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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, February 26, 2012

बाजार की अनिश्चितता के मद्देनजर मुनाफावसूली की सलाह,पिछले दरवाजे से देश की लाइफ लाइन रेलवे के निजीकरण की पूरी तैयारी!


बाजार की अनिश्चितता के मद्देनजर मुनाफावसूली की सलाह,पिछले दरवाजे से देश की लाइफ लाइन रेलवे के निजीकरण की पूरी तैयारी!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

सरकारी कंपनियों के विनिवेश के मामाले में प्रबंधकीय अदक्षता मुख्य मुद्दा है और ईंधन पर खर्च की वजह से राजकोषीय घाटे की पिछले​  दो दशक के दरम्यान ,खसकर भाजपा शासन के दोरान निजी कंपनियों के मालिकान से सजी विनिवेश परिषद की रपट आने के बाद से अबतक कोई चर्चा नहीं हुई। पर तेल की धार पानी से ज्यादा धारदार साबित होने लगा है। इसवक्त सर्विस सेक्टर को तरजीह देकर उत्पादन औक कृषि का बाजा बजा दिये जाने के बाद खुला बाजार की अर्थ व्यवस्था में राष्ट्र की सेहत शेयरों के उतार चढ़ाव पर निर्भर है। और इसवक्त अर्थ व्यवस्था के इस​ ​ कृत्तिम दिल की धड़कनें तेल की धार से प्रभावित है। कम से कम शेयर बाजार विश्लेषकों की मानें तो वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल
की कीमतों में लेकर भारी चिंता है।कीमतों के लेकर चिंता बढ़ने सेबढ़ने से देश के शेयर बाजारों को आने वाले दिनों में कुछ और बिकवाली दबाव पड़ सकता है। तमाम शेयर ब्रोकर बाजार की अनिश्चितता के मद्देनजर मुनाफावसूली की सलाह दे रहे हैं।योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने ऐसोचैम के सम्मेलन में कहा कि ब्याज दर मुख्य तौर पर इस पर निर्भर करेगा कि राजकोषीय घाटे का क्या होता है।वृद्धि दर को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण सस्ता करने की मांग के बीच योजना आयोग ने शुक्रवार को कहा कि रिजर्व बैंक की ब्याज दर को कम करने की कोई भी पहल मुख्य तौर पर सरकार की राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने की क्षमता पर निर्भर करेगी।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की हालिया रिपोर्ट एक चेतावनी है क्योंकि इसमें वृहद आर्थिक उलझनों को अधिक स्पष्टï रूप से पेश किया गया है। मीडिया का ध्यान जहां तेज आर्थिक विकास (7.5 से 8 फीसदी) पर केंद्रित है वहीं परिषद की रिपोर्ट में इसे उतनी तवज्जो नहीं दी गई है।पहली बार किसी सरकारी दस्तावेज में बाहरी मोर्चे पर मौजूद खतरों को स्पष्टï ढंग से रेखांकित किया गया है। चालू खाता घाटा जीडीपी के 3.6 फीसदी के स्तर पर है और उसे 2 फीसदी तक सीमित किया जाना चाहिए। तेल कीमतों में बढ़ोतरी और निर्यातक की कमजोरी के बीच ऐसा संभव नहीं दिखता। बाह्यï खाते के कठिनाई में पडऩे पर खतरा यह है कि पूंजी प्रवाह का अधिशेष जिससे अभी चालू खाता घाटे की भरपाई की जा रही है उस पर भी इसका असर होगा। इससे रुपये के बाह्यï मूल्य में गिरावट आएगी और परिषद के मुताबिक विदेशी मुद्रा के जोखिम वाली कंपनियों पर इसका असर पड़ सकता है।

आरबीआई में मार्च 2010 के बाद से प्रमुख ब्याज दरों में 13 बार बढ़ोतरी कर चुका है। अहलूवालिया ने यह भी कहा कि भारत में दीर्घकालिक ब्याज दरों का निर्णय इस आधार पर होगा कि राजकोषीय घाटे का क्या होता है और विदेश से आने वाले धन की स्थिति क्या होती है जिससे आम नकदी प्रभावित होगी।
   
मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने बढ़ते चालू खाते के घाटे (कैड) पर चिंता जाहिर की और कहा कि क्या भारत जीडीपी के तीन फीसदी के बराबर कैड का बोक्ष वहन कर सकता है जो 15 अरब डॉलर के सालाना प्रवाह के बराबर है। चालू खाते का घाटा विदेशों के साथ दैनिक लेन देन में धन की कमी को दर्शाता है जो इस साल जीडीपी के 3.6 फीसदी तक जा सकता है।

प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से आर्थिक सुधारों में गति जरूर आयी है, पर मंदी के साये मेंउद्योग जगत को करों में और छूट चाहिए। उद्योग संगठन सीआईआई ने सरकार को सलाह दी है कि आगामी बजट में उत्पाद शुल्क व सेवाकर की मौजूदा दरों को बरकरार रखा जा जाए ताकि निवेश को बढ़ावा मिल सके। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी 2012-13 का बजट अगले महीने पेश करने वाले हैं।अर्थव्यवस्था में निवेश में कमी के बीच सीआईआई ने अपने बजट-पूर्व मांगपत्र में आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा,  उत्पाद शुल्क व सेवाकर की मौजूदा दरों को बनाए रखने की बहुत जरूरत है जिससे उद्योग द्वारा निवेश में तेजी लाई जा सके। सीआईआई ने अपने एक बयान में कहा कि सरकार के बढ़ते राजकोषीय घाटे के मददेनजर उद्योग जगत में उत्पाद शुल्क बढ़ाए जाने की आशंका है। उद्योग संगठन ने कहा कि निवेश में बढ़ाेतरी मुख्य तौर पर निजी क्षेत्र से होनी चाहिए और बजट में इस बारे में बहुत कुछ किया जा सकता है।

कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और अधिक राजकोषीय घाटे को लेकर चिंताओं के मद्देनजर मुनाफावसूली बढ़ने से बीएसई सेंसेक्स में सात हफ्ते से जारी तेजी बीते हफ्ते थम गई और सेंसेक्स 366 अंक टूटकर 18,000 अंक के स्तर से नीचे बंद हुआ। कच्चे तेल के बढ़ते दाम ने भारत के आर्थिक समीकरणों में उलट फेर शुरू कर दिया है। जिस तरह से कच्चे तेल की कीमत बढ़ रही है, उससे पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी की संभावनाएं बन रही हैं। इससे महंगाई दर में बढ़ोतरी तय है। ऐसा होने पर ब्याज दरों में कमी की योजना पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। जब कच्चे तेल की कीमत 105 से 106 डॉलर प्रति बैरल थी, तब तेल कंपनियों को पेट्रोल पर करीब 8 रुपये प्रति लीटर का और डीजल पर करीब 11 रुपये का घाटा हो रहा था। सूत्रों के अनुसार, तेल कंपनियों ने सरकार पर पेट्रोल के दाम बढ़ाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। वरना, घाटा इतना अधिक हो जाएगा कि भरपाई मुश्किल हो जाएगी।  ऐसे में आरबीआई किस सीमा तक ब्याज दरों में कमी पर अमल करेगा, इसको लेकर आशंका बनी हुई है।मालूम हो कि घटती महंगाई दर के कारण ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें बढ़ी हुई हैं। मगर कच्चे तेल के बढ़ते दाम इन्हें कम कर सकते हैं।

निजी कंपनियों को इस विकट पिरस्थिति में भी रिजर्व बैंक राहत देने में लगा है।उद्योगपतियों को करों में छूट का कभी खुलासा नहीं होता।​​ बजट का मतलब है सिरे से बैंड बाजा के साथ आयकर दरों में राहत का ऐलान। जनता खुश। पर उद्योगपतियों को करों में लाखों करोड़ कीछूट देते रहने से हर साल विदेशी कर्ज बढ़ता जाता है। इस कर्ज का कभी भुगतान नहीं किया जाता। ब्याज निरंतर बढ़ता जाता। राजकोषीय घाटा भी। पर विशेषज्ञ इस मसले पर चर्चा तक नहीं करते। आम जलता को तो खैर सूचना तक नहीं होती। औपचारिक बेल आउट की घोषणा कभी नहीं हुई, पर कारपोरेट घराने लगातार मंदी को भुनाते रहे। ईंधन संकट की तो खूब चर्चा हो रही है, पर करों में छूट का मामला परदे के पीछे की सौदेबाजी है। जिससे कभी​ ​एअर इंडिया, तो कभी थेल कंपनियों को मामूली खैरात बांबांटकर जोर शोर से प्रचार किया जाता है। जहां तक सामाजिक सरोकार की परियोजनाएं हैं, उसका मकसद सरकारी खर्च बढ़ाकर बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़ाना है। वंचितों के हाथों में नकदी आयेगी, तो आखिर उपभोक्ता बाजार​ ​ ही बढ़ेगा। अब भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्ज की वसूली के समय चूककर्ता (डिफाल्टर) कर्जदार को शर्मिंदगी न झेलनी पड़े। रिजर्व बैंक के प्रमुख कानूनी सलाहकार जी. एस. हेगडे ने शनिवार रात मदुरै में संगोष्ठी में यह बात कही। उन्होंने कहा कि बैंकों को धन की वसूली के लिए ट्रेन्ड एजेंट रखने चाहिए और यह इंपॉर्टेंट है कि कर्जदाताओं से 'मानवीयता' से पेश आया जाए।

खाद्य सुरक्षा विधेयक को लेकर मंत्रिमंडल में मतभेद थे और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद को भी यह रास नहीं आया था। एतराज जताने वालों की दलील रही है कि इस योजना के कारण खाद्य सबसिडी बहुत बढ़ जाएगी। राजकोषीय घाटे को पाटने के सरकार के लक्ष्य और अर्थव्यवस्था के लिए यह ठीक नहीं होगा। मगर यही बात तब भुला दी जाती है जब उद्योग घरानों को करों में रियायत दी जाती है या एअर इंडिया को घाटे से उबारने के लिए पैकेज जारी किए जाते हैं। संसद के इसी सत्र में वित्त मंत्रालय ने बताया है कि उद्योगपतियों को करों में छूट और प्रोत्साहन के तौर पर साढ़े चार लाख करोड़ रुपए सरकार ने वहन किए। इसकी तुलना में गरीबों और किसानों को दी जाने वाली सबसिडी बहुत कम है। संसद में वित्त मंत्रालय ने बताया है कि उद्योगपतियों को करों में छूट और प्रोत्साहन के तौर पर 4.50 लाख करोड़ रुपए सरकार ने वहन किए। इसकी तुलना में गरीबों और किसानों को दी जाने वाली सबसिडी बहुत कम है।


इस बीच खबर हे कि पिछले दरवाजे से देश की लाइफ लाइन रेलवे के निजीकरण की पूरी तैयारी है। इस बार रेल बजट में स्टेशनों को हाई टेक करने से लेकर निर्माण सुविधाएं बढ़ाने के लिए इकाई लगाने में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) प्रोजेक्टों की बौछार होगी।जाहिर है कि शेयर बाजार में रेलवे से जुड़े शेयरों में खास हलचल दीखने लगी है।सरकार ने ये घोषणा की थी कि इस बार रेल बजट में स्टेशनों को हाई टेक करने से लेकर निर्माण सुविधाएं बढ़ाने के लिए इकाई लगाने में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) प्रोजेक्टों की बौछार होगी। ये खबर टीटागढ़ वैगन्स और टेक्सको के लिए उत्साहवर्द्धक है। रेलवे-वैगन निर्माण बाजार में ये दोनों कंपनियां 60 परसेंट का हिस्सा रखती हैं। भले ही अगले माह रेलमंत्री द्वारा रेल बजट पेश किए जाने की तैयारी की जा रही है, लेकिन आम जनता को हर बार की तरह इस मर्तबा भी कोई खास उम्मीदें नहीं हैं क्योंकि पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी द्वारा अपने मंत्रित्वकाल के दौरान जो रेल बजट पेश किया गया उनमें की गई 70 प्रतिशत से अधिक घोषणाएं मात्र कागजों तक ही सीमित हैं। पहली बार रेल बजट पेश करने की तैयारी कर रहे रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के पास योजनाएं चाहे जितनी हों, लेकिन पूंजी की कमी है। यह बात खुद रेल मंत्री ने रविवार दोपहर चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कही। इस दौरान उन्होंने रेल बजट में किराया बढ़ाने के संकेत भी दिए।रेल मंत्री ने कहा कि वह रेलवे का नवीनीकरण करना चाहते हैं। रेलवे के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरा है, लेकिन सुरक्षा से लेकर रखरखाव तक कुछ भी ठीक नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि इसके लिए वह क्या कर रहे हैं, तो उन्होंने करारा सा जवाब दिया, 'रेलवे के पास पूंजी की कमी है। अब हम सरकार से आस लगाए हुए हैं कि वह रेलवे की बेहतरी के लिए कुछ मदद करे।' उन्होंने कहा कि फ्रांस जैसे देश जहां रेलवे का नेटवर्क बहुत कम है, वहां की सरकार रेलवे को एक लाख करोड़ रुपये देती है, लेकिन हमारे देश में रेलवे को बहुत कम मदद दी जाती है। इससे रेलवे अपना आधुनिकीकरण नहीं कर पा रहा है। जब उनसे पूछा गया कि यदि सरकार आपको मदद नहीं देगी, तो आपकी क्या रणनीति होगी? उन्होंने कहा कि फिर रेलवे को अपने स्तर पर धन जुटाना पड़ेगा। इससे रेल मंत्री ने रेल भाड़े में वृद्धि संकेत दिए।

रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी 14 मार्च को अपना पहला रेल बजट पेश करने वाले हैं। इससे पहले एक उच्च स्तरीय समिति ने मंत्रालय को नई रेलगाड़ियां चलाने के बजाय अगले कुछ वर्षों तक रेलगाड़ियों में सुरक्षा इंतजामों पर ध्यान देने की सलाह दी है।

दूसरी ओर प्रमुख तेल कंपनी ओएनजीसी में सरकार की 5 फीसद हिस्सेदारी बिक्री का खाका तैयार करने के संबंध में सोमवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रिसमूह की बैठक में होगी। कंपनी में हिस्सेदारी बेचकर सरकार 12,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है।मंत्रिसमूह ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी से जुड़े न्यूनतम या आरक्षित मूल्य का निर्धारण कर सकता है।बंबई स्टाक एक्सचेंज में फिलहाल कंपनी का शेयर भाव 284.25 रुपये है।ओएनजीसी की हिस्सेदारी बेचने से सरकार को चालू वित्त वर्ष के लिए तय अपने 40,000 करोड़ रुपये के विनिवेश के लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी। सरकार अभी तक सिर्फ पीएफसी में विनिवेश से 1,145 करोड़ रुपये जुटा सकी है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की एनबीसीसी ने भी सेबी में आईपीओ के लिए मसौदा पत्र सौंपा है जिससे करीब 250 करोड़ रुपये जुटाए जा सकते हैं। हाल में सेबी ने प्रवर्तकों को स्टाक एक्सचेंज के नीलामी विंडो के जरिए 10 फीसद तक हिस्सेदारी बेचने की मंजूरी दी है।

ऊंचे राजकोषीय घाटे को देखते हुए ब्याज दरें घटने की संभावना क्षीण होने और कच्चे तेल (क्रूड) की तेजी ने निवेशकों में निराशा बढ़ा दी। इसके चलते उन्होंने दलाल स्ट्रीट में शुक्रवार को लगातार तीसरे सत्र में मुनाफावसूली जारी रखी। इससे बंबई शेयर बाजार (बीएसई) का सेंसेक्स 154.93 अंक गिरकर 18,000 के नीचे आ गया। इस दिन यह 17,923.57 अंक पर बंद हुआ। इन तीन दिनों में यह करीब 505 अंक लुढ़का है। इसी प्रकार नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 54 अंक टूटकर 5,429.30 पर बंद हुआ। राजकोषीय घाटे में वृद्धि को देखते हुए अगले महीने रिजर्व बैंक की समीक्षा बैठक मे ब्याज दरों में कटौती की संभावना धूमिल हुई है। ईरान द्वारा तेल आपूर्ति पर चिंता बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड के दाम बढ़कर 124 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गए हैं। इसके चलते विश्व भर के शेयर बाजारों में बिकवाली का दौर शुरू हो गया। एचडीएफसी में सिटीग्रुप द्वारा संपूर्ण हिस्सेदारी बेचने की खबरों से भी बाजार की धारणा सुस्त हुई। बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स मजबूती के साथ 18,079.01 अंक पर खुला। ऊंचे में यह 18,195.15 अंक तक गया। बाद में बिकवाली शुरू होने से यह एक वक्त 17,848.93 अंक के ऊंचे स्तर को छू गया। बीएसई में कैपिटल गुड्स और रियल्टी कंपनियों के शेयरों पर सबसे ज्यादा बिकवाली की मार पड़ी। बैंकिंग व रिफाइनरी शेयरों की भी पिटाई हुई। वैसे, इस दिन मेटल, आइटी और टेक्नोलॉजी कंपनियों के शेयरों में निवेशकों ने कुछ दिलचस्पी दिखाई। सेंसेक्स की तीस कंपनियों में 16 के शेयर टूटे, जबकि 14 में बढ़त दर्ज हुई।

कमजोर वैश्विक रुख के बीच मौजूदा ऊंचे स्तर पर स्टॉकिस्टों की बिकवाली के चलते सोने में लगातार दूसरे दिन गिरावट जारी रही। स्थानीय सराफा बाजार में शनिवार को पीली धातु के भाव 75 रुपये टूटकर 28 हजार 865 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। मांग में कमी आने से चांदी 200 रुपये फिसलकर 58 हजार 100 रुपये प्रति किलो बंद हुई। अमेरिका की आर्थिक स्थिति में सुधार के संकेतों से ग्लोबल बाजार में चालू सप्ताह में पहली बार सोने में गिरावट आई। न्यूयॉर्क में पीली धातु 6.50 डॉलर गिरकर 1773.60 डालर प्रति औंस हो गई। इसका असर घरेलू बाजार की कारोबारी धारणा पर भी पड़ा। स्थानीय बाजार में सोना आभूषण के भाव 75 रुपये घटकर 28 हजार 725 रुपये प्रति दस ग्राम बंद हुए। आठ ग्राम वाली गिन्नी पूर्वस्तर 23 हजार 500 रुपये प्रति आठ ग्राम पर बनी रही। चांदी साप्ताहिक डिलीवरी 65 रुपये सुधरकर 58 हजार 465 रुपये किलो बोली गई। चांदी सिक्का 1000 रुपये की गिरावट के साथ 72,000-73,000 रुपये प्रति सैकड़ा हो गया।

23 फरवरी, 2012 को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 122 अमरीकी डॉलर प्रतिबैरल को पार कर गई

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन पेट्रोलियम योजना और विश्‍लेषण प्रकोष्‍ठ (पीपीएसी) द्वारा इंडियन बॉस्‍केट के लिए संगणि‍त/ प्रकाशित अंतर्राष्‍ट्रीय बाजार में कच्‍चे तेल की कीमतें बढ़कर 122.06 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है। पीपीएसी द्वारा अपनी वेबसाइट पर संगणित और प्रकाशित ये मूल्‍य 23 फरवरी, 2012 को अंतिम कारोबारी आंकड़ों पर आधारित हैं। 22 फरवरी, 2012 को तेल की कीमतें 121.34 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल थी।

रुपये में यह कीमत 6011.46 रुपये प्रति बैरल थी, जबकि 22 फरवरी, 2012 को यह 5976.00 रूपये प्रति ‍बैरल थी। यह डॉलर के मुकाबले कच्‍चे तेल की कीमतों में वृद्धि‍के कारण हुई। हालांकि‍23 फरवरी, 2012 को रुपया/डॉलर वि‍नि‍मय दर अपरि‍वर्तनीय रहते हुए 49.25 रुपये प्रति‍अमरीकी डॉलर के स्तर पर रही

केआईएम ईएनजी इंडिया सिक्योरिटीज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उम्मीद है कि आने वाले वर्ष में सरकार 21 हज़ार वैगन खरीदेगी। वैगन-खरीद का ये आंकड़ा वित्त-वर्ष 2010 में 18 हज़ार का था।

एनएसई पर टेक्समाको के शेयर 2.34 परसेंट के उछाल के साथ 153.20 रुपए पर कारोबार करते देखे गए। अब तक के कारोबार में शेयर 154.70 रुपए का हाई और 149 रुपए का लो छू चुका है। वहीं, टीटागढ़ वैगन्स के शेयर 2.77 परसेंट के उछाल के साथ 415.95 रुपए पर कारोबार करता देखा गया। अब तक की ट्रेडिंग में शेयर 418.80 रुपए तक चढ़ चुका है और 397 रुपए का लो देख चुका है।

इसके अलावा, कर्नेक्स माइक्रोसिस्टम्स के शेयर 2.25 परसेंट चढ़कर 163.25 रुपए पर कारोबार करते देखे गए। वहीं, स्टोन इंडिया 3.21 परसेटं चढ़कर 65.85 रुपए पर नज़र आया।

बाजार सूत्रों ने कहा कि कच्चे तेल की अधिक कीमतों के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने की आशंका है जिससे निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई। जियोजित बीएनपी पारिबा के रिसर्च प्रमुख एलेक्स मैथ्यू ने बताया कि इस सप्ताह शेयर बाजार में कुछ और बिकवाली देखने को मिल सकती है, क्योंकि वैश्विक कच्चे तेल के मूल्य में तेजी ने चिंता पैदा कर दी है जिससे रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती किए जाने की संभावना घट रही है।

हालांकि, प्राथमिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सप्ताह भी विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अपनी लिवाली जारी रखी और उन्होंने बाजार में 11,793.70 करोड़ रुपए निवेश किया। इससे पिछले सप्ताह विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शेयर बाजार में 4,754.20 करोड़ रुपए का निवेश किया था।

वे टू वेल्थ ब्रोकर्स के मुख्य परिचालन अधिकारी अंबरीश बलीगा ने बताया कि पिछले कुछ सप्ताहों में मजबूती देखने के बाद बाजार में तकनीकी सुधार देखने को मिल सकता है। कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 110 डॉलर प्रति बैरल हो गई है। साथ ही, इस हफ्ते निवेशकों की नजर सप्ताहांत के दौरान होने वाली जी-20 की बैठक पर होगी। शुक्रवार को अमेरिका के रोजगार आंकड़ों की घोषणा की जाएगी।

परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में गठित समिति ने हाल ही में मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें कहा गया है कि संचालन तथा रखरखाव का पर्याप्त इंतजाम किए बगैर नई रेलगाड़ियां नहीं चलाई जानी चाहिए। समिति ने इसके लिए अगले पांच साल के दौरान करीब 5,000 करोड़ रुपये का प्रावधान करने की आवश्यकता जताई।

समति के अनुसार, पिछले दशक में रेलवे की आधारभूत संरचनाओं में कमी के बावजूद नई रेलगाड़ियां चलाई गई हैं। पिछले पांच साल में स्थिति बदतर हुई है। इस दौरान 500 से अधिक नई रेलगाड़ियां चलाई गई, कई रेलगाड़ियों की आवाजाही बढ़ाई गई और उसमें अधिक कोच जोड़े गए। इन सभी का असर सुरक्षा पर पड़ रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यात्री रेलगाड़ियों की संख्या में हर साल वृद्धि का असर रेलवे की सुरक्षा तैयारियों पर हो रहा है। समिति का यह भी कहना है कि ऐसा मुख्य रूप से राजनीतिक कारणों से किया जाता है और इस क्रम में सुरक्षा इंतजामों को दरकिनार कर दिया जाता है।

रेलवे बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष आर. के. सिंह ने समिति की अनुशंसा का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि रेलवे को अगले कुछ साल के लिए नई रेलगाड़ियां चलाने पर रोक लगा देनी चाहिए, जब तक कि इसकी वित्तीय स्थिति ठीक नहीं हो जाती।

उन्होंने कहा कि अधिक दूरी तक रेल पटरियां बिछाने तथा रखरखाव और यात्रियों की सुरक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए। वहीं, रेलवे बोर्ड के एक अन्य पूर्व अध्यक्ष जे. पी. बत्रा ने काकोदकर समिति की अनुशंसा पर अलग विचार व्यक्त किया है।

उन्होंने कहा कि यह सैद्धांतिक रूप से तो सही है, लेकिन व्यावहारिक नहीं है। भारत की आबादी एक अरब से अधिक है और लोगों की उम्मीदों को ध्यान में रखते हुए रेलवे को कुछ नई रेलगाड़ियां चलाने की घोषणा करनी पड़ेगी।
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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