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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, June 30, 2017

ढाई युद्ध लड़ने की तैयारी राष्ट्रहित में या कारपोरेट हित में? क्या हम युद्धविरोधी आंदोलन के लिए कभी तैयार होंगे ? रक्षा क्षेत्र के विनिवेश के बाद युद्ध से किन कंपनियों को फायदा कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की जगह वित्तमंत्री चीन को करार जबाव देने लगे? गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात। कश्�

ढाई युद्ध लड़ने की तैयारी राष्ट्रहित में या कारपोरेट हित में?

क्या हम युद्धविरोधी आंदोलन के लिए कभी तैयार होंगे ?

रक्षा क्षेत्र के विनिवेश के बाद युद्ध से किन कंपनियों को फायदा कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की जगह वित्तमंत्री चीन को करार जबाव देने लगे?

गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात।

कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर में भारत में जहां आंतरिक सुरक्षा भारी खतरे में है,वहीं तिब्बत में हालात पूरी तरह चीन के नियंत्रण में है।

 

पलाश विश्वास

 

सिक्किम में सीमा पर गहराते युद्ध के संकट के मध्य दार्जिलिंग के पहाड़ों में रातभर हिंसा का तांडव,आगजनी,संघर्ष में तृमणूल नेता जख्मी।गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात।

 

इसी बीच सेनाअध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने  कहा कि सेना एक समय में पाकिस्तान, चीन और आतंकियों के साथ ढाई युद्ध लड़ सकती है।

 

सेनाध्यक्ष के बयान का नेवी के चीफ एडमिरल सुनील लांबा ने भी समर्थन किया है। सुनील लांबा ने कहा कि भारतीय सशस्त्र सुरक्षा बल किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

 

बहरहाल  चीन ने भारत को चेतावनी दी है कि भारतीय सेना को इतिहास से मिले सबक यानी 1962 की लड़ाई में मिली हार से सीख लेनी चाहिए।

 

इस चेतावनी को बंदरघुड़की न समझें तो बेहतर है क्योंकि तिब्बत में सिक्किम से लेकर उत्तराखंड होकर तिब्बत और अक्साई चीन तक 1962 से लेकर अबतक चीन की सैन्य तैयारियां भारत के मुकाबले कम नहीं है।

 

कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर में भारत में जहां आंतरिक सुरक्षा भारी खतरे में है,वहीं तिब्बत में हालात पूरी तरह चीन के नियंत्रण में है।

 

न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए जनरल रावत ने कहा कि सेना के पास इतनी क्षमता है कि वो आसानी से युद्ध करके जीत भी सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार के साथ सेना को मॉर्डन साजो सामान से लैस करने के लिए हमारी बातचीत चल रही है, जिससे सरकार भी पूरी तरह से राजी है। जल्दी ही सेना के पास कई तरह के आधुनिक हथियार लाने के प्रयास किए जाएंगे।

 

गौरतलब है कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की खामोशी के मध्य सेनाध्यक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए सिक्किम में सड़क निर्माण को लेकर भारत और चीन के बीच चल रही तनातनी के बीच रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने चीन को करारा जवाब दिया है। उन्होंने एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि 1962 के हालात और अब के हालात में बहुत अंतर है।

 

संघ परिवार की विचारधारा और अंध हिंदुत्व राष्ट्रवाद के नजरिये से ही नहीं गोदी कारपोरेटमीडिया के मुताबिक यह चीन को करारा जबाव है।जबाव हो सकता है कि काफी करारा ही होगा लेकिन विदेश नीति या राजनय का क्या हुआ,यह हमें समझ में नहीं आ रहा है।

 

जेटली के इस कारपोरेट युद्धोन्मादी बयान के उलट गौरतलब है कि पिछले दिनों रूस में आयोजित एक कांफ्रेंस में बोलते हुए भारत के पीएम मोदी ने कहा था कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद होने के बावजूद पिछले 40-50  साल से बॉर्डर पर एक भी गोली नहीं चली है।

 

मोदी के इस बयान की चीन में भी काफी सराहना हुई थी। और दुनिया भर में माना जा रहा था कि भारत और चीन अपने सीमा विवाद को बातचीत से निपटाने में सक्षम हैं।

अब जो हो रहा है ,वह मोदी के बयान के मुताबिक है,ऐसा दावा भक्तजन ही कर सकते हैं।सचेत नागरिक नहीं।

 

गौरतलब है कि 40-50 साल पहले यानी सितंबर 1967 में भारत और चीन के बीच सीमा पर आखिरी बार जिस इलाके में जोरदार फायरिंग हुई थी, सिक्किम के बॉर्डर का वही इलाका इस वक्त दोनों देशों के की सेनाओं के बीच जोर आजमाइश का केंद्र बन गया है।

 

इस बीच बाकी देश से कटे हुए दार्जिलंग और सिक्किम के साथ गोरखालैंड आंदोलन के चपेट में सिलीगुड़ी,जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर के आ जाने के बाद सिक्किम ही नहीं समूचा पूर्वोत्तर बाकी भारत से अलग थलग हो रहा है और भारत की सुरक्षा के लिए यह गंभीर चुनौती है।

 

विडंबना यह है कि इस समस्या को सुलझाने की कोई कोशिश किये बिना  सत्ता की राजनीति की वजह से दार्जिलिंग में हिसा की आग में ईंधन देकर चीन को सबक सिखाने और पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाने को धर्मोन्माद राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए बहुत भारी खतरा है।

 

चीन भीड़ में फंसा कोई निहत्था भारतीय नागरिक नहीं है,जिसका वध कर दिया जाये।वह एक बड़ी सैन्यशक्ति है।भारत से बड़ी।

 

कृपया गौर करें कि 1962 के बाद छिटपुट विवादों के अलावा भारत चीन सीमा पर कोई खास हलचल नहीं होने से भारत को बांगद्लादेश युद्ध में अमेरिकी चुनौती को भी मात देने में मदद मिली थी।

 

यह भी गौरतलब है कि इससे पहले किसी भारत सरकार ने एक साथ पाकिस्तान और चीन में युद्ध छेड़ने की तैयारी नहीं की थी।की भी होगा तो राजनीतिक या सैन्यस्तर पर ऐसा कोई दावा नहीं किया था।

 

सचमुच युद्ध छिड़ा तो दुनिया की नजर में इस बयानबाजी को 1962 की तरह भारत की चीन के खिलाफ युद्धघोषणा मान लिया जाये,तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

 

अंध राष्ट्रवाद के नजरिये से हटकर इस युद्धोन्माद को हाल में भारत में रक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र के हवाले करने के बाद युद्ध गृहयुद्ध की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की जैसी मजबूरी के नजरिये से देखना जरुरी है।हमारा मुक्तबाजार युद्ध का सौदागर भी है।

 

सत्ता वर्गी की चहेती कंपनियां एफ 16 जैसे युद्धक विमान तैयार कर रही हैं।अमेरिका से प्रधान स्वयंसेवक ने बाकी तमाम मुद्दों पर सन्नाटा बुनते हुए पचहत्तर हजार करोड़ के ड्रोन का सौदा किया है तो सात परमाणु रिएक्टर भी खरीदे जा रहे हैं।

 

हथियारों के सौदे की लंबी चौड़ी लिस्ट है,जो सार्वजनिक नहीं हुई है।

 

इजराइल की यात्रा अभी बाकी है।

 

अमेरिका और इजराइल की युद्धक अर्थव्यवस्था से नत्थी होकर हम भी तेजी से युद्धक अर्थव्यवस्था में तब्दील हो रहे हैं और अब निजी कंपनियों के तैयार हथियारों और युद्ध सामग्री के बाजार के लिए धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की सुनामी में अभूतपूर्व कृषि संकट,कारोबार और उद्योग के सफाया के साथ देश और आम जनता पर युद्ध थोंपने का यह कारपोरेट उपक्रम है।

 

अमेरिका और दूसरे देशों में नागरिक युद्धविरोधी आंदोलन करते रहे हैं लेकिन बारत में वियतनाम युद्ध से लेकर इराक और सीरिया के युद्ध के खिलाफ साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन होते रहने के बाद आंतरिक साम्राज्यवाद के खिलाफ आजतक कोई युद्धविरोधी आंदोलन नहीं हुआ है।

 

जीएसटी के तहत हलवाई या किराने की दुकानों में बेरोजगार आईटी इंजीनियरों को खपाने से शायद तकनीक से अनजान कारोबरियों की मदद के वास्ते अनिवार्य डिजिटल लेनदेन से उनके तकनीक न जानने की वजह से कुछ समय के लिए युवाओं को थोड़ा बहुत रोजगार मिलेगा।लेकिन सारा समीकरण एकाधिकार कारपोरेट कंपनियों के हक में है।

 

बड़ी और कारपोरेट पूंजी के एकाधिकार हमलों के मुकाबले छोडे और मंझौले कारोबारियों और उद्यमियों के लिए बाजार में बने रहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

 

देश अभूतपूर्व आर्थिक संकट में है और ऐसे में पाकिस्तान और चीन के साथ एकमुश्त युद्ध की तैयारी किसके हित में है,इसकी पड़ताल होना राष्ट्रहित में जरुरी है।

 

1948 में हममें से ज्यादातर लोग पैदा ही नहीं हुए थे।1948 के बाद 1962 के भारत चीन युद्ध बेहद सीमित था,जिसका खास असर अर्थव्यवस्था पर नहीं हुआ।लेकिन 1965 से पहले मंहगाई और मुद्रास्फीति के आंकड़ों को देख लें या अपनी यादों को अगर तब आप समझने लायक रहे होंगे,को खंगालकर देख लें कि 1965 और 1971 के भारत पाक युद्धों के नतीजतन देश और जनता पर आर्थिक बोझ और क्रज कितना गुणा बढ़ा है।

 

1971 से लेकर कारगिल जैसे सीमित युद्ध के अलावा सीमाओं पर अमन चैन आमतौर पर कायम रहने की वजह से कश्मीर विवाद के बावजूद,अंधाधुंध सैन्यीकरण और हिथियारों की होड़ के बावजूद भारत को किसी व्यापक युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा।

 

अस्सी के दशक में पंजाब और असम समेत विभिन्न हिस्सों में आंतरिक संकट के बावजूद भारत की एकता,सुरक्षा और अखंड़ता पर आंच नहीं आयी है क्यंकि भारत ने सीमा संघर्ष से भरसक परहेज किया है।

 

मुक्तबाजार और आर्थिक विकास के बारे में विवादों के बावजूद कहना ही होगा कि साठ और सत्तर ेक दशक के मुकाबले आज जो भारत लगभग विकसित देशों के बराबर आ गया है,वह विदेश नीति और अयुद्ध नीति की कामयाबी की वजह से है।

 

हम आपको आगाह करते हुए याद करते हैं कि पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के दमन का रास्ता न अपनाया होता और भारत को जबरन युद्ध में न घसीटा होता तो पाकिस्तान का विभाजन नहीं होता।

 

सेनाध्यक्ष रावत सिक्किम से एकसाथ पाकिस्तान और

के साथ युद्ध की तैयारियों का जो दावा कर रहे हैं,दार्जिलिंग,असम और समूचे पूर्वोत्र के संवेदनशील हालात के मुताबिक सारे समीकरण भारत के खिलाफ हैं।

यूं तो भारत और चीन के बीच सीमा पर वक्त-वक्त पर अतिक्रमण की खबरें आती रहती हैं। लेकिन मीडिया की खबरों का विश्लेषण निरपेक्ष दृष्टि से करें तो इस बार यह घटना इतनी बड़ी है कि इसे साल 2013 दौलतबेग ओल्डी सेक्टर के मामले से भी ज्यादा गंभीर माना जा रहा है। गौरतलब है कि पिछले मामलों के उलट इस बार चीनी मीडिया भारत के प्रति बेहद सख्त भाषा का इस्तेमाल कर रहा है । और ग्लोबल टाइम्स ने तो भारत को सबक सिखाने की चुनौती भी दे डाली है।

चीन ने इस बार की घटना के विरोध में कूटनीतिक कदम उठाते हुए कैलाश मानसरोवर की तीर्थ यात्रा तक को रोक दिया है। यानी इस बार यह मामला चुमार, डेमचौक और चेपसांग के इलाकों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की पिछली घटनाओं से अलग है और बेहद खतरनाक है।

 

मध्यएशिया में हुए हाल के युद्ध और भारत ,चीन,पाकिस्तान की परमाणु युद्ध तैयारियों के मद्देनजर जाहिर सी बात है कि अबकी दफा कोई पारंपारिक युद्ध नहीं होने वाला है।

 

परमाणु प्रक्षेपास्त्र के जमाने में सेनाध्यक्ष के इस युद्धोन्मादी बयान के बाद प्रधानस्वयंसेवक और देश की विदेश मंत्री की चुप्पी और राजनीतिक बौद्धिक गलियारे में सन्नाटा बेहद खतरनाक है।

 

मीडिया के मुताबिक चीन की सेना ने गुरुवार को भूटान के इस आरोप से इंकार किया कि उसके सैनिक भूटान की सीमा में घुसे और कहा कि उसके सैनिक 'चीन के क्षेत्र' में ही तैनात रहते हैं। साथ ही चीन ने भारत से उसकी 'गड़बड़ियों' को भी 'ठीक करने' को कहा।

 

चीन के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने मीडिया से कहा, 'मुझे इस बात को ठीक करना है कि जब आप कहते हैं कि चीन के सैनिक भूटान की सीमा में घुसे. चीन के सैनिक चीन की सीमा में ही तैनात रहते हैं'। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के प्रवक्ता ने भारतीय सैनिकों पर सिक्किम सेक्टर के डोंगलोंग क्षेत्र में चीन की सीमा में घुसने का आरोप भी लगाया।

 

प्रवक्ता ने कहा, 'उन्होंने सामान्य क्रियाकलापों को रोकने का प्रयास किया. चीन ने संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए इन क्रियाकलापों पर उचित प्रतिक्रिया दी'.।उन्होंने कहा, 'हमने भारतीय पक्ष को साफ कर दिया है कि वह अपनी गड़बड़ियां ठीक करे और चीन की सीमा से अपने सभी जवानों को वापस बुलाएं'।

 

भूटान ने बुधवार को कहा था कि उसने डोकलाम के जोमपलरी क्षेत्र में उसके सेना शिविर की तरफ एक सड़क के निर्माण पर चीन को 'डिमार्शे' (शिकायती पत्र) जारी किया है और बीजिंग से काम तत्काल रोककर यथास्थिति बहाल करने को कहा।

 

दरअसल  चीन का दावा है कि भारत ने डोकलाम सेक्टर के जोम्पलरी इलाके में 4 जून को सड़क निर्माण कर रहे उसके सैनिकों को रोक दिया। और उनके साथ हाथापाई भी की। इसके बाद अगले दिन चीनी सैनिकों ने भूटान की सीमा में स्थित भारत के दो अस्थाई बंकर गिरा दिए।

गौरतलब है कि 269 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल का यह इलाका भारत,चीन और भूटान की सीमाओं के पास है। यही वह इलाका है जहां तीनों देशों की सीमाएं मिलती हैं।

1914 की मैकमोहन रेखा के मुताबिक यह इलाका भूटान के अधिकार में है। जबकि चीन इस लाइन को मानने से ही इनकार करता है। और वक्त-वक्त पर उसके सैनिक भूटान की सीमा का अतिक्रमण करते रहते हैं।

गौरतलब है चीन के 1914 की मैकमोहन रेखा न मानने की वजह से 1962 में भारत चीन युद्ध हुआ था।तब भी इस युद्ध को टालने के बजाय भारत की तरफ से संसद में ही युद्ध घोषमा कर देने की भयंकर ऐतिहासिक भूल हो गयी थी और उस युद्ध में हार के बाद तमाम सेनापतियों के ब्यारे भारत की तत्कालीन सरकार को ही कटघरे में खड़ा करते हैं।लगता है कि इतिहास की पुनरावृत्ति बेहद खतरनाक तरीके से हो रही है।इस बार बी युद्ध टालने की भारत सरकारी की कोई मंशा अभी तक जाहिर नहीं हुई है।

 

डोकलाम के पठार की रणनीतिक रूप से इस इलाके में बेहद अहमियत है. चंबी घाटी से सटा हुआ होने के चलते चीन इस पठार पर अपनी सैन्य पोजीशन को मजबूत करना चाहता है.

चीन की कोशिश है कि इस इलाके में सड़कों का जाल बिछाया जाए ताकि भारत के साथ युद्ध की स्थिति में जल्द से जल्द इस इलाके में सैन्य मदद पहुंचाई जा सके. डोकलाम के पठार पर चीन की इसी मंशा ने भारत को सख्त रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है.

 

 


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