्य रचा है जैसे गोस्वामी तुलसीदास ने मर्यादा परुरषोत्तम के रुप में श्रीराम का नवनिर्माऩ करके भारतीय जनमानस में उसकी प्रतिष्ठा की है।तो स्वामी विवेकानंद और रवींद्रनाथ के ईशव्र नरनाराण थे।


यह सारा समायोजन सामाजिक पुनर्गठन और संगठन का मामला है और धर्म उसका माध्यम बना है तो उसके मूल्यबोध के जरिये आत्म संयम और आध्यात्म,धम्म और पंचशील के अनुशीलन से संगठित तौर पर हिंसा और घृणा का निषेध किया ही नहीं गया है बल्कि गौतम बुद्ध की अहिंसा को विश्वबंदुत्व का आधार बना दिया गया है और इसी वजह से भारत अब भी रवींद्रनाथ का भारततीर्थ है,जहां उपासना पद्धति चाहे कुछ हो,आस्था चाहे कुछ हो,धर्म का मतलब भारत में हमेशा धम्म रहा है।धर्म चाहे कोई हो,हर भारतीय का आचरण गौतम बुद्ध का पंथ रहा है।


इतिहासबोध के इस प्रस्थानबिंदू पर भारतीयता का मतलब यह बेलगाम अभूतपूर्व हिंसा हो ही नहीं सकता और जीवन का मायने मुक्तबाजार तो कतई नहीं और इस मुक्तबाजारी पागल दौड़ का गांधी ने विरोध किया था और विकास की उनकी परिकल्पना भारत के ग्राम स्वराज्य से शुरु होती है,जहां विकास का मतलब प्रकृति और मनुष्यता का कल्याण और विकास है और राष्ट्र का मतलब अत्याधुनिक परमाणु शक्ति सैन्यराष्ट्र नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है।


प्राचीन भारत के इतिहास को कायदे से पढ़ा जाये तो यह सामाजिक सास्कृतिक संगठन हड़प्पा संगठन हड़प्पा और मोहनजोदोड़ो की नगरसभयताओं की बुनियाद रहा है तो भरत के तमाम चक्रवर्ती राजाओं सम्राट अशोक,चंद्रगुप्त मोर्य, विक्रामादित्य,हर्षवर्धन से लेकर सत्रहवीं और अछारवी सदी पर अलग अलग रियासतों पर राज करने वाले राजाओं तक राष्ट्र मूलतः जनसमाज का सांस्कृतिक संदठन है।


यहीं नहीं,इस सामाजिक सांस्कृतिक बुनियाद को आधार माना है पठान और मुगल शासकों से लेकर महाराष्ट्र के शिवाजी महाराज और जाधव राजाओं ने तो दक्षिण के भारतीय हिंदू राजाओं का राजकाज भी यही रहा है।


इतिहास और परंपरा के विरुद्ध हम किस राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं,बुनियादी सवाल यही है।


इसका मायने यह है कि मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध हम किस राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं जिसका कोई सामाजिक या सांस्कृतिक चरित्र है ही नहीं।


भारतीय संविधान का निर्माण राष्ट्र निर्माताओं ने धम्म और पंचशील के आधार पर किया है जहां समता,न्याय,बंधुत्व,भ्रातृत्व,स्वतंत्रता,लोकतंत्र,अहिंसा और सत्या हमारे मूल्य हैं।


गौतम बुद्ध ने अपने देशना को जांचने परखने के बाद उन पर अमल करने को कहा था क्योंकि उनका धम्म विज्ञान और इतिहास के विरुद्ध था नहीं और वहां सत्य सर्वोपरि है और बुद्ध इसलिए महात्मा है कि उन्होंने खुद को तमाम धार्मिक लोगों की तरह न ईशवर घोषित किया है और न गुरु ।उन्होंने अपनी अभिज्ञता देशान के मार्फत शेयर किया है और अनुयायियों को उन्हें आजमाने की आजादी दी है।आजमाने के बाद ही अनुयायी बनने का उनका देशान रहा है।


इसके विपरीत अत्याधुनिक तकनीक वाले परमाणु श्कित सैन्य राष्ट्र भारत में भारतीय राष्ट्र और भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य और लक्ष्य सिरे से गायब है।


धर्म के नाम पर मनुष्यविरोधी प्रकृतिविरोधी विध्वंस के महात्सव को हम राजकाज और राजधर्म दोनों मान बैठे हैं जो इतिहास,समाज,संस्कृति और विज्ञान के विरुद्ध है तो भारत और बारतीयता के विरुद्ध भी है यह तांडव।


हम अपना अपना सच साबित कर रहे हैं और चाहते हैं कि हमारे सच को ही बाकी लोग सच माने ले और जयघोष करें सत्यमेव जयते जबकि नरमेधी अश्वमेध जारी है और हम तेजी से वैदिकी हिंसा के युग में लौट रहे है बिना प्रकृति के साथ किसी तादात्म के।


बिना नैतिकता,बिना पंचशील,बिना संयम,बिना करुणा,बिना आचरण की शुचिता के हम विशुध रंगभेद को राजकरण बना रहे हैं,जो भारत में राजतंत्र का भी इतिहास नहीं है लेकिन विडंबना यही है कि यह हमारे लोक गणराज्य का सत्य है।


स्वतंत्रता का मतलब यह है कि सारे नागरिक स्वतंत्र हों।उन्हें समान अवसर मिले।

स्वतंत्रता का मतलब है कि कानून का राज हो और संविधान रक्षाकवच हो तो सत्य के आधार पर सारे नागरिकों को न्याय भी मिलें और उन सबकी सुनवाई हो।


स्वतंत्रता का मतलब है सामाजिक आर्थिक धार्मिक राजनीतिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता जो विविधता और बहुलता के भारतीय इतिहास की निरंतरता  और राष्ट्र के सामाजिक सांस्कृतिक स्वरुप के बिना असंभव है।


धर्म के नाम अध्रम का यह तांडव,यह प्रेतनृत्य नरनारायण की हत्या का महोत्सव है।


ईश्वर हो या न हो,निरीश्वरवादी और आस्थावान हमारे तमाम पुरखों का जीवनदर्शन यही रहा है कि उसने मनुष्यता में ही धर्म का चरमोत्कर्ष माना है और सारे भारतीय साहित्यिक सांस्कृतिक कथासार और अभिव्यक्ति के तमाम आयाम यही है कि मनुष्य से बड़ा कोई सत्य होता नहीं है और न मनुष्यता से बड़ा कोई धर्म होता है।


जो धर्म राष्ट्र बनाने पर हम आमादा हैं,उसके अंध राष्ट्रवाद में हम मनुष्य और प्रकृति दोनों का वध कर रहे हैं और इसीके तहत राष्ट्र का विखंडन भी कर रहे हैं।


मध्यभारत में,दंडकारण्य में और समूचे आदिवासी भूगोल में इस सैन्य राष्ट्र का वीभत्सतम चेहरा बेपर्दा है।जहां राष्ट्र ,संविधान,कानून का राज,लोकतंत्र का एक ही मायने है सलवा जुड़ुम और अनंत विस्थापन।


हमारी नागरिकता और हमारी स्वतंत्रता का एक ही मायने रह गया है क्रयशक्ति।

विकास का मतलब है अबाध विदेशी हितऔर अबाध विदेशी पूंजी।


राष्ट्र कहां है?

विभाजन और विखंडन राष्ट्र का सच है और इसीलिएसीमाओं के आर पार कश्मीर जल रहा है तो समूचा महादेश सीमाओं के आर पार आतंक और हिंसा के शिकंजे में है।


धर्म कहां है?

विधर्मियों,शरणर्तियों,आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों,बहुजनों और स्त्रियों की अबाध हत्यालीला रासलीला है।


उपनिवेशों की न्यूनतम स्वतंत्रता हम दलितों, बहुजनों, अल्पसंख्यकों, विस्थापितों, शरणार्थियों, आदिवासियों,बच्चों,युवाजनों,कामगारों,किसानों और स्त्रियों को देने को तैयार नहीं हैं और रंगभेदी सत्ता विमर्श हमारा इतिहासबोध और विज्ञान दोनों है।

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