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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, June 28, 2010

पीथमपुर को कार्बाइड का जहर

मुद्दा

 

पीथमपुर को कार्बाइड का जहर

राजेन्द्र बंधु इंदौर से

http://raviwar.com/news/347_union-carbide-next-target-pithampur-rajendrabandhu.shtml
भोपाल गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने में असफल रही सरकार अब मध्यप्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में दूसरी त्रासदी का इंतजाम कर रही है. मध्यप्रदेश सरकार द्वारा यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने के निर्णय के बाद अब भोपाल गैस त्रासदी पर गठित मंत्री समूह ने भी इस कचरे को पीथमपुर में ही नष्ट करने की बात कही है. विषाक्त कचरे के निपटारे का यह कदम न सिर्फ पर्यावरण के लिए विनाशकारी है, बल्कि वहां रह रहे पांच लाख श्रमिकों के जीवन से खिलवाड़ भी है.

bhopal-union-carbide


भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने में पड़ा जहरीला कचरा मानव जीवन के लिए अत्यन्त खतरनाक है. इस कचरे से वहां की जमीन और भूजल खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुका हैं. सन 1999 में ग्रीन पीस इंटरनेशनल के विशेषज्ञों ने भी अपनी रिपोर्ट में इस कचरे को भूमि के लिये खतरनाक स्तर तक प्रदूषित माना. इसके पहले मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इस कचरे को गुजरात के अंकलेश्वर स्थित प्लांट में जलाने का निर्णय लिया गया था, किन्तु गुजरात के लोगों के विरोध के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने इस कचरे को पीथमपुर के हवाले करने का निर्णय लिया.

इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में हुई एक सुनवाई में भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के निदेशक द्वारा 13 अप्रैल 2009 को न्यायालय में प्रस्तुत किए गए शपथ पत्र में कहा गया कि ''यूनियन कार्बाइड के खतरनाक अवशिष्ट को अंकलेश्वर के भस्मक में जलाए जाने की अनुमति इसलिए रद्द कर दी गई, क्योंकि वहां के नागरिक अधिकार समूहों द्वारा तीव्र विरोध दर्ज कराया गया.''

इस शपथ पत्र से यह स्पष्ट है कि यूनियन कार्बाइड का कचरा मानव जीवन के लिए खतरनाक है. तब यह सवाल उठता है कि आखिर पीथमपुर और उसके आसपास के लोगों को ही इसका शिकार क्यों बनाया जा रहा है? हालांकि सरकार द्वारा यह आश्वासन दिया जा रहा है कि पीथमपुर के जिस भस्मक में यह कचरा जलाया जाएगा, उससे कोई दुष्परिणाम नहीं होंगे. किन्तु इसके तकनीकी पहलुओं का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि सरकार का यह आश्वासन समस्या पर पर्दा ढकने की तरह है. भोपाल गैस त्रासदी से पहले यूनियन कार्बाइड पर व्यक्त किए गए संदेहों पर भी तत्कालीन सरकार द्वारा इसी तरह का आश्वासन दिया गया था.

इस मामले में कोई संदेह नहीं है कि भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने में पड़ा जहरीला कचरा मानव जीवन के लिए अत्यन्त खतरनाक है. गैस राहत एवं पुनर्वास संचालनालय भोपाल द्वारा सूचना के अधिकार के तहत इन्दौर के लोकमैत्री समूह को जारी किए गए दस्तावेज में कहा गया है कि ''यूनियन कार्बाइड में रखे हुए अवशिष्ट विषैले पदार्थ की श्रेणी में आते हैं.''

विशेषज्ञों के अनुसार यूनियन कार्बाइड का यह जहरीला कचरा इतना खतरनाक है कि दुनिया के सिर्फ तीन देशों कनाडा, जर्मनी और डेनमार्क में ही इसे सुरक्षित रूप से जलाने के प्लांट स्थित है. बताया जाता है कि इस कचरे को 1200 डिग्री सेंटीग्रेट से कम तापमान पर जलाये जाने पर इसमें से कई ऐसे रासायनिक तत्व निकलेंगे, जिससे पर्यावरण और जनस्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है.

आकलन से अधिक कचरा
सरकार द्वारा इस कारखाने में व्याप्त कचरे की मात्रा 350 टन बताई जा रही है, जबकि सन् 1969 में कारखाना स्थापित होने के बाद से ही लगातार जहरीला कचरा भोपाल की जमीन पर फेंका जा रहा था, जिसकी कुल मात्रा 27000 टन है. सन् 2007 में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 39.6 टन ठोस कचरा पीथमपुर तथा 346 टन ज्वलनशील अवशिष्ट को गुजरात के अंकलेष्वर में स्थित भस्मक में जलाने के निर्देश दिए थे, जबकि गुजरात सरकार ने इस कचरे को अपने यहां जलाने से इंकार कर दिया है.

