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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, July 13, 2015

सानिया,सुमीत और पेस के मजहब का क्या? दरअसल नफरत के खिलाफ यह हुआ मुहब्बत का कारनामा दरअसल रब से कोई कर लें मुहब्बत तो इबादत करें न करें,इबादत फिर मुकम्मल है फिर इंसानयत के जज्बे से बड़ा कोई रब भी नहीं है यारों और मजहब किसी वतन काा होता नहीं है और इंसानियत के भूगोल का कोई बार्डर कहीं नहीं होता आइये, हमारी बेटियों की जीत का जश्न मनायेंं,बूढ़ापे के जोश को करें सलाम और जवानी को गले लगायें! क्योंकि ख्वाहिशों और ख्वाबों का कोई मजहब होता नहीं है,मजहबी हो जाये सियासत पूरी की पूरी लेकिन वतन कोई मजहबी होता नहीं है। माना कि इन दिनों ख्वाहिशों और ख्वाबों के खिलाफ बेपनाह बेइंतहा फतवे दनादन दस्तूर हुआ है कातिल जमाने का,किसी ख्वाहिश या क्वाब पर मुकम्मल कोई पहरा होता नहीं है और चिड़िया पर न मार सकें,इंसानियत को मजहबू दीवारों में बांटने का कोई बंदोबस्त मुकम्मल हो नहीं सकता। पलाश विश्वास

सानिया,सुमीत और पेस के मजहब का क्या?

दरअसल नफरत के खिलाफ यह हुआ मुहब्बत का कारनामा

दरअसल रब से कोई कर लें मुहब्बत तो इबादत करें न करें,इबादत फिर मुकम्मल है

फिर इंसानयत के जज्बे से बड़ा कोई रब भी नहीं है यारों और मजहब किसी वतन काा होता नहीं है और इंसानियत के भूगोल का कोई बार्डर कहीं नहीं होता

आइये, हमारी बेटियों की जीत का जश्न मनायेंं,बूढ़ापे के जोश को करें सलाम और  जवानी को गले लगायें!

क्योंकि ख्वाहिशों और ख्वाबों का कोई मजहब होता नहीं है,मजहबी हो जाये सियासत पूरी की पूरी लेकिन वतन कोई मजहबी होता नहीं है।


माना कि इन दिनों ख्वाहिशों और ख्वाबों के खिलाफ बेपनाह बेइंतहा फतवे दनादन दस्तूर हुआ है कातिल जमाने का,किसी ख्वाहिश या क्वाब पर मुकम्मल कोई पहरा होता नहीं है और चिड़िया पर न मार सकें,इंसानियत को मजहबू दीवारों में बांटने का कोई बंदोबस्त मुकम्मल हो नहीं सकता।



पलाश विश्वास

भाई आरिफ जमाल ने लिखा हैः


ईद की ख़ुशी दोगुनी हो गई --- विंबलडन में भारत की एक के बाद एक जीत का झंडा लहराया --- भारत के लिएंडर पेस ने मिक्स्ड डबल्स में , 17 साल के सुमित नागल जूनियर डबल्स चैंपियन में और सानिया मिर्जा ने वूमंस डबल्स का खिताब जीत कर ----- देश का नाम खेल के विश्व पटल पर रोशन करने के लिए -- तीनों होनहार खिलाडियों को बधाई।


जिनकी नजरें मजहब के इंसानी दायरे में कैद हैं,वे इंसानियत का जज्बा समझ नहीं सकते।ईद के पाक मौके पर माहे रमजान की इबादत और नमाज के बीच किसी मुसलमाऩ की और से इस बधाई  का मतलब बहुत मायनेवाला मजमूं है हालांकि हम जानते हैं आरिफ भाई हमारे हमपेशा कलमची हैं।


दरअसल उनने मुसलमान सानिया,ईसाई पेस और हिंदू सुमित की जीत पर इंसानियत का एक भूगोल मुकम्मल तामीर की है,जो दरअसल भारत देश हमारा है,जहां फासिज्म भले राजकाज और राजधर्म हो,लेकिन वह इंसानियत का मजहब कतई नहीं है।


तो नागरिकों औ नागरिकाओं ,बताइयें तो जरा

सानिया,सुमीत और पेस के मजहब का क्या?


हमारी मानें तो यह नफरत के खिलाफ मुहब्बत का कारनामा!

हमारी बिटिया जो पाकिस्तान की बहू भी है,उसका जज्बा भी तो देखिये!

मुहब्बत का कोई वतन होता नहीं है दरअसल,दरअसल मुहब्बत का भूगोल ही मुक्म्मल जहां है।मुकम्मल जहां लेकिन हर किसी को मिलता नहीं है।जिसे मिल जाता है ,उसका नफरत की आंधियां और सुनामियां कुछो बिगाड़े सकै नहीं है।


जरा याद कीजिये कि भारत का तिरंगा फहराने वाली हमारी इस मुसलमान बिटिया के खिलाफ क्या क्या कहा नहीं गया!


याद कीजिये,कि ओलंपिक,डेविस कप से लेकर प्रोफेशनल टोनिस में ईसाई लियेंडर पेस को हमने बाकी खिलाड़ियों के मुकाबले,विज्ञापनों में चमकते दमकते चेहरों के मुकाबले आखिर कितनी तरजीह दी है तभी हम सुमित के लिए भी अागे की सीढ़ियों पर कामयाबी के झंडे फहराने ख्वाहिशों के हकदार होते हैं!


क्योंकि ख्वाहिशों और ख्वाबों का कोई मजहब होता नहीं है,मजहबी हो जाये सियासत पूरी की पूरी लेकिन वतन कोई मजहबी होता नहीं है।


माना कि इन दिनों ख्वाहिशों और ख्वाबों के खिलाफ बेपनाह बेइंतहा फतवे दनादन दस्तूर हुआ है कातिल जमाने का,किसी ख्वाहिश या क्वाब पर मुकम्मल कोई पहरा होता नहीं है और चिड़िया पर न मार सकें,इंसानियत को मजहबू दीवारों में बांटने का कोई बंदोबस्त मुकम्मल हो नहीं सकता।


मेरी जीत मेरे देश की लड़कियों को प्रेरित करेगी: सानिया

शाबास बिटिया।हम अपनी किसी बिटिया का मजहब नहीं देखते।अपने वतन की और इंसानियत के भूगोल की हर बिटिया हमारी बिटिया है और दरअसल हकीकत की जमीन पर हमारी कोई बिटिया है नहीं।अपने वतन की हर बिटिया को अपना मान लें तो अपनी कोई बिटिया हो न हो,दिलोदिमाग में कमसकम इंसानियत के जज्बे को कोई कातिल मार सकें,ऐसा मौका भी नहीं है यकीनन।


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