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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, June 26, 2012

प्रणव के विदा होते ही रिलायंस इंडस्ट्रीज ने शर्त लगायी कि सरकार को गैस के दाम भी बढ़ाने होंगे!

 प्रणव के विदा होते ही रिलायंस इंडस्ट्रीज  ने शर्त लगायी  कि  सरकार को गैस के दाम भी बढ़ाने होंगे!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

प्रणव मुखर्जी अब देश के वित्तमंत्री नहीं रहे। १९९१ की तरह नवउदारवाद के जनक मनमोहन सिंह ने फिलहाल वित्त मंत्रालय संभाल ​​लिया है। जाते जाते प्रणव दादा अबाध पूंजी प्रवाह का इतजाम कर गये। पर बाजार को ब्याज में कटौती और सब्सिडी में कटौती का तोहफा​ ​ चाहिए। दादा के सब्सिडी के मारे नींद नहीं आती थी।उम्मीद है कि रायसिना हिल्स में स्थित राष्ट्रपति भवन और मुगलिया गार्डेन की आबोहवा में उनकी नींद पूरी हो जायेगी। इसके साथ ही सरकार के साथ राष्ट्रपति बवन में औद्योगिक घरानों की घुसपैठ और तेज हो गयी। प्रतिभा देवी ​पाटिल ने इसकी शुरुआत तो कर दी है। वित्त मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन के भूगोल में बदलाव के साथ साथ कारपोरेट इंडिया में में सरगर्मी शुरू हो गयी है। बदहाल बाजार का हवाला देकर रुपये में गिरावट, रेटिंग और राजस्व घाटा के साथ साथ मुद्रास्पीति, जिससे बाजार का कोई लेना देना नहीं होता, क्योंकि मारे जाने के लिए तो निनानब्व फीसद जनता है ही, का हवाला देकर आर्थिक सुधार और तेज करने पर जोर दिया जा रहा है। कारपोरेट लाबिइंग भी तेज हो गयी है।इसी सिलसिले में  रिलायंस इंडस्ट्रीज  ने शर्त लगायी है कि  केजी-डी6 में गैस का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार को गैस के दाम भी बढ़ाने होंगे। रिलायंस इंडस्ट्रीज चाहती है कि गैस के 30-35 एमएमएससीएमडी अतिरिक्त उत्पादन के लिए दाम भी बाजार भाव के हिसाब से तय होने चाहिए। फिलहाल सरकार ने 4.20 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की कीमत 31 मार्च 2014 तक लागू कर रखी है। मालूम हो कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के केजी-डी6 क्षेत्र के गैस उत्पादन में उम्मीद से कहीं तेज गिरावट आई है। पिछले दो साल में इस क्षेत्र का उत्पादन घटकर लगभग आधा 3.15 करोड़ घनमीटर प्रतिदिन रह गया है।

राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए वित्त मंत्री पद से प्रणव मुखर्जी के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय का कार्यभार मंगलवार को अपने जिम्मे ले लिया। उन्होंने वित्त मंत्रालय का जिम्मा ऐसे समय लिया है जब देश की अर्थव्यवस्था कठिन दौर से गुजर रही है।वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने में मशहूर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को दो राज्यमंत्री एस.एस.पलानिमणिकम और नमो नारायण मीणा सहायता करेंगे।प्रधानमंत्री सिंह ऐसे समय में वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं जब देश की आर्थिक वृद्धि दर नौ साल के निम्न स्तर 6.5 प्रतिशत पर आ गई है और चालू खाता घाटा 4 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इसके अलावा रुपया डॉलर के मुकाबले अबतक के निम्न स्तर 57.97 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर आ गया है।प्रणव दा के कार्यकाल में ही रुपया अब तक के रिकॉर्ड निचले स्तरों पर है, ग्रोथ 9 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है, महंगाई ने आम आदमी का जीना दुश्वार कर रखा है। वित्तीय घाटा, चालू घाटा अपने चरम पर है। एक के बाद एक रेटिंग एजेंसी देश का आउटलुक निगेटिव कर रही हैं और अब रेटिंग पर खतरा है। बिजनेस सेंटीमेंट खराब है और विदेशी निवेश भी बहुत कम हो गया है।

