Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, August 11, 2017

नोटबंदी का राजीतिक फैसला आम जनता और देश के खिलाफ राष्ट्रद्रोह! नोटों की छपाई में घपला,नोटबंदी लीक,पंद्रह लाख बेरोजगार,खेती कारोबार तबाह और रिजर्व बैंक के साथ भारत सरकार को घाटा यूपी की जीत की कीमत! पलाश विश्वास

नोटबंदी का राजीतिक फैसला आम जनता और देश के खिलाफ राष्ट्रद्रोह!
नोटों की छपाई में घपला,नोटबंदी लीक,पंद्रह लाख बेरोजगार,खेती कारोबार तबाह और रिजर्व बैंक के साथ भारत सरकार को घाटा यूपी की जीत की कीमत!
पलाश विश्वास

कालाधन निकालने के बहाने नोटबंदी लागू करने के पहले दिन से लगातार हम इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए घातक बता रहे थे।आप चाहे तो हस्तक्षेप पर संबंधित सारे आलेख देख सकते हैं।यह नोटबंदी विशुद्ध राजनीतिक एजंडे के तहत एक राजनीतिक कार्रवाई यूपी चुनाव जीतने के लिए थी।इसकी राजनीतिक कामयाबी में कोई शक नहीं है।लेकिन अब तक हुए सर्वे के नतीजे से हमारी आशंका सच हुई है कि इसके नतीजतन करीब पंदर्ह लाख लोगों का रोजगार खत्म हो गया है और शेयर बाजार के उछाल के विपरीत कारोबार में मंदी आयी है।इससे छोटे और मंझौले व्यवसायी और रोजगार प्रदाता बाजार से बाहर हो गये हैं और एकाधिकार कारपोरेट वर्चस्व कायम करने में रिजर्वबैंक की स्वायत्ता खत्म होने के साथ साथ सरकारी बैंको को भारी घाटा हुआ है और बैंकिंग के निजीकरण की प्रक्रिया तेज हो गयी है।
यह नोटबंदी मुक्त बाजार के व्याकरण के खिलाफ जबरन डिजिटल इंडिया बनाने की आधार परियोजना है जिससे नागरिकों की जमा पूंजी,स्वतंत्रता,संप्रभुता,निजता,गोपनीयता और सुरक्षा खतरे में पड़ गयी है।
बेहिसाब खर्च के बावजूद कालाधन का कोई हिसाब नहीं निकला और नये नोट छापने में भी घपला हुआ है और नोटबंदी का फैसला लीक होने से सत्तावर्ग के एक तबके को भारी आर्थिक और राजनीतिक मुनाफा हुआ है और इसके साथ अभूतपूर्व रोजगार संकट पैदा हो गया है।इसके साथ ही पहले से संकट में फंसी कृषि व्यवस्था चौपट हो गयी है और खेती बाड़ी कारोबार से जुड़े बहुसंख्य आम जनता,नागरिकों और करदाताओं को भारी नुकसान हुआ है।झिसके नतीजतन मंदी,रोजगार संकट के साथ आगे भुखमरी का अंदेशा है।
इस रपट से पुष्टि होती है कि राजनीतिक कारपोरेटवित्तीय प्रबंधन से भारत सरकार और रिजर्व बैंक को भारी घाटा हुआ है और वित्तीय प्रबंधन का यह आर्थिक घोटाला किसी राष्ट्रद्रोह या आतंकवादी हमले की तरह आम जनता और देश दोनों के खिलाफ है।
खबरों के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक अपने अधिशेष में से वित्त वर्ष के 2016-17 के लिए बतौर लाभांश केवल 30,659 करोड़ रुपये ही सरकार को देगा। आंकड़ा पिछले वर्ष के मुकाबले आधे से भी कम है क्योंकि उस बार केंद्रीय बैंक ने सरकार को बतौर लाभांश 65,876 करोड़ रुपये दिए थे। रिजर्व बैंक ने लाभांश में कमी की कोई वजह नहीं बताई है, लेकिन अर्थशास्त्री इसे नोटबंदी का नतीजा मान रहे हैं। उनका कहना है कि 500 रुपये के पुराने नोट और 1,000 रुपये के नोट बंद होने के बाद नए नोट छापने और पुराने नोट खत्म करने में केंद्रीय बैंक को भारी रकम खर्च करनी पड़ी है। इसी कारण इस बार लाभांश में इतनी अधिक कमी आई है। 

2011-12 के बाद यह पहला साल है, जब सरकार को रिजर्व बैंक से इतना कम लाभांश मिलने जा रहा है। उस साल सरकार को 16,010 करोड़ रुपये मिले थे। रिजर्व बैंक का वित्त वर्ष जुलाई से जून तक चलता है। बैंक अपनी वार्षिक रिपोर्ट अगले हफ्ते प्रकाशित कर सकता है। 2012-13 में वाई एच मालेगाम समिति ने कहा कि केंद्रीय बैंक के पास धन का पर्याप्त भंडार है और उसे समूची अधिशेष राशि सरकार को देनी चाहिए। उसके बाद से ही रिजर्व बैंक अपना समूचा अधिशेष केंद्र को सौंपता आ रहा है। 2013-14 में उसने 52,679 करोड़ रुपये दिए थे और 2014-15 में 65,896 करोड़ रुपये सरकार को सौंपे थे।

2017-18 के केंद्रीय बजट में सरकार ने रिजर्व बैंक और दूसरे वित्तीय संस्थानों से बतौर लाभांश 74,901 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान लगाया था। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बाद में मीडिया को बताया था कि इसमें रिजर्व बैंक का योगदान करीब 58,000 करोड़ रुपये होगा। रिजर्व बैंक से कम लाभांश मिलने का एक अर्थ यह भी है कि नोटबंदी की कवायद में केंद्रीय बैंक को वास्तव में बहुत अधिक रकम खर्च करनी पड़ी है।

आरबीआई निवेश गतिविधियों से हुई अतिरिक्त कमाई के जरिये लाभांश देता है, न कि अपने पुनर्मूल्यांकित सुरक्षित भंडार के जरिये। लिहाजा यह अंदाज लगाना संभव नहीं है कि केंद्रीय बैंक के पास कितने पुराने नोट आए होंगे। रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल ने जुलाई में संसदीय समिति को बताया था कि अभी पुराने नोटों की गिनती पूरी नहीं हो पाई है। इससे पहले भी उन्होंने कहा था कि जो नोट नहीं लौटे हैं, वे रिजर्व बैंक की देनदारी में शामिल हैं और ऐसे नोटों को सरकार को लाभांश के तौर पर नहीं दिया जा सकता। आम बजट में नोटबंदी के कारण रिजर्व बैंक से किसी तरह के विशेष लाभांश का प्रावधान नहीं रखा गया था। इसके बारे में कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ऐसे नोटों की संख्या लाखों करोड़ में हो सकती है। कम लाभांश मिलने से सरकार पर दबाव बढ़ेगा, राजकोषीय घाटा पूरा करने में दिक्कत आएगी।

केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि अगर दूसरे हालात नहीं बदले तो राजकोषीय घाटा इस साल 3.2 फीसदी से बढ़कर 3.4 फीसदी हो सकता है। हालांकि केंद्रीय बैंक ने कम लाभांश का कोई कारण नहीं बताया है लेकिन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि नए नोट छापने और रिवर्स रीपो के जरिये नकदी का प्रबंधन केंद्रीय बैंक पर भारी पड़ा होगा और इससे उसका खर्चा बढ़ा होगा। नोटबंदी की चरम परिस्थितियों के दौरान बैंकों ने इतनी  अधिक राशि केंद्रीय बैंक में जमा कराई कि यह 5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई। केंद्रीय बैंक को इस पर 6 फीसदी ब्याज देना पड़ा।

विश्लेषकों के अनुसार नोटबंदी के बाद केंद्रीय बैंक रोजाना औसतन 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की नकदी बैंकों से लेता रहा। इस कारण केंद्रीय बैंक पर भारी बोझ पड़ा। इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत के अनुसार डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती से भी केंद्रीय बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार को रुपये में कम रिटर्न मिला होगा। जनवरी से अब तक रुपया 6 फीसदी से अधिक मजबूत है।


No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV