Tuesday, 26 March 2013 11:05 |
सुभाष गाताडे गौरतलब है कि टेजर ऐसा इलेक्ट्रोशॉक हथियार होता है जो बिजली के प्रवाह को निर्मित करता है और स्नायुओं के स्वैच्छिक नियंत्रण को बाधित करता है और इस तरह यह प्रदर्शनकारी या संभावित खतरनाक व्यक्ति को मंद या कुछ समय तक के लिए बिल्कुल बेकार कर देता है। इस प्रभाव को पंगुपन या विकलांगता कह सकते हैं। आधिकारिक तौर पर भले ही कुछ कहा जाता रहे, मगर पहले दिन से यह बात मालूम रही है कि अगर किसी के सीने को निशाना बना कर इस हथियार को चलाया जाए तो उसे दिल का दौरा पड़ने की भी आशंका रहती है। निश्चित ही गैर-पारंपरिक कहे गए हथियारों में अकेले टेजर गन नहीं है। विज्ञान की चर्चित पत्रिका 'न्यू साइंटिस्ट' ने तीन साल पहले के अपने अंक में ऐसे ही चंद हथियारों की चर्चा की थी। इसके मुताबिक पूंजीपतियों का एक हिस्सा इन दिनों एक ऐसी माइक्रोवेव किरण गन तैयार करने में मुब्तिला है जो सीधे लोगों के सिर में आवाज पहुंचा देगी। इस उत्पाद को अमेरिकी सेना द्वारा 'युद्ध के अलावा अन्य कामों में' और भीड़ नियंत्रण के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें माइक्रोवेव आडियो इफेक्ट का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें छोटी माइक्रोवेव लहरें तेजी से टिशू को गरम करती हैं और सिर में एक शॉकवेव पैदा करती हैं। इसकी एक अन्य विशिष्टता, जिसको लेकर अमेरिकी रक्षा विभाग बहुत प्रसन्न है, यह है कि इस किरण को इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से संचालित किया जाता है, जो एक साथ कई निशानों तक पहुंच सकती है। इस माइक्रोवेव गन से किरण फेंकी जाएंगी तो पता चलेगा कि भाषण देते-देते मजदूर नेता वहीं बेहोश होकर गिर गया और उसके इर्दगिर्द खड़े तमाम मजदूर भी इसी तरह धराशायी हो गए। इस बात के मद्देनजर ऐसी गन का विरोध होगा और उसे मानवाधिकारों का हनन बताया जाएगा, इसे स्वीकार्य बनाने की कवायद भी चल रही है। कहा जा रहा है कि इसके गैर-सैनिक उपयोग भी हो सकते हैं, जैसे कहीं टिड््डी दल का हमला हो जाए तो ऐसे कीड़ों को भगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, यह बात भी रेखांकित की जा रही है कि ऐसी तकनीक से उन लोगों को लाभ हो सकता है जिनकी सुनने की क्षमता ठीक नहीं है। कोई भी देख सकता है कि इन गैर-पारंपरिक हथियारों के आविष्कार के जरिए अमेरिकी सैन्यवाद अब मानवाधिकार उल्लंघन की नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है। अब लोगों को 'शांत' करने की अपनी योजनाओं के तहत सीधे मानवीय शरीर और मन की सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है। इस नई किस्म की 'युद्धभूमि' पर अपना वर्चस्व कायम करने में विज्ञान और अकादमिक जगत न केवल केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि बिल्कुल साथ-साथ चल रहे हैं। दमन के लिए पेशेवर वैज्ञानिकों और तकनीकविदोें की सेवाएं ली जा रही हैं। 'गैर-प्राणघातक' हथियारों के निर्माण को सरकारों और कॉरपोरेट प्रतिष्ठानों की तरफ से आगे बढ़ाया रहा है और इसमें कई अग्रणी शिक्षा संस्थान भी जुड़े हैं। लोगों को नियंत्रित करने, चोट पहुंचाने, यातना देने और यहां तक कि उन्हें मार डालने के नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं। दूसरी ओर, अमनपसंद विचारकों और वैज्ञानिकों में इन गैर-पारंपरिक हथियारों को लेकर चिंता बढ़ रही है। चर्चित विश्लेषक टाम बुर्गहार्ड द्वारा संपादित किताब 'पोलिस स्टेट अमेरिका' में प्रकाशित लेख 'नान-लेथल वारफेअर' इस परिघटना पर बखूबी रोशनी डालता है। उसके मुताबिक 'यह नया फासीवाद जैव निर्धारणवादी विचारधारा और अग्रगामी तकनीकी साधनों का इस्तेमाल करते हुए शरीर पर हमला करता है और हर नई तकनीकी प्रगति और राजनीतिक आवश्यकताओं के साथ अपने संभावित लक्ष्यों का दायरा बढ़ाता जाता है।' वह दरअसल 'जादुई गोली' की तलाश में रहता है जो उसके शिकार को 'अक्षम' बना दे। अगर अमेरिका में टेजर गन से इतनी मौतें होती हैं, तो भारत में क्या होगा, जहां की पुलिस पहले ही काफी असंवेदनशील है? http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/41302-2013-03-26-05-36-23 |
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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
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