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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, June 16, 2017

अब क्या ताजमहल भी तोड़ देंगे? जैसे बाबरी विध्वंस हुआ,जैसे मोहंजोदोड़ो और हड़प्पा की नगर सभ्यता को ध्व्सत कर दिया, उसी तरह? भारत में आदिवासियों के खिलाफ युद्ध क्यों जारी है? भारत में महिलाओं और दलितों पर अमानुषिक अत्याचार क्यों होते हैं? बाकी भारत के लिए कश्मीर या पूर्वोत्तर के लोग विदेशी क्यों हैं? गाय हमारी माता कैसे हैं? दंगों का सिलसिला क्यों खत्म नहीं होता? सिखों का नरसंहार क्य�

अब क्या ताजमहल भी तोड़ देंगे? जैसे बाबरी विध्वंस हुआ,जैसे मोहंजोदोड़ो और हड़प्पा की नगर सभ्यता को ध्व्सत कर दिया, उसी तरह?

भारत में आदिवासियों के खिलाफ युद्ध क्यों जारी है?

भारत में महिलाओं और दलितों पर अमानुषिक अत्याचार क्यों होते हैं?

बाकी भारत के लिए कश्मीर या पूर्वोत्तर के लोग विदेशी क्यों हैं?

गाय हमारी माता कैसे हैं?

दंगों का सिलसिला क्यों खत्म नहीं होता?

सिखों का नरसंहार क्यों हुआ?

गुजरात का नरसंहार क्यों हुआ?

यूपी के मुख्यमंत्री के अभूतपूर्व वक्तव्य में इन सारे सवालों के जबाव है।

जो भी कुछ भारत में हिंदुत्व के प्रतीक नहीं है,वे अब तोड़ दिये जायेंगे।जो भी भारत में सवर्ण हिंदू नहीं हैं,वे मार दिये जायेंगे।

पलाश विश्वास

बेहद खराब दौर चल रहा है भारतीय इतिहास का और निजी जिंदगी पर सरकार,राजनीति और अर्थव्यवस्था के चौतरफा हस्तक्षेप से सांस सांस के लिए बेहद तकलीफ हो रही है।

राजनीति का नजारा यह है कि पैदल सेना को मालूम ही नहीं है कि उनके दम पर उन्हीं का इस्तेमाल करके कैसे लोग करोड़पति अरबपति बन रहे हैं और उनके लिए दो गज जमीन या कफन का टुकड़ा भी बच नहीं पा रहा है।

यह दुस्समय का जलवा बहार है जब भारत की राजनीति ही सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा बन गयी है। नोटबंदी पर तुगलकी अंदाज से जनता का जो पैसा खर्च हो गया है,अब पंद्रह लाख रुपये हर खाते में जमा होने पर भी उसकी भरपाई होना मुश्किल है।

विकास दर में दो प्रतिशत कमी के आंकड़े से गहराते भुखमरी ,बेरोजगारी और मंदी के मंजर को समझा नहीं जा सकता जैसे किसी को अंदाजा भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट के अनगिनत फैसलों के बावजूद निराधार आधार के डिजिटल इंडिया में हर बुनियादी सेवा को बायोमेट्रिक डैटा से जोड़कर किस तरह जनसंख्या के सफाये की तैयारी हो रही है।राजनीति में इसपर आम सहमति है।

बाद में जीएसटी की वजह से क्या आंकड़े बनेंगे,यह तो वक्त ही बतायेगा।इस पर भी स्रवदलीयआम सहमति है।

फिलहाल तीन साल पूरे होने के बाद कालाधन निकालने का नया शगूफा भी शुरु हो गया कि स्विस सरकार आटोमैटिकैलि स्विस बैंकों में जमा की जानकारी भारत को दे देगा।मारीशस, दुबई और दुनियाभर से कालाधन की जो अर्थव्वस्था भारत में चल रही है,उससे बदली हुई परिस्थितियों में कितना काला धन नोटबंदी की तर्ज पर स्विस बैंक से भारतीय नागरिकों के खाते में आना है,यह देखते रहिये।

हमारे पांव अब भी गावों के खेत खलिहान में जमे हुए हैं और मौत कहां होगी,यह अंदाजा नहीं है तो महानगर में प्रवास से हमारा कोई कायाकल्प नहीं हुआ है।

हम विद्वतजनों में शामिल नहीं हैं।निजी रिश्तों से ज्यादा देशभर के जाने पहचाने लोगों से हमारे रिश्ते रहे हैं।विचारधारा के स्तर पर हम सौ टका खरा हों न हों,अपने दोस्तों और साथियों से दगा हमने कभी नहीं किया और किसी की पीठ पर छुरा भोंका नहीं है।

इसलिए देश भर में जो घटनाएं दुर्घटनाएं हो रही हैं ,उनके शिकार लोगों की पीड़ा से हम वैसे ही जुड़े हैं,जैसे जन्मजात शरणार्थी और अछूत होने के बाद बहुजनों और किसानों,मजदूरों,विस्थापितों और शरणार्थियों से हम जुड़े हैं।