सूत्रों का कहना है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज ने केजी-डी6 गैस को जापान कस्टम क्लीयर क्रूड (जेसीसी) के साथ जोड़ने की मंजूरी मांगी है। साथ ही रिलायंस इंडस्ट्रीज का केजी-डी6 गैस की कीमतों पर नया प्रस्ताव सीबीएम गैस फॉर्मूला की तरह है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 15 जून को पेट्रोलियम मंत्रालय को गैस के दाम बढ़ाने के प्रस्ताव को लेकर चिट्ठी लिखी है।रिलायंस इंडस्ट्रीज के केजी-डी6 क्षेत्र में उत्पादन के अबतक के निचले स्तर पर पहुंचने के बीच कंपनी ने आगाह किया है कि यदि सरकार ने उत्पादन बढ़ोतरी के लिए निवेश की मंजूरी नहीं दी, तो क्षेत्र में उत्पादन और घट सकता है।रिलायंस इंडस्ट्रीज ने चेताया है कि वह उत्पादन में गिरावट के लिए क्षतिपूर्ति की मांग करेगी, क्योंकि इसकी वजह यही है कि सरकार गैस क्षेत्रों में निवेश योजना को मंजूरी नहीं दे रही है।सरकार के नियंत्रण वाली ब्लॉक ओवरसाइट समिति को वित्त वर्ष की शुरुआत से पहले खर्च को मंजूरी देनी थी। केजी-डी6 के बजट तथा 2011-12 तथा 2012-13 के कार्यक्रम को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। कंपनी के वकील ने इस बारे में पेट्रोलियम मंत्रालय को पत्र लिखा है।पत्र के मुताबिक केजी-डी6 क्षेत्र में उत्पादन में गिरावट को थामने के लिए छह बातें पूरी करनी हैं। यह उत्पादन को मौजूदा स्तर पर कायम रखने के लिए महत्वपूर्ण है। पर अभी तक ब्लॉक प्रबंधन समिति ने इसकी मंजूरी नहीं दी है।इसमें कहा गया है कि यदि सरकार प्रबंधन समिति में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से तात्कालिक आधार पर लागत को मंजूरी नहीं देती है, तो केजी-डी6 के उत्पादन में गिरावट का सिलसिला बना रहेगा। ऐसे में रिलायंस इंडस्ट्रीज क्षतिपूर्ति सहित अन्य प्रकार के राहत के लिए दावा करेगी।

निजी बिजली कंपनियों को कोयला आपूर्ति की गारंटी के लिए राष्ट्रपति की डिक्री का मामला अभी ठंडा नही हुआ है कि सरकार ने रिलायंस इंडस्ट्रीज को यूरिया विनिर्माण इकाइयों इफको और इंडो गल्फ फर्टिलाइजर के साथ गैस आपूर्ति करार करने का निर्देश दिया है।इससे यूरिया कंपनियों को रिलायंस के केजी-डी6 क्षेत्र से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बढ़ सकेगी।सरकार सिंगल ब्रैंड रिटेल में एफडीआई को बढ़ावा देने के लिए छोटे और मझोले उद्योगों (एसएमई) से जुड़े शर्तों में ढील दे सकती है।दुनिया की जानी-मानी रिटेल कंपनी आइकिया के आवेदन पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। इसमें लोकल सोर्सिंग की शर्तों में छूट देने की बात है। सरकार की नीतियों में फेरबदल किए बिना राहत देने की तैयारी है।सरकार की ओर से 30 फीसदी का आकलन 3-5 साल की कुल बिक्री के आधार पर किया जा सकता है। वहीं 30 फीसदी का आकलन करते वक्त लागत को बाहर रखा जा सकता है। इसके अलावा खरीदारी के शुरू में एसएमई रहने वाली यूनिट को आगे भी एसएमई माना जाएगा।


सत्ता वर्ग के लिए सबसे बुरी खबर यह है कि प्रणव की वित्तमंत्रालय से विदाई के दिन ही भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते यूपीए के एक और मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। केंद्रीय लघु उद्योग मंत्री वीरभद्र सिंह ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आज अपना इस्तीफा सौंपा।राष्ट्पति चुनाव के समीकरण में फिलहाल बढ़त के बावजूद यूपीए सरकार घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों से पीछा छुड़ा नहीं पा रहा है। अब एक और केंद्रीयमंत्री की बलि चढ़ गयी। पर कालाधन को रिसाइकिल करने और कारपोरेट इंडिया के दबाव में कारपोरेट लाबिइंग के मुताबिक नीति​ ​ निर्धारण से अर्थ व्यवस्ता के हाल सुदरने की उम्मीद कम ही है। रिलायंस मामले से साफ जाहिर है कि कारपोरेट की बांहें कैसे फड़क रहीं हैं।24 साल पुराने मामले में वीरभद्र सिंह पर आरोप है कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते अपने पद का दुरुपयोग किया था और करीबी उद्योगपति को फायदा पहुंचाया था। आरोपों से घिरे केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह के इस्तीफे की बीजेपी कई दिनों से मांग कर रही थी।वीरभद्र सिंह ने अपनी सफाई देने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी पर आखिर में उन्हें आज इस्तीफा देना ही पड़ा।


दूसरी ओर कोयला आधारित मीथेन गैस की कीमत तय में देरी को देखते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ने मध्यस्थता करने का फैसला किया है।सूत्रों के मुताबिक कोयला आधारित मीथेन गैस प्राइसिंग के मामले को सचिवों की समिति को सौंपा गया है। सचिवों की समिति एस्सार ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा सुझाए गए गैस फॉर्मूले पर विचार करेगी।

एस्सार ऑयल ने सितंबर 2011 और रिलायंस इंडस्ट्रीज ने फरवरी 2012 में सरकार को कोयला आधारित मीथेन गैस की कीमतें तय करने पर सुझाव भेजे थे।

माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय नेल्प ब्लॉक को संवैधानिक मंजूरी मिलने में हो रही देरी को लेकर चिंतित है। प्रधानमंत्री कार्यालय चाहता है कि जल्द मंजूरी देने के लिए स्पेशल पर्पस व्हीकल मॉडल का प्रयोग किया जाए।वहीं, पेट्रोलियम मंत्रालय स्पेशल पर्पस व्हीकल मॉडल के विरोध में है। मंत्रालय चाहता है कि डीजीएच नौसेना और वायुसेना से मंजूरी ले।

मंजूरी न मिलने की वजह 80 ब्लॉक में उत्पादन नहीं हो पा रहा है। 39 ब्लॉक को नौसेना और वायुसेना से मंजूरी नहीं मिल पाई है।


हालत यह है कि इफको को 2007 में उसके फूलपुर के यूरिया संयंत्र के लिए केजी-डी6 क्षेत्र से 5.2 लाख घन मीटर प्रतिदिन गैस का आवंटन किया गया था, लेकिन गैस बिक्री एवं खरीद करार सिर्फ 2.5 लाख घन मीटर के लिए हुआ।इसी तरह इंडो गल्फ फर्टिलाइजर की जगदीशपुर इकाई के लिए आवंटन 4.78 लाख घनमीटर प्रतिदिन का किया गया, लेकिन गैस बिक्री करार सिर्फ 2.5 लाख घनमीटर प्रतिदिन के लिए हुआ।मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अगुवाई वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह ने 24 फरवरी को हुई बैठक में यह फैसला किया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज उर्वरक इकाइयों को उनको आवंटित मात्रा की पूरी आपूर्ति करे।इस फैसले के करीब चार माह बाद पेट्रोलियम मंत्रालय ने 18 जून को रिलायंस इंडस्ट्रीज को पत्र लिखकर कहा कि वह इन इकाइयों के साथ शेष बची मात्रा के लिए जीएसपीए करे।इसके तहत इफको की फूलपुर इकाई के लिए 2.7 लाख घनमीटर प्रतिदिन और इंडो गल्फ फर्टिलाइजर के जगदीशपुर संयंत्र के साथ 2.28 लाख घनमीटर प्रतिदिन का करार किया जाएगा।

केजी-डी6 की गैस आवंटन में सरकार ने उर्वरक इकाइयों को शीर्ष प्राथमिकता पर रखा है। सूत्रों का कहना है कि उर्वरक इकाइयों को गैस की आपूर्ति बढ़ने का मतलब यह है कि बिजली संयंत्रों को आपूर्ति में और कटौती की जाएगी।उर्वरक इकाइयों को केजी-डी6 की 1.53 करोड़ घनमीटर प्रतिदिन गैस आवंटित की गई है।वहीं दूसरी ओर बिजली इकाइयों को 2.89 करोड़ घनमीटर प्रतिदिन का आवंटन है, लेकिन वास्तव में उन्हंट इसकी आधी गैस ही प्राप्त हो रही है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के केजी-डी6 बेसिन में पहले के अनुमान से 80 फीसदी कम गैस मौजूद है। इसका खुलासा निको रिसोर्सेज ने किया है। निको ने अपने बयान में कहा कि कृष्णा गोदावरी (केजी) बेसिन के डी-6 ब्लॉक में कुल प्रमाणित व अनुमानित गैस भंडार घटकर 1.93 लाख करोड़ घनफुट रह गया है।इससे पहले इस क्षेत्र में 9.65 लाख करोड़ घनफुट गैस भंडार होने का अनुमान लगाया जा रहा था। हालांकि आरआईएल ने फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

कनाडा की निको रिसोर्सेज, केजी-डी6 बेसिन में आरआईएल की सहयोगी है। केजी-डी6 ब्लॉक में निको की 10 फीसदी तथा आरआईएल की 60 फीसदी हिस्सेदारी है। केजी-डी6 में बाकी 30 फीसदी हिस्सा ब्रिटेन-स्थित बीपी पीएलसी के पास है।

'रिजव्र्स एंडकंटिंजेंट रिसोर्सेज अपडेट' में निको रिसोर्सेज ने कहा कि कई ब्लॉकों में कुल प्रमाणित व अनुमानित गैस भंडार में करीब 51 फीसदी तक की गिरावट देखने में आई है।इस गिरावट के बाद इन ब्लॉकों में गैस का कुल भंडार घटकर 37,700 करोड़ घनफुट रह गया है।इसकी मुख्य वजह केजी-डी6 बेसिन में भंडार का घटना है।


अपडेट में निको ने कहा है कि 31 मार्च, 2012 को केजी-डी6 में कुल प्रमाणित व अनुमानित गैस भंडार घटकर 19,300 करोड़ घनफुट रह गया।कुल 7,645 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले केजी-डी6 ब्लॉक में ऑयल व गैस के 19 डिस्कवरीज हैं। इसमें से एमए ऑयल में उत्पादन सितंबर, 2008 में शुरू हुआ था।वहीं धीरूभाई 1 व तीन गैस डिस्कवरीज में से उत्पादन अप्रैल, 2009 में शुरू हुआ।


केजी-डी6 बेसिन से इस महीने गैस का उत्पादन घटकर 3.133 करोड़ घनमीटर प्रतिदिन पर आ गया है।जून 2010 में यहां से गैस का उत्पादन 6.1 करोड़ घनमीटर प्रतिदिन के साथ अपने उच्च स्तर पर पहुंचा था। वर्ष 2006 में आरआईएल ने भरोसा जताया था कि वर्ष 2012-13 तक यहां से गैस का उत्पादन बढ़कर 8 करोड़ घनमीटर प्रतिदिन के स्तर पर पहुंच सकता है।


इस बीच वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की विदाई के दिन आज शेयर बाजार दम साधे खड़ा रहा।प्रणव मुखर्जी के 40 साल की राजनैतिक पारी खत्म हो गई है। उनका प्रमोशन हो गया है और वो देश के अगले राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं।हालांकि उन्होंने जाते-जाते इकोनॉमी का मर्ज ठीक करने के लिए दवाई दी, लेकिन अफसोस वो भी काम नहीं आई।व मुखर्जी ऐसे वक्त में वित्त मंत्रालय को अलविदा कर रहे हैं जब इकोनॉमी दो राहे पर खड़ी है। बातें तो यहां तक हो रही है कि हम 20 साल पीछे पहुंच गए हैं। 2012 में 1991 जैसे हालात पैदा हो गए हैं। बाजार में आज एक बेहद संकरे दायरे में कारोबार हुआ। निफ्टी 5,100 के पार बना रहा और सेंसेक्स भी लाल-हरे निशान में झूलता रहा। मिडैकप शेयर ही आज ऐसे रहे जिनमें दमखम दिख रहा था। मिडकैप इंडेक्स आज 0.5 फीसदी चढ़ा है। आरबीआई के फैसले के बाद बाजार में दबाव बढ़ गया है। उम्मीद थी कि कोई ठोस कदम आरबीआई की ओर से उठाया जाएगा और बाजार में तेज रफ्तार देखने को मिलेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और अब भी बाजार दबाव में ही नजर आ रहे हैं। साथ ही रुपये की कमजोरी से भी बाजार में गिरावट आ रही है। लिहाजा बाजार के जानकार भी अब मान रहे हैं कि बाजार में अभी थोड़ी और गिरावट आ सकती है।

जनवरी 2009 में जब उन्होंने तीसरी बार वित्त मंत्री का जिम्मा लिया तो पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में थी। 2008-09 में ग्रोथ 9 फीसदी से गिरकर 7 फीसदी से नीचे खिसक गई लेकिन प्रणव मुखर्जी ने देश को ना सिर्फ संकट से निकाला बल्कि 2009-10 और 20010-11 में 8 फीसदी से ज्यादा की ग्रोथ भी हासिल कराई। 2011 के लिए 9 फीसदी का लक्ष्य भी तय कर दिया गया। लेकिन उसके बाद दादा को ना जाने क्या हो गया कि वो कोई करिश्मा नहीं दिखा पाएं। दूसरी पारी में प्रणव मुखर्जी ने जो जो लक्ष्य तय किए वो उसे पाने में नाकामयाब रहे। विनिवेश का लक्ष्य हो या फिर ग्रोथ का, उनके एक के बाद एक टारगेट मिस होते गए।

वित्तमंत्री के तौर पर प्रणव मुखर्जी ने ऐसा कोई बड़ा फैसला नहीं लिया जिससे इंडस्ट्री का भरोसा जागे। उल्टे रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स, जीएएआर जैसे कानून की बात कर ऐसा सेंटीमेंट बिगाड़ा कि इंडस्ट्री का दादा से मोह ही भंग हो गया। कॉरपोरेट उनके खिलाफ हो गया। वित्तमंत्री की नाकामी के और भी सबूत है। वो सरकारी खर्चों पर लगाम नहीं लगा पाए नतीजा ये हुआ कि सब्सिडी बढ़ती गई और वित्तीय घाटा बढ़ता गया।

बैंकिंग बिल, पेंशन, इंश्योरेंस, जमीन अधिग्रहण बिल, मल्टीब्रांड में एफडीआई, जीएसटी, डीटीसी जैसे अहम बिल भी वो पास नहीं करवा पाए। ब्लैक मनी के मुद्दे पर भी वो घिरे नजर आए। तीन दशकों से ज्यादा राजनीति का अनुभव के बावजूद वो देश को आथिर्क संकट से नहीं निकाल पाए। प्रणव मुखर्जी जैसी बड़ी शक्सियत के लिए ये अध्याया बुरे चैप्टर की तरह ही है। प्रणव मुखर्जी आर्थिक विरासत में चुनौतियां ज्यादा समाधान कम छोड़ कर जा रहे हैं।

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