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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, August 6, 2017

सर्वव्यापी रंगभेदी राजनीति और तकनीकी क्रांति के तांडव में विलुप्त हो रही है मनुष्यता! Rabindra Impact ও উচ্চকিত রাজনীতি ও প্রযুক্তির তান্ডবে লোকসংস্কৃতির অবক্ষয়! पलाश विश्वास

सर्वव्यापी रंगभेदी राजनीति और तकनीकी क्रांति के तांडव में विलुप्त हो रही है मनुष्यता!

Rabindra Impact ও উচ্চকিত রাজনীতি ও প্রযুক্তির তান্ডবে লোকসংস্কৃতির অবক্ষয়!

पलाश विश्वास

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जिस रवींद्र नाथ को मिटाने का एजंडा मुक्तबाजारी कारपोरेट हिंदुत्व का एजंडा है,उन्हीं रवींद्रनाथ ने कभी कहा हैः

  • मनुष्य के इतिहास की मुख्य समस्या क्या है? जहां कोई अंधत्व,मूढ़त्व मनुष्य और मनुष्य में विच्छेद घटित कर देता है।मानव समाज का स्रवप्रधानतत्व मनुष्यों की एकता है।सभ्यता का सर्ववप्रधान तत्व मनुष्यों की एकता है।सभ्यता का अर्थ यही है- एकत्रित होने का अभ्यास।

आज हिरोशिमा दिवस है।अमेरिकी साम्राज्यवाद के शिकंजे में कसमसाती मनुष्यता का सदाबहार जख्म हिरोशिमा और नागासाकी का परमाणु विध्वंस।आज ही जापान के हिरोशिमा पर अमेरिकी परमाणु बम गिरे थे।इस परमाणु विध्वंस की नई सभ्यता के खिलाफ मुखर थे वैज्ञानिक आइंस्टीन,गांधी और रवींद्रनाथ।इनके अलावा रूसी साहित्यकार तालस्ताय और दार्शनिक रोम्यां रोलां का समूचा दर्शन मनुष्यता का दर्शन है।

भारत में साधु,संतों,फकीरों,बाउलों,गुरुओं का सामंतवादविरोधी दर्शन भी मनुष्यता का दर्शन है।जो आस्था की स्वतंत्रता के समर्थन करता है और मनुष्यों की एकता का समर्थन के साथ साथ भेदभाव,असमानता और अन्याय का विरोध करता है।

रवींद्र के मुताबिक अंधता और मूढ़ता ही मनुष्यता के विखंडन का मुख्य़ कारण है और यही मनुष्यता और सभ्यता की मुख्य समस्या है।इसी सिलसिले में गौरतलब है कि रवींद्र के लिए भारतवर्ष मनुष्यता की विविध धाराओं के विलय का महातीर्थ भारत तीर्थ है।विविधता में एकता रवींद्र नाथ का भारतवर्ष है।इसपर हम चर्चा कर चुके हैं।

यही उनका मौलिक अपराध है जो गुरु गोलवलकर,वीर सावरकर और आनंदमठ के वंदेमातरम के राष्ट्रवाद के विरुद्ध है और हिंदू राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजंडे के लिए गांधी की तरह रवींद्र का वध भी इसीलिए जरुरी है।

रवींद्र नाथ मनुष्यता को कुचलने वाले राष्ट्रवाद के विरुद्ध थे ता जाहिर है कि अंध सैन्य राष्ट्रवाद की युद्धोन्मादी धर्मोन्मादी नस्ली रंगभेद की विचारधारा के लिए वे राष्ट्रद्रोही हैं।

विडंबना यह है कि बंगाल में रवींद्र नाथ के खिलाफ इस केसरिया जिहाद के प्रतिरोध में बंकिम और उनके आनंदमठ को महिमामंडित किया जा रहा है,जिससे हिंदुत्व की राजनीति ही मजबूत होती है।जबकि रवींद्र दर्शन और भारत में संत परंपरा मनुस्मृति विधान के खिलाफ है,जेस मौजूदा भारतीय संविधान की जगह डिजिटल इंडिया का संविधान बनाकर भारत में रामराज्य की स्थापना करना हिंदुत्व की राजनीति है,जिसका हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं है।

रवींद्र के साहित्य का मूल स्वर अस्पृश्यता के खिलाफ युद्ध घोषणा है।इस बारे में हम लगातार चर्चा करते रहे हैं।रवींद्र साहित्य में पुरोहित तंत्र का जो विरोध है और आस्था और धर्म कर्म में पुरोहित तंत्र के वर्ण वर्चस्व का जो विरोध है,वही भारत की संत फकीर साधु बाउल फकीर गुरु परंपरा है।

कल उत्तर 24 परगना के बैरकपुर में एक अद्भुत सांगीतिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया।बांग्ला फोकलोर सोसाइटी के तत्वावधान में बाउल कवि लालन फकीर और लोककवि विजय सरकार के गीतों में रवींद्रनाथ का प्रभाव और रवींद्रनाथ पर उनका प्रभाव।रवींद्र के गीतों की तुलना में लालन फकीर के गीतों और विजय सरकार के गीतों की प्रस्तुति।

गौरतलब है कि हाल में उत्तर 24 परगना में धार्मिक ध्रूवीकरण की राजनीति की वजह से हाल में दंगे हुए।इस कार्यक्रम में बिना किसी प्रचार के एक बड़े प्रेक्षागृह में अंत तक जाति धर्म निर्विशेष आम जनता की मौजूदगी आखिर तक बने रहने का सच बताता है कि हमारे जनपदों में लोक संस्कृति की जड़ें कितनी मजबूत हैं।

रवींद्र नाथ का साहित्य जनपदों की एसी लोकसंस्कृति में रची बसी है और वही से वे सामाजिक यथार्थ को संबोधित करते हैं,जो अब भारतीय साहित्य और कला माध्यमों के कारपोरेट वर्चस्व के जमाने में सिरे से अनुपस्थित हैं और ज्यादातर लेखक,कवि,साहित्यकार इस सच का सामना करने से कतराते हैं।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बांग्ला साहित्य परिषद के वारिद वरण जी ने कहा कि राजनीतिक शोरशराबे और तकनीकी क्रांति के तांडव में लोक संस्कृति की चर्चा हमारी दिनचर्या से सिरे से गायब होती जा रही है।कुछ समय पहले तक जनपदों और गांवों के अलावा शहरों में लोक  संस्कृति की चर्चा दिनचर्या में शामिल थी।

रवींद्र साहित्य में लालन फकीर के प्रभाव पर बोलते हुए लोकसंस्कृति के विशेषज्ञ शक्तिनाथ झा ने कहा कि जब रवींद्रनाथ पूर्वी बंगाल के सिलाईदह में अपनी जमींदारी के कामकाज के सिलसिले में जाते रहे हैं,उसवक्त लालन फकीर की उम्र 116 के आसपास थी।कमसेकम सौ साल के थे वे।इसलिए यह कहना मुश्किल है कि उन दोनों की मुलाकात हुई या नहीं।लेकिन लालनपंथियोंके संपर्क में रवींद्र नाथ जरुर थे और अपने लिखे में रवींद्र नाथ ने बार बार लालन फकीर का उल्लेख किया है।

इसीतरह लोककवि विजय सरकार का कहना है कि विजय सरकार अपनी उपासना के दौरान रवींद्र के ही गीत गाते थे।यही नहीं,बंगाल में कविगान के मंच पर वे समकालीन कवि रवींद्रनाथ और काजी नजरुल इस्लाम की कविताओं को आम जनता तक पहुंचाने का काम करते थे।

आभिजात कुलीन तबके के दायरे के बाहर अपढ़ अधपढ़ आम जनता तक लोकसंस्कृति के माध्यम से रवींद्र और नजरुल की रचनाओं का वक्तव्य इसी तरह पहुंचता था।इसीतरह लोकसंस्कृति के मंच पर समकालीन य़थार्थ को सीधे सोंबोधित करके जनमत बनाने और जनांदोलन गढ़ने की शुरुआत हो जाती थी।

कार्यक्रम में भानुसिंह के नाम से संत कवि सूरदास से प्रेरित भानुसिंहेर पदावली के गीत मरणरे तुम श्याम समान  को गाने का बाद उत्तरा ने इसी मुखड़े के साथ विजय सरकार की गीत गाया तो लालन फकीर के मनेर मानुष गीत के मुकाबले रवींद्रनाथ का प्राणेर मानुष को प्रस्तुत किया गया।


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