Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Wednesday, August 28, 2013

शिक्षकों की निगरानी से बाहर हमारे बच्चों की दुनिया बेहद खतरनाक होती जा रही है, नालेज इकानामी के अंग बनाकर बच्चों को अमेरिकी बनाने की अंधीदौड़ में हम शायद यह भूल रहे हैं।

शिक्षकों की निगरानी से बाहर हमारे बच्चों की दुनिया बेहद खतरनाक होती जा रही है, नालेज इकानामी के अंग बनाकर बच्चों को अमेरिकी बनाने की अंधीदौड़ में हम शायद यह भूल रहे हैं।


पलाश विश्वास


हमारा सौभाग्य रहा है कि स्कूल में पांव रखते ही हमें पीतांबर पंत जैसे प्राइमरी शिक्षके के हवाले हो जाना पड़ा।प्राइमरी के दिनों से ही वे हमें हमारी लड़ाई के लिए तैयार करते रहे। जब हाम जूनियर कक्षाओं में पढ़ते थे तो प्रेम प्रकाश बुधलाकोटि ने हमें उत्पादन संबंधी पाठ पढ़ाते रहे।मार्क्सवाद की बुनियादी शिक्षा हमने उन्हींसे हासिल की। सुरेशचंद्र शर्मा अंग्रेजी के शिक्षक थे और भाषाएं कैसे सीखी जा सकती हैं,हमने उनसे सीखी।जिलापरिषद उच्चतर माध्यमिक हाईस्कूल दिनेशपुर में महेश चंद्र वर्मा भी थे, जिनसे हमने इतिहास बोध सीखा।


लेकिन हमारा असली कायाकल्प जीआईसी नैनीताल में ग्यारहवीं में दाखिला लेने के बाद हुआ। हमारे कक्षा अध्यापक थे हरीश चंद्र सती,.अंग्रेजी के शिक्षक थे जगदीश चंद्र पंत, अर्थशास्त्र पढ़ाते थे सुरेश चंद्र सती।


ताराचंद्र त्रिपाठी जीआईसी में थे और हमारी क्लास लेते नहीं थे। हम कला संकाय में थे और वे विज्ञान संकाय में हिंदी पढ़ाते थे। हमारी परीक्षा  की कापी जांचते हुए हमें उन्होंने पकड़ लिया।


अपने शिक्षकों को रिटायर होने के बुढ़ापा समय में याद करने का कारण आगे खुलासा करेंगे।


हमने आठवीं में पढ़ते हुए जिला परिषद के उस हाईस्कूल में देवनागरी लिपि में बांग्ला प्रश्नपत्र देने के विरुद्ध आंदोलन किया था। हमारी मुख्य मांग बांग्ला लिपि में ही बांग्ला  प्रश्नपत्र देने की थी। हमारी दूसरी बड़ी मांग हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक कुंदन लाल साह की बर्खास्तगी की थी।


वही कुंदनलाल साह जी उस हड़ताल के बाद चपरासी के साथ बसंतीपुर गांव में हमारे खलिहान में मेरे डेरे की तलाशी के लिए चपरासी के माथे पर टोकरी डालकर आते थे। उन दिनों मुझे बाकी गंभीर साहित्य पढ़ने जासूसी साहित्य पढ़ने का शौक था।आज बसंतीपुर पहुंचने के लिए चारों दिशाओं से पक्की सड़कें हैं।उन दिनों हालत यह थी कि खेतों और मेढ़ों से होकर स्कूल तक पहुंचने के लिए हम अंडरवीयर पहने होते थे।पैंट कमीज स्कूल पहुंचने पर ही पहनते थे। कुंदन लाल जी की चिंता थी कि हम वक्त कहीं जाया तो नहीं कर रहे हैं और कीचड़ में लथपथ हमारे खेतों तक पहुंच जाते थे।मेरी गैरजरुरी किताबें उनका चपरासी टोकरी में भरकर ले जाता था।


मैं बाहैसियत पत्रकार नैनीताल जब भी गया, मेरे कार्यक्रम में दर्शकों के बीच हमारे वह गुरुजी जरुर होते थे, जिनको हटाने के लिए हमने आंदोलन किया था।


ताराचंद्र त्रिपाठी से बचना और भी मुश्किल था। तमाम विधाओं और विषयों की अनिवार्य पुस्तकों की सूची बनाकर वे अपने प्रिय छात्रों को थमाते थे। पढ़कर फिर उन्हें कैपिटल कापी में उस पुस्तक का सार लिखकर सौंपना होता था।बाद में जब वे प्रधानाध्यापक बने तो दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थियों के लिए भी इस उन्होंने अनिवार्य कर दिया था।

वे हमेशा गर्व से कहते रहे हैं, `मेरे छात्र दुनिया बदल देंगे।'


बीए द्वितीय वर्ष में जब हम पढ़ रहे थे तब वे अल्मोड़ा में स्थानांतरित हो गये। लेकिन मुझे और मोहन यानी कपिलेश भोज को उन्होंने अपने घर मोहन निवास में डाल दिया। किताबों की सूची जो थी, सो थी, उनके घर में अनगिनत पुस्तकें थीं, जिन्हें हमें पढ़ना था।हमारा पाठ्यक्रम क्या है, यह बेमतलब है, `दास कैपियल' से लेकर `साइकोएनालिसिस' और `मिन कैंफ' तक उस सूची में दर्ज।


मोहन जीआईसी के दिनों से भगवान श्री रजनीश के भक्त था। जीआईसी में बतौर पुस्तकालय इंचार्ज उसने दर्जनों रजनीश पुस्तकें जमा कर लीं और अपने पास रख लीं।बाद में त्रिपाठी जी के कारण वे पुस्तकें उसे वापस भी करनी पड़ी। मोहन `संभोग से समाधि' से उन दिनों बुरी तरह प्रभावित था। हमेशा समाधि में रहने की उसकी आदत थी।


मोहन निवास में रहते हुए उसने अचानक निर्णय लिया की महर्षि वात्सायन से एक कदम आगे बढ़कर कामशास्त्र की पुनर्रचना करनी होगी और इससे ही मोहमय संसार से मुक्ति मार्ग निकलेगा।उसके तर्कों के सामने हम निरुत्तर हो गये।


मोहन अपनी उस महानतम पांडुलिपि में रम गया। लेकिन त्रिपाठी जी की नजर से बचा नहीं जा सकता था। पांडुलिपि उनके हाथ लग गयी।


हम दोनों को तत्काल दो मोटी पुस्तकों फ्रायड की `साइकोएनालिसिस' और हैवलाक एलिस की `साइक्लोजी आफ सेक्स' पढ़ने का आदेश हो गया।


फिर उन्होंने चेतावनी दी कि भारत वर्जनाओं का देश है।इन्हीं वर्जनाओं की वजह से यौनकुंठा भयंकर है। इस वर्जना और कुंठा से मुक्त हुए बिना जीवन में कोई सकारात्मक भूमिका निभाना असंभव है।


जाहिर है कि  यौनशिक्षा को वे अस्पृश्य नहीं मान रहे थे। लेकिन वर्जनाओं और कुंठा से निकालने की दिशा उन्होंने हमें दी।लोग उनसे अक्सर शिकायत करते थे कि सामान्य नहीं हैं आपके छात्र। इस पर वे कहते,सामान्य लोग तो विशुद्ध ग्राहस्थ होते हैं।उनसे कुछ नहीं सधता।


तब सत्तर का दशक था। अमिताभ एंग्री यंगमैन अवतार में छाने लगे थे और समांतर सिनेमा का भी जोर था। तभी गुरुजी ने कहा था कि इस देश में वर्जनाएं टूटेंगी तो उसमें पूरी की पूरी पीढ़ियां खत्म हो जायेगी।


धनाढ्यों और नवधनाढ्यों की महानगरीय यौन अराजकता अब थ्री जी फोर जी स्पेक्ट्रम तकनीक के सौजन्य से गांवों और कस्बों को भी अपनी चपेट में ले रही है।


सत्तर के दशक में भगवान रजनीश और हिपी कल्चर का असर शहरी आबादी तक केंद्रित था।


रैव पार्टियां अब तक बंगलूर और मुंबई जैसे बड़े नगरों में हो रही थी। लेकिन खुले बाजार की संस्कृति में फ्री सेक्स का कारोबार जनपदों को भी तेजी से संक्रमित कर रहा है।


अब गर्भधारण सत्तार दशक की तरह कोई समस्या है नहीं।


सहवास बस सहमति का मामला है।कामोत्तेजक गंध का समय है यह। बच्चे उस गंध के शिकार हो रहे हैं।


तकनीक उनके लिए सेक्सी टूल बन गये है।


माध्यमों में अनवरत विज्ञापनों के मूसलाधार से वे तमाम अनुभव बचपन में ही हासिल करने के फिराक में है।


इस जद्दोजहद में खुला बाजार का फ्री सेक्स उनसे छीन रहा है बचपन।


चिंता की बात यह है कि महानगरों से बाजार के गावों और कस्बों में विस्तृत हो जाने से यह रोग अब संक्रामक  ही नहीं, महामारी है।


जो भारतीय समाज भंकर सनातनी और धर्मोन्मादी है, विवाह संबंधों के जरिये जहां जातिप्रथा अटूट है, सामाजिक अन्याय और असमता को बनाये रखने के लिए कारपोरेट राज की बहाली के लिए जहां धर्मोन्मादी राष्ट्रीयताओं और अस्मिताओं की  बहार है, कन्या भ्रूण हत्या,अस्पृश्यता और आनर किलिंग सामाजिक अहंकार है, सगोत्र विवाह निषिद्ध है,स्त्री जहां यौन दासी हैं, वहीं वर्जनाएं बहुत तेजी से टूटने लगी हैं और इस पर अंकुश की कोई वैज्ञानिक दिशा है ही नहीं।


हिमालयी सुनामी से भी तेज है मुक्त सेक्स का यह सर्वग्रासी उन्माद।


गौर करें कि दिल्ली और मुंबई के बहुचर्चित बलात्कारकाडों में मुख्य अभियुक्त न सिर्फ नाबालिग हैं, बल्कि उनके लिए बलात्कार रोमांस और एडवेंचर का पर्याय है और अपने सेक्स अभियान में वे बालिगों से ज्यादा निर्मम है।


दो चार बलात्कारियों को फांसी की सजा देकर इस फ्रीसेक्स समय में स्त्री कहीं सुरक्षित नहीं है।हर विज्ञापन,हर विधा और हर माध्यम स्त्री को भोग बतौर बेच रहा है। स्त्री भी भोग का सामन बनने की अंदी दौड़ में शामिल है।


इस सिलसिले की शुरुआत लेकिन स्कूली शिक्षा से हो रही है।जहां ्ब पढ़ाई के सिवाय सबकुछ होता है।


स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं हो या न हो,अब हर स्कूल अमेरिकी फ्रीसेक्स और अराजक हिंसा की संस्कृति का उपनिवेश बनता जा रहा है।


वैदिकी सभ्यता के पाठ का हश्र यह है।


अमेरिकी स्कूलों में हथियारों की जो घुसपैठ है, वैसा हमारे यहां हो रहा है।


सबसे खास बात तो यह है कि शिक्षक यह किसी मिशन के लिए नहीं होते अब।नौकरी और कारोबार में फंसे शिक्षकों के नियंत्रण में हैं भी नहीं हमारे  बच्चे।


बच्चों के सुनहरे सपने खत्म हैं और सामाजिक यथार्थ उन्हें हिंसक,क्रूर और बलात्कारी बना रहा है।

रुपया का संकट कृत्तिम है।डालरखोर सत्तावर्ग के ग्लोबल हो जाने के बाद हमारी बेदखली का इंतजाम है यह संकट।


शेयर बाजार के उछलकूद और सांड़ों भालुओं के आईपीएल और उसके चियरिन फरेब से ज्यादा गंभीर मुद्दा है भारतीय देहात और कृषिजीवी समाज का अमेरिकी हो जाना।


सामाजिक पारिवारिक विघटन बाजार की अनिवार्य शर्त है तो यह भी भूलना नहीं चाहिए कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता, राष्ट्र की संप्रभुता का विखंडन भी कारपोरेट व्याकरण है।


सबसे खतरनाक बात तो यह है कि जल जंगल जमीन नागरिकता मानवाधिकार औरर आजीविका से बेदखली की तर्ज पर हम अपने बच्चों से बेदखल हो रहे हैं।


सिंहदवार पर दस्तक बहुत है तेज।

जाग सको तो जाग जाओ भइये।


पसंद के मुताबिक साथी चुनना और स्त्री की यौन स्वतंत्रता ,देहमुक्ति आंदोलन के मुद्दे, महानगरों में लिव इन कल्चर और डेटिंग सामाजिक बंधन को तोड़ रहे हैं। इससे समाज की जड़ता भी टूट रही है।


बलात्कार संस्कृति स्त्री को बाजार में माल बना देने की अपसंस्कृति का ही परिणाम है।इसी बलात्कार संसकृति के मध्य पल बढ़ रहे स्कूली बच्चे बालिगों के यौन आचरण की स्वतंत्रता बिन समझे बूझे आजमा रहे हैं और यह महानगरीय व्याधि ही नहीं है अब, संक्रमित होने लगे हैं गांव देहात।


सबसे खास बात तो यह है कि हमारे शिक्षक जब हमें कहीं भी निगरानी में रखते थे, गाइड करते थे ,दिशाएं तय करते थे हमारी और हम उनकी नजर बचाकर कोई अपकर्म करने का दुस्साहस करने की सपने में भी नहीं सोच सकते थे, वहीं नालेज इकानामी में यह देश अब अमेरिका हो गया है।


स्कूली बच्चे गर्भनिरोधक का खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं अमेरिका की तरह।


हद तो यह है कि स्कूल के कमरे में बच्चे ग्रुप सेक्स भी करने लगे हैं और अपने कुकृत्य को फिल्माकर मोबाइल के जरिये प्रसारित भी कर रहे हैं।


प्रगतिशील जाति वर्चस्ववाले  बंगाल के हुगली जिले के आरामबाग के एक स्कूल में ग्यारहवीं और बारहवीं के बच्चों ने ऐसा ही किया है। यह इलाका दूर दराज का माना जाता है।  


स्कूल के प्रबंधन, शिक्षक और अभिभावक तक घटना की सच्चाई की पुष्टि करते हुए चिंता जता रहे हैं।पूरी खबर ब्यौरेवार देने की जरुरत नहीं है।बांग्ला दैनिक आनंदबाजार पत्रिका में प्रकाशित खबर नत्थी है।


मुद्दा यह नहीं कि बच्चों ने गलती की। मुद्दा यह है कि खुले बाजार खेल में हम बच्चों को सीधे अमेरिकी नागरिक बनाने पर तुले हैं।हादसा होते ही हमारी चेतना अंगड़ाई लेती है और समामाजिक वास्तव का मुकाबला करने के बजाय अत्यंत धार्मिक तरीके से हम नीति प्रवचन करने लगते हैं।


शिक्षकों की निगरानी से बाहर हमारे बच्चों की दुनिया बेहद खतरनाक होती जा रही है, नालेज इकानामी के अंग बनाकर बच्चों को अमेरिकी बनाने की अंधीदौड़ में हम शायद यह भूल रहे हैं।


भड़ास में छपी इस खबर पर भी इसी ालोक में गौर करें।


कुल जमा 15-16 साल की उमर होगी उसकी। लेकिन फ्रेंड के अलावा कोई 15-16 ब्वायफ्रेंड। पूरा इलाका जानता है, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता। सुना है, एक दिन उसकी मां ने उसको "यह सब" करने से रोका तो उसने धमकी दी, घर से उठवा देगी। आमतौर लोग पुलिस से डरते हैं, लेकिन पुलिसवाले भी उससे पनाह मांगते हैं। कोई कह रहा था कि अब तो उसने उगाही, वसूली के कारोबार में भी हाथ डाल दिया है। लड़कियों को लड़के पटाने की ट्रेनिंग अलग से देती है। फीस के बतौर क्या लेती है, पता नहीं लेकिन उसके किस्से बड़े रोचक होते जा रहे हैं।


हिन्दू लड़की है लेकिन उसके नब्बे फीसदी से ज्यादा दोस्त मुसलमान हैं। आमतौर पर मुस्लिम लड़कों के बारे में कहा जाता है कि वे जानबूझकर हिन्दू लड़कियों को "पटाते" हैं लेकिन यह ऐसी बंदी है जो मुसलमान लड़कों का "शिकार'' करती है, सीना ठोंककर। पूरी हिन्दू जेहादी नजर आती है। आंख में आंख डालकर ही बात नहीं करती, खुलेआम हाथ में हाथ पकड़कर बात करती है। कई बातें तो मैं लिख भी नहीं सकता लेकिन वह खुलेआम बोलती है। स्कूटी की सवारी ऊपर से सीख लिया है। अगर आधुनिक हन्टरवाली फिल्म बनानी हो तो बहुत बढ़िया किरदार है। लेकिन क्या करें, भारतीय दंड संहिता की परिभाषा के अनुसार फिलहाल वह नाबालिग है।


[B]विस्फोट डाट काम के एडिटर संजय तिवारी के फेसबुक वॉल से.[/B]



पेश है आनंबाजार की वह खबर



ক্লাসে যৌন সংসর্গ পড়ুয়াদের, ছবি ছড়াল এমএমএসে

পীযূষ নন্দী • আরামবাগ

ফাঁকা ক্লাসঘরে ছয় ছাত্রছাত্রী মেতেছে অবাধ যৌন-সম্পর্কে। মোবাইল ফোনে এমএমএসের (মাল্টি-মিডিয়া মেসেজ) মাধ্যমে সেই ছবি ছড়িয়ে পড়ায় শোরগোল পড়েছে আরামবাগের একটি স্কুল এবং লাগোয়া এলাকায়। দিন পাঁচেক আগের ঘটনাটি নিয়ে যারপরনাই অস্বস্তিতে পড়েছেন স্কুল কর্তৃপক্ষ। ডাকা হয়েছে সংশ্লিষ্ট পড়ুয়াদের অভিভাবকদের। স্থানীয় বাসিন্দাদের একাংশ আবার জড়িতদের দৃষ্টান্তমূলক শাস্তির দাবি তুলেছেন।

স্কুলের বহু ছাত্রছাত্রী এবং এলাকার লোকজনের মোবাইলে মোবাইলে এখন ওই এমএমএস দেখা যাচ্ছে। পরিস্থিতি সামলাতে কাল, বৃহস্পতিবার পরিচালন সমিতির বৈঠক ডেকেছেন স্কুল কর্তৃপক্ষ। প্রধান শিক্ষক আদিত্য খাঁ বলেন, "ওই ছাত্রছাত্রীরা স্কুলের। যে ক্লাসঘরে ঘটনা ঘটেছে তা-ও স্কুলের। এ নিয়ে আর কোনও কথা এখনই বলা যাবে না।" স্কুল পরিচালন সমিতির সম্পাদক কৃষ্ণপ্রসাদ ঘোষ বলেন, "ওই এমএমএস আমি দেখেছি। স্কুলের সুনাম নষ্ট করার জন্য এর পিছনে চক্রান্ত রয়েছে কি না, তা খতিয়ে দেখা হচ্ছে। বৃহস্পতিবারের বৈঠকে সংশ্লিষ্ট ছাত্রছাত্রীদের অভিভাবকদেরও ডাকা হয়েছে। অপরাধ প্রমাণিত হলে ওই ছাত্রছাত্রীদের তাড়িয়ে দেওয়া হবে। দৃষ্টান্তমূলক শাস্তি দেওয়া হবে।"

স্কুলটি আরামবাগ শহরের নামী স্কুলগুলির অন্যতম। স্কুল কর্তৃপক্ষের দাবি, এর আগে সেখানে স্কুলের সুনাম নষ্ট হয়, এমন কোনও ঘটনা ঘটেনি। স্কুল সূত্রে জানা গিয়েছে, ওই এমএমএসে যে সব ছাত্রছাত্রীদের দেখা যাচ্ছে, তারা একাদশ ও দ্বাদশ শ্রেণির। সবাই স্কুলের পোশাকে ছিল। সঙ্গে ব্যাগও ছিল। অন্তত দিন পাঁচেক আগে ওই ঘটনা ঘটে।

তার পরে ঘটনায় জড়িত কোনও ছাত্রের সঙ্গে বাকিদের কোনও কারণে গণ্ডগোল হওয়ায় সে ওই ছবি ছড়িয়ে দেয় বলে প্রাথমিক তদন্তে স্কুল কর্তৃপক্ষের অনুমান।

তবে ঘটনাটিকে অস্বাভাবিক বলে মানতে রাজি নন মনোবিদ জয়রঞ্জন রাম। তিনি বলেন, "কমবয়সীদের মধ্যে যৌন সংসর্গ অস্বাভাবিক কিছু নয়। এখন হাতে হাতে মোবাইল থাকায় হয়তো ওই ছাত্রছাত্রীদের মধ্যে কেউ বদমায়েসি করে ছবি তুলে তা ছড়িয়ে দিয়েছে। ফলে, বিষয়টি নজরে এসেছে।" কিন্তু স্কুলের পোশাকে স্কুলের মধ্যেই যৌনতা?

জয়রঞ্জনবাবুর মতে, "আজকাল আর সামাজিকতার আব্রু বলে কিছু নেই। তারই প্রভাব পড়ছে অল্পবয়সীদের মধ্যে।" সমাজতত্ত্ববিদ অভিজিৎ মিত্র মনে করেন, "অনেক সময়ে দুই ছাত্রছাত্রী যৌন সংসর্গ নিয়ে নিজেদের অপরাধবোধ কমানোর জন্যও আরও কয়েকজনকে দলে জুটিয়ে নেয়। ছবি তুলিয়েও অনেকে আনন্দ পায়। কিন্তু ওরা নিশ্চয়ই জানত না যে কেউ বিশ্বাসঘাতকতা করে ছবি বাইরে ছড়িয়ে দেবে।"

কিন্তু এই ঘটনায় আতঙ্কিত অভিভাবকেরা। ওই এমএমএস তাঁদের অনেকের ছেলেমেয়ের মোবাইলেও চলে এসেছে। ছাত্রছাত্রীদের মধ্যেও জোর আলোচনা চলছে। এক অভিভাবক বলেন, "আমার মেয়ে দশম শ্রেণিতে পড়ে। এখন তো মেয়েকে স্কুলে পাঠাতেই ভয় লাগছে। স্কুলে নজরদারি আরও বাড়ানো উচিত।" একাধিক অভিভাবকের বক্তব্য, "স্কুলের পরিবেশ ক্রমশ খারাপ হচ্ছে। এ সব স্কুল কর্তৃপক্ষের কঠোর ভাবে দমন করা উচিত।"

এই এমএমএস পুলিশের নজরেও এসেছে। যদিও তা নিয়ে মঙ্গলবার রাত পর্যন্ত থানায় কোনও লিখিত অভিযোগ দায়ের হয়নি। পুলিশ জানিয়েছে, বিভিন্ন সূত্রে বিষয়টি খতিয়ে দেখা হচ্ছে। প্রয়োজনে ব্যবস্থা নেওয়া হবে।


No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV