Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Thursday, February 16, 2017

बड़े-बड़े आंकड़े, उनसे भी बड़े झूठ: आनंद तेलतुंबड़े



इस बार आनंद तेलतुंबड़े बता रहे हैं कि कैसे बिग डेटा की जुमलेबाजी के जरिए नोटबंदी से होने वाली तबाही और गैरकानूनी धन के ताने-बाने को ढंकने की कोशिश की जा रही है। अनुवाद: रेयाज उल हक

"आंकड़ों को ठोक-पीट कर आप उनसे कुछ भी उगलवा सकते हैं"-रोनाल्ड कोज़

यह बात पूरी तरह से शायद कभी भी उजागर न हो कि 86.4 फीसदी करेंसी को वापस लेने के इतिहास में अभूतपूर्व रूप से बेवकूफी भरे फैसले के पीछे का राज क्या था, लेकिन अब तक यह पर्याप्त रूप से साफ हो गया है कि यह फैसला और किसी ने नहीं बल्कि भारतीय राईख  के डेर फ्यूहरर  नरेंद्र मोदी ने लिया था. जब इस फैसले की बेवकूफी उजागर होने लगी तो अपनी मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के खास अंदाज में वे जब भी मुंह खोलते हैं, तब नोटबंदी का एक अलग ही मकसद बताने लगे हैं. जब लोगों तक नकदी पहुंचाने की बंदोबस्त चरमरा गई तो उन्होंने लोगों से डिजिटल हो जाने के लिए कहा; ताकि भारत को एक कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाया जाए, जिसे बाद में बदल कर लेस-कैश इकोनॉमी (कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था) कहा गया. जब 30 दिसंबर को आधार आधारित ई-लेनदेन की बायोमेट्रिक ऐप को 'भीम' (बीएचआईएम: भारत इंटरफेस मनी) का नाम दिया गया तो यह कहते हुए वे इससे भी राजनीतिक गोटी सेंकना नहीं भूले कि इसका नाम बाबासाहेब आंबेडकर के नाम पर रखा गया है. लेकिन फिर भी लोगों की नाराजगी इससे दूर न हो सकी, जिनमें से अनगिनत लोग भुखमरी की कगार पर धकेल दिए गए और कइयों की अब तक मौत हो चुकी है. 

यह बेवकूफी भरी उम्मीद कि पुराने नोटों में जमा किए गए गैरकानूनी धन की भारी मात्रा कभी नहीं लौटेगी नाकाम हो गई है, जब 15 लाख करोड़ रुपए लौट आए हैं. यह रकम वापस लिए गए नोटों का 97 फीसदी है. मोदी ने फौरन अपना लक्ष्य बदलते हुए कहा कि अपराधियों को गिरफ्त में लेने के लिए नोटबंदी की प्रक्रिया में पैदा हुए डाटा का विश्लेषणात्मक उपकरणों के जरिए छानबीन की जाएगी. अपने नेता को सही साबित करने के लिए अनगिनत मोदीभक्त आनन-फानन में यह प्रवचन देने लगे कि कैसे बिग डाटा एनालिटिक्स (बीडीए) गैरकानूनी धन से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं. उन्हें इसका अहसास नहीं था कि इस डाटा में एक बहुत अहम चीज की कमी थी.

विश्लेषण का वितंडा
 

बिग डाटा को आम तौर पर अंग्रेजी के वी अक्षर से शुरू होने वाले तीन शब्दों के जरिए परिभाषित किया जाता है: वॉल्युम (यानी आंकड़े का आकार), वेरायटी (यानी डाटा का बहुमुखी स्वरूप: ऑडियो, वीडियो, टेक्स्ट, सिग्नल),  और वेलॉसिटी (यानी डाटा के जमा होने की तेजी). एनालिटिक्स यानी विश्लेषण की व्यवस्था, सांख्यिकीय मॉडलिंग और मशीन लर्निंग को मिला कर बनती है. बिग डाटा के विश्लेषण के दौरान भारी मात्रा में जटिल डाटासमूहों की छानबीन की जाती है, ताकि ऊपर से नजर न आने वाली परिपाटी, अनजान अंदरूनी संबंध, रुझान और अनेक तरह के दूसरे उपयोगी सूचनाएं उजागर हों.

लेकिन यह सब सच होने के बावजूद, यह कोई जादू की छड़ी नहीं है जो हवा में से नतीजे पैदा कर सकती है. सही है कि जाली नोटों की रोकथाम के लिए करेंसी नोटों में देश की पहचान करने के संकेत, उनका मूल्य, अनोखे सीरियल नंबर जैसी विशेषताएं तथा इसके अलाव एक पूरा तंत्र मौजूद है. इस डाटा तक नकदी गिनने वाली मशीनों के जरिए आसानी से और हाथोहाथ पहुंचा जा सकता है, बशर्ते उनसे होकर गुजरने वाले करेंसी नोटों के सीरियल नंबरों का पता लगाने और उन्हें स्टोर करने के लिए जरूरी सेंसर मशीनों में लगे हुए हों. इसके जरिए उन आखिरी व्यक्तियों या खाता धारकों तक का पता लगाया जा सकता है, जिनके पास से आखिरी बार ये नोट आए हों या जिन्होंने उनका आखिरी बार उपयोग किया हो. ऐसे अलगोरिद्म बनाए जा सकते हैं कि उन पर डाटा चलाने के बाद वे उन इलाकों का एक अनुमान लगा सकें, जिन इलाकों में रकम की जमाखोरी की गई थी. 

लेकिन जहां तक नोटबंदी की प्रक्रिया के डाटा की बात है, यह तथ्य बरकरार है कि बैंकों में लगी हुई नोट गिनने की मशीनों में करेंसी नोटों के सीरियल नंबर जमा करने के लिए सेंसर नहीं लगे हैं. इस अहम डाटा की गैरमौजूदगी को देखते हुए इस नतीजे पर पहुंचना नामुमकिन है कि जमा की गई रकम गैरकानूनी थी. किसी व्यक्ति का सुराग लगा पाना तो और भी मुश्किल है. पुराने करेंसी नोटों को नए करेंसी नोटों से बदलने के तरीके ये थे: (1) आम लोगों ने कतारों में लग कर अपनी पसीने की कमाई को बदला, (2) एजेंटों के जरिए नोट बदले गए जिसके लिए 20 से 40 फीसदी कमीशन अदा की गई और (3) 50 फीसदी का जुर्माना कर भर कर नोट जमा किए गए. इनमें से सिर्फ दूसरा तरीका ही गैरकानूनी है, क्योंकि इसके जरिए गैरकानूनी धन को कानूनी धन में तब्दील किया गया. ऐसा दो तरीकों से हुआ: एक, जिसमें बैंक अधिकारियों की मिलीभगत थी, और दो, जिसमें गरीब लोगों को 10 फीसदी के कमीशन पर पुराने नोट बदलने के काम पर लगाया गया. इन तरीकों से करोड़ों रुपए बदले गए. विश्लेषण की प्रक्रिया में इस डाटा से आखिर क्या मतलब निकाला जा सकेगा? उम्मीद के मुताबिक, बस बैंकों के पास जमा रकमों में भारी इजाफा होगा, लेकिन क्या इसे गैरकानूनी धन कहा जा सकता है? नोटबंदी ने सिर्फ एक ही काम किया है और वो यह है कि इसने अपराधियों के गैरकानूनी धन को कानूनी बना दिया है और इस तरह उन्हें फायदा पहुंचाया है.

बेवकूफ बनी जनता
 

जैसा कि मैंने अपने पहले के एक स्तंभ (समयांतर, दिसंबर 2016) में लिखा था कि कुल गैरकानूनी धन का सिर्फ 5 फीसदी ही नकदी में है (जिसमें जेवरात भी शामिल हैं). इसलिए अगर गैरकानूनी धन का सुराग लगाना ही मकसद था, तो नकदी के पीछे पड़ना फायदेमंद नहीं था. गैरकानूनी धन का मुहाना तो कॉरपोरेट दुनिया से निकलता है जिसकी पीठ पर राजनेताओं और नौकरशाहों का हाथ है. दिलचस्प यह है कि इस मुहाने को मोदी की निजी सुरक्षा हासिल है. उन्होंने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर, 20 हजार रुपए प्रति दानदाता तक करों में छूट दे रखी है. इस तरह राजनीतिक दल वो घाट बन गए हैं, जहां अपराधियों के गैरकानूनी धन को धो-पोंछ कर कानूनी बनाया जाता है. खुद मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने इन राजनीतिक दलों को, जिनकी संख्या आज 1900 से ज्यादा है, 'काले धन को ठिकाने लगाने वाला परनाला' कहा है. बेशक, इसका सबसे बड़ा फायदा भाजपा को मिला है. करेंसी जमा करने के बिद डाटा की छानबीन करके संदिग्धों को पकड़ने का दिखावा करना ऐसा ही है जैसा जाल के बड़े छेद से तो मछलियों के झुंड को निकलने दिया जाए, और फिर मछली पकड़ने का दिखावा किया जाए. क्या मोदी, नोटबंदी का ऐलान करने से पहले जमा की गई भारी रकम की छानबीन करने वाले हैं? आखिरकार, मीडिया रिपोर्टों ने गोपनीयता के उनके दावे की पोल पहले ही खोल दी है कि पिछली तिमाहियों में भारी लेन-देन हुए हैं. यह जानने के लिए बहुत बुद्धि लगाने की भी जरूरत नहीं है कि वे सभी भाजपा के अंदरूनी हलके से जुड़े हुए थे.