किसानों पर जो बीत रही है,वह सिर्फ कृषि संकट का मामला नहीं है और न ही सिर्फ बदली हुई अर्थव्यवस्था का मामला है।

यह एक उपभोक्ता समाज में तब्दील बहुजनों,किसानों और मजदूरों के उत्पादन संबंधों में रचे बसे सामाजिक ताने बाने का बिखराव का मामला है।

अर्थव्यवस्था के विकास के बारे में तमाम आंकड़ों और विश्लेषण का आधार उपभोक्ता संस्कृति है।यानी जरुरी गैर जरुरी जरुरतों और सेवाओं पर बेलगाम खर्च से बाजार की ताकतों को मजबूत करने का यह अर्थशास्त्र है।

इस प्रक्रिया में जो सांस्कृतिक नींव भारतीय समाज ने खो दी है,उसकी नतीजा यह धर्मोन्माद, नस्ली नरसंहार संस्कृति,असहिष्णुनता और मानवताविरोधी प्रकृति विरोधी ,धर्म विरोधी,आध्यात्म विरोधी, इतिहास विरोधी वर्चस्ववादी राष्ट्रवाद है,जिसका मूल लक्ष्य सत्ता वर्ग के कुलीन तबके के जनसंख्या के एक फीसद के अलावा बाकी लोगों का सफाया और यही राजनीति और राजकाज है।

कृषि संकट सिर्फ किसानों का संकट नहीं है,यह जनपदों का संकट है।

कृषि संकट सिर्फ किसानों का संकट नहीं है,यह भारतीय समाज का संकट है।

कृषि संकट सिर्फ किसानों का संकट नहीं है,यह मनुष्यता,प्रकृति और पर्यावरण का संकट है।

कृषि संकट सिर्फ किसानों का संकट नहीं है,यह भारतीय समाज,संस्कृति का संकट है।

कृषि संकट सिर्फ किसानों का संकट नहीं है,यह राजनीति और दर्शन, इतिहास, धर्म,आध्यात्म का भी संकट है।

हम मोहनजोदोड़ो और हड़प्पा के अवशेषों को लेकर चाहे जितना जान रहे होते हैं,उस सभ्यता का कोई सही इतिहास हमारे पास नहीं है।

आजादी की लड़ाई का सही इतिहास भी हमारे पास नहीं है।

अंग्रेजों से पहले भारत में जो सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था रही है,उसके बारे में हम ब्यौरेवार कुछ नहीं जानते।

यह सांस्कृतिक वर्चस्व का मामला जितना है ,उससे कही ज्यादा सत्ता और राष्ट्र का रंगभेदी सैन्य चरित्र का मामला है।

अभी अभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जैसे फतवा दे दिया है कि ताजमहल हमारी संस्कृति नहीं है,उससे हमलावर सांस्कृतिक वर्चस्व के इतिहास को समझने की दृष्टि मिल सकती है।

उत्तर प्रदेश का विभाजन हो गया है लेकिन हमारे नैनीताल छोड़ने के वक्त उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहा है।

जनम से उत्तर प्रदेश का वाशिंदा होने की वजह से हम उस प्रदेश की सहिष्णुता, बहुलता,विविधता और साझे चूूल्हें की विरासत को अब भी महसूस करते हैं।

अस्सी के दशक में मंदिर मस्जिद विवाद और आरक्षण विरोधी आंदोलन से लेकर हालात बेहद बदल गये हैं और दैनिक जागरण और दैनिक अमर उजाला में काम करते हुए यह बदलाव हमने नजदीक से देखा भी है।

फिरभी सिर्फ जनसंख्या की राजनीति के तहत संवैधानिक पद से लखनऊ से घृणा और हिसां की यह भाषा दिलो दिमाग को लहूलुहान करती है।

तो क्या बाबरी विध्वंस के बाद भारतीय इतिहास और संस्कृति के लिए दुनियाभर के लोगों के सबसे बड़े आकर्षण ताजमहल को तोड़ दिया जाएगा?

गौरतलबहै कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए ताजमहल एक इमारत के सिवा कुछ नहीं है। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया। उत्तरी बिहार के दरभंगा में गुरुवार (15 जून) को एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, देश में आने वाले विदेशी गणमान्य व्यक्ति ताजमहल और अन्य मीनारों की प्रतिकृतियां भेंट करते थे जो भारतीय संस्कृति को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

भारत में आदिवासियों के खिलाफ युद्ध क्यों जारी है?

भारत में महिलाओं और दलितों पर अमानुषिक अत्याचार क्यों होते हैं?

बाकी भारत के लिए कश्मीर या पूर्वोत्तर के लोग विदेशी क्यों हैं?

गाय हमारी माता कैसे हैं?

दंगों का सिलसिला क्यों खत्म नहीं होता?

सिखों का नरसंहार क्यों हुआ?

गुजरात का नरसंहार क्यों हुआ?

इस अभूतपूर्व वक्तव्य में इन सारे सवालों के जबाव है।

जो भी कुछ भारत में हिंदुत्व के प्रतीक नहीं है,वे अब तोड़ दिये जायेंगे।जो भी भारत में सवर्ण हिंदू नहीं हैं,वे मार दिये जायेंगे।

 

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