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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, July 10, 2015

ज्योतिष की नींव पर विकसित हुआ है विज्ञान

ज्योतिष की नींव पर विकसित हुआ है विज्ञान
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आईएएस संवर्ग में शीर्ष पर रहने वाली इरा सिंघल परिणाम घोषित होते ही देश
भर में लोकप्रिय हो गईं। समाज का हर वर्ग न सिर्फ उन्हें जान गया, बल्कि
इरा सिंघल को लेकर गर्वानुभूति करने लगा, इस बीच उन्होंने अपने एक
साक्षात्कार में यह कह दिया कि उन्हें ज्योतिष पर प्रचंड विश्वास है और
उन्हें पहले से ज्ञात था कि उनका आईएएस में चयन होगा, इस के बाद वे सनातन
विरोधियों और प्रगतिशीलों के निशाने पर आ गईं। कुछ लोग उनकी कड़ी आलोचना
करने लगे, उन्हें पुरातन सोच का बताने लगे, साथ में ज्योतिष पर भी सवाल
उठाने लगे।
सवाल यह उठता है कि ज्योतिष में विश्वास करने वाला क्या पुरातन सोच का
होता है? ज्योतिष विकास विरोधी है क्या? आईएएस टॉप करने वाली इरा सिंघल
और ज्योतिष की आलोचना करने वाले हाईस्कूल, इंटर, ग्रेजुएट पास और
अशिक्षित लोग ज्यादा बुद्धिमान हैं क्या?, इन सब सवालों के पीछे मूल कारण
ज्योतिष है, इसलिए ज्योतिष के संबंध में ही चर्चा करते हैं कि वास्तव में
ज्योतिष है क्या।
ज्योतिष शब्द दो शब्दों ज्योति और ईश से मिल कर बना है। ज्योतिष के दो
अर्थ हैं नक्षत्रों और ईश्वर से संबंध रखने वाली विद्या। प्रकाश शब्द
नक्षत्रों और ईश्वर दोनों के लिए कहा गया है। वैज्ञानिक नक्षत्र से संबंध
मान कर चलते हैं और फलित ज्योतिष के जानकार ईश्वर से संबंध मानते हैं,
लेकिन दोनों ही तरीकों में अंतर कुछ नहीं है। शरीर के बाहर और अंदर की
जानकारियों को प्राप्त करने के कई वैज्ञानिक साधन और माध्यम हैं, वैसे ही
संपूर्ण ब्रह्मांड का गहन अध्ययन करने के बाद ज्योतिष का निर्माण हुआ है।
जैसे सोनोग्राफी, एक्स-रे और सिटी स्केन से जानकारी ली जाती है, वैसे ही
ज्योतिष से भी जानकारी ली जाती है। मनुष्य के दिमाग में चलने वाले कब,
क्यूं, कैसे और क्या जैसे सवालों का हल ज्योतिष दे सकता है।
ज्योतिष शास्त्र के सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ट, अत्रि, पाराशर, कश्यप,
नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु और शौनक
सहित कुल 18 प्रवर्तक माने जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के तीन स्कंध हैं,
जिसके प्रथम स्कंध ''सिद्धान्त" में सृष्टि से लेकर प्रलय काल तक की
गणना, सौर मंडल, मासादि, काल, मानव का प्रभेद, ग्रह संचार का विस्तार तथा
गणित क्रिया की उत्पति के साथ पृथ्वी की स्थिति का वर्णन किया गया है, यह
सब ग्रह लाघव, मकरन्द, ज्योर्तिगणित, सूर्य सिद्धांति ग्रंथों में पढ़ा जा
सकता है। द्वितीय स्कंध ''संहिता" में अंतरिक्ष, ग्रह, नक्षत्र,
ब्रह्माण्ड आदि की गति, स्थिति एंव विभिन्न लोकों में रहने वाले
प्राणियों की क्रिया विशेष का वर्णन किया गया है, जिसे वाराह मिहिर की
वृहत् संहिता, भद्र बाहु संहिता में विस्तार से समझा जा सकता है। तृतीय
स्कंध ''होरा" में जातक, जातिक, मुहूर्त से संबंधित वर्णन हैं, जिसे
वृहत् जातक, वृहत् पाराशर होरशास्त्र, सारावली, जातक पारिजात, फलदीपिका,
उतरकालामृत, लघुपाराशरी, जैमिनी सूत्र और प्रश्नमार्गादि ग्रंथों में पढ़ा
जा सकता है। ज्योतिष की उत्पत्ति की बात करें, तो कोई निश्चित समय नहीं
है। मूल रूप से ज्योतिष को वेद का नेत्र माना जाता है और वेद संसार के
सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं, इसलिए ज्योतिष को भी उतना ही प्राचीन माना जाता
है। वेद के शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद, और ज्योतिष छः अंग हैं,
लेकिन ज्योतिष को समस्त विद्याओं का उद्गम भी माना जाता है।
फलित ज्योतिष के अंतर्गत मनुष्य और पृथ्वी पर ग्रहों और तारों के शुभ तथा
अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ग्रहों तथा तारों के रंग
भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखलाई पड़ते हैं। ग्रहों व नक्षत्रों से निकलने
वाली किरणों और रंगों का पृथ्वी व मानव पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है,
जिसका अध्ययन विद्वानों ने प्राचीन काल में ही शुरू कर दिया था। पृथ्वी
सौर मंडल का ही एक ग्रह है, इस पर मुख्य रूप से सूर्य तथा सौर मंडल के
ग्रहों और चंद्रमा का ही विशेष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी जिस कक्षा में
चलती है, उसे क्रांतिवृत्त कहते हैं। पृथ्वी पर रहने वालों को सूर्य इसी
कक्षा में चलता दिखाई पड़ता है। इस कक्षा के आसपास कुछ तारामंडल हैं,
जिन्हें राशियाँ कहते हैं, इनकी संख्या 12 है, इनसे भी विशेष प्रकार की
किरणें निकलती हैं, उसी आधार पर इनका नामकरण किया गया है। 12 राशियों के
27 विभाग किए गए हैं, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। फलित ज्योतिष मंे गणना
के लिए सूर्य के साथ चंद्रमा के नक्षत्र का भी विशेष उपयोग किया जाता है।
ज्योतिष से ही खगोल विज्ञान विकसित हुआ है और अठारहवीं सदी तक ज्योतिष ही
गणना का आधार था। बाद में नये वैज्ञानिक आये, तो ज्योतिष को अंधविश्वास
कहने लगे, जबकि विज्ञान यहाँ तक ज्योतिष के सहारे ही पहुंचा है। ज्योतिष
को मानने वाले न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर में हैं। विकसित और
वैज्ञानिक रूप से जीवन जीने वाले अमेरिकी भी ज्योतिष को मानते हैं।
अमेरिका में हुए एक मतदान में 31% अमेरिकियों ने ज्योतिष पर विश्वास
जताया था, साथ ही 39% अमेरिकियों ने ज्योतिष को वैज्ञानिक भी माना था।
भारत में ज्योतिष को मानने वालों की आज भी बड़ी संख्या है, लेकिन ज्योतिष
के जानकार अब कम हैं, जिससे ज्योतिष के नाम पर अधिकांश लोग आम जनता के
विश्वास के साथ खिलवाड़ करते नजर आ रहे हैं। ज्योतिष की जानकारी के अभाव
में लोगों को सवालों के सटीक जवाब नहीं मिल पाते, जिससे उनका विश्वास
डगमगा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता को ''दैवज्ञ'' के नाम से भी जाना जाता है।
दैवज्ञ दो शब्दों से मिलकर बना है। दैव व अज्ञ। दैव का अर्थ होता है
भाग्य और अज्ञ का अर्थ होता है जानने वाला, अर्थात् भाग्य को जानने वाले
को दैवज्ञ कहते हैं। वाराह मिहिर ने वाराह संहिता में दैवज्ञ के संबंध
में लिखा है कि एक दैवज्ञ का आंतरिक व बाह्य व्यक्तित्व सर्वर्था उदात,
महनीय, दर्शनीय व अनुकरणीय होना चाहिये। शांत, विद्या विनय से संपन्न,
शास्त्र के प्रति समर्पित, परोपकारी, जितेन्द्रीय, वचन पालक, सत्यवादी,
सत्चरित्र, आस्तिक व परनिन्दा विमुख होना चाहिये। वास्तविक दैवज्ञ को
ज्योतिष के तीनों स्कन्धों का ज्ञान होना चाहिए। अगर, शास्त्र की बात
करें, तो ऐसे ज्योतिषी आज कल खोज पाना भी मुश्किल हैं, लेकिन जानकार न
होने का अर्थ यह नहीं हो जाता कि ज्योतिष निरर्थक, अथवा अन्धविश्वास है।
यूं तो कई जन्मों के कर्म और फल के आधार पर ज्योतिष चलता है, लेकिन
वर्तमान जीवन की बात करें, तो माँ के गर्भ में शिशु पर गुरुत्वाकर्ष और
नक्षत्र आदि का प्रभाव नहीं पड़ता। जन्म के बाद शिशु वातावरण में आता है,
तभी उस पर ग्रहों व नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है, उसी क्षण शिशु की
प्रकृति व भविष्य निश्चित हो जाता है। जन्मकाल के अनुसार ही शिशु पर
ग्रहों व राशियों की गति का प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है, जो जीवन
पर्यन्त रहता है। जन्म समय के आधार पर कुंडली चक्र बनता है, जिसके द्वारा
भविष्य काल की स्थिति का ज्ञान हो जाता है। स्थानीय स्पष्टकाल को इष्टकाल
कहते हैं। इष्टकाल में जो राशि पूर्व क्षितिज में होती है, उसे लग्न कहते
हैं। जिस भाव में जो राशि हो, उसका स्वामी उस भाव का स्वामी होता है। एक
ग्रह राशि चक्र पर विभिन्न प्रकार से किरणें फेंकता है। कुंडली में ग्रह
की दृष्टि भी पूरी, या कम मानी जाती है।  जिस स्थान पर ग्रह का अत्यधिक
प्रभाव रखता है, उसे उच्च तथा उससे सातवें भाव को उसका नीच कहते हैं।
किसी-किसी कुंडली में सूर्य के करीब वाले ग्रह दिखाई नहीं पड़ते, उन्हें
अस्त माना जाता है, अर्थात प्रभावहीन। कुल मिला कर ज्योतिष एक गणित पर
आधारित विधा है, जिसके परिणाम सटीक आते हैं। ज्योतिष लगभग हर देश और हर
धर्म के अनुयायी मानते हैं। भारत के अलावा समय की गणना सिर्फ चन्द्रमा,
या सिर्फ सूर्य से करते हैं, इसलिए उनकी भविष्यवाणी सटीक नहीं बैठतीं,
लेकिन भारतीय ज्योतिष में सूर्य और चन्द्रमा दोनों को मिला कर समय की
गणना की जाती है, जिससे विदेशी भी भारतीय ज्योतिष को ज्यादा सटीक मानने
लगे हैं। ज्योतिष प्राचीन और महत्वपूर्ण विधा है, जो अज्ञानता के अभाव
में अंधविश्वास का रूप लेती जा रही है, साथ ही लुप्त होने की अवस्था में
है, इसलिए सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। ज्योतिष को
शिक्षा में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए, ताकि लोग अंधविश्वास से बच
सकें।
बी.पी. गौतम
स्वतंत्र पत्रकार
8979019871

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