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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, April 27, 2015

आंध्र प्रदेश को नया कैपिटल चाहिए पर ”ग्रीनफील्ड कैपिटल सिटी” क्यों चाहिए?

आंध्र प्रदेश को नया कैपिटल चाहिए पर "ग्रीनफील्ड कैपिटल सिटी" क्यों चाहिए?

hastakshep | हस्तक्षेप

नंदीग्राम की डायरी के लेखक और यायावर प्रकृति के पत्रकार पुष्पराज हाल ही में विजयवाड़ा और गुंटूर कीलंबी यात्रा से वापिस लौटे हैं। आंद्र प्रदेश की नयी राजधानी बनाने को लेकर किस तरह किसानों की जमीन की लूट चंद्रबाबू नायडू की सरकार कर रही है, उस पर पुष्पराज ने एक लंबी रिपोर्ट समकालीन तीसरी दुनिया में लिखी है। हम यहां उस लंबी रिपोर्ट को चार किस्तों में प्रकाशित कर रहे हैं। सभी किस्तें अवश्य पढ़ें और मित्रों के साथ शेयर करके उन्हें भी पढ़वाएं।

-संपादक "हस्तक्षेप"

लैंड पुलिंग स्कीम-फार्मर्स किलिंग स्कीम -1

आंध्र प्रदेश में राज्यपोषित कृषक-संहार को कौन रोकेगा?

2 जून 2014 को तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग हो गया तो आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद अब नये परिदृश्य में तेलंगाना की राजधानी हो जायेगी। क्या यह कोई युद्ध था जिसमें एक की जीत दूसरे की हार हो गयी और आंध्र प्रदेश ने तेलंगाना युद्ध में हैदराबाद की सल्तनत को खो दिया है ? भारत सरकार के द्वारा 1 मार्च 2014 को ए० पी० रिऑर्गनाइजेशन एक्ट का गजट जारी होने के बाद पृथक तेलंगाना का जनांदोलन तो रूक गया पर आंध्र प्रदेश में नयी राजधानी हासिल करने का राजनीतिक संघर्ष भी शुरू हो गया। क्या हैदराबाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की संयुक्त राजधानी के रूप में उपयुक्त नहीं है? अगर चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी के रूप में 5 दशक से दो राज्यों की शासनिक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है तो हैदराबाद को दो राज्यों की संयुक्त राजधानी मानने में संवैधानिक संकट क्या है? क्या तेलंगाना को संयुक्त राजधानी स्वीकार्य नहीं है या आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन० चंद्रबाबू नायडू अपने सपनों की नयी राजधानी कायम कर एक कीर्तिमान स्थापित करना चाहते हैं।

                2004 के विधान सभा चुनाव में नायडू को करारी हार मिली थी और उसकी एक ही वजह थी कि नौ साल के अपने शासन काल में वे 'हाइटेक-मंत्र' का इस तरह उच्चारण करते रहे कि कृषि, किसान, मजदूर और गांव उनके लिए त्याज्य हो गये थे। हैदराबाद को आई० टी० सिटी के रूप में विकसित करने का कीर्तिमान नायडू ने जरूर कायम किया था। पर आंध्र प्रदेश के गांवों में संघर्षरत आदिवासी, दलित, किसान-मजदूरों की आवाज को दबाने के लिए उन्होंने वहशियाने अंदाज में दमन – चक्र भी चलाया था। 'आई० टी० मंत्र के हीरो नायडू तब साफ कहते थे कि कृषि गैर उत्पादक और पुरातन पिछड़ी प्रक्रिया है, इसे प्राथमिकता नहीं' मिलनी चाहिए। 2004 की हार के बाद नायडू ने अपनी राजनीतिक यात्रा में अपनी गलतियों को सुधारना शुरू किया। उन्होंने विपक्ष में रहते हुए स्वीकार किया कि खेती को भूलना उनकी गलती थी और अब वे सत्ता में आये तो पुरानी गलतियों की पुनरावृत्ति नहीं करेंगे। 2014 में नायडू सत्ता में आये तो अब पुरातन प्रदेश के लिए नूतन राजधानी के कल्पना लोक में विचरने लगे। आंध्र प्रदेश की तेलगू देशम सरकार का समर्थन दे रही भाजपा सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगर नूतन भारत का स्वप्न बांट रहे हैं तो आंध्र प्रदेश के लिए नयी राजधानी के रूप में सुपर कैपिटल 'सिंगापुर' का स्वप्न कितना आकर्षक है। अगर आप विकास के पक्षधर हैं और राष्ट्रभक्त भी हैं तो भारत में 'नूतन सिंगापुर' के उदय का अभिनंदन करें।

                28 दिसंबर 2014 को आंध्र प्रदेश की विधानसभा में विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद 'आंध्र प्रदेश कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अॅथोरिटी बिल' को सदन की अंतिम मंजूरी  मिल गयी। वाई० एस० आर० कांग्रेस ने नयी राजधानी की स्थापना के लिए निर्मित सी० आर० डी० ए० एक्ट – 2014 को कृषक – विरोधी घोषित किया कि यह बिल भारत सरकार के 2013 के भूअधिग्रहण कानून की शर्तों का उलंघन करता है। नयी प्रस्तावित राजधानी (वी० जी० टी० एम०) विजयवाड़ा – गुंटूर – तेनाली – मंगलागिरी का क्षेत्र कृषि का संपन्न क्षेत्र है और यह क्षेत्र आंध्र प्रदेश की खाद्य-सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाता है। आंध्र प्रदेश में नयी राजधानी की स्थापना के लिए सी० आर० डी० ए० एक्ट – 2014 के तहत "आंध्र प्रदेश कैपिटल सिटी लैंड पुलिंग स्कीम – 2015" का गजट 1 जनवरी 2015 को जारी हो गया। प्रस्तावित नयी राजधानी के लिए एक लाख एकड़ जमीन चाहिए। यह एक लाख एकड़ जमीन कहां से आयेगी। लैंड पुलिंग का मतलब तो जमीन को इकट्ठा करने,  संग्रहित करने से है। इस लैंड पुलिंग स्कीम में अधिग्रहण (एक्यूजीशन) शब्द का कहीं इस्तेमाल नहीं किया गया। जब सरकार जमीन अधिग्रहण ही नहीं कर रही है तो नयी राजधानी के लिए बनाये गये कानून को 2013 के भूअधिग्रहण कानून की कसौटी पर परखने की कोई दरकार भी नहीं होनी चाहिए। राज्य सरकारें राज्यहित में कोई नया कानून बनाने का हक जरूर रखती है पर उस कानून के तहत नागरिकांे के संवैधानिक हकांे की हिफाजत की गारंटी भी होनी चाहिए। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन जीने का अधिकार और निजी स्वतंत्रता का हक प्रदान करता है अनुच्छेद 300-ए हर भारतीय नागरिक को निजी संपत्ति रखने और उसकी सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है।  लैंड पुलिंग स्कीम के कार्यान्वयन से आंध्र सरकार ने गुंटूर इलाके के नागरिकों के जीने और निजी संपत्ति रखने के संवैधानिक हकों पर दोहरा हमला किया है। लैंड पुलिंग स्कीम के तहत अपेक्षा की गयी है कि किसान स्वेच्छा से अपनी जमीन सरकार को समर्पित कर देंगे। सरकार ने इस स्कीम के तहत किसानों की जमीन के मुआवजे एवं  खेती से विस्थापित होने की स्थिति में पुनर्वास की कोई गारंटी नहीं की है। नयी कैपिटल सिटी की स्थापना के लिए सी० आर० डी० ए० एक्ट की परिकल्पना समिति ने प्रस्तावित राजधानी के लिए अपनी जमीन और जिंदगी का त्याग करने वाले प्रभावित समाज का कोई अध्ययन नहीं किया। सी० आर० डी० ए० जमीन अधिग्रहण करने वाले अधिकारियों को असीम ताकत प्रदान करता है। यह सी० आर० डी० एक्ट अलोकतांत्रिक, अपारदर्शी और जन सहभागिता को नजरअंदाज करने वाला खतरनाक कानून है, जिसका नतीजा भयावह और मानवता विरोधी साबित होगा। भूस्वामियों, श्रमस्वामियों, बटाईदार कृषक और गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाली 2 लाख से बड़ी आबादी इस भू अधिग्रहण प्रक्रिया में अपनी कृषि पर आश्रित जिंदगी से अचानक विस्थापित हो रही है, इसे विस्थापन नहीं माना जा रहा है। इसलिए विस्थापन उपरांत पुनर्वास की गारंटी सरकार की जिम्मेवारी नहीं है। कैपिटल रीजन डेवलपमेंट आॅथोरिटी (सी० आर० डी० ए०) एक्ट की संपूर्ण परिकल्पना रियल स्टेट डेवलपमेंट ऑथोरिटी की तरह तैयार की गयी है। इसलिए नायडू अगर राज्य-वासियों को नयी राजधानी का लालच देकर रियल स्टेट का लाखों करोड़ का धंधा खड़ा करते हैं तो आप उन्हे रोक नहीं सकते हैं।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन० चंद्रबाबू नायडू 2014 में जब तीसरी बार सत्ता में आये तो आंध्र प्रदेश विभाजित हो चुका था। विभाजन से अगर राज्य का नुकसान हुआ है, लोग-बाग अगर ठगे-ठगे से महसूस कर रहे हैं तो उसकी भरपाई इस तरह से हो सकती है कि ठगे-ठगाये लोगों के हिस्से में एक बड़ा तोहफा दे दो। दुनिया का एक चमकता हुआ समृद्ध राष्ट्र सिंगापुर अगर अपने आकार से "दस गुणा बड़ा सिंगापुर" आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी के रूप में विकसित हो रहा है तो क्या हमारे लिए यह राष्ट्रीय गर्व का विषय नहीं है। मीडिया ने हैदराबाद को आईटी सिटी के रूप में चर्चित करने वाले चंद्रबाबू नायडू के नये स्वप्न पर अब तक कोई संदेह नहीं खड़ा किया है। 'द हिन्दू' ने 27 दिसंबर 2014 को अपने 'ओपेन पेज' में एम० जी० देवसहायम का लेख 'ए ग्रीनफील्ड कैपिटल'  जरूर प्रकाशित किया था पर सी० आर० डी० ए० एक्ट पारित होने और "लैंड पुलिंग स्कीम" का गजट जारी होने के बाद भारतीय मीडिया ने तो अपने पाठकों को "लैंड पुलिंग स्कीम" के बारे में प्राथमिक जानकारी भी नहीं दी। 7 जनवरी 2015 के 'द गारडियन' में खबर छपी है – "व्हाय सिंगापुर इज बिल्डिंग ए न्यू इंडियन सिटी 10 टाइम्स इट्स ओन साइज" "क्यों भारत में वृहत – सिंगापुर बनाया जाये?" गार्डियन के अनुसार "सिंगापुर 716 वर्ग किलोमीटर में स्थित है तो भारत में नया सिंगापुर 7,235 वर्ग किलोमीटर में कायम होगा। सिंगापुर और आंध्र प्रदेश सरकार के साथ नयी राजधानी के मास्टर प्लान के विकास का एम०ओ०यू० साइन हो चुका है। नयी राजधानी के निर्माण पर 1 लाख 2 हजार 3 सौ करोड़ रूपये खर्च होंगे। आंध्र को आई०टी० के ग्लोबल मैप पर लाने वाले नायडू ने "ग्लोबल बिजनेस लीडर" सिंगापुर के साथ समझौता कर साहसिक कदम उठाया है। लेकिन गार्डियन के अनुसार यह समझौता सिंगापुर के लिए खतरों से भरा साबित हो सकता है कि ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्ट देशों की सूची में सिंगापुर का स्थान 7वाँ है तो भारत का 85 वाँ है। (एक तरफ ज्यादा भ्रष्ट देशों की सूची में ज्यादा अंक हासिल करने वाला भारत तो दूसरी तरफ बहुत कम भ्रष्टाचार वाले राष्ट्रों की सूची में ऊपर की कतार में खड़ा सिंगापुर।) गार्डियन के अनुसार सिंगापुर जैसे विकसित राष्ट्र के लिए आंध्र प्रदेश के साथ यह समझौता बेमेल और चुनौती से भरा हुआ साबित होगा।"

                एम० जी० देवसहायम ने पहली बार नयी राजधानी के रूप में 'ग्रीन फील्ड कैपिटल' की अवधारणा के खोखले पक्ष को उजागर किया था। आप देवसहायम से विस्मृत हो रहें हों तो उनके अवदान से स्मरण कराना जरूरी है। एम० जी० देवसहायम आई० ए० एस० रहे हैं और इमरजेंसी के समय चंडीगढ़ के प्रशासक होते हुए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से पंगा लेते हुए जयप्रकाश नारायण की जान बचाने की कोशिश की थी। "जे० पी० इन जेल" और "जे० पी० मूभमेंट, इमरजेंसी एंड इंडियाज सकेण्ड फ्रीडम" जैसी चर्चित पुस्तक के लेखक देवसहाय ने पहली बार 5-6 दिसंबर 2014 को प्रस्तावित राजधानी क्षेत्र के अधिग्रहण से उजड़ने वाले गांवों की यात्रा की थी। स्वतंत्रता के बाद राज्यसत्ता के द्वारा विकसित भारतीय नगरों में अगर चंडीगढ़ को आप एक सुंदर व आदर्श नगर के रूप में देखते हैं तो चंडीगढ़ कैपिटल प्रोजेक्ट के मुख्य प्रशासक रहे देवसहायम का किसी नये कैपिटल प्रोजेक्ट पर अंगुली रखना मायने रखता है। देवसहायम एन० ए० पी० एम०, आंध्र प्रदेश के द्वारा गठित उस तथ्य-अन्वेषी समूह का नेतृत्व कर रहे थे, जिसमें जानेमाने पर्यावरणविद प्रो० बाबूराव भी शामिल थे। देवसहायम कमिटी ने पहली बार प्रस्तावित नूतन राजधानी को आंध्र प्रदेश की जनता के लिए अहितकारी और किसानों के लिए बर्बादी का सबब घोषित किया। एन० ए० पी० ने देवसहायम कमिटी की रिपोर्ट जारी कर सवाल खड़ा किया था किआंध्र प्रदेश को नया कैपिटल चाहिए पर "ग्रीनफील्ड कैपिटल सिटी" क्यों चाहिए? प्रस्तावित राजधानी के फैलाव से 29 गांवों की 2 लाख से बड़ी आबादी प्रभावित होगी। एक वर्ष में 122 तरह की फसल पैदा करने वाला इलाका, जिसके वार्षिक पैदावार की लागत एक हजार करोड़ रूपये है, यह क्षेत्र कैपिटल सिटी परियोजना में उजड़ जायेगा। यह कैपिटल सिटी ग्रामीण भारत को उजाड़कर नगरीय भारत बसाने की योजना है, इसे कल्याणकारी और जनहितकारी नहीं कहा जा सकता है।"

जारी……

गुंटूर-विजयवाड़ा से लौटकर – पुष्पराज

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