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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, August 1, 2017

जो करोड़पति अरबपति न हों,ऐसे सारे लोग खुदकशी कर लें? आपके बचत खाते में एक करोड़ से ज्यादा जमा है तो फिर नीतीशे कुमार की तरह गोभक्त बने रहिये! सारी सब्सिडी बंद हो और करों का सारा बोझ आप पर हो तो डिजिटल इंडिया के आधार नंबरी वजूद और करोड़ों लोगों के रक्तहीन नरसंहार की बधाई! हगने पर जीएसटीलगाने का अजब गजब स्वच्छता अभियान नमामि गंगे!नमामि ब्रह्मपुत्र! पलाश विश्वास

जो करोड़पति अरबपति न हों,ऐसे सारे लोग खुदकशी कर लें?

आपके बचत खाते में एक करोड़ से ज्यादा जमा है तो फिर नीतीशे कुमार की तरह गोभक्त बने रहिये!

सारी सब्सिडी बंद हो और करों का सारा बोझ आप पर हो तो डिजिटल इंडिया के आधार नंबरी वजूद और करोड़ों लोगों के रक्तहीन नरसंहार की बधाई!

हगने पर जीएसटीलगाने का अजब गजब स्वच्छता अभियान नमामि गंगे!नमामि ब्रह्मपुत्र!

पलाश विश्वास



नोटबंदी की वजह से बाजार में प्रचलित सारे नोट बैंकों में जमा हो जाने के बाद बैंकों के लिए भारी संकट खड़ा हो गया है।नोटबंदी और जीएसटी की दुहरी मार की वजह से बैंको से यह भारी नकदी निकल नहीं रहा है,जिसे निकालने के लिए सीधे बचत खाते पर हमला बोल दिया है कारपोरेट हिंदुत्व की जनविरोधी सरकार ने।बीमा बाजार से लिंकड है।अल्प बचत योजनाओं के ब्याज में पहले ही कटोती कर दी गयी है।अब बचत खाते पर इस कुठाराघात के बाद बचत खाते के ब्याज पर जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर बेरोजगार लोगों के लिए किसानों की तरह खुदकशी के अलावा बाकी कोई विकल्प बचा नहीं है।संसद सत्र के दौरान इतने बड़े जनविरोधी राजकाज के खिलाफ सन्नाटा बताता है कि इस देश में जो करोड़पति नहीं हैं,उन्हें जीने का कोई हक नहीं है।

बहुजन,अल्पसंख्यक स्त्री उत्पीड़न ताड़न वध संस्कृति के मनुस्मृति नस्ली रामराज्य में भुखमरी और बेरोजगारी का विकसित डिजिटल इंडिया की मुनाफावसूली के सांढो़ं और भालुओं की मुनाफावासूली अर्थव्यवस्था अनंत बेदखली,निरंतर नरसंहार के हजारों आर्थिक सुधार के बावजूद नोटबंदी औरजीएसटी की वजह से मंदी का शिकार है।इस मंदी से उबरने के लिए वित्त और रक्षा मंत्रालयों के कारपोरेट वकील का नूस्खा है मरों हुओं पर निरंतर कुठाराघात और लाशों के बाल नोंचर कर्ज का बोझ हल्का करना ताकि लाखों करोड़ का न्यारा वारा पनामा पतंजलि कारोबार जिओ जिओ डिजिटल इंडिया मालामाल लाटरी बन जाये मुकम्मल कैसिनो।

डिजिटल इंडिया जिओ जिओ अप्पो अप्पो है तो चचीन के खिलाफ अंखड युद्ध मंत्र जाप ,होम यज्ञ वैदिकी अनुष्ठान के बावजूद उत्तराखंड में चीनी घुसपैठ पर मौन है और कहा जा रहा है कि यह मामूली दिनचर्या है भारत चीन सीमा की।असंवैधानिक आहलूवालिया समय के बाद अब डोभाल राजनय है और विदेश मंत्रालय शोपीस है।हवाई उड़ान का अमेरिकी इजराइली राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वतंत्रता है और जयश्रीराम राष्ट्रवाद की पनामा पतंजलि सुनामी का विशुध सवर्ण हिंदुत्व समय है।जनता राष्ट्रद्रोही है और लोकतंत्र राष्ट्रद्रोह है।साहित्य संस्कृति इतिहास निषिद्ध है तो अभिव्यक्ति कारपोरेट।

हगने पर भी जीएसटी लगाने वाली सुनहले दिनों के प्रधान सेवक की रामराज्य सरकार के हजारों आर्थिक सुधारों के मध्य हर जनविरोधी नीतिगत करतब की बलिहारी।ज्नम चाहे जिस पहचान के साथ हो,हिंदुत्व में निष्णात हर भारतीय देशभक्त नागरिक का परम कर्तव्य है कि चाहे सर कट जाये,छिन्नमस्ता की तरह अपना ही खून पीते हुए जय श्री राम का नारा वैसे ही लगाते रहे जैसे रवींद्र पर प्रतिबंध प्रस्ताव के खिलाप बंगाल का प्रगतिशील बांग्ला राष्ट्रवाद नये सिरे से बंकिम और उनके आनंदमठ का महिमामंडन करने लगा है।गैर बंगाल साहित्य,संस्कृति और इतिहास के केसरियाकरण पर उसे कोई ऐतराज नहीं है।

इस खंडित पहचान और खंडित राष्ट्रवाद की कोई नागरिकता नहीं होती है।

हम राष्ट्रवाद का ढोल नगाड़ा चाहे जितना पीटे,सच यही है कि अंग्रेज जो खंडित देश हमारे लिए छोड़ गये हैं,उस टुकड़ा टुकड़ा करने का राष्ट्रवाद हम जी रहे हैं।

अब भी हम कोई राष्ट्र नहीं है।

डिजिटल इंडिया का मुक्तबाजार अब विकसित राष्ट्र है और विकसित राष्ट्र में बैंकों में जमा पर ब्याज के बदले टैक्स देना पड़ा है।वही हो रहा है।बहुत जल्दी बैंकों में जमा रखने के लिए आपको बैंको को भुगतान करना होगा।ब्याज की भूल जाइये।

भविष्यनिधि का ब्याज चौदह प्रतिशत से गिरकर आठ फीसद हो गया है  तो इस हिसाब से बैंकों में बचतखातों पर ब्याज तो शून्य हो जाना चाहिए।

हुआ नहीं तो खैर मनाइये।हो गया तो जयश्रीराम का नारा लगाकर अपने को देशभक्त साबित करने में देर न लगाइये,वरना राष्ट्रद्रोही समझे जाओगे।मारे जाओगे।

बैंकों के बचत खाते में एक करोड़ जमावाले कितने लोग हैं और कौन लोग हैं,पनामा सूची की तरह यह जानकारी सार्वजनिक हो जाये तो कोई नवाज शरीफ जैसा धमाका होने वाला नहीं है।

भारत में करोड़पति और अरबपति कितने लोग हैं और उनमें कितने किसान,कितने मेहनतकश,कितने बहुजन,कितने अल्पसंख्यक,कितने आदिवासी ,कितने पिछड़े और कितने दलित हैं,यह आंकड़ा मिल जाये, तो रामराज्य के सुनहले दिनों का तिलिस्म खुल जाये।

बहरहाल भारतीय जनता के वोटों से जनप्रतिनिधि ग्राम प्रधान,  कौंसिलर, विधायक, सांसद, मंत्री,वगैरह वगैरह का समूचा राजनीतिक वर्ग करोड़ पतियों और अरबपतियों का है और विकसित मुक्तबाजार राष्ट्र का असल चेहरा यही है,जिसमें खेत खलिहान , जल ,जंगल, जमीन,गांव,देहात,जनपद सारे के सारे सिरे से गायब है।

जाहिर है कि बंगाल और केरल के अलावा संसद सत्र जारी रहने के बावजूद कहीं कोई हल्ला इसे लेकर उसीतरह नहीं हो रहा है जैसे दार्जिलिंग को लेकर भारत सरकार,भारत की सत्ता राजनीति और संसद मौन है।

फिर नीतीशे कुमार का दावा सही है कि प्रधान स्वयंसेवक को चुनौती देना वाला कोई माई का लाल हिंदी हिंदू हिंदुस्तान के इस अखंड हिंदुत्व समय में नहीं है।56 इंच का सीना 16 मई,2017 के बाद अब कुल कितना इंच चौड़ा हो गया है कि उसके घेरे में मुंह छुपाने के लिए हर क्षत्रप का मन आकुल व्याकुल है,यह भी शायद नीतीशे कुमार बता सकेंगे।

बहरहाल बुनियादी जरुरतें और बुनियादी सेवाएं बाजार केे हवाले करने वाली,सारे कायदे कानून खत्म करने वाली ,अनंत बेदखली के डिजिटल इंडिया की सरकार जय श्रीराम के नारे के साथ अपने अश्वमेध अभियान को कैसे नरसंहार उत्सव में बदल रही है,कल एक झटके के साथ बैंक बचत खाते पर ब्याज एक करोड़ से कम जमाराशि पर चालू चार प्रतिशत के बदले साढ़े तीन प्रतिशत करने और रसोई गैस सब्सिडी खत्म करने के लिए हर महीने सब्सिडी वाली रसोई गैस की कीमत चार रुपये की दर से बढाने के मरों हुओं पर कुठारा घात की कार्रवाई से साफ जाहिर है।

जी नहीं,इस पर ताज्जुब मत कीजिये।मुक्तबाजार की महिमा में मनुष्य सिर्फ आधार नंबर है।इस नंबर के बिना उसका कोई वजूद नहीं है।

हमारे बच्चों के पास आधार नंबर नहीं है,तो वह कभी भी कहीं भी मुठभेड़ या लिंचिंग में मारा जायेगा और जिंदा भी रहा तो पुरखों की संपत्ति से बेदखल हो जायेगा क्योंकि उसका बाकी कोई पहचान आधार के सिवाय मान्य नहीं है।

आप उसे कुछ भी हस्तांतरित नहीं कर सकते।

आधार नंबर हुआ तो जिस सब्सिडी के हस्तातंरण के ट्रिकलिंग विकास के लिए आधार औचित्य बताया गया है,वह सब्सिडी अब पूरी तरह खत्म है।बाकी रोजगार की कोई सूरत नहीं है।भविष्य अंधकार है।नीले शार्क के शिकार का खेल ही उसका बचा खुचा जीवन है या फिर बजरंगी सैनिक बनकर लिंचिंग उसका एकमेव रोजगार है।


भालुओं और सांढों के उछलकूद की अर्थव्यवस्था नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार से मंदी का शिकार है।पंद्रह लाख बेरोजगार सिर्फ नोटबंदी की वजह से।अमेरिका परस्ती के विनिवेश,निजीकरण और आटोमेशन से बाकी फिजां छंटनी छंटनी है।जीएसटी के कारपोरेट एकाधिकार के बाद कारोबार में कितने आम लोग जिंदा बचेंगे,कहना मुश्किल है।उत्पादन प्रणाली ठप है।

विकास का मतलब बाजार का अनंत विस्तार।

बाजार का मतलब निरंकुश मुनाफावसूली है।

हिंदुत्व के इस कारपोरेट राज में जयश्रीराम के नारों के साथ मुनाफावसूली का चाकचौबंद इंतजाम ही राजकाज और वित्त प्रबंधन,राजनय है।

डोकलाम पर चीन के मुकाबले युद्ध की चुनौती खड़ा करने के बाद देहरादून से सिर्फ 140  किमी दूर  उत्तराखंड के चमोलीजिले में 25 जुलाई को बाराहोती में चीनी घुसपैठ पर अखंड मौन है डोभाल राजनय है।भारत चीन सीमा के इस इलाके में 1962 की लड़ाई के वक्त भी चीन का दावा नहीं था।सन् 2000 के भारत चीन द्विपक्षीय समझौते के बाद इस इलाके की सुरक्षा भारतीय अर्द्ध सैनिक बल भारत तिब्बत सीमा पुलिस के हवाले है।अब चीनी घुसपैठ तब हो रही है जब डिजिटल इंडिया जिओ जिओ अप्पो अप्पो है और कारपोरेट कंपनियों की सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता कारपोरेट हितो की राजनय है।

सबसे पहले भड़ासी बाबा यशवंत ने यह खबर शौचालय के बिल के साथ ब्रेक की थी।अब गोपाल राठी ने इसपर मंतव्य किया है तो भक्तजन तिलमिला रहे हैं और उनमें अनेक लोग जीएसटी स्लैब में शौचालय टैक्स न होने का हवाला देकर राठी को तमगा दे रहे हैं।हमें ताज्जुब है कि भड़ासी बाबा के पोस्ट पर कोई हल्ला नहीं हुआ और न तब किसी भक्त ने कुछ मंतव्य करना जरुरी समझा।

हिंदू राष्ट्र की पैदल बजरंगी सेना के कितने लोगों के बचत खाते में एक करोड़ से ज्यादा जमा है और उन पर बैंक के ब्याज दरों में कटौती का कोई असर नहीं है,हमें नहीं मालूम है।

करसुधार का मजा यही है कि आम जनता को मालूम नहीं पड़ता कि पेशेवर जेबकतरे की तरह उसकी चुनी हुई सरकार कैसे उसकी जेब पर उस्तरा चलाकर सारा माल माफिया गिरोह की मुनाफावसूली में शामिल करके देश के विकास और देशभक्ति की गुहार लगाकर शिकार जन गण को जयकारा लगाने का काम कर देती रही है।अब आप शौचालय टैक्स पर शोध करते रहिये।

गोपाल राठी ने लिखा हैः


हगने पर GST

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शौचालय जाने पर जीएसटी वसूलने वाले आज़ादी के बाद के पहले प्रधानमंत्री बने मोदी। पंजाब में रोडवेज बस स्टैंड पर सुलभ शौचालय की रसीद है ये। 5 रुपये शौच करने का चार्ज और एक रुपया जीएसटी। कुल 6 रुपये। महंगाई इतनी, गरीब खा न पाए, और, अगर हगने जाए तो टैक्स लिया जाए। उधर बिहार में हगने गए कई सारे गांव वालों को गिरफ्तार कर लिया गया, क्या तो कि खेत मे, खुले में, क्यों हग के गन्दगी फैला रहे हो। बेचारे सोच रहे होंगे कि इससे अच्छा तो अंग्रेजों और मुगलों का राज था। कम से कम चैन से, बिना टैक्स के, हग तो पाते थे।

यह धरती मनुष्य अथवा मवेशियों के मल से नहीं, अपितु पोइलथिन, पेट्रोल, डीज़ल, कारखानों के धुएं अथवा वातानुकूलित संयंत्रों की गैस से दूषित होती है। और भी कई कारक हैं, मैने कुछ गिनाए। इन प्रदूषक तत्वों के लिए अमेरिका, चीन जैसे देश और भारत मे अम्बानी, अडानी जैसे उत्तरदायी हैं। खुले में शौच जाने वालों से पहले इन पर रोक लगाओ। बात बाहर या भीतर शौच जाने की नहीं , अपितु टट्टी के सदुपयोग की है हंसिये मत। गांधी जी यही करते थे। वह मैले से खाद बनाते थे। पुरानी कहावत भी है :-

गोबर, टट्टी और खली

इससे खेती दुगनी फली

मजे की बात यह है कि सरकार ये मानने को तैयार नहीं है कि नोटबंदी की वजह से इकोनॉमी की रफ्तार धीमी हुई है। और ना ही ये मानने को तैयार है कि रोजगार के मोर्चे पर सरकार नाकाम रही है। तीन साल में सरकार की उपलब्धियां बताते समय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी को लेकर भी कई बातें साफ कर दीं।


भले ही जीडीपी की रफ्तार सुस्त पड़ गई हो। भले ही लगातार छंटनी की खबरें आ रही हों, लेकिन सरकार मानती है कि तीन साल में उसने अच्छा काम किया है। वित्त मंत्री के मुताबिक सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर लोगों और निवेशकों का भरोसा फिर कायम हुआ है। वित्त मंत्री ये भी मानने को तैयार नहीं कि नोटबंदी ने चौथी तिमाही में ग्रोथ घटा दी।


जब सवाल रोजगार का आया तो एक बार फिर उन्होंने जॉबलेस ग्रोथ के आरोप को सिरे से खारिज करते हुए इसे राजनैतिक जुमला करार दिया। इस मौके पर वित्त मंत्री ने साफ किया कि न तो जीएसटी लागू करने की तारीख बदलेगी, न दरें। वित्त मंत्री के सामने दो और सवाल रखे गए। बूचड़खानों के लिए मवेशियों की बिक्री पर रोक और किसानों की कर्ज माफी। वित्त मंत्री ने कहा दोनों मामलों पर फैसला राज्यों को करना है।


मीडिया के मुताबिक जून महीने में देश के 8 बुनियादी उद्योगों (कोर सेक्टर) की ग्रोथ रेट कम होकर 0.4 फीसदी हो गई। पिछले साल जून महीने में 8 बुनियादी सेक्टर का ग्रोथ रेट 7 फीसदी थी। आठ बुनियादी सेक्टर में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफायनरी प्रॉडक्ट्स, फर्टिलाइजर, इस्पात, सीमेंट और बिजली उत्पादन शामिल है।

बिजनेस स्टैंडर्ट के मुताबिक नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगडिय़ा ने गत सप्ताह कहा कि देश 8 फीसदी की वृद्घि दर की राह पर है और वर्ष 2017-18 के दौरान ही वह 7.5 फीसदी की दर हासिल कर सकता है। उन्होंने माना कि रोजगार सृजन एक चुनौती बना हुआ है लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही आते-आते अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की वृद्घि दर छूने लगेगी। यह आकलन जरूरत से ज्यादा आशावादी नजर आता है क्योंकि हालिया अतीत में हमारी अर्थव्यवस्था को एक के बाद एक कई झटके लगे हैं।

देश का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) अस्थिर रहा है। पिछले महीने इन आंकड़ों में महज 1.7 फीसदी की वृद्घि देखने को मिली थी। इसे मजबूत सुधार का संकेत तो नहीं माना जा सकता। आईआईपी को उच्च आवृत्ति वाले संकेतक के रूप में इस्तेमाल करने को लेकर चाहे जो विचार हो लेकिन तथ्य यही है कि यह काफी समय से निम्र स्तर पर बना हुआ है। खासतौर पर टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं और पूंजीगत वस्तुओं से जुड़े सूचकांक की बात करें तो ऐसा ही है। इससे तो यही संकेत मिलता है कि हमारा औद्योगिक क्षेत्र विकास का वाहक बनने के मामले में संघर्षरत ही रहेगा।

जहां तक सेवा क्षेत्र की बात है तो अब तक यह स्पष्टï नहीं है कि नोटबंदी के झटके से उबर रही अर्थव्यवस्था मध्यम अवधि में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लेकर क्या प्रतिक्रिया देगी। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि लंबी अवधि में जीएसटी वृद्घि के लिए सकारात्मक साबित होगा लेकिन कुछ ही लोगों को उम्मीद है कि यह बदलाव बिना किसी खास कीमत के आएगा। यह कीमत आने वाली तिमाहियों में वृद्घि के आंकड़ों में भी नजर आ सकती है। अर्थव्यवस्था की जटिलता को देखते हुए और जीएसटी के लिए जरूरी गहरे बदलाव के असर को देखते हुए कहा जा सकता है कि इसके अल्पकालिक या मध्यम अवधि के असर को लेकर कोई भी अनुमान लगाना ठीक नहीं है। खासतौर पर सेवा क्षेत्र पर इसके असर की बात करें तो वहां असंगठित काम ज्यादा है। जाहिर है इसके भी वृद्घि का वाहक होने की संभावना कम ही है। ऐसे में कम से कम फिलहाल 8 फीसदी की वृद्घि दर का अनुमान उचित नहीं प्रतीत होता।


पिछले महीने मई में कोर सेक्टर के उत्पादन में 4.1 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी।

आठ बुनियादी सेक्टर के ग्रोथ रेट से देश की अर्थव्यवस्था की हालत का अंदाजा लगाया जाता है। जून महीने में कोर सेक्टर की ग्रोथ रेट में आई जबरदस्त गिरावट अर्थव्यवस्था की चुनौतीपूर्ण तस्वीर पेश करती है।

गौरतलब है कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में जीडीपी की ग्रोथ रेट कम होकर 6.1 फीसदी हो गई। पिछले वित्त वर्ष 2016-17 की आखिरी तिमाही में ग्रोथ रेट के कम होकर 6.1 फीसदी होने की वजह से पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी की दर कम होकर 7.1 फीसदी हो गई।

पिछले साल जून में इन क्षेत्रों ने 7 फीसदी की वृद्धि दर हासिल की थी। पिछले साल जून महीने से तुलना की जाए तो इस साल बुनियादी उद्योगों के उत्पादन में मामूली इजाफा हुआ है। देश के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में इन बुनियादी उद्योगों की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है।


ङगने पर जीएसटी का वह बिल पेश हैः


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