दूसरी ओर जून 2008 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 39.3 टन कचरा पीथमपुर में दफन कर दिया गया. इस कचरे के दफन करने के बाद उसके समीप स्थित मंदिर के कुएं का पानी काला पड़ जाना और समीप बसे गांव तारपुर के लोगों द्वारा उस पानी का उपयोग बंद कर दिया जाना इसके दुष्परिणाम का ठोस सबूत है. इस दशा में यदि 27000 टन कचरा पीथमपुर में नष्ट किया जाएगा तो यहां के मानव जीवन पर होने वाले असर की कल्पना की जा सकती है.
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हला पन्ना
 

 
 मुद्दा : बात पते की 

नग्नता, नंगापन और मिस्टर सिंह मिसेज मेहता
मिस्टर सिंह मिसेज मेहता के निर्देशक प्रवेश भारद्वाज का कहना है कि विवाहेतर संबंधों की कहानी कहने में एक अजीब-सी ज़िम्मेदारी सिर पड़ जाती है कि कहीं आप विवाहेतर संबंधों की वकालत तो नहीं कर रहे हैं. प्रवेश निर्मल वर्मा की लंदन प्रवास की कहानियों से प्रेरित हैं लेकिन वे स्वीकारते हैं कि निर्मल वर्मा की जादुई भाषा जैसा इस फ़िल्म में कुछ नहीं है.
रविवार के लिये खास तौर पर प्रवेश भारद्वाज का आलेख
 
 कला : छत्तीसगढ़ 

पद्मश्री लौटाना चाहता है चरणदास
गरीबी और बीमारी ने उन्हें तोड़ दिया. पद्मश्री समेत सारे सम्मान बेमानी साबित हुये और आज हालत ये है कि अपनी दवाइयां खरीदने और गृहस्थी की गाड़ी चलाने के चक्कर में वे लाख रुपये के कर्जे में डूबे हुए हैं. उन्होंने तय किया है कि जो पद्मश्री न तो उनके काम आ सका और ना ही उनकी कला के. फिर ऐसे पद्मश्री का क्या अर्थ. वे सरकार को पद्मश्री लौटाना चाहते हैं.
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ से अतुल श्रीवास्तव की रिपोर्ट
     
 मुद्दा : पश्चिम बंगाल 

मुसलमानों की क्यों बदली प्राथमिकतायें
कोलकाता और पश्चिम बंगाल के अन्य शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों के नतीजे, वाममोर्चे के लिए धक्का पहुंचाने वाले रहे हैं. मतदाताओं पर वाममोर्चे के घटते प्रभाव को कई कारण हो सकते हैं, परंतु वाममोर्चे के कुछ नेताओं सहित अधिकांश लोग यह स्वीकार करते हैं कि वामपंथियों ने मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन खो दिया है, जो घटते जनाधार का महत्वपूर्ण कारण है.
डॉ. असगर अली इंजीनियर का विश्लेषण
 
 मुद्दा : कृषि 

दाल में काला क्यों है
एक समय था, जब दाल-रोटी आम आदमी का भोजन था. लेकिन अब गरीब लोगों की प्लेट से दाल लगभग गायब हो गई है. भारत सरकार ने अपनी लापरवाही से देश की जनता को महंगी दाल संकट के सामने परोस दिया है. अपने देश में उत्पादन बढ़ाने के बजाय मुख्यमंत्रियों के कार्यकारी समूह ने सुझाव दिया है कि भारत को दलहन और तिलहन की खेती करने के लिए विदेश में जमीन खरीदना चाहिये.
खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का विश्लेषण
     
 मिसाल बेमिसाल : झारखंड 

हौसले वाला स्कूल
रांची शहर के डोमटोली इलाके में चलने वाला एक स्कूल दूसरे सारे स्कूलों से अलग है. इसे न तो सरकार चलाती है और ना ही शिक्षा को उद्योग मानने वाले धनपति. कोई ट्रस्ट और एनजीओ भी नहीं.
रांची से अनुपमा कुमारी की रिपोर्ट
 
 मुद्दा : समाज 

इन बंजारों की धरती कहां है
भारत में कोई 500 ऐसी ज़मातें हैं, जिनकी अपनी कोई धरती नहीं है, अपनी कोई पहचान नहीं है. इनके संवैधानिक अधिकारों के सारे सवाल यहां मुंह के बल पड़े हुये हैं. मुंबई से शिरीष खरे की रिपोर्ट
 
     
 

खबरें और भी हैं

  पाकिस्तान में विस्फोट, 18 की मौत
  टाटा में पुलिस फायरिंग के बाद तनाव
  30 रुपये लीटर मिलेगा केरोसिन तेल
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  मुंबई के गुनहगारों से कड़ाई से निपटेंगे: कुरैशी
  गैस, पेट्रोल, डीज़ल और केरोसिन के दाम बढ़े
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 मुद्दा : बात पते की 

खबरों का ग्रीनहंट
मुंबई में कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स के कार्यक्रम में अपने व्याख्यान की पीटीआई द्वारा तोड़-मरोड़ कर लगभग झूठी खबर जारी करने को लेकर लेखिका अरुंधति राय का सवाल है कि क्या यह ऑपरेशन ग्रीनहंट का शहरी अवतार है.
 
 मिसाल बेमिसाल : आंध्र-प्रदेश 

एक नरक का सफाया
धर्म और सामाजिक परंपरा के नाम पर औरतों के कितने नरक हो सकते हैं, इसे अगर जानना हो तो आप आंध्र प्रदेश के गुंटूर की कुछपुरदर गांव की सरपंच रत्न कुमारी से बात कर सकते हैं. गुंटूर से लौटकर आशीष कुमार अंशु की रिपोर्ट
 
 मुद्दा : ओडीशा 

लापता तालाब उर्फ जिला नुआपाड़ा
अगर आपसे कहा जाये कि किसी गांव के तालाब गायब हो गये तो शायद आप यकीन न करें. लेकिन ओडिशा के नुआपाड़ा जिले के बिरीघाट पंचायत के झारसरम में ऐसा ही हुआ है. खरियार, ओडिशा से पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर की रिपोर्ट
         
 मुद्दा : मध्य प्रदेश 

पीथमपुर को कार्बाइड का जहर
भोपाल गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने में असफल रही सरकार अब मध्यप्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में दूसरी त्रासदी का इंतजाम कर रही है. राज्य सरकार द्वारा यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने के निर्णय के बाद अब भोपाल गैस त्रासदी पर गठित मंत्री समूह ने भी इस निर्णय को हरी झंडी दे दी है, जो लाखों लोगों के लिये खतरे की नई घंटी है.
इंदौर से राजेन्द्र बंधु की रिपोर्ट
 
 बहस : राजनीति 

इस सर्वे से सावधान
दिल्ली में इन दिनों मुस्लिम धर्म गुरुओं से एक भयावह सवालों से भरा सर्वे किया जा रहा है. सवाल ऐसे हैं, जिनके निष्कर्ष पहले से तय हैं. मसलन, क्या आप सोचते हैं कि पाकिस्तानी आतंकवादी आमिर अजमल कसाब को फांसी देना उचित था या कुछ ज्यादा ही कठोर है. आपकी राय में समुदाय सामाजिक मामलों में राजनैतिक नेताओं से ज्यादा प्रभावित है या धार्मिक नेताओं से.
दिल्ली से अजय प्रकाश की रिपोर्ट
 
 बहस : पाकिस्तान 

यह तो शांति की परिभाषा नहीं
यह सवाल 1947 जितना ही पुराना है कि आपके पैरों के नीचे जो जमीन है, वह कितनी पुख्ता है? क्या वह अलग-अलग आदर्शो वाले राष्ट्रवादियों का सामना कर सकती है, जो सेंध लगाने की फिराक में हैं? पाकिस्तानी राष्ट्रवाद में अन्याय और अविश्वास इतना गहरा है कि इस्लामाबाद कश्मीर वादी के कुछ हिस्से से कम पर समझौता करेगा नहीं और दिल्ली यह सौदा कभी कबूल करेगी नहीं.
वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर की राय
             
 साहित्य : कविता 

मनोज शर्मा | जम्मू
जीवन के झंझावात को बहुत आहिस्ते से उकेरने वाली इन कविताओं में मनोज शर्मा का कवि एक नये अर्थ-संभावनाओं के साथ नज़र आता है.
 
 साहित्य : कविता 

राहुल राजेश की कवितायें
युवा कवि राहुल राजेश की ये कवितायें महज प्रेम भर की कवितायें नहीं हैं. इन कविताओं में जीवन के विविध प्रसंग अपना विस्तार पाते हैं, विन्यस्त होते हैं और अंततः प्रेम भी.
 
 साहित्य : कहानी 

रिबाऊन्ड
कुछ दुख ऐसे होते हैं, जो शाश्वत होते हुए भी जब पहली बार महसूस होते हैं तो नये लगते हैं. मां-बेटी के द्वंद्व से कहीं अधिक मनुष्य के रिश्ते को उधेड़ती पुष्पा तिवारी की कहानी
 
 साहित्य : कविता 

लाल्टू की दस कवितायें
लाल्टू की कविताओं को सरसरी तौर पर पढ़ते हुये साफ लगता है कि ये कवितायें राजनीति की कवितायें हैं, ऐसी कवितायें, जो राजनीतिक नारों से कहीं अलग है.
             
 

देव प्रकाश चौधरी

लुभाता इतिहास-पुकारती कला

सीखना दिल से

संयुक्ता

गीत चतुर्वेदी

आलाप में गिरह

अरुण आदित्य

उत्तर वनवास

गीताश्री

नागपाश में स्त्री

 
 

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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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