Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Sunday, September 3, 2017

रवींद्र का दलित विमर्श-16 आंतरिक उपनिवेश में नस्ली नरसंहार के प्रतिरोध में आदिवासी अस्मिता के झरखंड आंदोलन के दस्तावेजों का अनिवार्य पाठ भारतमाता का दुर्गावतार नस्ली मनुस्मृति राष्ट्रवाद का प्रतीक है तो महिषासुर वध आदिवासी भूगोल का सच দুই ছিল মোর ভুঁই, আর সবই গেছে ঋণে। বাবু বলিলেন, 'বুঝেছ উপেন? এ জমি লইব কিনে।' কহিলাম আমি, 'তুমি ভূস্বামী, ভূমির অন্ত নাই - চেয়ে দেখো মোর আছে বড়জোর ম�

रवींद्र का दलित विमर्श-16

आंतरिक उपनिवेश में नस्ली नरसंहार के प्रतिरोध में आदिवासी अस्मिता के झरखंड आंदोलन के दस्तावेजों का अनिवार्य पाठ

भारतमाता का दुर्गावतार नस्ली मनुस्मृति राष्ट्रवाद का प्रतीक है तो महिषासुर वध आदिवासी भूगोल का सच

দুই ছিল মোর ভুঁই, আর সবই গেছে ঋণে। বাবু বলিলেন, 'বুঝেছ উপেন? এ জমি লইব কিনে।' কহিলাম আমি, 'তুমি ভূস্বামী, ভূমির অন্ত নাই - চেয়ে দেখো মোর আছে বড়জোর মরিবার মতো ঠাঁই। শুনি রাজা কহে, 'বাপু, জানো তো হে, করেছি বাগানখানা, পেলে দুই বিঘে প্রস্থে ও দিঘে সমান হইবে টানা - ওটা দিতে হবে।'

पलाश विश्वास


দুই ছিল মোর ভুঁই, আর সবই গেছে ঋণে। বাবু বলিলেন, 'বুঝেছ উপেন? এ জমি লইব কিনে।' কহিলাম আমি, 'তুমি ভূস্বামী, ভূমির অন্ত নাই - চেয়ে দেখো মোর আছে বড়জোর মরিবার মতো ঠাঁই। শুনি রাজা কহে, 'বাপু, জানো তো হে, করেছি বাগানখানা, পেলে দুই বিঘে প্রস্থে ও দিঘে সমান হইবে টানা - ওটা দিতে হবে।'

  (दो बीघा जमीन ही बची है मेरी,बाकी सारी जमीन हुई कर्ज के हवाले।बाबू बोले,समझे उपेन?उसे मेरे हवाले करना होगा।यह जमीन मैं खरीद लुंगा।मैने कहा,तुम हो भूस्वामी,तुम्हारी भूमि का अंत नहीं।मुझे देखो,मेरी मौत के बाद शरण के लिए इतनी ही जमीन बची है।सुनकर राजा बोले-बापू,जानते हो ना,बागान तैयार किया है मैंने,तुम्हारी दो बिघा जमीन शामिल कर लूं तो लंबाई चौड़ाई में होगा बराबर,उसे देना होगा।)

राष्ट्रीयताओं के दमन और आदिवासी भगोल में अनंत बेदखली अभियान और भारतीय किसानों की अपनी जमीन छिन जाने के बारे में रवींद्र नाथ की लिखी कविता दो बिघा जमीन आज भी मुक्तबाजारी कारपोरेट हिंदुतव की नरसंहारी संस्कृति का सच है।यही फासिज्म का राजकाज और राष्ट्रवाद दोनों है।

हो सकें तो विमल राय की रवींद्र नाथ की कविता दो बीघा जमीन पर केंद्रित फिल्म को दोबारा देख लें।

भारत में राष्ट्रीयता का मतलब हिंदुत्व का नस्ली फासीवादी राष्ट्रवाद और उसके कारपोरेट साम्राज्य के सैन्यतंत्र के अश्वमेधी का महिमामंडन है।

अनार्य द्रविड़ दलित शूद्र आदिवासी स्त्री अस्मिताओं का विमर्श इस राष्ट्रवाद के विरुदध है तो रवींद्र के राष्ट्रवाद विरोध बौद्धमय भारत के मनुष्यता का धर्म है और दलित विमर्श के तहत अस्पृश्यता विरोधी चंडाल आंदोलन भी,जो अपने आप में आदिवासी किसान जनविद्रोह का परिणाम है।

राष्ट्रवाद के विरोध का सिलसिला रवींद्र के त्रिपुरा पर लिखे 1885 में प्रकाशित  उपन्यास राजर्षि से लेकर मृत्युपूर्व उनके लिखे निबंध सभ्यता के संकट तक जारी रहा है।वे जब बहुलता,विविधताऔर सहिष्णुता के जनपदीयलोकगणराज्यों की परंपरा में मनुष्यता की विविध धाराओं के महामिलन तीर्थ भारततीर्थ बतौर नये भारत की परिकल्पना कर रहे थे, तब उनके लिए फासीवादी नाजी नस्ली राष्ट्रवाद के परिदृश्य में भारत में हिंदुत्व के नस्ली मनुस्मृति राष्ट्रवाद के सामंती साम्राज्यवादी हिंदुत्व पुनरूत्थान का सच सबसे भयंकर था।

तब तक राष्ट्र के अंतर्गत राष्ट्रीयताओं के दमन के नजरिये से राष्ट्रीयताओं की समस्या पर कम से कम भारत में कोई चर्चा नहीं हुई है।

रूस की चिट्ठी में,चीन और जापान के प्रसंग में उऩ्होंने अंध राष्ट्रवाद की चर्चा तो की है लेकिन राष्ट्र के अंतर्गत राष्ट्रीयता के दमन की नरसंहार संस्कृति  की चर्चा नहीं की है।बल्कि रूस में विविध राष्ट्रीयताओं के विलय के साम्यवाद की उन्होंने प्रशंसा की है।भारतीय किसानों और कृषि संकट के संदर्भ में दलितों की दशा का चित्रण भी उन्होंने शुरु से लेकर आखिर तक की है।

वास्तव में रवींद्र नाथ भारतीय सभ्यता और संस्कृति के जिन विविध बहुल घटकों के विलय के कथानक को अपनी रचनाधर्मिता का केंद्रीय विषय बनाया है,वह राष्ट्रीयताओं की समस्या ही है और फर्क सिर्फ इतना है कि रवींद्र नाथ इन राष्ट्रीयताओं के समन्वय और सहअस्तित्व की बात कर रहे थे।

लेनिन,स्टालिन और माओ त्से तुंग की तरह राष्ट्रीयताओं की समस्या मानकर सभ्यता और मनुष्यता की रवींद्रनाथ ने चर्चा नहीं की है।

वास्तव में फासीवादी राष्ट्रवाद के उनके निरंतर विरोध राष्ट्रीयताओं की राष्ट्र के नस्ली वर्चस्व के अंतर्गत राष्ट्रीयताओे की इसी समस्या को ही रेखांकित करता है और इसीलिए फासिस्ट मनस्मृति राष्ट्रवादियों को उनके साहित्य से उसी तरह घृणा है जैसे भारत के अवर्ण अनार्य द्रविड़ अल्पसंख्यका  कृषि और प्रकृति से जुड़े जन समुदाओं और मेहनतकशों से।

मुक्तबाजारी अर्थव्वस्था इन जन समुदायों की नरसंहारी संस्कृति पर आधारित है तो कारपोरे टहिंदुत्व का फासीवादी राष्ट्रवाद का आधार भी यही है।मनुस्मृति विधान का नस्ली वर्चस्व,आदिवासी भूगोल का दमन और अस्पृश्यता का सारा तंत्र यही है।

