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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, March 10, 2013

मणिपुर की माताओं का प्रदर्शन क्या यह देश भूल गया है? कश्मीर का उल्लेख न भी करें तो!

मणिपुर की माताओं का प्रदर्शन क्या यह देश भूल गया है? कश्मीर का उल्लेख न भी करें तो!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

भारत के मुख्य न्यायाधीश अलतमस कबीर नेने शनिवार को कोलकाता में कहा कि नयी दिल्ली में पिछले १३ दिसंबर को एक बस में​​ एक युवती के साथ हुए बलात्कार की घटना कोई अकेली घटना नहीं है।यह घटना देशभर में हो रही अनेक घटनाओं में से एक है।अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महिलाओं पर अत्याचारों पर चिंता जताते हुए दलित महिलाओं पर होने वाले बलात्कार के मामलों में उदासीनता की उन्होंने चर्चा की। इसी के मध्य बंगाल सरकार ने महिला उत्पीड़न रोकने के लिए निर्देशिका भी जारी की, जबकि राज्य मानवाधिकार आयोग ने महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के मामलों में राज्य सरकार की जमकर खिंचाई की। केंद्र सरकार ने दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड के मद्देनजर अध्यादेश तो जारी कर दिया, लेकिन वर्मा आयोग की सिफारेशों के मुताबिक सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के अंतर्गत सेना और पुलिस के रक्षाकवच को अक्षत रखा। सोनी सोरी जैसा प्रकरण साबित करता है कि इसके क्या नतीजे हो सकते हैं।मणिपुर की माताओं का प्रदर्शन क्या यह देश भूल गया है? कश्मीर का उल्लेख न भी करें तो!इसी बीच,मुंह में एक भी निवाला डाले बगैर पिछले 12 साल से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम :अफस्पा: के खिलाफ अकेली संघर्ष कर रहीं मणिपुर की 'आयरन लेडी' इरोम शर्मिला ने बिल्कुल ठान लिया है कि चाहे जो हो जाए, इस विवादास्पद कानून को हटाने के विरूद्ध उनका संघर्ष जारी रहेगा। उन पर भूख हड़ताल के दौरान आत्महत्या के प्रयास को लेकर मामला दर्ज किया गया है और वह सुनवाई के सिलसिले में अदालत में पेशी के लिए पिछले सप्ताह दिल्ली में थीं। लेकिन उनका विश्वास है कि इस मामले सेउनके संघर्ष में कोई अंतर नहीं आएगा।उन्होंने कहा कि जबतक उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती है, वह पुलिस मामलों से डरे बगैर अपना संघर्ष जारी रखेंगी।शर्मिला ने प्रेस ट्रस्ट से कहा कि लोग स्वेच्छा से उनके आंदोलन से जुड़ना चाहते हैं, यही एक बड़ा बदलाव है।उनकी भूख हड़ताल दो नवंबर, 2000 को शुरू हुई थी। उन्होंने असम राइफल के जवानों द्वारा मुठभेड़ में 10 नागरिकों को मार दिए जाने के खिलाफ यह शुरू किया था। इसके बाद से उन्हें नाक में नली लगाकर ही भोजन दिया जा रहा है ।

35 साल की आदिवासी महिला सोनी सोरी की दर्दनाक कहानी सुन आपके भी रोंगटे खड़े देगी। सोनी सोरी पर आरोप था कि वह नक्सलियों की मदद करती है। सोनी सोरी​ फिलहाल जेल में है। उसने जेल में एक पत्र लिखकर पुलिस पर कुछ आरोप लगाए। उसने बताया कि मुझे करंट लगाया जाता है, मेरे कपड़े उतार नंगा करने से या मेरे गुप्तांगों में कंकड़-पत्थर डालने से क्या नक्सलवाद खत्म हो जाएगा। जब मेरे कपड़े उतारे जा रहे थे तो उस समय ऐसा लग रहा था कोई आ जाए और मुझे इनसे बचा ले।

पुलिस आफिसर मुझे नंगा करके ये कहते है कि 'तुम रंडी औरत हो और तुम अपने शरीर का सौदा नक्सली लीडरों से करती हो। वे तुम्हारे घर में आते हैं, हमें सब पता है। तुम एक अच्छी शिक्षिका होने का दावा करती हो,लेकिन हो नहीं। दिल्ली जाकर भी ये सब काम करती हो। तुम्हारी औकात ही क्या है। सोनी सोरी का नाम सबसे पहले तब आया जब 9 सितम्बर 2011 को पालनार बाज़ार में उसके भतीजे लिंगा को एक कंपनी के एजेंट से पैसे लेते हुए गिरफ्तार किया गया। कहा गया कि सोनी उसकी मददगार थी। इसके बाद सोनी वहां से दिल्ली पहुंच गई।

दिल्ली पहुंचकर उसने एक मैगजीन को अपनी सारी आपबीती सुनाई। सोनी सोरी पेशे से एक टीचर है। तीन बच्चों की मां है। राजनीतिक रूप से वह एक पढ़े लिखे परिवार से ताल्लुक रखती है और अपने अधिकारों के लिए सक्रिय मानी जाती है।

सोनी ने आरोप लगाया था कि किरंदुल पुलिस स्टेशन में पदस्थ मांकड़ नाम के एक पुलिसकर्मी ने उसे और उसके भतीजे लिंगा को पुलिस के साथ मिलजाने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया था। लिंगा की गिरफ्तारी के बाद सोनी सोरी दिल्ली भाग गई। दिल्ली में उसे गिरफ्तार किया गया। सोनी ने वहां खुद को छत्तीसगढ़ पुलिस को न सौंपने की अपील की। दिल्ली हाईकोर्ट में भी एक याचिका लगाकर उनके खिलाफ दिल्ली में ही केस चलाने की मांग की गई और कहा गया कि अब तक जिस तरह यह साफ़ है कि उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसाया गया है। कोर्ट ने उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस को सौंप दिया।

प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने शनिवार को कहा कि गत वर्ष 16 दिसंबर को हुई दिल्ली सामूहिक बलात्कार की घटना 'एकमात्र' नहीं थी बल्कि कई घटनाओं में से एक थी।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कबीर ने कहा, ''दिल्ली में 16 दिसंबर को जो कुछ हुआ वह दुखद और गलत था और कुछ असाधारण था लेकिन साथ ही यह एकमात्र घटना नहीं थी। इसे एक रूप में विशिष्ट स्थिति बना दी गई।''

उन्होंने कहा, ''निर्भया या दामिनी नाम की लड़की जिसकी बर्बर हमले में मृत्यु हो गई वह एकमात्र घटना नहीं थी।'' उन्होंने कहा, ''अगले दिन समाचार पत्रों ने घटना के खिलाफ आक्रोश में चीख पुकार मचाई लेकिन उसी दिन 10 वर्षीय दलित लड़की से सामूहिक बलात्कार और उसके बाद उसे जला दिए जाने की घटना को अंदर के पन्ने पर सिर्फ पांच से दस लाइनों में जगह दी गई।''

उन्होंने आश्चर्य के साथ कहा, ''दिल्ली सामूहिक बलात्कार पीड़िता के परिवार को सरकारों और विभिन्न निकायों ने भारी मुआवजा दिया। लेकिन उस छोटी दलित लड़की का क्या हुआ। क्या उसके परिवार को कुछ मिला।''

सीजेआई ने कहा, ''हमें इन लोगों को पूर्ण नियंत्रण में लेने की आवश्यकता है ताकि यह दर्शाया जा सके कि महिलाओं से निपटने का यह तरीका नहीं है।''

कबीर ने कहा कि समाज को आदर्श बनाने की आदत है। कबीर ने कहा, ''मुख्य मुद्दा महिलाओं के प्रति पुरुषों की विचित्र मानसिकता का है।''

दूसरी ओर, पॉस्को विरोधी प्रदर्शनकारियों के अर्ध-निर्वस्त्र प्रदर्शन के दो दिन बाद ओड़िशा पुलिस ने तीन महिलाओं और पॉस्को प्रतिरोध संग्राम समिति (पीपीएसएस) के अध्यक्ष अभया साहू के खिलाफ अश्लीलता को लेकर मामला दर्ज किया है।

जगतसिंहपुर के पुलिस अधीक्षक सत्यब्रत भोई ने शनिवार को कहा कि आईपीसी की धारा 294 :ए: तथा अन्य धाराओं के तहत अभयचंदपुर थाने में मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि महिलाओं और साहू के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी। इसी बीच परियोजना समर्थक और विरोधी संगठनों ने अपनी अपनी रणनीतियां बनाने के लिए अलग अलग बैठकें कीं।

पीपीएसएस की महिला शाखा दुर्गावाहिनी ने आज सुबह अपनी एक बैठक में पॉस्को परियोजना की वापसी सुनिश्चित करने के लिए अतिवादी कदम उठाने का निश्चय किया। दुर्गावाहिनी की प्रमुख मनोरमा खटुरा ने कहा कि अब हम अपनी उर्वर जमीन पर परियोजना पर रोक सुनिश्चित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। जिन तीन महिलाओं पर मामला दर्ज किया गया है उनमें मनोरमा भी शामिल हैं।

उधर, परियोजना समर्थक महिला संगठन ने अपनी बैठक में दुर्गावाहिनी के अर्ध-निर्वस्त्र प्रदर्शन की निंदा की। संगठन ने साहू पर निर्दोष महिलाओं को सभी के सामने निर्वस्त्र होने के लिए उकसाने का आरोप लगाया। इस बीच इलाके में शांति बनी हुई है क्योंकि प्रशासन ने दो दिन से जमीन अधिग्रहण रोक दी है।

जमीन अधिग्रहण पर सीधी नजर रखने वाले जगतिसिंहपुर के जिलाधिकारी ने दावा किया कि राज्य सरकार लोगों की परस्पर सहमति से जमीन ले रही है। उनहोंने निहित स्वार्थी तत्वों पर निर्दोष किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया।

देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर एक महिला से सामूहिक बलात्कार करने का मामला प्रकाश में आया है। महिला ने आरोप लगाया है कि चार लोगों ने उसे अगवा कर कार में बलात्कार किया। बलात्कार के बाद उसे प्रगति मैदान के पास फेंक दिया।

महिला की शिकायत पर मंडावली पुलिस ने गैंगरेप का मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस ने आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस की दो टीमें गठित की हैं।

35 वर्षीया महिला का आरोप है कि वह रविवार सुबह करीब नौ बजे अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के बाहर खड़ी थी तभी एक सफेद रंग की कार वहां आकर रुकी। महिला का कहना है कि कार में एक महिला सहित चार लोग सवार थे।

कार में सवार लोगों ने उसे लिफ्ट देने की बात कही। कार में सवार होने के बाद चारों लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया। इसके बाद आरोपियों ने उसे प्रगति मैदान के समीप भैरव सिंह रोड के पास फेंक दिया।

पुलिस का कहना है कि उसने आरोपियों को पकड़ने के लिए दो टीमें बना दी हैं और वह आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार कर लेगी।

प्रस्तावित बलात्कार निरोधक कानून के कई प्रावधानों पर मंत्रालयों के बंटे होने की बात को सिरे से खारिज करते हुए विधि एवं न्याय मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि काफी विचार विमर्श के बाद प्रस्तावों को केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष लाया गया है। विधि मंत्री ने कहा कि कोई कानून बनाने की प्रक्रिया खत्म नहीं हुई है और जब प्रस्तावित आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2013 संसद में चर्चा के लिए आयेगा तब सरकार इस पर खुले मन से विचार करेगी।

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि प्रस्तावित विधेयक महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़ा अध्यादेश का स्थान ले लेगा और इसे समाप्त नहीं होने दिया जायेगा। अश्विनी कुमार ने एक निजी टेलीविजन चैनल के कार्यक्रम में कहा, '' विधि मंत्रालय और गृह मंत्रालय में कोई मतभेद नहीं है। वास्तव में हम भारत के लोगों को एक अति महत्वपूर्ण कानून दे रहे हैं और यह सामने आना चाहिए।'' उन्होंने कहा, '' जिन तीन या चार मसौदों पर चर्चा की गई, हमने अपना प्रस्ताव दे दिया है और मुझे विश्वास है कि अगले सप्ताह मंत्रिमंडल विधेयक पर विचार कर सकेगी।''

यह पूछे जाने पर कि गुरूवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में विधेयक पर विचार क्यों नहीं किया गया, अश्विनी ने कहा कि उस दिन इसे मंत्रिमंडल के समक्ष इसलिए नहीं रखा जा सका क्योंकि गृह मंत्रालय ने विधि मंत्रालय की ओर से पेश किये प्रस्तावों का अध्ययन करने के लिए समय मांगा था। उन्होंने इन बातों को खारिज कर दिया कि उनके मंत्रिमंडल के कई सहयोगी प्रस्तावित विधेयक के कई प्रावधानों का विरोध करेंगे।

विधि मंत्री ने कहा, ''अध्यादेश पर काफी चर्चा की गई लेकिन इस पर बुनियादी तौर पर कोई आपत्ति नहीं थी। एक या दो आयामों पर विचारों में भिन्नता हो सकती है। यही कारण है कि मंत्रिमंडल की बैठक में इस पर बारिकी से चर्चा होगी।'' उन्होंने कहा कि सरकार 22 मार्च से पहले संसद के दोनों सदनों में विधेयक लाने में सक्षम होगी।

यह पूछे जाने पर कि क्या विधेयक पास हो सकेगा, उन्होंने कहा कि भावनाओं को देखते हुए '' मुझे संदेह है कि कोई भी सांसद इसे विफल करना चाहेगा। मुझे विश्वास है कि अध्यादेश को समाप्त होने नहीं दिया जायेगा।'' यौन हमले के स्थान पर बलात्कार शब्द रखे जाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि सरकार ने इस बारे में पेश किये गए तर्को की मजबूती का सम्मान किया।

अध्यादेश में बलात्कार के स्थान पर यौन हमला शब्द रखा गया लेकिन महिला समूहों की आपत्तियों के बाद बलात्कार के शब्द को फिर से पेश किया गया। अश्विनी ने कहा कि इसके पीछे के तर्को पर मंत्रिमंडल को इसे स्वीकार करने के लिए तैयार किया जायेगा।

अध्यादेश एवं विधेयक में वैवाहिक बलात्कार को शामिल नहीं किये जाने के मुद्दे पर विधि मंत्री ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि विवाह के बारे में भारतीय विचार में इसे संस्कार और सप्तरिषी सिद्धांत पर आधारित माना गया है।

अश्विनी ने कहा कि यह पश्चिमी विचारों से अलग है जो इसे साझा कानूनों के तहत अनुबंध मानते हैं। उन्होंने कहा कि महिलाएं घरेलू हिंसा कानून जैसे प्रावधानों के तहत सहायता प्राप्त कर सकती हैं।

उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय से जुड़ी स्थायी समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में सरकार के उस विचार का समर्थन किया कि वैवाहिक बलात्कार को प्रस्तावित कानून में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही विधि मंत्री ने कहा कि सरकार का इस विषय पर व्यापक चर्चा के बाद संसद के विवेक के आधार पर बदलाव के लिए रूख खुला है।

2011 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 10231 मामले

बिहार सरकार ने आज कहा कि 2011 में अपहरण, बलात्कार, हत्या सहित महिलाओं के खिलाफ अपराध के 10231 मामले दर्ज किये गये जिनमें सरकार के प्रयास से कांड का त्वरित अनुसंधान, समय पर आरोपपत्र दाखिल किया जा रहा है और त्वरित सुनवाई की जा रही है।

नेता प्रतिपक्ष अब्दुल बारी सिद्दिकी के अल्पसूचित प्रश्न के जवाब में जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा , '' 2011 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 10,231 मामले दर्ज किये गये जबकि 2008 में यह संख्या 8662 थी। महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में कांड का त्वरित अनुसंधान, आरोप पत्र का त्वरित समर्पण और त्वरित सुनवाई कराया जा रहा है। '' उन्होंने कहा कि सहरसा जिले में सौर बाजार क्षेत्र में एक दलित महिला के साथ बलात्कार मामले में 24 घंटे के भीतर आरोपपत्र दाखिल कर तीन लोगों को रिकार्ड समय में सजा आजीवन कारावास की सजा दिलाई गयी।

चौधरी ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की रोकथाम की दिशा में सभी जिलों में महिला थाने स्थापित किये गये हैं, अपराध अनुसंधान विभाग :सीआईडी: में कमजोर वर्ग कोषांग स्थापित है। महिलाओं के अपहरण, बलात्कार आदि के मामले में त्वरित सुनावाई करायी जा रही है। राजद नेता ने आरोप लगाया कि सरकार छलावा कर रही है। महिलाओं के खिलाफ अपराध के 10 हजार मामलों में से केवल एक उदाहरण दिया गया है। सरकार से इन मामलों की सुनवाई त्वरित अदालतों में करवाने की मांग की।

विवाह बचाना है तो रेप कानून को इससे दूर रखें



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नवभारत टाइम्स | Mar 6, 2013, 01.00AM IST
सुधांशु रंजन ॥
केंद्र सरकार ने गृह मामलों की संसदीय समिति की सिफारिश पर वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने से इनकार कर दिया है। संसदीय समिति का तर्क है कि इससे विवाह की संस्था कमजोर होगी। बलात्कार की घटनाएं जिस प्रकार घट रही हैं उससे पूरा देश सहमा हुआ है। हर दिन औरतों के यौन शोषण और उन पर होने वाले हमलों की खबर आती है। यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है जिसका मुकाबला मजबूती से किया जाना चाहिए। किंतु क्या पति भी पत्नी के साथ बलात्कार कर सकता है? क्या वैवाहिक रिश्ते में कोई संवेदनशीलता नहीं होती? यह ऐसा सवाल है जिसे लेकर कुछ महिला संगठन उद्वेलित हैं। जेएस वर्मा समिति की रिपोर्ट के आधार पर केद्र सरकार ने बलात्कार कानून को सख्त बनाने के लिए जो अध्यादेश जारी किया है, उसमें प्रावधान है कि यदि पत्नी की उम्र 16 वर्ष से कम है तो पति भी उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित नहीं कर सकता है। और यदि करता है तो इसे बलात्कार माना जाएगा।

सजा सात साल
भारतीय दंड विधान (आईपीसी) में 15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार माना गया है। अध्यादेश में इस उम्र सीमा को एक वर्ष बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा यदि पति-पत्नी अलग हैं और पत्नी के साथ पति जबर्दस्ती शारीरिक संबंध बनाता है तो इसमें दो वर्ष कैद की वर्तमान सजा को बढ़ाकर सात वर्ष कर दिया गया है। परंतु इस अध्यादेश में वैवाहिक बलात्कार को शामिल नहीं किया गया है और अब सरकार ने अंतिम रूप से निर्णय किया है कि आगे भी ऐसा नहीं किया जाएगा। महिला संगठनों में इसे लेकर काफी आक्रोश है कि वर्मा समिति की पूरी अनुशंसा को अध्यादेश में शामिल नहीं किया गया। उनका मानना है कि पति को भी पत्नी के साथ जबर्दस्ती करने का कोई हक नहीं है क्योंकि वह पति की संपत्ति नहीं होती। वर्मा समिति ने कहा है कि विवाह या कोई अन्य अंतरंग संबंध बलात्कार के खिलाफ बचाव नहीं है, जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि वह इस बारे में राज्य सरकारों से परामर्श करेगी और स्त्रियों की सुरक्षा के लिए अध्यादेश के बदले विधेयक विस्तृत विचार-विमर्श के बाद पेश किया जाएगा।

सदियों पुरानी धारणा
आईपीसी की धारा 375 (1) में पति-पत्नी के बीच बिना रजामंदी के सेक्स को बलात्कार नहीं माना गया है, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक हो। दरअसल, सारी समस्या की जड़ पत्नी को पति की संपत्ति मानने में ही है। इंग्लैंड के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मैथ्यू हेल की पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ द प्लीज ऑफ द क्राउन' (प्रकाशन 1736) में इस धारणा का प्रतिपादन है कि शादी के बाद सेक्स के लिए पत्नी की सहमति हमेशा मानी जाएगी। यह पुस्तक इंग्लैंड में अपराध कानून का आधार बनी। इसी कारण जब लॉर्ड मैकॉले ने भारतीय दंड विधान बनाया तो वैवाहिक बलात्कार को उसमें शामिल नहीं किया। आईपीसी का प्रारूप 1837 से 1860 तक तैयार किया गया। मैकॉले के वापस जाने के बाद कोलकाता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति बार्न्स पीकॉक ने जब इसका अंतिम प्रारूप बनाया तो बाकी मामला ज्यों का त्यों रखते हुए इसमें एक ही प्रावधान किया गया कि 10 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ शारीरिक संबंध को बलात्कार माना जाएगा। 1890 में हरि मोहन मायती मामले में प्रिवी कौंसिल ने यह उम्र 10 से बढ़ाकर 12 करने की सलाह दी। दरअसल, इस मामले में पत्नी फुलोमणि की उम्र 11 वर्ष थी, जिसकी मौत 29 वर्षीय पति से संसर्ग के क्रम में हो गई, लेकिन पति को कोई सजा नहीं हुई।

मैथ्यू हेल की धारणा को 1991 में हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने आर बनाम आर में खारिज किया। 2003 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष साक्षी मामले में वैवाहिक बलात्कार का विषय उठाया गया और हाउस ऑफ लॉर्ड्स के फैसले का हवाला भी दिया गया। परंतु अदालत ने यह दलील यह कहकर ठुकरा दी कि कानून बदलना विधायिका का काम है। महिला संगठनों को शिकायत है कि विधायिका ने भी यह काम अब तक नहीं किया। यह सही है कि पत्नी पति की संपत्ति नहीं है, किंतु वैवाहिक संबंध भरोसे का है। भरोसा खत्म हो गया तो विवाह भी खत्म हो जाएगा। बंद कमरे में पति-पत्नी के बीच क्या हुआ, इसका न तो कोई गवाह होगा, न प्रमाण। यानी पत्नी के आरोप को मानने के अलावा अदालत के पास कोई चारा नहीं बचेगा। हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने तो आर बनाम आर में यह भी कहा था कि पत्नी किसी भी समय सहमति वापस ले सकती है। यानी प्रारंभिक सहमति के बावजूद पति पर बलात्कार का मुकदमा चल सकता है।

सौहार्द ही समाधान
कुछ विधि विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का संविधान स्त्री-पुरुष को बराबरी का दर्जा देता है, लिहाजा औरत को अपने बारे में हर निर्णय लेने का पूरा हक है। पितृसत्तात्मक समाज की सोच के तहत बनाए गए आईपीसी में वैवाहिक बलात्कार दंडनीय नहीं है। परंतु संविधान का अनुच्छेद 15 (1) लिंग के आधार पर भेदभाव की इजाजत नहीं देता और अनुच्छेद 21 सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है। इन अधिकारों के आलोक में आईपीसी को बदलना जरूरी है। विडंबना यह है कि जो वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा उठाने वाले महिला संगठन आईपीसी की धारा 497 और 498 में संशोधन की मांग नहीं कर रहे, जिनमें पत्नी को पति की संपत्ति मानकर चला गया है। परस्त्रीगमन का आपराधिक मुकदमा पुरुष के विरुद्ध चलेगा, महिला के विरुद्ध नहीं, भले ही यह रिश्ता सहमति के आधार पर बनाया गया हो। पुरुष और स्त्री एक दूसरे के पूरक हैं, दुश्मन नहीं। दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है सौहार्द। पुरुषों को नारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए, किंतु नारियों को भी सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने में योगदान करना चाहिए।

सोलह बनाम अट्ठारह



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नवभारत टाइम्स | Mar 7, 2013, 01.00AM IST
सहमति की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल पर ला देने के प्रस्ताव पर समाज में तरह-तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ लोगों की राय है कि यह कदम अगर बच्चों के समय से पहले युवा हो जाने की परिघटना को ध्यान में रखकर उठाया गया है, तो क्या आने वाले दिनों में 10 साल के बच्चों को सहमति से यौन संबंध बनाने का कानूनी अधिकार दे दिया जाएगा?

दरअसल इस बदलाव का संदर्भ कुछ और है। बलात्कार से जुड़े कानूनों के सख्त होने के साथ ही सहमति की आयु को नीचे रखना अनिवार्य हो गया है। दिल्ली रेप कांड और वर्मा कमेटी की सिफारिशों की रोशनी में लाए गए अध्यादेश को कानून की शक्ल देने की प्रक्रिया जारी है। इस आशय के आपराधिक कानून संशोधन विधेयक का जो प्रारूप कैबिनेट के सामने रखा जाना है, उसमें यौन सहमति की उम्र 16 साल कर दी गई है। यानी इससे कम उम्र की लड़की के साथ कोई व्यक्ति यदि उसकी सहमति से भी यौन संबंध बनाता है तो इसे बलात्कार माना जाएगा।

यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि सहमति की आयु 18 वर्ष करने के पीछे भी युवा वर्ग के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह नहीं काम कर रहा था। हाल तक यह उम्र 16 साल ही थी और इसे ऊपर लाने की वजह यह बताई गई थी कि लड़कियों को बहला-फुसला कर उन्हें वेश्यावृत्ति की तरफ धकेलने वाले सहमति की कानूनी उम्र कम होने का भरपूर फायदा उठाते हैं। दूर-दराज के इलाके से किसी 16 साल की लड़की को भगाकर लाने वाला चिकना-चुपड़ा दलाल पुलिस की पकड़ में आ जाने के बावजूद बेदाग छूट जाता था, क्योंकि उसके खिलाफ कोई केस ही नहीं बनता था। गृहमंत्रालय की राय थी कि सहमति की आयु 18 साल कर देने से कम से कम कुछ मामलों में ऐसे लोगों को बलात्कार के केस में अंदर किया जा सकेगा।

इसका दूसरा पहलू यह है- और इसके लिए न सिर्फ तमाम महिला संगठन बल्कि खुद बाल अधिकार आयोग भी आवाज उठाता आ रहा है- कि सहमति की आयु ऊंची होने का सीधा नुकसान अपने परिवारों से बगावत करके शादी करने वाले युवा जोड़ों को उठाना पड़ता है। 19 साल का कोई लड़का अगर 18वें में चल रही किसी लड़की के साथ मंदिर में जाकर शादी कर लेता है तो अक्सर दो भयावह विकल्प उसका इंतजार कर रहे होते हैं। घर जाएं तो खाप पंचायत जैसी कोई चीज उन्हें जान से मार देने का फैसला सुना देगी, और थाने जाएं तो दारोगा साहब लड़के पर बलात्कार का केस लगाकर उसे दस साल के लिए अंदर कर देंगे- भले ही लड़की चीख-चीख कर कह रही हो कि वह अपनी मर्जी से लड़के के साथ आई है।

ऐसे में मासूम लड़कियों को दलालों के जाल से बचाने के लिए एंटी ट्रैफिकिंग कानूनों को बेहतर बनाया जाना चाहिए। सहमति की उम्र को तो नीचे रखना ही उचित है, ताकि नई पीढ़ी अपने भले-बुरे का फैसला अपने विवेक से करे, सिर पर लटकी कानूनी तलवार के डर से नहीं।

भारत में पिछले 3 सालों में 2 लाख 36 हजार 14 बच्चे लापता हुए हैं। सरकार द्वारा जारी आकड़ों में ये बात कही गई है। महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री कृष्णा तीरथ ने आज राज्यसभा में बताया कि साल 2009 से लेकर 2011 तक देश में कुल मिलाकर दो लाख 36 हजार 14 बच्चे गायब हो गए। उनमें से एक लाख 60 हजार 206 बच्चों की तलाश कर ली गई है, जबकि 75808 बच्चे अभी भी लापता हैं।कृष्णा तीरथ ने बताया कि सबसे ज्यादा बच्चे पश्चिम बंगाल से गायब हुए हैं। पिछले तीन सालों में पश्चिम बंगाल से 46,616 बच्चे गायब हुए, जिनमें से 30,516 बच्चों की तलाश नहीं की जा सकी है। पश्चिम बंगाल में बच्चों के गायब होने में लगातार बढोतरी हो रही है। महाराष्ट्र में 42,055 बच्चे लापता हुए जिनमें से 8489 बच्चों का अब तक पता नहीं चल सका है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश से पिछले तीन सालों में 32,352 बच्चे गायब हुए, जिनमें से अब तक 5407 बच्चों का पता नहीं चल सका है।आदिवासी बहुल छत्तीसगढ में 11,536 बच्चे गायब हुए जिनमें से 2986 बच्चों के बारे में अब तक पता नहीं चल सका है। राजधानी दिल्ली में इस दौरान 18,091 बच्चे लापता हुए जिनमें से 2976 बच्चों की जानकारी नहीं है। उत्तर प्रदेश में साल 2010 में एक भी बच्चा गायब नहीं हुआ जबकि 2009 और 2011 में 6965 बच्चे गायब हुए थे, जिनमें से 1775 बच्चों की कोई जानकारी नहीं है।इन बच्चों के साथ क्या गुजरता है, हम इसका महज अंदाजा लगा सकते हैं।

भारत और दुनिया भर में 'निर्भया' के नाम से जानी गई दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़िता को मरणोपरांत यहां 'इंटरनेशनल वूमेन ऑफ करेज अवार्ड' से सम्मानित किया गया।

फिजियोथरेपी की छात्रा रही इस 23 वर्षीय युवती के साथ 16 दिसंबर की रात चलती बस में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना का व्यापक स्तर पर विरोध हुआ था। दुनिया के अलग अलग भागों की बहादुर महिलाओं को प्रतिष्ठित 'इंटरनेशनल वूमेन ऑफ करेज अवार्ड' से सम्मानित करने के लिए कल विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित किए गए इस समारोह में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने दिल्ली की सामूहिक बलात्कार पीड़िता के बारे में कहा कि उसकी बहादुरी ने करोड़ों महिलाओं और पुरुषों को इस संदेश के साथ सामने आने के लिए प्रेरित किया है कि 'और नहीं, बस, अब और नहीं। लिंग आधारित हिंसा अब और नहीं। पीड़ितों और इसका शिकार हुये लोगों के खिलाफ अब और कलंक नहीं।

दिल्ली की 23 वर्षीय इस छा़त्रा की मौत के बाद उसे इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस मौके पर उसके परिवार का कोई सदस्य मौजूद नहीं था। अमेरिका में भारतीय राजदूत निरुपमा राव इस कार्यक्रम में शरीक हुईं। इसमें आठ अन्य महिलाओं को भी बहादुरी पुरस्कार से नवाजा गया। खचाखच भरे सभागार में कैरी ने पीड़िता को बहादुर, निर्भय और बड़े दिल वाली युवती बताया और लोगों से उसकी याद में खड़े हो कर कुछ पल मौन रहने को कहा।

अमेरिका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा की अध्यक्षता में हुये इस कार्यक्रम में विदेश मंत्री कैरी ने कहा कि निर्भया की जंग उसे आज भी जिंदा रखे हुए है। भारत और विश्व में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए लोगों को साथ काम करने की प्रेरणा के साथ हम निर्भया को मरणोपरांत सम्मानित करते हैं।

इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री ने निर्भया के माता पिता द्वारा भेजे गये संदेश को पढ़ा, आज दुनिया के लिये हमारा संदेश है, अपने सम्मान और गरिमा पर कोई हमला बर्दाश्त न न करें, बुरा बर्ताव खामोशी से न सहन करें। पहले महिलाएं यौन अत्याचार का शिकार होने के बाद चुप रहती थीं और सामने नहीं आती थीं।

संदेश में आगे कहा गया है कि वह न पुलिस को इस बारे में सूचना देती थीं और न ही कोई शिकायत दर्ज कराती थीं। यौन उत्पीड़न एक सामाजिक कलंक समझा जाता है और महिलाओं को यह आशंका होती थी कि उन्हें कलंकित माना जाएगा। अब समय बदल गया है, अब डर जा चुका है। उसके (पीड़िता के) साथ जो भयावह घटना हुई उसने महिलाओं को लड़ने और व्यवस्था को सुधारने की ताकत दी है। पीड़िता के अभिभावकों ने संदेश में आगे कहा है कि भारत और दुनिया भर में महिलाएं अब इस सामाजिक धब्बे के साथ नहीं रहना चाहतीं और वह चुप नहीं बैठेंगी। इस घटना ने उनकी सोच बदली है और उन्हें हिम्मत बंधाई है। अब उन्हें यह डर नहीं है कि लोग क्या कहेंगे। अपने संदेश में निर्भया के माता पिता ने कहा कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिसे वह अपनी बेटी सोचते थे, वह एक दिन पूरी दुनिया की बेटी होगी। 'वह दुनिया की बेटी बन गयी। यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

उन्होंने कहा कि वह हमेशा से ही और बच्चों से अलग थी। सब बच्चे तब रोते हैं जब उन्हें स्कूल भेजा जाता है पर वह तब रोती थी जब स्कूल नहीं जा पाती थी। वह एक हंसमुख लड़की थी और संघर्ष के समय में भी खुश रहती थी। हमने अपने तीनों बच्चों को एक समान समझा और बेटी के साथ लड़की होने की वजह से कोई भेदभाव नहीं किया।

निर्भया के माता पिता ने अपने पत्र में लिखा कि उनकी बेटी ने किस तरह गरीबी और अन्य मुश्किलों के बावजूद सफलता हासिल की। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी का सिर्फ एक ही लक्ष्य था कि वह पढ़े और एक चिकित्सक बने।

तरनतारन : लड़की ने दी अनशन की चेतावनी

पंजाब के तरन तारन जिले में छेड़खानी करने वालों के खिलाफ कारवाई की मांग करने पर पुलिसकर्मियों की ओर से लोगों के सामने पीटे जाने का आरोप लगाने वाली लड़की ने रविवार को चेतावनी दी कि अगर सरकार पुलिसकर्मियों को तुरंत बर्खास्त नहीं करती, तो वह भूख हड़ताल करेगी।

इस 22 वर्षीय लड़की ने कहा, 'पंजाब सरकार अगर सोमवार तक उन पथभ्रष्ट पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर न्याय नहीं करती, जिन्होंने लोगों के सामने मुझसे जानवर जैसा व्यवहार किया तो मैं मंगलवार से आमरण अनशन करूंगी।'
लड़की ने आरोप लगाया कि उसके परिवार पर पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज शिकायत वापस लेने का दबाव डाला जा रहा है।

उसने भर्रायी आवाज में कहा, ''यह अत्याचार की पराकाष्ठा है क्योंकि मेरे पिता एवं भाई पर पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज शिकायत वापस लेने के लिये विभिन्न जगहों से लगातार दबाव बनाया जा रहा है।'' लड़की ने कहा कि इस मामले में अभी तक सिर्फ दो पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया, जबकि उसे पीटने में आठ पुलिसकर्मी शामिल थे।

लड़की ने कहा, ''मैं उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करती हूं, जिन्होंने मुझे और मेरे पिता को पीटा। उन्हें बख्रास्त किया जाना चाहिये। मैं इस मामले की जांच कराने की मांग करती हूं।'' इस लड़की ने आरोप लगाया है कि सात मार्च को जब वह एक विवाह समारोह से घर वापस आ रही थी तो एक ट्रक चालक और उसके सहयोगियों ने उससे छेड़खानी की।

उसने आरोप लगाया कि मामले की शिकायत दर्ज कराने एवं उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर वह अपने पिता के साथ पुलिस के पास गयी तो पुलिस ने उसे और उसके पिता को पीटा।

छत्तीसगढ़ में 4 नाबालिग बहनों पर तेजाब फेंका
रायगढ़ : चार नाबालिग दलित बहनें रविवार को उस वक्त जख्मी हो गईं जब यहां एक युवक ने उनपर कथित तौर पर तेजाब फेंका।

घटना के सिलसिले में एक युवक को हिरासत में लिया गया है।

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रफुल्ल ठाकुर ने बताया, चार से 16 साल के बीच के आयुवर्ग की चार बहनें जख्मी हो गईं जब अज्ञात युवक ने कल रात रायगढ़ जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर कोटमारा गांव में उनपर तेजाब फेंका।'

उन्होंने कहा,'उन्हें रायगढ़ मेट्रो अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनमें से तीन की हालत खतरे के बाहर है।' चौथी लड़की की हालत अब भी गंभीर है।

यह घटना उस वक्त हुई जब लड़कियां रात में एक धार्मिक प्रवचन में हिस्सा लेकर लौट रही थीं। हमलावर ने स्कार्फ से अपना चेहरा ढंक रखा था।

इससे पहले कि आस-पास के लोग कुछ करते वह वहां से भाग गया। ठाकुर ने कहा कि कुछ पुरानी शत्रुता इसका कारण हो सकती है। संदेह के आधार पर एक युवक को हिरासत में लिया गया है और उससे पूछताछ की जा रही है।

वह अपनी धूप भी अब खुद बनेगी
वर्तिका नन्दा, पत्रकार व लेखिका
जब एक बड़ा तबका इस शोर में डूबा था कि महिला सशक्त हो चुकी है, एक चीख ने नींद को तोड़ा और कालीनों के नीचे दबे हुए सीलन भरे सवाल एक साथ सामने आ गए। 16 दिसंबर के बाद जो भारत उगा है, वह महिला-विमर्श का एक नया चरण है। अब जब भी महिला सशक्तीकरण, बेखौफ अपराध व उदासीन सत्ता की बात होगी, बदलाव की भाप इस अध्याय से उठती दिखेगी।
आंकड़े कहते हैं कि भारत में पिछले चार दशकों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 875 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अदालतों में बलात्कार के एक लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। बेशक महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सेहत चमकी हुई है। आधी दुनिया के लिए सुंदर नारों के बीच अब भी सिर्फ तीन प्रतिशत महिलाएं जन-संवाद के क्षेत्र में दिख रही हैं, जबकि एक प्रतिशत महिलाएं मंत्री पद पर हैं। अब जरा कुछ तस्वीरें याद कीजिए। प्रताड़ित हुई सोनी सोरी, गुवाहाटी में निर्लज्ज लोगों का शिकार बनी एक आदिवासी लड़की और फिर राजधानी का 16 दिसंबर।
इसमें इस जरूरी बात को कहे बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता कि अगर भारत में मीडिया इतना प्रखर न होता, तो ऐसे अपराध जनता की बहस के केंद्र में आ नहीं पाते। संसद से सडम्क तक जनता का मौन जब चीत्कार में बदला, तो सरकारी जमीन में हलचल हुई और वर्षों बाद ऐसा लगा कि महिला अपराध का विषय अब भी जिंदा है। पर अपराध की परिभाषा सिर्फ इन नपे-नपाए मापदंडों पर कसी नहीं जा सकती।
खैर, निर्भया की मौत से लेकर प्रधानमंत्री के 'ठीक है' से जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट तक सारे हंगामे के बीच हमने देखा वन बिलियन राइजिंग। इसके बावजूद हवा में बिखरे भीगे सवालों के जवाब कहीं नहीं दिखते।
तो हम चूके कहां?
उन दो हफ्तों में भी अपराध नहीं थमे। औरत को लेकर जमकर बयानबाजी हुई। क्या उन आपत्तिजनक टिप्पणियों की वजह से किसी पर कोई कार्रवाई हुई? जब मीडिया ने अपनी त्योरियां चढ़ाईं, तो सुनने को मिला महज एक खंडन। आपराधिक प्रवृत्ति वालों के लिए ऐसे बयान च्यवनप्राश का काम करते हैं। वे समझते हैं, औरत एक ऐसा उत्पाद है, जिस पर जब चाहे, कुछ भी लिखा या कहा जा सकता है। फिर सारी बातचीत उन औरतों पर ही सिमटी रहती है, जिनके लिए अपराध पर बात करना मनोरंजन है या फिर जिनका पीड़ा से कभी सामना हुआ ही नहीं या फिर जिनके हाथ राजनीतिक पैरवी से नरमदार गद्दे की पदवी लगी है, जहां सुख है, पर मन-कर्म नहीं।
औरत को रटी-रटाई भाषा में बताया जाता है कि उसे अपने छिने हुए अधिकारों की बात करनी चाहिए। अन्याय के खिलाफ बोलना चाहिए, शोषण हो, तो थाने जाकर रपट दर्ज करानी चाहिए। पर उसके बाद क्या? एसिड अटैक की शिकार सोनाली मुखर्जी जब कौन बनेगा करोड़पति में यह बताती है कि कैसे उस पर एसिड फेंकने वाला मजे से छूट गया और कैसे उसका पूरा परिवार अपराध की विद्रूपता से अकेले जूझता रहा, तब देश का बडम हिस्सा जान सका कि ऐसा भी होता है। पर ताज्जुब, यह काम क्या कौन बनेगा करोड़पति का था?
फिर उन औरतों का क्या, जो समाज की इस हुंकार को सच मान वाकई अपना अधिकार पाने की आस में थाने चली जाती हैं? आंकड़े जुबान नहीं खोलते कि अपने शोषण का एक पन्ना खोल देने भर से कई बार औरत को अपराधी की तरफ से किस कदर बदनाम किया जाता है, झूठे आरोप लगाए जाते हैं। अपराधी के लंबे हाथ, पुलिस का पथरीला रवैया, अशक्त संस्थाओं और हांफते खर्चीले कानून के बीच औरतें आखिरकार इन संवेदनहीन मकबरों में दोबारा न जाने का संकल्प लेकर लौट आती हैं और हम सरकारी आंकड़ों की यह मीठी मुहर लगा लेते हैं कि महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं। हम अपराध को आंकड़ों में नापते हैं।
अपराध पर लगा थर्मामीटर टीवी स्टूडियो की वार्ताओं में प्रभावी लगता है। लेकिन इस प्रक्रिया में पीडिम्ता आम तौर पर कहीं भी नहीं दिखती। अमूमन अपराध होने से पहले, अपराध के दौरान, अपराध के बाद - इन तमाम स्थितियों में पीडिम्ता का सामना उन तमाम संस्थाओं से होता है, जिनका सृजन औरत के लिए किया गया है। पर कोई भी इन संस्थाओं के बाहर जाकर पीड़िता से यह नहीं पूछता कि उसकी यात्रा कैसी थी?
न्याय व अधिकार दिलाने तथा सशक्त बनाने का दावा करने वाली इन संस्थाओं ने उसके हौसले को कितना बढ़ाया और क्या वह वाकई हुई सशक्त? फीडबैक की कोई प्रणाली नहीं है हमारे यहां। राष्ट्रीय महिला आयोग, राजकीय महिला आयोग, पुलिस की अपराध शाखाएं, प्रोटेक्शन ऑफिसर और फिर खुद अदालतों के भीतर-बाहर पीड़िता के कड़वे अनुभवों पर रत्ती भर बात नहीं होती। औरत बोले या न बोले? उसकी मुट्ठी भींची ही रहे और वह किसी ऊपरी शक्ति से न्याय की उम्मीद करे और चुप रहे या समय का इंतजार करे। दुर्भाग्यवश औरत की चुप्पी का भी कोई आंकड़ा नहीं बनता।
इसलिए कैलेंडर पर चिपके ऐसे दिवसों को सार्थक बनाने के लिए इस यात्रा में पीड़िता को शामिल करना होगा। उन्हें उन पदों पर आसीन करना होगा, जिन्हें महिलाओं की जिंदगी को अपराध मुक्त करने के लिए बनाया गया है। महिलाओं पर चिंता किटी पार्टी नहीं है। अगर हर तीन में से एक औरत पीड़िता है, तो इस मुहिम में उस एक को शामिल कीजिए। सामान्य समझ यही कहती है कि जिसने जिस राह को देखा ही न हो, वह उसका गाइड नहीं हो सकता।
अपराधी के सामाजिक बहिष्कार की आदत अब तक समाज को नहीं है। अपराधी का फेसबुकीकरण और खलनायकी पोर्टफोलियो का शानदार पीआर समाज को दीमक लगाता है। अपराध के पूरे मानचित्र में हम उन संवेदनाओं की जगह तक भूल जाते हैं, जिनकी तकदीर में न्याय का एक अंश तक नहीं आ पाता।
भारतीय औरत ने चांद-सितारों की तमन्ना नहीं की थी। कल्पनाओं और सपनों का वो तिलस्मी संसार कई साल पहले ही टूट और छूट गया। एक टुकड़ा आसमान मांगा था और एक छोटी-सी पगडंडी, जहां कोई उसका दुपट्टा न खींचे और वह नजरें उठाकर चल सके। उसे अब अपनी सड़क, अपना शहर, अपनी नदी, अपना थाना और अपना आयोग खुद ही बनना होगा।
कई बार सरकारी उम्मीदों की टोकरी के बिना जीना कहीं ज्यादा बेहतर होता है। सौ करोड़ पीड़ित औरतों का आपसी संवाद अपराध और अपराधी को बौना करने के लिए काफी है। वैसे सत्ता को यह जान लेना चाहिए कि वह दिन दूर नहीं, जब औरत को उसके आसरे की ज्यादा जरूरत रहेगी भी नहीं। वह अपनी धूप भी खुद बनेगी, अपनी छांव भी और उस दिन खुशी से लहलहा कर कहेगी वह मैं थी..हूं..रहूंगी..। मुझे उस दिन की आहट सुनाई देने लगी है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-314698.html






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