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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, February 27, 2012

अब राजनीति की मोहताज होकर श्रमिक वर्ग से दगा करने का खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा इन मजदूर संगठनों को!

अब राजनीति की मोहताज होकर श्रमिक वर्ग से दगा करने का खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा इन मजदूर संगठनों को!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

भारत में मजदूर आंदोलन की स्वायत्ता खत्म हो जाने से मजदूर आंदोलन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।मालूम हो कि मजदूर संगठनों पर आजादी के बाद वामपंथियों का एकाधिकार रहा है। लड़ाकू मजदूर संगठन इस दरम्यान बंगाल, केरल और त्रिपुरा में पिछले साढ़े तीन दशकों की वामपंथी ​​सरकारों के हालहवाल से इसतरह नत्थी  हो गये कि मुख्य पाराथमिकता इन सरकारों को सत्ता में बनाये रखने की हो गयी। १९९१ से जो आर्थिक​ ​ सुधार लागू हुए , उससे उत्पादल प्रणाली, कृषि और उत्पादक समुदायों की ऐसी तैसी ही नहीं हुई, उनका वजूद तक मिटने को है। अब २८​ ​ फरवरी को होनेवाली हड़ताल से इन संगठनों की औकात का खुलासा हो जायेगा। क्योंकि बंगाल और केरल में वामपंथी अब सत्ता से बाहर हैं और वहां उन्हें पांव जमाने का ठौर नहीं मिल रहा है। जिस मुंबई से नारायणजी लोखांडे ने भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलनकी शुरुआत की , वहां भगवा वर्चस्व है। त्रिपुरा में वामपंथी सत्ता में जरूर हैं, पर एक तो वह बाकी भारत से कनेक्टीविटी की वजह से शेष पूर्वोत्तर भारत की तरह अलग थलग है, दूसरा यह कि वहां वामपंथियों के लंबे शासनकाल में औद्योगिक विकास नाममात्र ही हुआ।अब राजनीति की मोहताज होकर श्रमिक वर्ग से दगा करने का खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा इन मजदूर संगठनों को।

मालूम हो कि विनिवेश की असली कार्रवाई अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के जमाने में अरुण शौरी को विनिवेश मंत्री बनाने के साथ हुई। इस बीच एक एक करके सरकारी कंपनियों का निजी करण होता रहा, विमानन, बिजली, तेल, बैंकिंग, बीमा, स्वास्थ्य, शिक्षा, बंदरगाह, विनिर्माण,खुदरा बाजार,​​ यहां तक कि खेती तक पर खुला बाजार का वर्चस्व हो गया। मजदूरों से लेकर सरकारी कर्मचारियों की सेवाएं या तो खत्म है गयीं. या कार्यस्थितिया जटिल होतीं गयीं। नयी नियुक्तियां सिरे से बंद हो गयी। उत्पादन के बजाय सर्विस सेक्टर प्राथमिकता बन गया। पक्की नौकरी के बजाय छठेके पर हो गयी​ ​ नौकरियां। वामपंथी सरकारे बचाने के फेर में कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस का साथ देते रहे। यूनियने चुपचाप समझौतों पर दस्तखत करती रहीं। जबकि भाजपा लगातार आर्थिक सुधार और तेज करने की गुहार लगाती रही। अगर यूनियनें राजनीति से स्वायत्त होतीं ौर उन्हें वाकई मजदूर हितों की परवाह होती, तो परिदृश्य ही दूसरे होते। सरकारी कंपनियों का निजीकरण असंभव हो जाता और विनिवेश की नौबत ही नहीं आती। आर्थिक सुधारों के लिए कांग्रेस और भजपा दोनों सक्रिय हैं। हड़ताल में भाजपा के शामिल होने से आर्थिक सुधारों के खिलाफ लड़ाई बेमानी हैं। अर्थव्यवस्था शेयर बाजार के हवाले ङैं और शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की मर्जी चलती है। अब हालात ऐसे हैं कि भारतीय शेयर बाजार का मूड इस हफ्ते मुख्य रूप से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीदारी पर निर्भर करेगा। यूरोप के केंद्रीय बैंक इसी हफ्ते यूरो जोन के बैंकों की फंडिंग के दूसरे दौर की शुरुआत करेंगे। बाजार के जानकारों के एक तबके का मानना है कि इस साल सेंसेक्स बिना किसी बड़ी खबर के पहले ही 16 फीसदी चढ़ चुका है।

बहरहाल मंगलवार का दिन आम लोगों के लिए मुश्किलों भरा हो सकता है। देश के सभी मजदूर संगठनों ने मंगलवार को यूपीए सरकार के खिलाफ हड़ताल का ऐलान किया है। महंगाई और सरकार की नीतियों के विरोध में वामपंथी, बीजेपी और खुद कांग्रेस के मजदूर संगठन पहली बार एक मंच पर आ गए हैं। रेलवे को छोड़कर सभी सेक्टरों में आम हड़ताल का ऐलान किया गया है।सूत्रों के मुताबिक, हड़ताल में 8 लाख बैंक कर्मचारी और 7-8 लाख अन्य सरकारी विभागों के कर्मचारी मौजूद रहेंगे। वहीं रेलवे इस हड़ताल का हिस्सा नहीं होगा। इसके अलावा सरकारी बैंक, आरबीआई, सरकारी कंपनियां, ट्रांसपोर्ट, टेलिकॉम, ऑयल कंपनियां और माइनिंग कंपनियों के अधिकतर कर्मचारी शामिल होंगे। हालांकि दावा यह है कि  वैचारिक मतभेद को पीछे छोड़कर देश के सभी मजदूर संगठनों ने मंगलवार को यूपीए सरकार के खिलाफ हड़ताल का ऐलान किया है।

लेकिन हकीकत यह कि कोई भी ट्रेड यूनियन स्वायत्त नहीं है और राजनीत उनकी दशा दिशा तय करती है। मजदूरों के हित सर्वोपरि नहीं है, राजनीतिक लाभ नुकसान सर्वोच्च प्राथमिकता है। मसलन ममता बनर्जी जो कल तक लड़ाकी आंदोलनकार के रुप में जानी जाती थी, अब इस महा हड़ताल को विफल करने के लिए हड़तालियों को सर्विस ब्रेक तक की धमकी दे चुकी है। जिस बंगाल मैं ऐसी हड़ताले सबसे ज्यादा कामयाब होती रही हैं, वहीं अब सरकारी कर्मचारियों को यूनियनबाजी की इजाजत तक नहीं है। दफ्तरों में रात बिताकर बंगाल के कर्मचारी हड़ताल के दिन पर काम करेंगे, ममता बनर्जी ने ऐसा इंतजाम किया है। हड़ताल के दिन अगर दुकान नहीं खुली तो भविष्य में दुकान कभी नहीं खुलेगी, ऐसा फरमान जारी किया है। इसपर तुर्रा यह कि बंगाल के परिवहन मंत्री ने चेताया  है कि ज्यादातर गाड़ियों गैरकानूनी हैं, सरकार की मर्जी से चल रही हैं, अगर हड़ताल के दिन गाड़ियां नहीं निकली तो आगे उन्हें सड़क पर उतरने की इजाजत नहीं होगी। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई अलग होगी।

ममता सरकार में मंत्री अभी कल तक बंगाल के इंटक के लड़ाकू नेता सुब्रत मुखर्जी हड़ताल को नाकास बनाने में ममता के मुख्य सिपाहसलार है।

बंद-हड़ताल को लेकर तृणमूल कांग्रेस और माकपा में चल रहे टकराव के बीच ममता बनर्जी ने स्पष्ट कर दिया कि वह बात-बात पर बंद-हड़ताल नहीं होने देंगी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 28 फरवरी को प्रस्तावित आम हड़ताल को लेकर शनिवार को कांग्रेस का नाम लिए बिना एक तरह से प्रदेश में पार्टी के एक तबके पर कटाक्ष किया।

ममता ने साल्ट लेक स्टेडियम में असंगठित मजूदरों की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने देखा है कि कुछ लोग तुच्छ से मामले पर शोरशराबा कर रहे हैं। वे नहीं चाहते कि जनता शांति से रहे। इन लोगों के लिए माकपा सरकार के दौरान दिन अच्छे थे। पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस समिति और इंटक के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने शुक्रवार को कहा था कि वे 28 फरवरी को आम हड़ताल का समर्थन नहीं करेंगे बल्कि औद्योगिक हड़ताल का समर्थन करेंगे। ममता ने कहा कि कुछ लोग हैं, जो पिछले 35 साल से माकपा के एजेंट थे। हम उन्हें और प्रोत्साहित नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि जो भड़काएंगे उन्हें साजिश रचने वाला समझा जाएगा। जो साजिशकर्ताओं को प्रोत्साहित करते हैं, वे खुद भी षड्यंत्रकारी होते हैं। ये लोग माकपा सरकार के दौरान शांत थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि ये वे लोग हैं जिन्होंने सिंगूर, नंदीग्राम और नेताई में भूमि अधिग्रहण को लेकर हुए अत्याचार के दौरान आंखें मूंदें रखीं। उन्होंने कहा कि हम किसी को माकपा का ढिंढोरा और नहीं पीटने देंगे।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा वरिष्ठ कूटनीतिविद् शशि थरूर ने 28 फरवरी को श्रमिक यूनियनों की हड़ताल के विरोध में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सख्त रुख को सही करार दिया और कहा कि हड़ताल अपने आप में नकारात्मक सोच है और इसका विरोध सही है। उन्होंने कहा हम काम करते हुए भी अपना विरोध दर्ज करा करते हैं। थरूर रविवार को पुस्तक लोकार्पण के लिए महानगर के दौरे पर थे। लोकार्पण समारोह के बाद जब उनसे पत्रकारों ने मंगलवार को आहूत देशव्यापी हड़ताल के सम्बन्ध में प्रतिक्रिया चाही तो उन्होंने हिंदी में कहा कि यह यह निगेटिव सोच है। मुख्यमंत्री इसका विरोध कर ठीक कर रही है। देश को यदि विकास करना है तो काम के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। स्ट्राइक और हड़ताल विकास का मार्ग अवरुद्ध कर देते है।


हड़ताल करने वालों में बैंक यूनियनें भी हैं। इन्होंने आउटसोर्सिंग के खिलाफ मंगलवार को हड़ताल करने का फैसला किया है। ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयीज असोसिएशन के जनरल सेकेटरी सी.एच. वेंकटचलम ने दावा किया कि विभिन्न बैंक यूनियनों से जुड़े करीब 8 लाख कर्मचारी इस हड़ताल में शामिल होंगे। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया समेत कई दूसरे बैंकों ने कहा है कि यदि हड़ताल होती है तो सेवाओं पर असर पड़ेगा।इस बीच नकदी का इंतजाम किये बगैर रिजर्व बेंक की ब्याजदरें घटाये बगैर बैंकों के लिए नी मुसीबत खड़ी हो गयी है। वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैंकों से मार्च से पहले इंटरेस्ट कम करने के लिए कहा है। ऐसा हुआ तो कंज्यूमर्स और इंडस्ट्री के लिए सस्ते लोन का इंतजार थोड़ा पहले ही खत्म हो जाएगा। बैंकों ने पहले कहा था कि वे अप्रैल से शुरू होने जा रहे अगले फाइनैंशल ईयर में ही इंटरेस्ट रेट में कमी करने की सोचेंगे।  फाइनैंशल सर्विसेज डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी डी के मित्तल ने कहा, ' हमने बैंकों से कहा है कि जितना भी मुमकिन हो, वे इंटरेस्ट रेट में कमी लाएं। इसका मकसद पॉजिटिव माहौल बनाना है। हम बैंकों के कामकाज में दखल देने की कोशिश नहीं कर रहे। '

वेतन और नियुक्तियां संबधी विसंगतियों को दूर करने के साथ १४ सूत्री मांगों को लेकर बैंक कर्मचारियों ने श्रम संगठनों के साथ मिलकर  २८ फरवरी को एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर जाने की घोषणा की है। देश में कार्यरत सभी केन्द्रीय श्रम संगठन, भारतीय मजूदर संघ, इन्टक, एटक, हिन्द मजूदर सभा, सीटू, एआई यूटी एवं अन्य ने सरकार पर श्रम विरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगाते हुए इस हड़ताल का आह्वान किया है। भारतीय मजदूर संघ की औद्योगिक इकाई नेशनल आर्गेनाइजेशन आफ बैंकर्स ने कहा है कि वह इन श्रम संगठनों के समर्थन में इस हड़ताल में हिस्सा ले रही है। बैंकों ने इन संगठनों की मांगों का समर्थन करने के साथ ही सरकार के समक्ष अलग से अपनी १४ सूत्री मांगें रखी हैं। इन मांगों में  बैंक कर्मचारी की मृत्य होने की स्थिति में उसके आश्रितों में से किसी एक को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी देने, सभी वेतन ग्रेड वाले अशंकालिक कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति करने, बैंक कर्मचारियों के आपात एवं वाहन ऋणों के सबंध में एकरूपता लाने, पांच दिवसीय कार्य सप्ताह लागू करने, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कर्मचारियों के वेतन मान,भत्ते और  सेवानिवृत्ति परिलाभ राष्ट्रीयकृत बैंकों के कर्मचारियों के अनुरूप करने तथा भारतीय राष्ट्रीय सहकारी बैंक की स्थापना जैसी मांगें शामिल हैं। बैंक संगठनों ने इसके साथ ही खंडेलवाल समिति की सिफारिशें निरस्त करने, सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों का निजीकरण और  विलय रोकने तथा औद्योगिक घरानों को बैंक शुरू करने का लाइसेंस दिए जाने के  मुद्दे पर सरकार के समक्ष अपना सख्त विरोध भी जताया है।

दूसरी ओर ओएनजीसी में पांच फीसदी हिस्सेदारी बेचने के मुद्दे पर आज मंत्रियों की बैठक होनी है। इस बैठक की अध्यक्षता वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी करेंगे। सरकार ओएनजीसी की पांच फीसदी हिस्सेदारी बेचकर 12 हजार करोड़ रुपये जुटाना चाहती है। आज बैठक में हिस्सेदारी बेचने से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा होगी। इसी महीने के शुरुआत में ओएनजीसी ने हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया था। बाजार में ओएनजीसी के शेयरों का मुल्य 284 रुपये के आसपास है ...इससे पहले मंत्रियों के समूह ने नीलामी के जरिए सरकार की ओएनजीसी में हिस्सेदारी बेचने पर मंजूरी दी थी। सरकार ने इस साल मार्च अंत तक 40,000 करोड़ रुपये विनिवेश के जरिए जुटाने का लक्ष्य रखा है।तो मजदूर संगठनों ने क्या कर लिया?

ओएनजीसी के पूर्व चेयरमैन, आर एस शर्मा का कहना है कि ओएनजीसी के शेयरों की नीलामी के लिए रिजर्व प्राइस सीएमपी से कम तय किया जा सकता है।


माना जा रहा है कि सरकार ओएनजीसी ऑक्शन का रिजर्व प्राइस 270 रुपये प्रति शेयर रख सकती है। जबकि, शेयरों का औसत भाव 290 रुपये रहने की उम्मीद है।


आर एस शर्मा के मुताबिक सरकार ऑक्शन के जरिए ओएनजीसी के 5 फीसदी हिस्सा बेचने में कामयाब होगी। ओएनजीसी के शेयरों के लिए बाजार में काफी मांग है।






ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के जनरल सेकेटरी गुरुदास दासगुप्ता ने कहा कि पहली बार सभी प्रमुख 11 ट्रेड यूनियनें हड़ताल में हिस्सा ले रही हैं।  हड़ताल करने वालों में बैंक यूनियनें भी हैं। इन्होंने आउटसोर्सिंग के खिलाफ मंगलवार को हड़ताल करने का फैसला किया है।इनमें सभी राजनीतिक पार्टियों की समर्थित ट्रेड यूनियनें भी हैं। ये ठेके पर काम न कराए जाने, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू करने और सभी के लिए पेंशन सुनिश्चित करने की मांग कर रही हैं। यूनियनों ने इससे पहले 2 दिसंबर को हड़ताल पर जाने का फैसला किया था।

दासगुप्ता ने कहा कि मंहगाई आसमान छू रही है। 50 रुपये किलो बैगन बिक रहा है और सरकार मंहगाई कम होने के झूठे दावे कर रही है। देश में विकास का दावा किया है। पर इसका मूल मंत्र है मजदूरी के कंपोनेंट का जितना हो सके कम किया जाए। 37 करोड़ असंगठित मजदूरों में न तो कोई कानून बनाया जा रहा है और न ही इनके पेंशन, इलाज और न्यूनतम मजदूरी के लिए कोई कल्याण कोष बनाया जा रहा है। सरकार को बीमार किंगफिशर के पुनर्वास पैकेज की चिंता है पर करोड़ों मजदूरों के घर का चूल्हा जले इसकी कोई चिंता नहीं है। इंटक के अध्यक्ष जी. संजीवा रेड्डी और सीटू के महासचिव तपन दास ने कहा कि हालात इतने खराब हो गए है कि कई प्रदेशों में तो नई टेड यूनियनों का रजिस्ट्रेशन तक नहीं किया जा रहा है।



मालूम हो कि विनिवेश की असली कार्रवाई अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के जमाने में अरुण शौरी को विनिवेश मंत्री बनाने के साथ हुई। इस बीच एक एक करके सरकारी कंपनियों का निजी करण होता रहा, विमानन, बिजली, तेल, बैंकिंग, बीमा, स्वास्थ्य, शिक्षा, बंदरगाह, विनिर्माण,खुदरा बाजार,​​ यहां तक कि खेती तक पर खुला बाजार का वर्चस्व हो गया। मजदूरों से लेकर सरकारी कर्मचारियों की सेवाएं या तो खत्म है गयीं. या कार्यस्थितिया जटिल होतीं गयीं। नयी नियुक्तियां सिरे से बंद हो गयी। उत्पादन के बजाय सर्विस सेक्टर प्राथमिकता बन गया। पक्की नौकरी के बजाय छठेके पर हो गयी​ ​ नौकरियां। वामपंथी सरकारे बचाने के फेर में कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस का साथ देते रहे। यूनियने चुपचाप समझौतों पर दस्तखत करती रहीं। जबकि भाजपा लगातार आर्थिक सुधार और तेज करने की गुहार लगाती रही। अगर यूनियनें राजनीति से स्वायत्त होतीं ौर उन्हें वाकई मजदूर हितों की परवाह होती, तो परिदृश्य ही दूसरे होते। सरकारी कंपनियों का निजीकरण असंभव हो जाता और विनिवेश की नौबत ही नहीं आती। आर्थिक सुधारों के लिए कांग्रेस और भजपा दोनों सक्रिय हैं। हड़ताल में भाजपा के शामिल होने से आर्थिक सुधारों के खिलाफ लड़ाई बेमानी हैं। अर्थव्यवस्था शेयर बाजार के हवाले ङैं और शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की मर्जी चलती है। अब हालात ऐसे हैं कि भारतीय शेयर बाजार का मूड इस हफ्ते मुख्य रूप से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीदारी पर निर्भर करेगा। यूरोप के केंद्रीय बैंक इसी हफ्ते यूरो जोन के बैंकों की फंडिंग के दूसरे दौर की शुरुआत करेंगे। बाजार के जानकारों के एक तबके का मानना है कि इस साल सेंसेक्स बिना किसी बड़ी खबर के पहले ही 16 फीसदी चढ़ चुका है।

अर्थ व्यवस्था अब विदेशी पूंजी के रहमोकरम पर निर्भर है। बाजार की नब्ज देखते हुए नीतियां तय होती है। मजदूर आंदोलन नहीं करते। प्रतिरोध नहीं करते। गाहे बगाहे हड़ताल पर चले जाते हैं  और बाद में यूनियने सुविधामाफिक सौदेबाजी करके मजदूर कर्मचारी हितों की बलि चढाकर समझौते कर लेती हैं। अब जो बाजार के हालात हैं, उसमे इस हड़ताल से नीति बनाने वाले इंडिया इऩकारपोरेशन और विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्ाकोष को नुमाइंदों जिन्हें कोई चुनाव लड़ना नहीं होता ौर जिनकी कोई राजनीतिक हित नहीं होते कारपोरेट हित के सिवाय, उन पर कैसे दबाव डाला जा सकता है। ताजा आर्थिक परिदृश्य अत्यंत गंभीर हैं और उन्हें बदलने की कुव्वत न राजनीति में हैं और न मजदूर संगठनों में। विदेशी फंड इस साल अब तक भारतीय बाजार में 5 अरब डॉलर से भी ज्यादा निवेश कर चुके हैं। यह घटनाक्रम ईसीबी के लॉन्ग टर्म फाइनैंसिंग ऑपरेशंस के तहत 523 यूरोपीय बैंकों को तकरीबन 489 अरब यूरो (लगभग 32 लाख करोड़ रुपए) का लोन मिलने के बाद का है। इस रकम से बैंकों को अपने लोन की रीफाइनैंसिंग के जरिए यूरोप के वित्तीय सिस्टम को बचाने में मदद मिली थी। इस हफ्ते निवेशकों की नजर गुरुवार और शुक्रवार को ब्रसेल्स में होने वाली यूरोपीय राजनेताओं की बैठक पर होगी। इस बैठक में मुश्किल आर्थिक हालात से निपटने पर चर्चा हो सकती है।

वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से जुड़ी चिंता के बीच मुनाफावसूली के कारण बीएसई का बेंचमार्क सूचकांक सेंसेक्स आज शुरुआती कारोबार में करीब 70 अंक लुढ़का। बंबई स्टॉक एक्सचेंज के 30 शेयरों वाले सूचकांक में पिछले तीन सत्रों में 500 अंकों की गिरावट दर्ज हुई थी जो आज सुबह के कारोबार में फिर से 70.30 अंक या 0.39 फीसद लुढ़ककर 17853.27 पर पहुंच गया। मेटल, रियल्टी, कैपिटल गुड्स, पावर, ऑटो और बैंक शेयर 4.5-3 फीसदी टूटे हैं।

घरेलू बाजार का फोकस दिसंबर तिमाही के जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों पर होगा। ये आंकड़े गुरुवार को जारी किए जाएंगे। बार्कलेज कैपिटल के इकनॉमिस्ट्स के मुताबिक, इस दौरान ग्रोथ 6.2 फीसदी रहने का अनुमान है, जो पिछली तिमाही के 6.9 फीसदी से काफी कम है। बार्कलेज ने अपने क्लाइंट्स नोट में लिखा है, 'मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शंस जैसे सेक्टर की पतली हालत के कारण ग्रोथ में कमी आएगी। सर्विसेज और एग्रीकल्चर का आंकड़ा अपेक्षाकृत बेहतर रहने का अनुमान है।'

जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े उम्मीद से कम रहने पर मैद्रिक नीति की आगामी समीक्षा में प्रमुख दर में कटौती की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले ट्रेडरों की सट्टेबाजी की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। प्राइवेट निवेश सलाहकार कंपनी सरसिन-एल्पेन इंडिया के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर जिग्नेश शाह ने बताया, 'हमें यह बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि छोटी अवधि में अब तक बाजार का रुझान काफी तेज रहा है। ऐसे में अगले हफ्ते बाजार की दिशा के बारे में भविष्यवाणी करना काफी मुश्किल है।'
 

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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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