जब डाका डालने वालों के गिरोह खुलेआम घूम रहे हों तो जेबकतरों की पहचान करने के लिए क्या आपको सचमुच में बिग डाटा एनालिटिक्स उपकरणों की जरूरत है? और ये गिरोह ठीक-ठीक मोदी के अपने राजनीतिक वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा उम्मीदवारों के चुनावी हलफनामों के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक, 16वीं लोकसभा में दोबारा चुने गए 165 सासंदों की परिसंपत्तियों में 2009 से 2014 के दौरान 137 फीसदी का भारी इजाफा हुआ था (एफडीआर के मुताबिक कुल 168 सांसदों में से तीन के हलफनामे भारत के चुनाव आयोग की वेबसाइट पर साफ-साफ उपलब्ध नहीं हैं). मोदी की अपनी पार्टी परिसंपत्तियों और आपराधिक मुकदमों, दोनों ही मामलों में सबसे ऊपर है. उत्तर प्रदेश में, जहां भाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीतीं, वरुण गांधी की परिसंपत्तियां 625 फीसदी की दर से बढ़ीं. 2009 में वरुण गांधी के हलफनामे के मुताबिक उनके पास कुल 4.93 करोड़ की परिसंपत्तियां थीं. 2014 में यह सीधे 30.81 करोड़ बढ़ते हुए, 35.73 करोड़ हो गईं. उनकी मां मेनका गांधी की परिसंपत्तियों में 105 फीसदी का इजाफा हुआ. अगर परिसंपत्तियों में इजाफे को भ्रष्टाचार के संकेत के रूप में लिया जाए, तो भाजपा साफ तौर पर कांग्रेस से आगे है. जहां भाजपा के दोबारा चुने गए सांसदों की परिसंपत्तियां तेजी से बढ़ते हुए 2014 में 5.11 करोड़ से 12.6 करोड़ हो गईं, जिसकी वृद्धि दर 146 फीसदी है, वहीं कांग्रेस में 104 फीसदी की वृद्धि दर देखी गई, जो 2009 के 5.66 करोड़ से बढ़ कर 2014 में 5.90 करोड़ हो गई. जनता के सेवक कहे जाने वाले ये राजनेता आखिर कैसे पैसे जुटाने की जादुई छड़ी में तब्दील हो गए हैं, इस सवाल का जवाब मोदी को देना होगा. कभी कॉलेज का मुंह तक न देखने वाले वरुण गांधी एमबीए किए हुए लोगों को मात दे सकते हैं. इसी तरह का जादू नौकरशाहों के मामलों में भी देखा जा सकता है, जिनके बगैर राजनेताओं की जादुई छड़ी कारगर नहीं हो सकती. यह एक आम जानकारी है कि नौकरशाह, खास कर प्रशासन, पुलिस का नियंत्रण करने वाले और नियामक पदों पर तैनात तमाम नौकरशाहों के पास भारी परिसंपत्तियां हैं जो उनकी आमदनी के स्रोत के अनुपात के बाहर हैं. उनमें से कितनों की कभी जांच-पड़ताल हुई है, और कितनों को कसूरवार साबित किया गया है? जो फूहड़ गैरबराबरी भारत को दुनिया के सबसे गैरबराबरी वाले देशों में खास तौर से बदनाम करती है, जिसके तहत 57 अरबपतियों के पास इसकी कुल संपत्ति[1] का 58 फीसदी है, वह आखिरकार ईमानदारी की कमाई नहीं है.

