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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, August 31, 2013

विनाश के मुहाने पर सीरिया

पश्चिमी देश जरुर चाहते हैं कि सीरिया में तख्तापलट हो, लेकिन वे रूस और चीन के विरोध के कारण सैन्य हस्तक्षेप से बच रहे हैं. इजरायल भी अपने हितों को देखते हुए असद सरकार को मिटते हुए देखना नहीं चाहता है इसलिए कि असद सरकार जाने के बाद वहां कोई लोकतांत्रिक सरकार नहीं आने वाली...

अरविंद जयतिलक

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-09-22/28-world/4279-vinash-ke-muhane-par-siriya-by-arvind-jaitilak-for-janjwar


दस अप्रैल, 2012 को जब सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के नेतृत्व वाली सरकार और विद्रोहियों के बीच 13 माह से चल रहे गृहयुद्ध पर संघर्ष विराम की सहमति बनी, तो वैश्विक समुदाय को लगा कि शायद अब सीरिया गृहयुद्ध की भयानक त्रासदी से उबर जाएगा. लेकिन पिछले दिनों सीरिया की राजधानी दमिश्क में सेना द्वारा रासायनिक हथियारों के हमले में 1300 से अधिक लोगों का नरसंहार सीरिया को कठघरे में खड़ा कर दिया है.

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बशर अल असद की सेना पर आरोप है कि उसने दमिश्क के उपनगरीय इलाकों आहन तमरा, जोबर और जमालका में विद्रोहियों के ठिकाने पर रासायनिक हमला किया है. हालांकि सीरियाई सरकार ने इससे इंकार करते हुए कहा है कि सरकार को बदनाम और संयुक्त राष्ट्र टीम का ध्यान बंटाने के लिए विद्रोहियों द्वारा जहरीली गैस के इस्तेमाल का अफवाह फैलायी जा रहा है. लेकिन इस हमले का वीडियो दुनिया के सामने आने के बाद सीरियाई सरकार की पोल खुल गयी है.

वीडियो में ऐसे शव नजर आ रहे हैं जिनपर चोट के निशान नहीं हैं यह नर्व गैस के इस्तेमाल की आशंका को बल देता है. बहरहाल सच्चाई जो हो, लेकिन इतने बड़े पैमानें पर लोगों की हत्या सीरिया में शांति के उम्मीदों को पीछे धकेल दिया है. संयुक्त राष्ट्र संघ रासायनिक हथियार के इस्तेमाल की जांच में जुट गया है. अगर प्रमाणित हो जाता है कि सीरियाई सरकार ने जहरीली गैस का इस्तेमाल किया है, तो निःसंदेह उसे अमेरिका जैसी वैश्विक शक्तियों का कोपभाजन बनना पड़ेगा.

अमेरिका सीरिया पर हमले का ताना-बाना बुनना शुरु कर दिया है. उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीरियाई सरकार को चेताया भी था कि अगर वह गृहयुद्ध में घातक रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करती है, तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. अगर अमेरिका और उसके सहयोगी देश सीरिया पर हमला करते हैं, तो स्थिति विस्फोटक होनी तय है. लेकिन इसके लिए सर्वाधिक रुप से सीरिया ही जिम्मेदार होगा. इसलिए कि वह शांति प्रयासों को लगातार हाशिए पर डालता रहा है.

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ और अरब लीग द्वारा नियुक्त शांतिदूत कोफी अन्नान के प्रयासों से 12 अप्रैल, 2012 को सीरिया में संघर्ष विराम लागू हुआ. मोटे तौर पर छह बिंदुओं पर सहमति बनी, लेकिन जून, 2012 में यह समझौता विफल हो गया. संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति दूत लएदर ब्राहीमी भी सीरिया के समाधान का हल नहीं ढूंढ़ सके.

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सीरिया में हिंसा को रोकने और राजनीतिक परिवर्तन करने वाले प्रस्ताव को भारी बहुमत से अगस्त 2012 में स्वीकार किया. इस प्रस्ताव में कहा गया कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद पद छोड़ दें, तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की तरफ से राजनयिक संबंधों को बनाए रखा जाए.

इस प्रस्ताव में यह भी मांग की गयी कि सीरिया अपने रासायनिक तथा जैविक हथियारों को नश्ट करे, लेकिन इस प्रस्ताव का कोई ठोस फलीतार्थ देखने को नहीं मिला. आज स्थिति यह है कि सीरिया संकट पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय विभाजित है. अमेरिका एवं उसके अन्य पिछलग्गू पश्चिमी एवं खाड़ी देश और तुर्की इस मत के हैं कि सीरिया में असद सरकार को हटाकर दूसरी सरकार की स्थापना की जाए. वहीं चीन, रूस और ईरान इसके खिलाफ हैं.

ईरान भी नहीं चाहता है कि सीरिया के मामले में खाड़ी देशों का प्रभाव बढ़े. पश्चिमी देश जरुर चाहते हैं कि सीरिया में तख्तापलट हो, लेकिन वे रूस और चीन के विरोध के कारण सैन्य हस्तक्षेप से बच रहे हैं. इजरायल भी अपने हितों को देखते हुए असद सरकार को मिटते हुए देखना नहीं चाहता है इसलिए कि असद सरकार जाने के बाद वहां कोई लोकतांत्रिक सरकार नहीं आने वाली.

सत्ता उन्हीं इस्लामिक कट्टपंथियों के हाथ में जाएगी, जो इजरायल को करते हैं. यहां उल्लेख करना जरुरी है कि दिसंबर 2012 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा सीरिया में विपक्षी 'नेशनल कोलिशन फॅार सीरियन रिवोल्यूशनरी एंड आपजिशन फोर्सेज' को मान्यता दिए जाने से रूस और चीन बेहद नाराज हैं.

उन्होंने इसे जून, 2012 में पारित जेनेवा प्रस्ताव का उलंघन माना. रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव ने तो यहां तक कहा कि अमेरिका अपने इस कदम के द्वारा सीरिया में असद सरकार को उखाड़ फेंकने का मार्ग तलाश रहा है, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन का मानना है कि चूंकि विपक्षी गठबंधन 'नेशनल कोलिशन फॅार सीरियन रिवोल्यूशनरी एंड आपजिशन फोर्सेज' सीरिया के लोगों की नुमाइंदगी करता है, इसलिए उसे समर्थन दिया जाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि जून, 2012 में जेनेवा में हुई बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसके तहत सीरियाई पक्षों के वार्ता के द्वारा ही समस्या का समाधान ढूंढ़ने पर सहमति बनी.

इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून, पूर्व महासचिव कोफी अन्नान, अरब लीग के महासचिव के अलावा अमेरिका, चीन, रूस, तुर्की, ब्रिटेन, फ्रांस, इराक, कुवैत, कतर के विदेश मंत्री शामिल हुए. जेनेवा घोशणा में सीरिया में सत्ता बदलाव के लिए एक ऐसे व्यापक राष्ट्रीय गठबंधन की बात कही गयी, जिसमें राष्ट्रपति असद की सरकार की भी भागीदारी सुनिश्चित हो.

दिसंबर 2012 में मोरक्को की राजधानी मराकेश में 130 देषों के 'फ्रेंडस आफ सीरिया' समूह के बैठक में सीरियाई विद्रोहियों को सीरियाई अवाम के असल नुमाइंदे के रुप में भी मान्यता दी गयी. लेकिन सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद ने इसकी कड़ी निंदा की. उन्होंने कहा कि कट्टरवादी इस्लामी दल 'जबाश अल नुसरा' जैसे संगठनों को सीरियाई अवाम का प्रतिनिधि मानना न केवल सीरिया की जनता के साथ छल है, बल्कि यह अमेरिका के दोहरे चरित्र को भी उजागर करता है.

समझना कठिन हो गया है कि सीरिया संकट का समाधान कैसे होगा? सीरिया के सवाल पर विश्व जनमत का विभाजित होना सीरियाई संकट को लगातार उलझा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक सीरिया संघर्श में अभी तक एक लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. सीरिया के हालात इस कदर खतरनाक हैं कि वहां रह रहे अन्य देशों के लोग पलायन को मजबूर हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ की षरणार्थी एजेंसी का कहना है कि सीरिया से हर रोज हजारों शरणार्थी सीमा पार कर इराक और लेबनान में शरण ले रहे हैं. एक आंकड़े के मुताबिक सीरिया में विद्रोह शुरु होने के बाद से अब तक 20 लाख लोग देश छोड़ चुके हैं. राजधानी दमिश्क, बानियाज, अलहस्का और डेरहामा में आग लगी हुई है. हर रोज सेना और प्रदर्षनकारी भिड़ रहे हैं.

बदतर हालात से निपटने के लिए असद की सरकार ने अप्रैल 2011 में आपातकाल लागू किया था, लेकिन दो वर्ष भी हालात जस के तस बने हुए हैं. सीरिया के शासक बशर अल असद की सेना विद्रोहियों के दमन पर उतारु हैं, वहीं विद्रोही समूह उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकने पर आमादा है. विश्व समुदाय का दो गुटों में बंटना और अमेरिका का भौहें तरेरना विश्व समुदाय के हित में नहीं है. याद रखना होगा कि जब भी वैश्विक शक्तियां दो गुटों में विभाजित हुई हैं, परिणाम खतरनाक सिद्ध हुए हैं. उचित होगा कि वैश्विक शक्तियां सीरिया संकट का राजनीतिक समाधान ढूंढ़ें.

arvind -aiteelakअरविंद जयतिलक राजनीतिक टिप्पणीकार हैं.

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