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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, February 17, 2017

जोहार! झारखंड में जल जंगल जमीन की लड़ाई आर या पार! टाटा देखाया, एचईसी देखाया / सीसीएल देखाया, ईसीएल देखाया बोकारो देखाया, रउरकेला देखाया / किसी ने देखा क्या ‘बिकास’? ग्लोबल समिट का मदारी लोग भी ऐसा ही झूठ्ठा है. ओह रे रीझरंगिया, हाय रे झारखंडिया ! आए गेलक लूटेक ले सरकार-फिरंगिया !! पलाश विश्वास

जोहार! झारखंड में जल जंगल जमीन की लड़ाई आर या पार!

टाटा देखाया, एचईसी देखाया / सीसीएल देखाया, ईसीएल देखाया

बोकारो देखाया, रउरकेला देखाया / किसी ने देखा क्या 'बिकास'?

ग्लोबल समिट का मदारी लोग भी ऐसा ही झूठ्ठा है.

ओह रे रीझरंगिया, हाय रे झारखंडिया !

आए गेलक लूटेक ले सरकार-फिरंगिया !!

पलाश विश्वास

रांची से ग्लाडसन डुंगडुंग ने लिखा हैः

क्या केंद्र सरकार कोई निजी कंपनी है जो झारखण्ड में निवेश करेगी या झारखण्ड और भारत अलग-अलग देश है? केंद्र सरकार राज्यों को आर्थिक सहायता देती है पूंजीनिवेश नही करती है तथा एक देश ही दूसरे देश में पूंजी निवेश करती है। लेकिन अब क्या केंद्र सरकार को झारखण्ड से लाभ कमान है? क्या बात है! असल में कोई कंपनी राज्य में 5 हजार करोड़ से ज्यादा निवेश करने को तैयार ही नही है इसलिए फजीहत होने से बचने के लिए केंद्र सरकार ही कंपनी बन गयी और 50 हज़ार करोड़ निवेश करने की घोषणा की है। लेकिन सवाल यह है कि जब केंद्र सरकार ही सबसे बड़ा निवेशक है तो ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट आयोजित करने की क्या जरूरत थी? मुख्यमंत्री का फोटो छापकर दिखाने के लिए सरकारी खजाना खाली क्यों किया गया? कोई तो कुछ बताओ भाई क्या चल रहा है?

एके पंकज ने लिखा हैः

टाटा देखाया, एचईसी देखाया / सीसीएल देखाया, ईसीएल देखाया

बोकारो देखाया, रउरकेला देखाया / किसी ने देखा क्या 'बिकास'?

ओह रे रीझरंगिया, हाय रे झारखंडिया !

आए गेलक लूटेक ले सरकार-फिरंगिया !!

ग्लोबल समिट का मदारी लोग भी ऐसा ही झूठ्ठा है.

आम सूचना ----------------------

यह आम सूचना झारखंड का गोटा पबलिक लोग का तरफ से जारी किया जाता है कि 16 और 17 फरवरी को 'मोमेंटम झारखंड-ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट 2017' का नाम से हो रहा सरकारी लूट का खिलाफ आप सब अपना फेसबुक वॉल को ऐसा हरा कर दो. वरचुअल बिरोध भी हमारा लड़ाई का जंगल-मैदान है.

दयामणि बारला का कहना हैः

गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन सरकार का नहीं है, यह आदिवासी, मूलवासियों , किसानों और मेहनत कशों का है- जान देंगे-जमीन नहीं।

कोल्हान के मनकी-मुङांओं ने कहा -किसी भी कीमत में हम अपना जंगल जमीन नदी पहाड़ से विस्थापित नहीं होना चाहते-

इन दिनों में मेरे पांव थमे हुए हैं।उंगलियां अभी सही सलामत हैं।आंखों में भी  रोशनी बाकी है।मैंने झारखंड में जल जंगल जमीन की लड़ाई में शामिल होने की गरज से कभी 1980 में पत्रकारिता की तब शुरुआत की थी,जब छत्तीसगढ़,उत्तराखंड के साथ साथ झारखंड में जल जंगल जमीन की लड़ाई तेज थी।

छत्तीसगढ़ में शंकरगुहा नियोगी संघर्ष और निर्माण राजनीति के तहत छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व कर रहे थे तो उत्तराखंड में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी आंदोलन कर ही थी,जिस आंदोलन की बागडोर अस्सी के दशक से अब तक उत्तरा खंड की महिलाओं ने संभाल रखी है।

उस वक्त आंदोलन की कमान शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो के साथ साथ मजदूर आंदोलन के नेता कामरेड एके राय संभाल रहे थे।

अब मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़,यूपी से टूटकर उत्तराखंड और बिहार के बंटवारे के बाद झारखंड अलग राज्य बन गये हैं और तीनों राज्यों में आंदोलनकारी अलग अलग खेमे में बxट गये तो जल जंगल जमीन की लड़ाई हाशिये पर आ गयी है।

मुक्तबाजार में बाजार के कार्निवाल में उत्सव संस्कृति सुनामी की तरह देशभर में आम जनता की रोजमर्रे की जिंदगी को तहस नहस कर रही है और विकास के नाम पूंजी निवेश के बहाने जल जंगल जमन से बेदखली का अंतहीन सिलसिला शुरु हुआ है।

इस बेदखली के खिलाफ देशभर में आदिवासी हजारों साल से लगातार लड़ रहे हैं और संसाधनों पर कब्जे के लिए उनका नरसंहार  ही भारत का सही इतिहास है जिसकी शुरुआत मोहनजोदोड़ों और हड़प्पा की सभ्याताओं के विनाश से हुई।सिंधु घाटी की नगरसभ्यता के वास्तुकारों,निवासियों ने पीढ़ी दर पीढ़ी हार नहीं मानी है और वैदिकी सभ्यता के खिलाफ जल जगंल जमीन पर उनकी लड़ाई भारत का इतिहास है।

1757 में पलाशी की लड़ाइ में सिराजुदौल्ला की हार के बाद बंगाल और बिहार समेत पूरे पूर्व और मध्य भारत में,पश्चिम भारत में भी देश के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए आदिवासी अंग्रेजी हुकूमत और देशी हुक्मरान के खिलाफ लड़ते रहे हैं।

आजादी के बाद विकास के नाम पर इन्ही आदिवासियों की लगातार बेधखली होती रही।भारत विभाजन के बाद जितने शरणार्थी पाकिस्तान, बांग्लादेश, तिब्बत, म्यांमार और श्रीलंका से आये उनसे कहीं ज्यादा संख्या में इस देस में आदिवासी जबरन विस्थापित बनाये गये हैं।

इसी लूटखसोट नीलामी के मकसद से भारतीय सेना और अर्द्ध सुरक्षा बल देशी विदेशी कंपनियों की सुरक्षा के लिए आदिवासी भूगोल के चप्पे चप्पे में तैनात हैं।अपने विस्थापन का विरोध और जल जंगल जमीन का हकहकूक की आवाज बुलंद करने पर तमाम आदिवासी नक्सली और मार्क्सवादी करार दिये जाते रहे हैं और उनके दमन के लिए सलवा जुड़ुम से लेकर सैन्य अभियान तक को बाकी देश जायज मानता रहा है।

1991 के बाद अबाध पूंजी प्रवाह और निवेश विनिवेश आर्थिक सुधार के बहाने पूरे देश में आदिवासियों के खिलाफ फिर अश्वमेध जारी है।जिसके केंद्र में झारखंड और छत्तीसगढ़ खास तौर पर है,जहां छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और झारखंड आंदोलन का विखंडन हो गया है।

खासतौर पर झारखंड आंदोलन की विरासत पर जिनका दावा है,झारखंड के वे आदिवासी नेता केंद्र और राज्य सरकारों में सत्ता में भागेदारी के तहत इस लूटपाट में शामिल हैं।

खनिज संपदा,वन संपदा और जल संपदा से हरे भरे छत्तीसगढ़ और झारखंड के आदिवासी फटेहाल हैं।जल जंगल जमीन की लड़ाई का नेतृत्व करने वाले संथाल, मुंडा,भील,हो कुड़मी आदिवासियों के संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचियों के तहत आरक्षित सुरक्षा कवच का भी कोई लाभ आजतक नहीं मिला है और न आजादी के बाद अबतक हुए तमाम विकास कार्यों में बेदखल आदिवासियों को कोई मुआवजा मिला है।

मुक्तबाजार में पूरा आदिवासी भूगोल एक अंतहीन वधस्थल है।

दूसरी ओर,जल जंगलजमीन की लड़ाई लड़ रहे उत्तराखंड में भी नया राज्य बनने के बाद माफिया राज है।

झारखंड के आदिवासी लगातार जल जंगल जमीन के हकहकूक के लिए लड़ रहे हैं।लेकिन बाकी जनता उनके साथ नहीं है और न मीडिया उनके साथ हैं।

छत्तीसगढ़ में सलवा जुड़ुम है तो झारखंड में वैज्ञानिक सलवा जुड़ुम है,जिसे मीडिया जायज बताने से अघाता नहीं है।

पूंजी निवेश के नाम अब मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में आईपीएल की तर्ज पर राष्ट्र और राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधनों की खुली नीमामी हो रही है।

देश में फासिज्म के राजकाज का अंदाजा लगाना आदिवासियों की रोजमर्रे की जिंदगी में सत्ता का बेलगाम आपराधिक वारदातों के बारे में जानकारी न होने की वजह से बेहद मुश्किल है।

मसलन नोटबंदी का असर आदिवासी इलाकों में सबसे ज्यादा है जो वन उपज पर जीविका निर्वाह करते हैं या आदिवासी इलाकों में सस्ते मजदूर के बतौर  मामूली आय से जिंदगी गुजर बसर करते हैं और जहां बंगाल की भूखमरी अभी जारी है।

आदिवासी कार्ड से लेनदेन नहीं करते हैं।जल जंगल जमीन से बेदखली के बाद वे रोजगार और आजीविका से भी बेदखल हैं।

आदिवासी इलाकों में न संविधान लागू है और न कानून का राज है।

वहां पीड़ितों की न सुनवाई होती है और न उनके खिलाफ आपराधिक वारदातों,दमन,उत्पीड़न का कोई एफआईआर दर्ज होता है।

नकदी संकट ने उन पर सबसे ज्यादा कहर बरपाया है।

इसके उलट संघ के खासमखास सिपाहसालार सीना ठोंककर विधानसभा चुनावों को नोटबंदी पर जनादेश बताने से परहेज नहीं कर रहे हैं क्योंकि गैरआदिवासी जनता कभी जल जंगल जमीन की लड़ाई में कहीं शामिल नहीं है और वहां मजहबी सियासत की वजह से अंध राष्ट्रवाद का असर इतना घना है कि किसी को काटों तो खून भी नहीं निकलेगा।

नकदी संकट को जायज बताकर वोट डालने वाले यूपी,पंजाब और उत्तराखंड में वोटर कम नहीं हैं।

हिंदुत्व का यह एजंडा कितनी वैदिकी रंगभेदी हिसा है और कितना राष्ट्रविरोधी कारपोरेट एजंडा,आदिवासियों की लड़ाई में शामिल हुए बिना इसका अहसास हो पाना भी असंभव है।

गौरतलब है कि बाबासाहेब भीमराव आम तौर पर वंचित वर्ग की लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन वे खुले तौर पर दलितों के नेता थे,जिन्हें खुलकर संविधान सभा में सबसे पहले आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने समर्थन दिया था।

सोशल इंजीनियरिंग और जाति धर्म समीकरण से सत्ता में भागेदारी में शरीक बहुजन समाज के नेताओं ने आदिवासियों के हक हकूक के लिए कोई आवाज अभी तक नहीं उठायी है और बहुजनों में हजारों साल से वैजिकी संस्कृति,पूंजी और साम्राज्यवाद के खिलाफ आजादी की लड़ाई में सबसे ज्यादा शहादतें देने वाले आदिवासियों के बिना बहुजन समाज का हर दावा खोखला है।

बहरहाल झारखंड और छत्तीसगढ़ में बहुजन आदिवासियों का साथ दें तो किसी चुनावी जीत के मुकाबले कही ज्यादा कारगर प्रतिरोध मुक्ताबाजार के हिंदुत्व एजंडे का हो सकता है।

इसी सिलसिले में रांची में ग्वलोबल इंवेस्टर्स समिट का विरोध कर रहे आदिवासियों का साथ देना बेहद जरुरी है।

डुंगडुंगने जो लिखा है,वह पूरे देश में मुक्तबाजारी लूटपाट का किसा है,जिसमें सत्तावर्ग के साथ साथ समारा मीडिया और सारी राज्य सरकारें शामिल हैं।

हम रांची जाने की हालत में नहीं हैं लेकिन हम रांची में आदिवासियों की इस लड़ाई के साथ हैं।

रांची से साथियों के कुछ अपडेट्स पर गौर करेंः

वंदना टेटे का कहना हैः

आदिवासी बोलेंगे| जहां भी मंच मिलेगा| अपनी ही बात बोलेंगे|

ग्लोबल समिट के जरिए हमारी आवाज नहीं दबायी जा सकती|

डुंगडुंग ने लिखा हैः

यह आॅकड़ा विकास बनाम विनाश को समझने के लिए है। विकास के नाम पर उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सौदा करने का नतीजा क्या हो सकता है उसे समझना हमारे लिए बहुत जरूरी है। चीन की अर्थव्यवस्था 9.24 ट्रिलियन डाॅलर है और भारत का 1.877 ट्रिलियन डाॅलर। चीन के घरेलू सकल उत्पाद के मूल्य का विश्व अर्थव्यवस्था में हिस्सा 17.75 प्रतिशत है जबकि भारत का मात्र 3.38 प्रतिशत है। चीन में प्रति व्यक्ति आय 6,807.43 डाॅलर है वहीं भारत में प्रति व्यक्ति आय 1,498.87 डाॅलर। लेकिन चीन के 74 शहरों में से सिर्फ 3 शहर ही पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित हैं एवं बाकी 71 शहरों में आॅक्सीजन खरीदना पड़ रहा है। भारत की राजधानी दिल्ली पर्यावरण की दृष्टि से असुरक्षित हो चुकी है जहां कनाडा की कंपनी ने आॅक्सीजन बेचने का प्रस्ताव रखा है। एक बार सांस लेने के लिए 12.50 रूपये चुकाना होगा। लेकिन भारत चीन से प्रतिस्पर्धा में लगा हुआ है। इसलिए आज यह समझना बहुत जरूरी है कि हम आदिवासी लोग जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज यानी प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं तो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि यह संघर्ष सम्पूर्ण मानव जीवन और प्रकृति को बचाने के लिए है। आज जंगल सिर्फ आदिवासी इलाकों में क्यों बचा हुआ है? क्या विकास का बड़ा-बड़ा सिद्धांत देने वालों के पास इसका जवाब है?

बरखा लकडा ने लिखा हैः

इतिहास आपकी ताकत है, तो युवा आपकी शक्ति 🍂

🍂वीरता की ढाल पहनकर व जुनून का हथियार लेकर अमर नहीं शहीद होने का जज्बा रखो🍂

अपने हजारों साल के लंबे और वैविध्यपूर्ण इतिहास में आदिवासी आज सबसे ज्यादा नाजुक दौर से गुजर रहा हैं। इस लम्बे इतिहास में हमारे पुरखों ने हर तरह के बाहरी आवरणों , आक्रमणों और भेदभाव को पूर्ण हस्तक्षेप कर सफलता पूर्वक संर्घष किया। हाथ में तीर-कमान , टंगियाॅ , दौवली लेकर दुश्मनों का कड़ा मुकाबला किया। अपनी संस्कृति, आज़ादी और अस्मिता की रक्षा के लिए खुद की बलि चढा दी। अंग्रेजों के हमलें के बाद आदिवासी इलाकों का इतिहास उनकी घुसपैठ को नाकाम करने के लिए प्रतिकारों और विद्रोहों की न टूटने वाली कड़ी रूप गाथाओं की अंतहीन किताब हैं। हमें अभिमान है कि गाथाओं में झारखंड में आदिवासी प्रतिकारों और विद्रोहों की गथाऐं अनूठी हैं। और सुनहरे अक्षरों में अंकित हैं। ये स्पष्ट है कि आदिवासी समाज ने कभी अंग्रेज़ी हूकुमत को स्वीकारा ही नहीं । उस समय दो ताकत 'आदिवासी बनाम अंग्रेज़ी हूकुमत' की लडाई हुई। इस लड़ाई में सारे आदिवासी युवा ही नेतृत्‍व किये।

आदिवासियों का मानना था कि 'हमारे पुर्वजों ने जंगल- पहाड़ काटकर अपने हाथों से इस धरती को रहने लायक बनाया ये धरती हमारे पूर्वजों की हैं बीच में ये सरकार कहाॅ से आयी'।

वर्त्तमान समय में भी सरकार छलपूर्ण कूटनीतिक चालों से विकास के नाम पर आदिवासियों की जमीन हडप लेना चाहती हैं। इस आक्रमण का खुला चुनौती सिर्फ और सिर्फ युवा ही दे सकते हैं। आज भी लडाई ' आदिवासी बनाम सरकार ' की हो गई हैं। जिसका सीधा मुकाबला युवा ही कर सकते हैं। इन युवाओ को भी अपने पुर्वजों के इतिहास को अपनी ताकत बनाकर सरकार की धूर्तापूर्ण कूटनीतिक और छलपूर्ण नीतियों का डटकर सामना करना होगा। फिर एक नयी 'हूल उलगुलान' का विगूल फूकना होगा वरना सरकार आपको विकास के नाम पर कब बलि चढा देगी ये खुद को भी पता नहीं चलेगा। अब वक्त है साथियों वीरता की ढाल पहनकर व जुनून का हथियार लेकर अमर नहीं शहीद होने का जज्बा रखो तभी आप अपना भूत, वर्त्तमान और भविष्य बचा पाओगे। और आपका आने वाला पीढी आपको नमन करेगा।

अब तो लौट आओ बिरसा..

अब तो लौट आओ बिरसा॥

सूख गयी सारी नदियाँ बिरसा, कट गये सारे पेड़॥॥

सूना हुआ पहाड़ बिरसा ,

जंगल हुआ विरान॥

कत्ल हो गये सारे सपने बिरसा,

यतीम हुआ इतिहास ॥॥

जल रही है धरती बिरसा ,

लूट रहा आकाश॥॥

पुकार रही है आंसू बिरसा, चीख रहा आवाज॥॥

अब तो लौट आओ बिरसा

अब तो लौट आओ...

🍂बरखा लकडा 🍂


डुंगडुंग ने लिखा हैः

आदिवासियों को एक बात बहुत अच्छा से समझना होगा कि यदि वे ऐसे ही दूसरों के इसारे पर नाचते और उद्योगपतियों का स्वागत करते रहे तो आनेवाले समय में उनके पास नाचना क्या पैर रखने के लिए भी जमीन नही होगा। और जब जमीन ही नही होगा तो उनको कोई पूछने वाला भी नही होगा। आदिवासी लोग कीड़े-मकोड़े की तरह रौंद दिए जायेंगे। जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधन पर ही आदिवासी अस्तित्व टिक हुआ है। जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज ख़त्म मतलब आदिवासी ख़त्म।

मोमेंटम झारखंड। आपका क्या है जो इतना इतना रहे हैं? जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज यानी सम्पूर्ण प्राकृतिक संम्पदा आदिवासियों का। उन्हीं के इलाकों में। आपके इलाके में क्या है? आप ने सबकुछ बेच खाया है। हां इन संसाधनों को आप लूट जरूर सकते हैं आदिवासियों से। आप हैं ही चोर, लूटेरा, बेईमान, हत्यारा और मुनाफाखोर। अब देखिये मोमेंटम झारखंड का लोगो उड़ता हाथी भी आपने गांेड़ आदिवासियों की कलाकृति से चोरी करके 40 लाख रूपये में बेचा है और आदिवासियों को क्रेडिट तक नहीं दिया। इतना बेईमान हैं आप लोग जो आज विकास के ठेकेदार बने हुए हैं और मीडिया तो आपके प्रचार का माध्यम है। पांच पेज का सरकारी विज्ञापन एक दिन में। वाह रे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ! सच्चाई छुपाने और जनता को भ्रमित करने का इनाम। अपना वजूद तक खोने को तैयार। जय हो लोकतंत्र ! चोर, लुटेरा, बेईमान, हत्यारा और मुनाफाखोरों का महाकुंभ है 'मोमेंटम झारखंड' और पानी की तरह पैसा बह रहा आम जनता का। और हां जब मैं हत्यारा कह रहा हॅंू तो याद रखिये टाटा ने ओड़िसा के कलिंगानगर में 19 आदिवासियों की हत्या करने के बाद अपना परियोजना स्थापित किया है और यही हत्यारा देश के विकास का मॉडल है तो आप समझ सकते हैं कि झारखंड किस दिशा में जा रहा है।

छापिए-छापिए. अपनी वॉल पर. उसकी वॉल पर. दोस्त की वॉल पर. दुश्मन की

वॉल पर. हर वॉल पर छापिए. कल तक सबकी वॉल पर छपा होना चाहिए -

''हेंदे रमड़ा केचे केचे, पुंडी रमड़ा केचे.''


इसके उलट सरकारी दावा हैः

संपन्न हुआ निवेशकों का महाकुंभ : हो जाये तैयार....आने वाला है छह लाख रोजगार :

तैयार हो जाइये क्योंकि आने वाले दो सालो में झारखंड के छह लाख से ज्यादा लोगो को रोजगार मिलेगा. विभिन्न सेक्टर्स में छह लाख से अधिक लोगो के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे. जी हां, ये कोई सपना नहीं बल्कि हकीकत है. आज मोमेंटम झारखंड के दौरान 3 लाख करोड़ के निवेश पर हस्ताक्षर हुए. 209 कंपनियों के साथ सरकार का एमओयू हुआ. वहीं 6 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा. प्रत्यक्ष और परोक्ष मिला कर वास्तविक रोजगार की संभावनाएं इससे कई गुणा अधिक होगी. राज्य सरकार की ओर से कंपनियों के सीएसआर फंड पर नजर रखने के लिए भी एक संस्था का गठन किया गया है जिसकी जिम्मेदारी अब और ज्यादा बढ़ गई है.

बढे़गा जीवन स्तर :

मोमेंटम झारखंड से सूबे के लोगों के एसइएस यानि सोशियो इकोनोमिक स्टेटस में भी बेहतरी के अवसर खुलेंगे. नियमानुसार कंपनियों को अपने लाभ का दो प्रतिशत कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी पर खर्च करना होता है. जाहिर है सूबे के जिस इलाके में कंपनियां निवेश करेंगी, वहां स्कूल, पार्क, स्वास्थ्य व अन्य जन सुविधाओं में इजाफा होगा. कंपनियों ने भी आयोजन के दौरान इसमें अपनी रुचि दिखाई जिससे उम्मीद जाहिर हो रही है कि इलाके का जीवन स्तर सुधरेगा.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट :

अथर्शास्त्री प्रो हरेश्वर दयाल कहते हैं कि मोमेंटम झारखंड से जीवनस्तर और जनसुविधाओं के बढ़ने की कई राह खुली हैं. एक तो यहां निवेश से रोजगार के अवसर खुलेंगे. दूसरा सीएसआर यानि कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी से भी इलाके की जनसुविधाएं बढ़ेंगी. वहीं दूसरी ओर रैपिड ट्रांसपेार्ट और स्मार्ट सिटी विकसित होने से लोगों को सीधा लाभ मिलेगा और उनके जीवनस्तर में सुधार होगा.

दिखाया सामाजिक जिम्मेदारी के लिए उत्साह :

कंपनियों ने अपने संबोधन में यहां की सामाजिक जिम्मेदारी में हिस्सेदारी की बात भी कही. जिंदल ग्रुप के नवीन जिंदल ने एलान किया कि सीएसआर के तहत कंपनी स्कूल और स्किल डेवलपमेंट में काम करेगी. सिंगापुर आम लोगों को सस्ते आवास मुहैया कराने में के प्रयास में राज्य सरकार का साझीदार बनेगा. मोमेंटम झारखंड के पहले दिन जॉन अब्राहम के नेतृत्व में सीएम से मिले प्रतिनिधिमंडल ने इस बाबत चर्च की. इसके अलावा सिंगापुर ने अस्पताल, कन्वेंशन सेंटर के निर्माण में भी रुचि दिखाई. आस्ट्रेलिया ने राज्य के बच्चों को स्कूली स्तर पर भी ट्रेनिंग देकर ओलंपिक के लिए तैयार करने की बात कही. किसानों को अधिक उपज के लिए ट्रेनिंग देने, सखी मंडल, युवा मंडल के कौशल विकास में भी आस्ट्रेलिया मदद करेगा.


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