विश्लेषण की मुश्किलें

बीडीए के डाटा आधारित फैसलों के नए मॉडल के नतीजे बड़े हैं, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही हैं. दार्शनिक रूप से कहें तो यह 'सिद्धांतों का अंत' कर देता है.[2] बिग डाटा अंदरूनी संबंधों की तलाश करता है, यह वजहों की तलाश नहीं करता. इसकी दिलचस्पी 'क्यों' के बजाए 'क्या' में है. इस नए मॉडल पर मुग्ध लोगों के लिए व्हाइट हाउस की एक हालिया रिपोर्ट "बिग डाटा: अ रिपोर्ट ऑन अलगोरिद्मिक सिस्टम्स, अपॉर्च्युनिटी, एंड सिविल राइट्स" इसके खतरों से आगाह करने के काम आ सकती है. यह कहती है, "डाटा को सूचनाओं में बदलने वाला अलगोरिद्म अचूक नहीं है, वह अशुद्ध इनपुट, तर्क, संभाव्यता और अपने बनाने वाले लोगों पर निर्भर करता है." इसके पहले की एक व्हाइट हाउस रिपोर्ट ने भी स्वचालित और खुफिया फैसलों में एनकोडिंग भेदभाव की संभावनाओं के प्रति आगाह किया था, जो एनालिटिक्स के जटिल अलगोरिद्म का हिस्सा होते हैं. बिग डाटा के फायदे उतने नहीं हैं, जितना गंभीर चिंता निजता और डाटा सुरक्षा के बारे में है. डाटा पारिस्थितिकी के फायदे, सरकार, कारोबार और व्यक्तियों के बीच के शक्ति संबंधों को उलट देते हैं और नस्ली या दूसरी तरह की बदनाम करने वाली छवियों के निर्माण, भेदभाव, समुदायों या समूहों को गैरवाजिब तरीके से अपराधी बताने और आजादियों को सीमित करने की तरफ ले जा सकते हैं.

जहां एक तरफ पूरी दुनिया इन मुद्दों को लेकर चिंतित है, भारत सरकार अपने डिजिटल रथ को आगे धकेल रही है और इसके नुकसान की ओर से आंखें मूंदे हुए है. यह आधार डाटा को लेकर बहुत उम्मीद पाले हुए है, जिसका इस्तेमाल करते हुए यह हरेक लेन-देन को डिजिटाइज करना चाहती है, जिसमें बायोमेट्रिक्स पहचान करने का आधार होगा. विशेषज्ञों द्वारा यह दिखाया गया है कि बायोमेट्रिक्स वित्तीय लेनदेन के लिए भरोसेमंद नहीं है, इसके बावजूद मोदी ने बीएचआईएम को "आपका अंगूठा आपका बैंक" के रूप में प्रचारित किया. एक अनोखी पहचान तैयार करने के अपने घोषित उद्देश्य के उलट, 2009 में अपनी शुरुआत के फौरन बाद आधार-ऑथेन्टिकेशन एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) बनाया गया, जिसने इसको कारोबारों के लिए उपलब्ध करा दिया. जैसाकि इसके निर्माता नंदन निलेकणी ने हाल ही में दावा किया है कि महज एक "आधार-सक्षम बायोमेट्रिक स्मार्टफोन" से 600 अरब डॉलर के अवसर पैदा होने का अंदाजा है.
[3] इसमें इस बात की रत्ती भर भी चिंता नहीं है कि भारतीयों की निजता और उनके महत्वपूर्ण डाटा की सुरक्षा का क्या होगा. जब अगस्त 2015 में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में आया तो महाधिवक्ता ने यह कह कर इसे रफा-दफा कर दिया कि इस देश के लोगों को पास निजता का अधिकार नहीं है. दिलचस्प बात यह है कि लगभग ठीक उन्हीं दिनों मानहानि को अपराधों की सूची से हटाने के लिए सरकार ने ठीक इसकी उलटी बात कही कि उन्हें जनता के निजता के अधिकारों की सुरक्षा करनी है. सर्वोच्च न्यायालय ने उचित ही आधार कार्ड के उपयोग को सिर्फ छह क्षेत्रों तक सीमित कर दिया – सार्वजनिक वितरण प्रणाली में राशन, एलपीजी, जन धन योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम और पेंशन. और इसमें भी कार्ड का इस्तेमाल स्वैच्छिक है. लेकिन इसकी पूरी तरह अवमानना करते हुए, सरकार हर जगह इसको अनिवार्य बनाते हुए इसे जबरन लागू कर रही है. जाहिर है कि यह संवैधानिक गारंटियों का उल्लंघन करते हुए हम सबकी जिंदगियों पर पूरा नियंत्रण करना चाहती है और बिग डाटा एनालिटिक्स के इस्तेमाल के साथ हमें प्रयोगशालाओं के जानवर और फरमाबरदार मशीनों के रूप में ढाल देना चाहती है.

अगर लोग नोटबंदी से होने वाली तबाहियों को चुपचाप बर्दाश्त कर सकते हैं, तो यह अपराध तो शायद एक जरा सी परेशानी ही मानी जाएगी!


नोट्स

[1] ऑक्सफेम स्टडी, देखें द हिंदू, 16 जनवरी, 2017.
[2] सी एंडरसन, "द एंड ऑफ थ्योरी: द डाटा डेल्युज मेक्स द साइंटिफिक मेथड ऑब्सोलीट," वायर्ड, 23 जून 2008, ऑनलाइन उपलब्ध www.wired.com/2008/06/pb-theory.
[3] https://www.credit-suisse.com/media/cc/docs/cn/india-digital-banking.pdf

 

--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV