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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, May 27, 2014

सिंगुर में भाजपा ने संभाली आंदोलन की बागडोर,वामनेतृत्व के खिलाफ कार्यकर्ताओं की गोलंदाजी और तृणमूल मंत्रिमंडल में फेरबदल!

सिंगुर में भाजपा ने संभाली आंदोलन की बागडोर,वामनेतृत्व के खिलाफ कार्यकर्ताओं की गोलंदाजी और तृणमूल मंत्रिमंडल में फेरबदल!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


जिस सिंगुर की धरती से किसानों की जमीन बचाने का आंदोलन शुरु करके आखिरकार बंगाल में 34 साल के वाम शासन काअंत करने में कामयाब हो गयीं बंगाल की अग्निकन्या ममता बनर्जी जो अब मां माटी मानुष की सरकार की मुख्यमंत्री है,उसी सिंगुर में सिंगुर भूमि बचाओ आंदोलन के नेता कार्यकर्ता साथ लेकर भाजपा ने टाटामोटर्स की पिटी हुई लाख टकिया गाड़ी को बचाने का आंदोलन शुरु कर दिया है।


बंगाल के केसरिया कायाकल्प का यह अंदाज शायद उसीतरह नजरअंदाज हो जाये जैसे तब सत्ताधारी वाम वर्चस्व को अनागत भविष्य की आहट दुःस्वप्न में भी सुनायी नहीं पड़ी।


बंगाल में जाहिर है कि गुजरात माडल के विकास के लिए माहौल बनने लगा।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बंगाली नेटवर्क विस्तार में लगे केसरिया ब्रिगेड ने सिंगुर को ही अंततः दीदी के परिवर्तन राज के खात्मे के कर्म कांड के लिए चुना है।इसी बीच बंगाल प्रभारी भाजपा प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा, 'पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मुझे कहा है कि राज्य में 2016 विधानसभा चुनावों को नजर में रखते हुए इस प्रदर्शन को मजबूती देना चाहिए।


गौरतलब है कि वाम मोर्चे की पार्टियों के बीच रिश्तों में सबसे अधिक खटास सिंगुर-नन्दीग्राम प्रकरण से आई. औद्योगिकरण एक समस्या थी, जिसे लम्बे समय तक टालते रहना उचित नहीं था. लेकिन ठीक वही काम किया गया. बाद में, जब इस काम में हाथ लगाया, तो वाम सरकार शहरीकरण और औद्योगीकरण की पूंजीवादी अंधी दौड़ में ऐसे शामिल हो गयी कि भूमि सुधार करने वाली पार्टी जबरन जमीन अधिग्रहण के लिए जनसंहार संस्कृति की झंडेवरदार हो गयी।यह सिलसिला भी सिंगुर से शुरु हुआ।विडंबना तो यह है कि लाल से हरे में तब्दील सिंगुर में अब केसरिया प्रबल है।


गौरतलब है कि  कि जंगलमहल की सभी पांच सीटों पर 1951 से 1971 तक कांग्रेस का कब्जा रहा जबकि 1977 से 2009 तक जंगलमहल की सभी लोकसभा सीटों पर वामो का कब्जा रहा। लेकिन नंदीग्राम, सिंगुर जमीन आंदोलन और जंगलमहल की नेताई हत्याकांड का नतीजा यह हुआ कि आदिवासीबहुल जंगल महल में न सिर्फ वाम सफाया हो गया,बीते दिनों की अभिनेत्रियां संध्या राय और मुनमुन ने वाम सासदों को भारी मतों से हरा दिया। बांकुड़ा से जहां नौ बार के सांसद वासुदेव आचार्य मुनमुनसे हार गये,वहीं गीता मुखर्जी और गुरुदास दासगुप्त के प्रतिनिधित्व के लिए मशहूर घाटाल से बांग्ला फिल्मों के सुपर स्टार देब जीत गये।


लेकिन नेतृत्व बदलने की मांग पर वामदलों से प्रतिक्रिया में एक के बाद एक नेता और कार्यकर्ता निकाले जा रहे हैं।


इसी के मध्य देश के नमोमय केसरिया कारपोरेट कायाकल्प हो जाने के मध्य लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बंगाल में सत्ता संघर्ष घमासान है।


लोग बता रहे हैं कि चौतीस साल के वाम राज के अवसान के बाद लोकसभा में तृणमूल को चौतीस सीटें अशनिसंकेत है।चौतीस साल में वाम पटाक्षेप हुआ तो चौतीस सीटों से दीदी की विदाई की घंटी भी घनघनाने लगी है।


असल में फिलवक्त बंगीयराजनीतिक परिदृश्य में चहुंदिशा लहलहाते दिगंत दहकते कमल के बावजूद वास्तविक चुनौती कोई है नहीं।लेकिन सबसे ज्यादा हड़कंप दीदी के खेमे में है।अपने ही विधानसभा इलाके में पिछड़ी दीदी के तेवर चुनाव नतीजे के बाद से आज तक ढीले हुए नहीं हैं।सीबीआई हरकतों के मध्य तेजी से केसरिया हो रहे बंगाल की नब्ज पकड़ने की हरचंद कोशिश में लगी हैं दीदी।जाहिर है कि सिंगुर में केसरिया हलचल से उनकी बेचैनी कम तो कतई नहीं होने वाली है।


लोकलुभावन घोषणाएं तीन साल में खूब हुई हैं,पर परियोजनाओं को पूरा करने के लिए कोषागार फांका है।बहुचर्चित पीपीपी माडल और विकास के मामले में अव्वल नंबर होने के दावों वाले थोक सरकारी विज्ञापन नमो शपथ ग्रहण के दिन ही कोलकाताई अखबारों में छपवाने और मिष्टिमुख के लिए शारदा चर्चित सांसद मुकुल राय और वित्तमंत्री ्मित मित्र को रायसीना हिल्स भेजने से खस्ता हाल आर्थिक दिशा दशा सुदरने के भी आसार नहीं है और आसनसोल में पराजय के साथ समूचे औद्योगिक अंचल में पद्मगंधी तेज हवाओं के मध्य कारोबारी उम्मीदें पूरी करने में अब भी नाकाम हैं मां माटी मानुष की सरकार।


सोशल इंजीनियरिंग के लगातार ध्रूवीकरण के खतरे भयंकर प्रकट है।सो ,दीदी राजकाज के मार्फत ही नये सिरे से किले बंदी कर रहीं हैं।


सारे उपनगरीय इलाकों को महानगरीय सांचे में डालकर विकास का सूप पिलाने के लिए सात सात नगरनिगम की घोषणा करते करते न करते दिल्ली में नमो राज्याभिषेक के वक्त नजरुल चित्र पर माल्यार्पण से फेडरेल फ्रंट का श्राद्धकर्म पूरा करने के बाद उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल कर दिया है।


दूसरी ओर,वाम पक्ष में भारी घमासान है।वैचारिक बहस के लिए वामपंथी विश्वप्रसिद्ध है और सैद्धांतिक बहस में वामप्रतिबद्ध छूट किसी को नहीं देते। लेकिन बंगाल में कोई वैचारिक बहस का नया अध्याय शुरु हुआ हो,ऐसा भी नहीं है।


वाम जनाधार केसरिया हो गया है और जनता ने वाम को खारिज कर दिया है तो आवाम की ओर से किसी नये वाम की सुगबुगाहट भी कहीं नहीं है।बंगाल में ममता बनर्जी मुख्यमंत्री, केंद्र में नरेंद्र मोदी पीएम, भाजपा की बढ़ी ताकत और बंगाल में बढ़े वोट प्रतिशत और सीट संख्या, इन सब फैक्टर से राजनीतिक पंडित वाममोर्चा के 'पालिटिकल प्रास्पेक्ट' को लेकर इतने निराश हो गए हैं कि उन्होंने मान लिया है कि 2016 का विधानसभा चुनाव इसके लिए लास्ट लाइफ लाइन जैसा हो सकता है। अपनी मौजूदा शर्मनाक पराजय से 2016 के चुनाव में न उबर पाने की स्थिति में वाम राजनीति बंगाल में अप्रासंगिक होकर हमेशा के लिए दम तोड़ देगी, ऐसा राजनीतिक विश्लेषक पक्के तौर पर मानने लगे हैं।


सत्तासुख विपन्न अस्तित्वसंकट से सत्तासंस्कृति के वरदपुत्र पुत्री कांग्रेसियों की तरह वामपक्ष में भी महाभारत का मूसलपर्व चालू हो गया है। नेतृत्व मध्ये प्रलयंकर बहसाबहसी अफरातफरी बक्स हेराफेरी का विचित्र किंतु सत्य परिवेश है तो सत्ता बेदखलघटकदलों में बगावती बारुदी उत्तेजना है जिसका अभूतपूर्व विस्फोट माकपा मुख्यालय अलीमुद्दीन स्ट्रीट में आज हुई वाममोर्चा की बैठक में विमान बोस,बुद्धदेव और प्रकाश कारत,सीताराम येचुरी के सेमिनारी नेतृत्व के खुले आरोपों के मध्य हो गया।


संत्रास जाप करने वाले नेता उत्पीड़ित कार्यकर्ताओं के साथ खड़े होने का कष्ट नहीं उठाते और असुरक्षित वाम कार्यकर्ता सिर्फ सुरक्षा के लिहाज से तेजी से केसरिया हुए जा रहे हैं,ऐसे आरोप भी लगे।नेताओं के कार्यकर्ताओं और जनता के साथ कटे होने की आरोपवृष्टि मध्ये मुख्यालय के बगल में ही बहिस्कृत और नाराज युवा छात्र कार्यकर्ताओं ने अलग से गोलंदाजी कर दी।ऐसा विद्रोह वाम नेतृत्व के खिलाफ कभी हुआ हो तो बतायें।


बहिस्कृत वाम नेता रज्जाक मोल्ला ने नेतृत्व परिवर्तन के लिए वामदलों में खासतौर परमाकपा में विद्रोह और तेज होने की चातावनी दे दी है तो पार्टी में बहिस्कृत नेताओं की बहाली की मांग तेज होने लगी है।सोमनाथ चटर्जी की वापसी के लिए अलग मुहिम भी चल पड़ी है।


प्रभात खबर के मुताबिक लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद माकपा में भी विरोध व बदलाव की आवाज उठने लगी है। पार्टी नेतृत्व हालांकि इस ओर ध्यान न दे कर विरोध के सुर को कमजोर करना चाह रहा है। पर ऐसा लगता नहीं है कि नेतृत्व अपने मकसद में कामयाब हो पायेगा। विरोध की आवाज कम होने के बजाय और भी बुलंद होने लगी है।


सभी दलों की नजर अब अगले वर्ष होने वाले कोलकाता नगर निगम के चुनाव पर टिक गयी है। इस बीच 111 नंबर वार्ड के माकपा पार्षद चयन भट्टाचार्य ने भी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी है।


अपने फेसबुक अकाउंट पर श्री भट्टाचार्य ने लिखा है कि माकपा समेत सभी वामदलों में सबसे बड़ी समस्या सुविधावाद का जोर पकड़ना है। पिछले 20 वर्ष में यह किसी जानलेवा वायरस की तरह पनपा है। इसके लिए दल के सभी स्तर पर मध्य वर्ग का वर्चस्व हो जाना है। यही कारण है कि पिछले 15-20 वर्ष के दौरान किसानों व श्रमिकों के बीच से कोई नेता उभर कर सामने नहीं आया। पार्टी नेतृत्व की क्षमता पर सीधे सवाल उठाते हुए श्री भट्टाचार्य लिखते हैं कि हमारी पार्टी के कामकाज को जो लोग संभालते हैं, उनमें से अधिकतर का राजनीतिक ज्ञान अधूरा है। पार्टी की रणनीति, रणकौशल आदि के बारे में उनकी सोच स्पष्ट नहीं है। इसके साथ ही श्री भट्टाचार्य यह भी मानते हैं कि ऊपर से लेकर निचले सभी स्तर पर पार्टी में बुराई आ गयी है।



दैनिक जागरण में छपी एक रपट के मुताबिक वर्ष 2011 में विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद माकपा के राज्य सचिव विमान बोस के हटने की मांग भले ही नहीं उठी हो, लेकिन इस लोकसभा चुनाव के बाद यह स्वर सुनाई पड़ने लगा है। लोकसभा के चुनावी नतीजों का विश्लेषण और मंथन करने के बाद अनुभवी राजनीतिक पंडित यह भी कह रहे हैं कि बंगाल में कांग्रेस और माकपा की राजनीतिक जमीन को भाजपा बड़े स्केल पर हथिया कर मुख्य विपक्षी दल बनने की क्षमता तक हासिल कर सकती है। दक्षिण कोलकाता संसदीय सीट के भवानीपुर विस सेग्मेंट में भाजपा ने तो सत्तारूढ़ तृणमूल को ही पछाड़ कर सबको चकित कर दिया है। यह भवानीपुर इलाका खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का विधानसभा क्षेत्र है।


लोगों की यह भी राय बन गई है कि माकपा के पास नए दौर की सोच नहीं है, कोई विजन नहीं है। उसकी राजनीति तीन-चार दशक पुरानी है। सफेद बालों और धोती कुर्ता वाले माकपा के उम्र दराज और वृद्ध नेताओं के पास राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ज्वलंत मुद्दों पर भले ही अच्छे विचार हों, लेकिन युवाओं के लिए कुछ वे खास डेलिवर करने स्थिति में नहीं है, वहीं मुकाबले में भाजपा के आक्रामक हाईटेक प्रचार और नरेंद्र मोदी के युवाओं में सपने जगाने की कला ने बंगाल में पार्टी का वोट गुणात्मक तौर पर बढ़ा दिया है। बंगाल में हाल के वर्षो में वाम दलों को नए युवा मेम्बर बनाने में कोई सफलता नहीं मिली है, जो बचे खुचे युवा कार्यकर्ता थे उन्होंने 2011 की हार के बाद इसे गुड बाई कर दिया।


यादवपुर विवि के सेंटर फार क्वालिटी कंट्रोल से जुड़े एक प्रोफेसर कहते हैं कि साढ़े तीन दशक के अपने लम्बे शासन में बंगाल में बुनियादी जरूरतों तक को डेलिवर न कर पाना वाम शासन की बहुत बड़ी नाकामी है। राजनीतिशास्त्र के कुछ वरिष्ठ अध्यापकों का भी यह मानना है कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, और भाजपा के तीन तरफा दबाव में माकपा को अपनी खोई राजनीतिक जमीन और विस्तृत लाल साम्राज्य शायद ही दोबारा मिले। चुनावी हार के बाद माकपा के बड़े नेता हताशा में समर्थकों को कुछ समय तक निष्क्रिय रहने और राजनीतिक घटनाक्रम देखने की सलाह दे रहे हैं। वहीं महानगर में माकपा और कांग्रेस की हार की कीमत पर बढ़ी अपनी ताकत से भाजपा अब 2015 के कोलकाता नगर निगम चुनाव की रणनीति तय करनी शुरू कर दी है।



ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल में फेरबदल


पश्चिम बंगाल में अपने 18 महीने पुराने मंत्रिमंडल में फेरबदल करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आगामी पंचायत चुनावों को ध्यान में रखते हुए बुधवार को आठ नये चेहरों को शामिल किया। नये चेहरों में ज्यादातर सदस्य ग्रामीण क्षेत्र की पृष्ठभूमि वाले हैं।खास बात यह है कि दीदी के परिवर्तन में खास रोल निभाने वाले परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवियों को भी दीदी के गुस्से की आंच का अहसास होने लगा है।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करते हुए कई मंत्रियों का विभाग बदल दिया है। इसके अंतर्गत शिक्षा मंत्री व बंगाल के विशिष्ट रंगकर्मी  व्रात्य बसु को पर्यटन विभाग का कार्यभार सौंपा गया है जबकि उनके स्थान पर सूचना प्रसारण व आईटी मंत्री पार्थ चटर्जी को शिक्षा मंत्रालय का दायित्व दिया गया है। मुख्यमंत्री ने राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्र पर एक बार फिर से भरोसा जताते हुए उन्हें सूचना व आईटी विभाग का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा है। अमित मित्र के पास पहले से ही वित्त व उद्योग मंत्रालय है। अब वे तीन महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी संभालेंगे।


समझा जाता है कि बहुचर्चित शिक्षकों की नियक्ति संबंधी  टेट घोटाले की वजह से व्रात्य बसु के पर कुतर दिये गये। चुनाव प्रचार के दौरान बंगाल में अपने छापामार अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी ने टेट घोटाले की खूब चर्चा की थी।दूसरी तरफ,मदन मित्रा, अरूप बिस्वास, सुब्रत साहा, मंजुलकृष्ण ठाकुर और चंद्रिमा भट्टाचार्य को राज्य मंत्री से पदोन्नत करके कैबिनेट पद सौंपा गया है।


मंजुल कृष्ण ठाकुर मतुआ माता वीमापाणि देवी के सुपुत्र हैं तो मतुआ वोटों पर वर्चस्व कायम करने के सिलसिले में उनकी पदोन्नति समझी जा सकती है।


लेकिन मदन मित्र पर शारदा फर्जीवाड़े मामले में घनघोर गंभीर आरोप है।पार्टी में मुकुल राय का ओहदा बनाये रखकर और शताब्दी व अर्पिता घोष को सांसद बनाकर दीदी ने फिर संदेश दे दिया कि वे शारदा फर्जीवाड़े मामले में,जिनमें वे खुद और उनके परिजन आरोपों के घेरे में हैं,अपना आक्रामक तेवर बनाये रखने वाले हैं,वहीं टेट घोटाले में वे किसी का बचाव करने के मूड में नहीं हैं।



उधर लोकसभा चुनाव में जिन दो जिलों में तृणमूल का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा उन जिलों के मंत्रियों के विभाग वापस ले लिये गये हैं। मुर्शिदाबाद जिले के सुब्रत साहा से खाद्य प्रशंस्करण विभाग लेकर कृष्णेन्दु नारायणन चौधुरी के दे दिया गया है। कृष्णेन्दु अब तक पर्यटन विभाग का काम देख रहे थे। इसी तरह मालदा जिले की सावित्री मैत्र से महिला व बाल कल्याण विभाग लेकर शशि पांजा को दे दिया गया है। सावित्री व सुब्रत फिलहाल बिना विभाग के मंत्री रहेंगे।


उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में ४२ में से ३४ सीटें जीतने वाली तृणमूल को मुर्शिदाबाद व मालदा जिले में एक भी सीट नहीं मिली थी।



आठ नये  सदस्यों में छह तृणमूल कांग्रेस के वर्तमान विधायक हैं जबकि दो अन्य सदस्य कृष्णेंद्रू नारायण चौधरी और हुमायूं कबीर कल ही कांग्रेस से तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए हैं। ममता बनर्जी सरकार ने कल सत्ता में 18 महीने पूरे किये हैं।


इस फेरबदल का उददेश्य उन छह पदों को भरना है जो कांग्रेस द्वारा ममता बनर्जी सरकार से हटने के बाद इस पार्टी के मंत्रियों के इस्तीफे के बाद खाली हुई थीं। पांच वर्तमान सहित 13 मंत्रियों को राज्यपाल एमके नारायणन ने राजभवन में एक सामान्य समारोह में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्य और विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी सहित कई अन्य गणमान्य लोग इस मौके पर उपस्थित थे।


नये चेहरों कृष्णेंद्रू चौधरी और राजीव बनर्जी को भी कैबिनेट पद दिया गया है। मोंतुराम पाखिरा, गयासुद्दीन मुल्ला, पुंडरिकाक्ष साहा, हुमायूं कबीर, बेचाराम मन्ना और स्वप्न देबनाथ छह नये राज्यमंत्री हैं।


हिंदुस्तान मोटर्स को लेकर बंगाल सरकार ने बैठक बुलाई


पश्चिम बंगाल के श्रम विभाग ने हिंदुस्तान मोटर्स को लेकर जारी गतिरोध को दूर करने के लिए एक त्रिपक्षीय बैठक बुलाई है। कंपनी ने शनिवार को उत्तरपाड़ा संयंत्र में काम निलंबित करने की घोषणा की।


धन की भारी किल्लत और एंबेसडर कारों की सुस्त मांग से परेशान कंपनी प्रबंधन द्वारा संयंत्र में काम निलंबित करने की घोषणा से कारखाने के करीब 2,500 कर्मचारियों का भविष्य अधर में लटक गया है जिनमें प्रबंधकीय विभागों के कर्मी भी शामिल हैं।


राज्य के श्रम आयुक्त जावेद अख्तर ने बताया, 'श्रम विभाग ने हिंदुस्तान मोटर के मुद्दे पर कल श्रम उपायुक्त के कार्यालय पर एक त्रिपक्षीय बैठक बुलाई है। अख्तर ने कहा, 'कंपनी के उत्तरपाड़ा संयंत्र में काम निलंबित करने की घोषणा की है। हमारा प्रयास रहेगा कि हम हिंदुस्तान मोटर्स प्रबंधन को तालाबंदी हटाने के लिए राजी करें।' कंपनी के मानव संसाधन पेशेवरों ने बताया कि कोई भी प्रबंधन धन की कमी या उत्पाद की सुस्त मांग के चलते तालाबंदी की घोषणा नहीं करता। 'वित्तीय संकट या मांग में गिरावट के मामले में कर्मचारी किसी भी तरह जिम्मेदार नहीं है और बाजार की स्थितियों का अध्ययन कर उसके मुताबिक कार्रवाई करने में प्रबंधन विफल रहा है।'


पश्चिम बंगाल से 10 बांग्लादेशी गिरफ्तार

गौरतलब है कि बंगाल में ध्रूवीकरण का खेल श्रीरामपुर में नरेंद्र मोदी की चुनाव सभा से शुरु हुआ,जहां तीसरे चरण के मतदान से ऐन पहले मोदी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाल फेंकने की घोषणा कर दी तो दीदी ने मोदी के खिलाफ बाकायदा जिहाद का ऐलान कर दिया।इस बीच बांग्लादेशी करार देकर झारखंड से लोगों को निकाला गया चुनाव नतीजा आने से पहले।तो अब बंगाल में भी पुलिस ने वैध कागजात के बगैर घूम रहे 10 बांग्लादेशियों को रविवार को गिरफ्तार किया। पुलिस के अनुसार, इन लोगों को एक बस की तलाशी के दौरान गिरफ्तार किया गया। बस दक्षिणी दिनाजपुर जिले में स्थित बालूरघाट जा रही थी।


बालूरघाट में पुलिस अधिकारी स्वपन बनर्जी ने बताया, "हमने बालूरघाट आ रही एक बस से कुछ बांग्लादेशियों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया है। उनके पास वैध कागजात नहीं थे।" गौरतलब है कि हाल के महीनों में पुलिस और सीमा सुरक्षा बल ने करीब 100 बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया है जो अवैध तरीके से पश्चिम बंगाल आए थे।


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