भारत में राष्ट्रीयताओं की समस्या पर संवाद निषिद्ध है तो जल जंगल जमीन नागरिकता आजीविका समानता न्याय किसानों,दलितों.शूद्रों,पिछड़ों,मुसलमानों और विधर्मियों, हिमालयक्षेत्र की आदिवासी और गैर आदिवासी राष्ट्रीयताओं,कश्मीर और आदिवासी भूगोल के नागरिक मानवाधिकार के पक्ष में आवाज उठाने वाले तमाम लोगों अरुंधति राय, सोनी सोरी, नंदिता सुंदर, साईबाबा से लेकर हिमांशु कुमार तक राष्ट्रवादियों के अंध राष्ट्रवाद के तहत राष्ट्रद्रोही हैं और इसके विपरीत मनुष्यता के विरुद्ध तमाम युद्ध अपराधी राष्ट्रनायक महानायक हैं,जो बंकिम की राष्ट्रीयता के धारक वाहक  हिंदुत्व के मनुस्मृति विधान के भगवा झंडेवरदार हैं।

इसलिए हमने कल नेट पर उपलब्ध राष्ट्रीयता की समस्या पर उपलब्ध सारी सामग्री शेयर की है और आदिवासियों के दमन उत्पीड़न और सफाया के दस्तावेज भी शेयर किये हैं।

भारत में राष्ट्रीयता समस्या को लेकर रवींद्र के दलित विमर्श को समझने के लिए कामरेड एके राय के आंतरिक उपनिवेश के विमर्श को समझना जरुरी है और जयपाल सिंह मुंडा  का आदिवासी अस्मिता विमर्श भी।

इस सिलसिले में सत्ता राजनीति से जुड़ने से पहले शिबू सोरेन,विनोद बिहारी महतो और ईएन होरो के झारखंड आंदोलन से संबंधित दस्तावेज भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। सत्ता में निष्णात होने से पहले आदिवासी आंदोलन के इतिहास को दोबारा पलटकर देखना भारत में राष्ट्रीयता की समस्या को समझने में मददगार हो सकता है।

प्रतिरोध के सिनेमा के लिए बहुचर्चित युवा फिल्मकार संजय जोशी ने डाक से वीरभारत तलवार संपादित नवारुण पब्लिशर्स की तरफ से प्रकाशित पुस्तक झारखंड आंदोलन के दस्तावेज खंड 1 भेजी है।264 पेज की यह पुस्तक भारत में राष्ट्रीयता के राष्ट्रीय प्रश्न को समझने के लिए एक अनिवार्य पाठ है,लेकिन इसकी कीमत जन संस्करण 299 रुपये और पुस्तकालय संस्करण 549 रुपये हैं जो हिंदी पुस्तकों की कीमत के हिसाब से बराबर है लेकिन आम जनता तक इस पुस्तक को उपलब्ध कराने में यह कीमत कुछ ज्यादा है।

हमने पत्रकारिता की शुरुआत 1980 में धनबाद से ही की और झारखंड आंदोलन के तहत राष्ट्रीयताओं की समस्या पर केंद्रित विमर्श में उस दौरान हमारी भी सक्रिय भागेदारी रही है।कामरेड एक राय,शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो के साथ साथ इस पुस्तक में शामिल आदिवासियों के राष्ट्र की समस्या के लेखक सीताराम शास्त्री से हमारा निरंतर संवाद रहा है।

हमारे दैनिक आवाज में शामिल होने से पहले कवि मदन कश्यप वहां संपादकीय में थे और तब हमने अंतर्गत का एक अंक राष्ट्रीयता की समस्या  और झारखंड आंदोलन पर निकाला था।

हमारे धनबाद आने से पहले वीर भारत तलवार भी दैनिक आवाज में थे  और हमारे ज्वाइन करने से पहले वे आवाज छोड़ चुके थे लेकिन तब भी  वे धनबाद में थे और  शालपत्र निकाल रहे थे।वीरभारत तलवार की ज्यादा अंतरंगता उपन्यासकार (गगन घटा गहरानी) मनमोहन पाठक के साथ थी।

वीर भारत तलवार लगातार झारखंड आंदोलन से जुड़े रहे हैं और झारखंडी विमर्श के वे निर्माता भी रहे हैं।इस पुस्तक में शामिल तमाम दस्तावेज या तो उन्होंने खुद अनूदित किये हैं या उन्हें शालपत्र में प्रकाशित किया है, इसलिए इन दस्तावेजों की प्रामाणिकता के बारे में किसी तरह के संदेङ का कोई अवकाश नहीं है।

सरायढेला.धनबाद के पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा केंद्रीय सम्मेलन में मैं भी मौजूद था।इसी सम्मेलन में झारखंड आंदोलन दो फाड़ हो गया था और एके राय से शिबू सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा अलग हो गया था।

एके राय से अलगाव के बाद झारखंड आंदोलन का लगातार बिखराव और विचलन होता रहा है और अलग राज्य बनने के बाद झारखंड आंदोलन सिरे से लापता है।नये राज्य में एके राय के विचारों के लिए कोई जगह नहीं है।

विनोद बिहारी महतो दिवंगत हैं और शिबू सोरेन सिरे से बदल गये हैंं।

पुस्तक की भूमिका में वीर भारत तलवार ने सही लिखा हैः

अगर आप झारखंड और आदिवासियों के नाप पर राजनीति करने वाले संगठनों और पार्टियों के उन पुराने दस्तावेजों को देखें ,जिन्हें इन पार्टियों ने झारखंड आंदोलन के दौरान स्वीकृत किया था ,तो आप हैरान हो जायेंगे।खासकर झारखंड मुक्तिमोर्चा और आजसू के उस समय के पार्टी कार्यक्रम और घोषणापत्र को देखकर किसी के भी  मन में यही सवाल उठेगा कि क्या यही झारखंड मुक्ति मोर्चा है? यही आजसू है?...झारखंड आंदोलन के दौरान इन पार्टियों ने जो कुछ कहा और झारखंड बन जाने के बाद ,सत्ता में रहते हुए इन्होंने जो कुछ किया,इन दोनों के बीच,इनकी कथनी और करनी के बीच,क्या कोई संबंध है?..

इस पुस्तक में राज्य पुनर्गठन आयोग को 1954 में झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में दिया गया मेमोरेंडम है तो 1973 में झारखंड पार्टी के एनई होरो के नेतृ्त्व में भारत के प्रधान मंत्री को दिया गया मेमोरंडम भी है।

भारत में राष्ट्रीयताओं की समस्या को समझने के लिए बेहद जरुरी दस्तावेज सीताराम शास्त्री ने तलवार के सहयोग से तैयार बंगाल के कामरेडों को समझाने के लिए लिखा। यह दस्तावेज- भारत में राष्ट्रीय प्रश्न और आदिवासियों के राष्ट्र की समस्या इस पुस्तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है।तो आदिवासी विमर्श और राष्ट्रीयता की समस्या पर वीरभारत का आलेख झारखंडः क्या,क्यों और कैसे? भी अनिवार्य पाठ है।बाकी सांगठनिक दस्तावेजो के अलावा कामरेड एके राय के तीन दस्तावेज इस पुस्तक में शामिल किये गये हैं।1.भारत में आंतरिक उपनिवेशवाद और झारखंड की समस्या 2.भारत में असमान विकास तथा उत्पीड़ित जातियों का शोषण 3.झारखंड आंदोलन की नई दिशा और झारखंडी चरित्र

ऋषि बंकिमचंद्र बांग्ला सवर्ण राष्ट्रवाद के साहित्य सम्राट हैं तो हिंदुत्व के नस्ली फासीवादी राष्ट्रवाद की जड़ें उनके आनंदमठ, दुर्गेश नंदिनी जैसे आख्यान में हैं। इतिहास में हिंदुत्व के नस्ली वर्चस्व को महिमामंडित करने वाले बंकिम के वंदे मातरम साहित्य के खिलाफ दो बीघा जमीन पर खड़े हैं रवींद्रनाथ और उनका सामाजिक यथार्थ, उनका इतिहास बोध,,उऩका बौद्धमय भारत इस नस्ली राष्ट्रवाद के खिलाफ मुकम्मल दलित विमर्श है तो यह आदिवासी भूगोल के दमन और उत्पीड़न पर आधारित फासीवादी नस्ली सैन्य राष्ट्र और आंतरिक उपनिवेशवाद का सच भी है।

आर्यावर्त के भूगोल से बाहर बाकी बचा भारत अनार्य,द्रविड़ और दूसरी राष्ट्रीयताओं का भूगोल है और महाभारत का इंद्रप्रस्थ उसके दमन का केंद्र है।

रवींद्र के दलित विमर्श बहुलता ,विविधता और सहिष्णुता के जनपदीय लोक गणराज्यों से बने स्वदेश के हिंद स्वराज की कथा है,जहां गांधी का दर्शन और रवींद्र का दलित विमर्श पश्चिमी उस फासीवादी नस्ली राष्ट्रवाद के विरुद्ध एकाकार है जो नस्ली सत्ता वर्चस्व के लिए नरसंहारी संस्कृति के प्रतिरोध की दो बिघा जमीन भी है।

सवर्ण विमर्श में राष्ट्र के सामंती साम्राज्यवादी चरित्र पर,राष्ट्रीयताओं की समस्या पर घनघोर संवाद होने के बावजूद सत्ता वर्ग के नस्ली वर्चस्व पर आधारित राष्ट्र और राष्ट्रवाद के संदर्भ और प्रसंग में सिरे से सन्नाटा है।

दलित विमर्श इस नस्ली वर्चस्व के विरोध में है और चूंकि बहुजन कृषि और प्रकृति से जुड़े तमाम जनसमुदायों की जड़ें आ्रर्यों की वैदिकी सभ्यता से अलग अनार्य द्रविड़ और अन्य अनार्य नस्लों, सभ्यताओं और राष्ट्रीयताओं में है,जिनके उत्तराधिकारी आज के आदिवासी है तो रवींद्र के इस दलित विमर्श की समझ के लिए आदिवासी अस्मिता की समझ भी जरुरी है।

इसलिए हमने इस चर्चा में इससे पहले रांची से प्रकाशित चार पुस्तकों की चर्चा की थी।इन चार पुस्तकों में आदिवासी अस्मिता पर भारत की संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा ने आवाज उठाने वाले जयपाल सिंह मुंडा के लेखों और भाषणों का संग्रह (अंग्रेजी में) अश्विनी कुमार पंकज संपादित आदिवासीडम भी है।

गौरतलब है कि किसी एक राष्ट्रीयता के वर्चस्व पर आधारित पश्चिमी राष्ट्र दूसरी राष्ट्रीयताओं के दमन का तंत्र है और उसके इसी फासीवादी नाजी साम्राज्यवादी चरित्र के खिलाफ गांधी और रवींद्र राष्ट्रवाद के खिलाफ खड़े हो गये।

जर्मनी,जापान और इटली के फासीवादी नाजी समय के बारे में सबको कमोबेश मालूम है।इस फासीवादी नाजी कालखंड से भी पहले ब्रिटिश,फ्रांसीसी,पुर्तगीज,स्पेनीश साम्राज्यवाद ने नस्ली वर्चस्व के राष्ट्रवाद के तहत उपनिवेशों में नस्ली नरसंहार के जरिये राष्ट्रीयताओं का सफाया किया है।

अमेरिका,लातिन अमेरिका के मूलनिवासियों का सफाया इस नस्ली नरसंहार का वीभत्स इतिहास है और नई दुनिया के खोज के तमाम महानायकों मसलन कोलंबस और वास्कोडिगामा के हाथ लाखों मूलनिवासियों के कत्लेआम के खून से लहूलुहाऩ हैं और नस्ली इतिहासकारों के आख्यान में वही महिमामंडित पाठ्यक्रम है।

अमेरिका में लोकतंत्र के मूल्यों के खात्मे के सात उसी रंगभेदी नस्ली नरसंहार कार्यकर्म का पुनरूत्थान अमेरिका साम्राज्यवाद का मुक्तबाजारी बहुराष्ट्रीय पूंजी का चेहरा है।जिसके साथ हुंदुत्व के नस्ली राष्ट्रवादियों की सत्ता का युद्धक गठजोड़ है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की शुरुआत  1857 की क्रांति से होती है और उसमें 1757 के तुरंत बाद शुरु आदिवासी शूद्रों दलितों के चुआड़ विद्रोह की कथा नहीं है जिसकी कोख से अंग्रेजी हुकूमत को बनाये रखने के लिए स्थायी भूमि बंदोबस्त के तहत जमींदारियों का सृजन हुआ और ब्रिटिश हुकूमत के साथ जमींदारियों के सवर्ण वर्चस्व के विरोध में आदिवासी किसानों का सामंतवादविरोधी साम्राज्यवाद विरोधी महासंग्राम का सिलसिला भी इसीके साथ शुरु हुआ और शुरु हुआ  भारत में अनार्य द्रविड़ और दूसरी अनार्य राष्ट्रीयताओं के दमन के सैन्य राष्ट्रवाद का निर्माण बंकिम के आनंदमठ  के साथ।

भारत के आदिवासी खुद को असुरों के वंशज कहते हैं और दुर्गा का मिथक रचा गढ़ा गया आनंदमठीय नस्ली वर्चस्व के राष्ट्रवाद के तहत जो सत्ता वर्ग के खिलाफ राष्ट्रीयताओं के महासंग्राम में आदिवासी असुरों का वध कार्यक्रम है।

हिंदुत्व के फासवीवादी पुनरूत्थान की जमीन आनंदमठ है और भारतामाता का दुर्गावतार भी यही आनंदमठीय राष्ट्रवाद का आंतरिक उपनिवेशवाद है।

राष्ट्रीयताओं के दमन का इतिहास  इसलिए जर्मनी,इटली या जापान तक सीमाबद्ध नहीं है और न साम्राज्यवादी पश्चिमी राष्ट्रों के दनियाभर में फैले उपनिवेशी की ही यह व्यथा कथा है।

साम्यवादी राष्ट्रों में भी राष्ट्रीयताओं के दमन का इतिहास है।

सोवियत संघ और चीन में भी.सोवियत संघ का विघटन राष्ट्रीयताओं के गृहयुद्ध का परिणाम है तो चीन में राष्ट्रीयता के दमन को तिब्बत के सच के संदर्भ में समझा जा सकता है।जबकि लेनिन,स्टालिन और माओ त्से तुंग जैसे राष्ट्र नेताओं ने राष्ट्रीयता की समस्या के समाधान के लिए अपनी तरफ से लगातार कोशिशें की हैं और सच यह है कि साम्यवादी राष्ट्रों ने राष्ट्रीयता के यथार्थ को मानकर इस समस्या के समाधान की लगातार कोशिश की है लेकिन पश्चिमी राष्ट्रों में ऐसा कोई विमर्श नहीं चला।

पश्चिम के माडल पर निर्मित भारतीय राष्ट्र में भी राष्ट्रीयताओं के राष्ट्रीय प्रश्न को संबोधित करने का प्रयास नहीं हुआ और गांधी और रवींद्रनाथ को पश्चिम के इसी राष्ट्रवाद से विरोध था।

गौरतलब है कि झारखंड आंदोलन के साम्यवादी नेता कामरेड एक राय ने इसी नस्ली वर्चस्व के राष्ट्रवाद को आतंरिक उपनिवेशवाद कहा है और मैंने भी अपने उपन्यास अमेरिका से सावधान में साम्राज्यवादी मुक्तबाजार की चुनौती के संदर्भ में लगातार इस आंतरिक साम्राज्यवाद की चर्चा की है।

राष्ट्रीयता के इस राष्ट्रीय प्रश्न को समझने के लिए हमने मुक्तबाजार के पहले  शहीद शंकर गुहा नियोगी के निर्माण और संघर्ष की राजनीति की चर्चा की है और झारखंड राज्य की परिकल्पना में झारखंड के आंदोलनकारियों की अर्थव्यवस्था,जल जंगल जमीन राष्ट्रीय संसाधन खनिज संपदा और औद्योगीकरण के बारे में आंदोलन की रणनीति भी कमोबेश उसी निर्माण और संघर्ष की राजनीति पर आधारित है।

बंगाल में सार्वजनीन दुर्गोत्सव के वंदेमातरम राष्ट्रवाद के तहत ही महिषासुर वध के मिथक का भारतीय नस्ली राष्ट्रवाद का प्रतीक दुर्गावतार बनाया गया है।

ब्रिटिश हुकूमत,स्थाई भूमि बंदोबस्त के जरिये किसानों की जल जंगल जमीन आजीविका और रोजगार से बेदखली के 1757 से शुरु चुआड़ विद्रोह के दमन में ही दुर्गावतार के वंदेमातरम राष्ट्रवाद के हिंदुत्व पुनरुत्थान के बीज हैं तो सैन्य राष्ट्रवाद के विमर्श के मुकाबले रवींद्र के दलित विमर्श की अनार्य द्रविड़ जमीन बंगाल में सामंती व्यवस्था के संकट के दौरान जमींदारी तबके के जर्मनी से जुड़े जमींदारों के हित में किसानों के हक हकूक के खिलाफ मनुस्मृति विधान के पक्ष स्वेदशी आंदोलन और अनुशीलन समिति के सवर्ण राष्ट्रवाद के दौरान दुर्गा के महिषमर्दिनी मिथक को राष्ट्रवाद बना देने के हिंदुत्व उपक्रम को समझने के लिए चुआड़ विद्रोह के भूगोल इतिहास को समझना जरुरी है।

गौरतलब है कि आदिवासी,शूद्र दलित शासकों के  चुआड़ विद्रोह भारतीय विमर्श और भारतीय इतिहास में किसी भी स्तर पर दर्ज नहीं है और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनार्य असुरों के आदिवासी किसान जनविद्रोहों को कभी शामिल ही नहीं किया गया है और इस इतिहास में वंदेमातरम के अखंड राष्ट्रवाद के सिवाय बाकी राष्ट्रीयताओं के वजूद को सिरे से खारिज कर दिया गया है,जबकि रवींद्र की भारत परिकल्पना में इन राष्ट्रीयताओं के लोक गणराज्यों के विलय का कथानक है।

चुआड़ विद्रोह,संथाल विद्रोह और मुंडा विद्रोह से लेकर बंकिम के आनंदमठ में बहुचर्चित संन्यासी विद्रोह और नील विद्रोह के भूगोल में बिहार झारखंड ओड़ीशा छत्तीसगढ़ आंध्र मध्यप्रदेश और बंगाल के आदिवासी भूगोल नस्ली वर्चस्व के इस राष्ट्रवाद की सामंती संरचना और ब्रिटिश साम्रज्यवाद के खिलाफ भारतीय अनार्य द्रविड़ राष्ट्रीयताओं के महासंग्राम का इतिहास है जो भारत के मुक्ति संग्राम के सवर्ण नस्ली विमर्श में कहीं शामिल नहीं है।

इसीलिए भारतमाता का दुर्गावतार नस्ली मनुस्मृति राष्ट्रवाद का प्रतीक है तो महिषासुर वध आदिवासी भूगोल का सच


No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV