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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, December 6, 2013

मोदी के साथ आज वही लोग खड़े हैं, जो ब्राह्मण विरोधी हैं

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Details Category: [LINK=/vividh.html]विविध[/LINK] Created on Saturday, 07 December 2013 03:10 Written by अखिलेश अखिल                                                                     संजीव भट्ट से लेकर प्रदीप शर्मा और राहुल शर्मा से लेकर आरबी श्रीकुमार तक मोदी राज में गुजरात के जितने अफसरों को निशाना बनाया जा रहा है, सभी के सभी ब्राह्मण जाति से आते हैं। इसी तरह हिरेन पंड्या से लेकर संजय जोशी और नितिन गडकरी तक भाजपा के जितने भी नेताओं को मोदी ने टारगेट पर लिया सभी ब्राह्मण हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या नरेंद्र मोदी ब्राह्मण विरोधी हैं? जिन ब्राह्मणों के बल पर भारतीय जनता पार्टी राजनीति करती है, उसके सबसे बड़े नेता आखिर इस जाति को निशाना बनाकर क्या संदेश देना चाहते हैं? हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'बुलेट राजा' का एक डायलॉग है ब्राह्मण अगर भूखा, तो सुदामा, समझदार तो चाणक्य और अगर रूठा तो रावण। अब देखना है कि मोदी से बदला लेने के लिए ब्राह्मण कौन सा रूप धरकर सामने आता है? यकीन मानिए, अगर ब्राह्मण समझदारी का परिचय देते हुए चाणक्य के तौर पर सामने आए, तो मोदी के विनाश को कोई नहीं रोक सकता। अब अगले संग्राम की बारी है। यह संग्राम है लोकसभा चुनाव को लेकर। कांग्रेस और भाजपा के बीच चल रहे इस सत्ता संघर्ष के बीच जाति आधारित एक नई राजनीति की मिसाल कायम होती दिख रही है। जातियों को छोड़ने और जातियों को पटाने के इस खेल के भीतर एक नई दुदुंभी भी बज रही है। जो भाजपा आज की तारीख में ब्राह्मणों को अपना सबसे बड़ा वोट बैंक मान रही है और ब्राह्मण भी भाजपा के सामने नतमस्तक दिख रहे हैं, उसी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी के निशाने पर हमेशा ब्राह्मण ही क्यों रहे हैं? यह एक गंभीर सवाल है। मोदी के गुजरात में सबसे ज्यादा कोई समुदाय सरकार के निशाने पर रहा है, तो वह है वहां के 84 से ज्यादा उपजातियों में बंटे सनातनी ब्राह्मण। गुजरात की राजनीति और मोदी के काल में हुए गुजरात दंगों में मुसलमानों की मौत चाहे जितनी भी हुई हो, लेकिन उन दंगों की आग ने सबसे ज्यादा वहां के ब्राह्मण अधिकारियों और परिवारों को ही झुलसाया है। गोधरा और नरोदा पाटिया दंगा के जरिये गुजरात की राजनीति मोदी के लिए कितनी शुभ हुई और गुजरात में कितना विकास हुआ, इसकी जानकारी तो मोदी जी ही ज्यादा दे सकते हैं, लेकिन इन दंगों की जांच कर रहे तमाम ब्राह्मण अधिकारी बाद में एक-एक करके प्रताड़ित किए गए और निष्कासित किए गए। मूल रूप से केरल के ब्राह्मण परिवार से आने वाले और गुजरात काडर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आरबी श्रीकुमार को गलत केस में फंसाने का आरोप आज भी मोदी के ऊपर है। कुमार मोदी को एक झूठा से ज्यादा कुछ नहीं मानते। कहा जा रहा है कि श्रीकुमार को नीचा दिखाने के लिए मोदी ने कई तरह के झूठे का सहारा लिया था। आईपीएस श्रीकुमार गुजरात दंगे के चश्मदीद गवाह थे और उन्होंने इस दंगे की पूरी कहानी दंगे की जांच कर रहे आयोग को बताया था। मोदी नाराज हो गए और श्रीकुमार को चलता कर दिया गया। मोदी के निशाने पर फिर आइएएस प्रदीप शर्मा आ गए। प्रदीप शर्मा उस महिला जासूसी केस की अहम कड़ी हैं, जिसे लेकर आज मोदी विपक्ष के निशाने पर हैं। इस युवती ने भूकंप प्रभावित भुज में सरकारी पुनर्निर्माण के प्रयासों के तहत एक हिल गार्डन डिजाइन किया था। दोनों की मुलाकात तत्कालीन जिलाधिकारी प्रदीप शर्मा ने कराई थी। अमित शाह के साहेब ने इस युवती को अपना पर्सनल मोबइल नंबर भी दे रखा था, जिस पर साहेब और युवती की अक्सर बातें होती थीं। एक समय ऐसा भी आया कि साहेब युवती से दिन में 18 बार बातें करते थे। एक दिन युवती ने भुज के अपने कलक्टर मित्र प्रदीप शर्मा को साहेब के साथ चल रहे संबंध से संबंधित कॉल्स और मैसेज को दिखला दिया। शर्मा ने उस साहेब का नंबर सेव कर लिया। बाद में युवती और साहेब के बीच कुछ नजदीकी रिश्तों को लेकर अनबन शुरू हो गई और युवती परेशान रहने लगी। साहेब चाहते थे कि भले ही हम दोनों के बीच में संबंध कुछ और हो, लेकिन सार्वजनिक तौर पर यह दिखे कि साहेब युवती को बेटी की तरह मानते हैं। युवती की परेशानी जानने के बाद कलक्टर प्रदीप शर्मा ने साहेब के सेव नंबर पर कॉल लगा दी। कॉल उठाया तो नहीं गया, लेकिन इस मिस्ड कॉल से साहब को संदेह हो गया कि आखिर उनका पर्सनल नंबर प्रदीप शर्मा के पास कैसे है? इस मिस्ड कॉल के बाद से ही युवती और साहेब के संबंधों का समीकरण बदल गया। शर्मा के फोन पर नजर रखी जाने लगी और यह बात सामने आ गई कि शर्मा और यह युवती बराबर संपर्क में रहते थे। सूत्रों के मुताबिक, इसके बाद ही अमित शाह ने इस युवती पर सर्विलांस लगाने का आदेश दिया। कुछ ही दिनों बाद प्रदीप शर्मा को उनकी हरकत का दंड मिल गया। उनके खिलाफ गुजरात सरकार ने आपराधिक मामलों में चार शिकायतें दर्ज कराई हैं। शर्मा  को सस्पेंड कर दिया गया और फिर वह गिरफ्तार भी कर लिए गए। अभी हाल ही में शर्मा ने मोदी की हकीकत को मीडिया के सामने लाने की कोशिश भी की है। इसके अलावा नरेंद्र मोदी बिहार के रहने वाले गुजरात काडर के पुलिस अधिकारी राहुल शर्मा को भी नहीं छोड़ा। गुजरात दंगे के समय राहुल शर्मा अहमदाबाद में डीआईजी थे। सरकारी जांच एजेंसियों समेत कई आयोगों के सामने राहुल शर्मा ने गोधरा कांड से जुड़े तथ्य सामने रखे थे। मोदी को रास नहीं आया और राहुल शर्मा दोषी घोषित कर दिए गए। गोधरा कांड की सच्चाई ब्राह्मण पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने भी देश के सामने रखी। बेइज्जत हो गए और नौकरी भी चली गई। इसी तरह कुलदीप शर्मा भी मोदी के निशाने पर रहे और बाद में मोदी से दूर हो गए। ऐसे में कहा जा सकता है कि भाजपा के पक्ष में भले ही देश के ब्राह्मण एकजुट हैं, लेकिन मोदी की कारगुजारियों से ऐसा लगता है कि वे ब्राह्मण विरोधी हैं। वे ब्राह्मणों को सत्ता से अलग रखने में यकीन करते हैं और ब्राह्मणों को अपना दास बनाए रखना चाहते हैं। मोदी ने ब्राम्हण साथी हिरेन पांड्या के साथ क्या किया? कौन नहीं जानता है। मोदी को जब लगा कि पांड्या उन्हें चुनौती दे सकते हैं, तब पंड्या की हत्या हो गई। आज भी गुजरात में पंड्या की हत्या को लेकर पूरा गुजराती समाज मोदी को ललकारता है और उस हत्या प्रकरण को राजनीतिक हत्या के रूप में देखता है। गुजरात के ही एक ब्राह्मण भाजपा नेता कहते हैं, 'इस बात में कोई दम नहीं है कि मोदी के निशाने पर ब्राह्मण समाज के लोग रहे हैं। किसी के ऊपर कोई कार्रवाई की गई है, तो इसे जाति से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, लेकिन यह भी सही है कि ब्राह्मण समुदाय के लोग हाशिये पर हैं। यह भी सही है कि चाहे जिस वजह से हुआ हो, ब्राह्मण अधिकारी ज्यादा परेशान हुए हैं। लेकिन इसका चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा।' मोदी की इसी राजनीति को कई नेता फासिज्म के रूप में देखते हैं। बलपूर्वक सत्ता पर अधिकार जमाने की कोशिश। फासिज्म भले ही आज सर्वमान्य राजनीतिक सिद्घांत न हो, लेकिन इसका प्रेत अभी विभिन्न अतिवादी, चरमपंथी और उग्र विचारधाराओं में नजर आता है। राजनीतिक शब्द के रूप में इसे स्थापित करने का श्रेय इटली के तानाशाह बैनिटो मुसोलिनी को जाता है। मुसोलिनी ने इटली में राज्य के सर्वाधिकार की जो शासन प्रणाली चलाई, उसे ही फासिज्म कहा जाता है। यह बात और है कि फासिज्म को साम्यवाद या समाजवाद के विरुद्घ आंदोलन समझा जाता है, लेकिन सच यह है कि यह आंदोलन साम्राज्यवाद, बाजारवाद और उदारतावाद जैसी प्रवृतियों के खिलाफ था। इस सिद्घांत का मूल लक्ष्य किसी तरह सत्ता हासिल करना होता है। सरवाइवल आफ द फिटेस्ट जैसे आदिम और प्रकृतिसिद्घ नीति का इसमें समर्थन किया जाता है। अर्थात् बलवान कमजोर पर शासन करते हैं। दृढ़ता, आक्रामकता और साहस जैसे व्यवहारों का इसमें प्रयोग किया जाता है और अपने लोगों को उत्साहित करके सफलता हासिल की जाती है।  शांति, सौहार्द, लोकतंत्र, उदारता और नैतिकता जैसे गुणों को इस विचारधारा के तहत अपने लक्ष्य से भटकाने वाले तत्व के रूप में देखा जाता है। आज मोदी के लोग कुछ इसी तरह का खेल करते नजर आ रहे हैं। मोदी की राजनीति का विश्लेषण करें, तो स्पष्ट हो जाता है कि राज्य की राजनीति में मुस्लिम, दलित आदिवासी और ब्राह्मण हमेशा मोदी के निशाने पर रहे हैं। गुजरात की राजनीति गोधरा कांड के बाद बदल गई है। मुसलमान खुले मन से मोदी के साथ नहीं हैं, लेकिन वे मोदी का विराध भी नहीं करते दिखते। वजह साफ है कि किसी भी विपक्षी पार्टी की अभी इतनी औकात नहीं है कि वह मोदी के चुनावी गणित को ध्वस्त कर सके। दलित और आदिवासियों की क्या औकात है? वहां इसकी बानगी अभी पिछले महीने ही देखने को मिली है कि सवर्ण और पिछड़ी जाति के सामाजिक बहिष्कार से तंग आकर हजारों दलित आदिवासी धर्म परिवर्तन को बाध्य हुए हैं। ऐसा हमेशा से हो रहा है। अब यही राजनीति वहां खंड-खंड में बंटे ब्राह्मण समुदाय के साथ हो रही है। गुजरात में कुल 78 लाख ब्राह्मण हैं, जो लगभग 84 उपजातियों में बंटे हुए हैं। मुश्किल से कोई ब्राह्मण नेता आगे उभरता भी है, तो वहां का समाज उसे आगे नहीं बढ़ने देता। याद रहे जब गोधरा कांड के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को राजधर्म निभाने की नसीहत दी थी, तो वहां के वैश्य, सिंधी और मारवाड़ी समाज ने इसका विरोध किया था। कह सकते हैं कि वाजपेयी को भी इस समाज ने कभी सहजता से स्वीकार नहीं किया। मोदी के साथ आज वही लोग खड़े हैं, जो ब्राह्मण विरोधी हैं। रिफ्यूजी पंजाबी, पारसी, बनिया और मारवाड़ी समाज के लोग मोदी को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। यह वही वर्ग है, जिनके पास पैसा है। इसी पैसे के दम पर सत्ता तक पहुंचने की लालसा। क्या नरेंद्र मोदी संघ और भाजपा नेता संजय जोशी को चाहते हैं? क्या संजय जोशी को राजनीति से बेदखल करने में मोदी का हाथ नहीं है? क्या गडकरी की राजनीति को मोदी पसंद करते हैं? क्या जिस दिन मोदी को मौका मिलेगा, गडकरी को नहीं दबोच देंगे? जिन कुछ ब्राह्मण नेताओं की तरफदारी करते मोदी दिखाई पड़ते हैं, वह मोदी की राजनीति है। जिस दिन मोदी की राजनीति उनके अनुरूप होती दिखेगी, सिरे से ब्राह्मण नेताओं को उनका औकात बता दी जाएगी। ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल है कि पिछड़ी जाति के तमाम नेताओं के बीच भाजपा में मोदी की ब्रैंडिंग जिस तरह से पिछड़ी जाति के सबसे बड़े नेताओं के रूप में की जा रही है और क्षेत्रीय दलों में बंटी उत्तर भारत की राजनीति को पलटने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में भाजपा के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भाजपा मोदी के ब्राह्मण विरोधी छवि के दम पर चुनाव जीत सकती है? सवाल यह भी है कि अगर सब कुछ मोदी के पक्ष में जाता दिखता हो, तब भी क्या बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान समेत राज्यों में ब्राह्मण के बगैर भाजपा की राजनीति पूरी हो सकेगी? भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की इज्जत इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है। भाजपा मोदी को लास्ट होप के रूप में देख रही है। 'अभी नहीं तो कभी नहीं' के नारे भाजपा में लग रहे हैं। मोदी की अगुवाई में चुनाव कैसे जीता जाए और कैसे मोदी को सत्ता सौंपी जाए इसे लेकर भाजपा के भीतर जातियों को साधने की भीषण रणनीति चल रही है। लगभग चार दशक तक कांग्रेस के गले की हार बने रहे देश के सनातनी ब्राह्मण समुदाय के लोग कहिए या फिर ब्राह्मण वोटर अब भाजपा की गोद में जा बैठे हैं। आलम यह है कि देश के कुछ इलाकों के ब्राह्मणों के राजनीतिक मिजाज को छोड़ दिया जाए, तो उत्तर और पश्चिम भारत के ब्राह्मण वोटरों को कांग्रेस से चिढ़ हो गई है और भाजपा से अपनापन। यह चिढ़ और अपनापन क्यों और किसलिए है? इसके कोई सामाजिक और राजनीतिक कारण तो नहीं दिखाई देते, लेकिन इतना साफ है कि 90 के दशक के बाद देश में आए क्षेत्रीय दलों के उभार के बाद ब्राह्मण कांग्रेस की गिरती साख और अपने सामाजिक अस्तित्व को बचाने के लिए मंदिर आंदोलन के नाम पर भाजपा के साथ जुड़ते चले गए। दलित, मुसलमान और ब्राम्हण के वोट बैंक के दम पर चुनाव जीत कर सत्ता पर काबिज होने में सफल रहने वाली कांग्रेस के पास आज ब्राह्मण वोटर न के बराबर हैं। यह बात और है कि देश भर में ब्राह्मणों के वोट बैंक के आधार पर कोई भी पार्टी सत्ता तक तो नहीं पहुंच सकती है, लेकिन देश समाज का यह समुदाय अपने वर्चस्व के दम पर राजनीति को हमेशा एक दिशा देता रहा है। जो ब्राह्मण कल तक कांग्रेस के लिए मरने मारने पर उतावले थे, आज यही उतावलापन उनमें भाजपा के लिए है। यह बदलती राजनीति की एक तस्वीर है और इसके कई सामाजिक मायने आप खुद लगा सकते हैं। [B]लेखक अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं और 'हम वतन' अखबार से जुड़े हुए हैं. इनसे[LINK=<script type='text/javascript'> <!-- var prefix = 'ma' + 'il' + 'to'; var path = 'hr' + 'ef' + '='; var addy73234 = 'mukheeya' + '@'; addy73234 = addy73234 + 'gmail' + '.' + 'com'; document.write('<a ' + path + '\'' + prefix + ':' + addy73234 + '\'>'); document.write(addy73234); document.write('<\/a>'); //-->\n </script><script type='text/javascript'> <!-- document.write('<span style=\'display: none;\'>'); //--> </script>This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. <script type='text/javascript'> <!-- document.write('</'); document.write('span>'); //--> </script>]  के जरिए संपर्क किया जा सकता है.[/B]

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