यूरोकप, पुलिनबाबू मेमोरियल फुटबाल टूर्नामेंट, सानिया मिर्जा और नैनीताल!
पलाश विश्वास
दिनेशपुर में इन दिनों दिवंगत शरणार्थी नेता पुलिन बाबू की स्मृति में उत्तराखंड राज्य स्तरीय पुटबाल टूर्नामेंट चल रहा है। हालांकि इस प्रतियोगिता में महेंद्रनगर नेपाल की टीम भी खेल रही है। उस हिसाब से पिताजी की स्मृति में यह अंतरराष्ट्रीय आयोजन है। इधर कोलकाता में आम लोग प्रणव मुखर्जी के राष्टरपति बनाये जाने की खुशी में दिनोंदिन बदतर होती हालात से बेखबर है और उन्हें किसी नमोशूद्र उत्तराखंडी बंगाली शरणार्ती नेता की यादों से कोई मतलब भी नहीं है। जिस सिंगुर को लेकर परिवर्तन का तूफान खड़ा हुआ, भूमि सुधार के सवाल को हाशिये पर डालकर भारत के संविधान को किनारे पर डालकर अनिच्छुक किसानों को जमीन वापस कराने के लिए तुरत फुरत पास सिंगुर आईन के असंवैधानिक और अवैध करार दिये जाने से वह मसला जरूर चर्चा में है। दीदी ने सिंगुर के अनिच्छुक किसानों की जमीन वापस दिलाने में नाकामी को दो हजार रुपये प्रतिमाह के अनुदान से रफा दफा कर दिया है। ऐसे में उत्तराखंड में उधमसिंह नगर के सितारगंज में एक और नाटक चल रहा है। पिछले चुनाव में खड़े तमाम प्रत्याशी, विजेता भाजपा विधायक तक मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को जिताने में लगे हैं। अब तक भूमिधारी हक से वंचित कुछेक हजार शरणार्थियों को अपनी जमीन का हक देकर शक्तिफार्म के शरणार्थी इलाके के वोट बैंक पर मुख्यमंत्री ने पहले ही कब्जा कर लिया है। ऐसे में जमीन और नागरिकता , भूमि सुधार के मुद्दे फिर हाशिये पर हैं, जिनके लिए पुलिनबाबू आजीवन लड़ते रहे।क्या क्या पुटबाल प्रतियोगिता की उत्तेजना में लोगों को पुलिन बाबू याद आ रहे होंगे और उनके मुद्दे?
पिताजी, ताउजी और चाचाजी खेलप्रेमी थे। १९६० में असम के दंगों के दौरान शरणार्थी इलाकों में गये थे पिताजी। लौटे तो चाचाजी जो डाक्टर थे, उन्हें वहां के लोगों की सेवा में भेज दिया। उन इलाकों में मैं २००३ में ही पहुंच सका। जहां आज भी बुनियादी सेवाएं नदारद हैं। पिताजी और चाचाजी के बाद बाहरी दुनिया का कोई बंगाली वहां तक नहीं पहुंचा। असम से पिताजी लौटे तो हमने उन्हें रेडियो लाने पर मजबूर कर दिया। तब कोलकाता रेडियो से हम पुटबाल का आंखों देखा हाल सुना करते थे।घर में बांग्ला दैनिक बसुमति डाक से जाया करता था , जिसमें कोलकतिया फुटबाल से पेज भरे रहते थे। घर में सभी लोग ईस्ट बंगाल के समर्थक थे तो मैं अकेला मोहनबागान के पक्ष में। पिता , ताउजी और चाचा फरीदपुर और जैशोर में बाकायदा फुटबाल खिलाड़ी बतौर जाने जाते थे। हमारे दिवंगत मित्र कृष्ण पद मंडल उसी दौरान कोलकाता में श्यामनगर में अपने ननिहाल रहकर कुछ साल पढ़कर गांव लौटे तो हमने बंगाल की तर्ज पर नवीन संघ बनाया और फुटबाल खेलने लगे। दिनेशपुर हाईस्कूल पहुंचते न पहुंचते हम लोग हाकी भी केलने लगे। तब क्रिकेट हमारी दुनिया से बाहर की चीज थी। पर फुटबाल और हाकी का असली माहौल तो नैनीताल में १९७३ से डीएसबी परिसर में पहुंचने के बाद ही मिला।
डीएसबी की हाकी और फुटबाल की अच्छी टामें हुआ करती थी। अंग्रेजी में हमारे प्राध्यापक कैप्टेन ललित मोहन साह इन टीमों के कोच और खिलाड़ी हुआ करते थे। १५ अगस्त को फाइनल खेले जाने वाले जूनियर फुटबाल प्रतियोगिता में भी वही रेफरी।अगस्त से नवंबर तक नैनीताल फ्लैट्स पर फुटबाल, हाकी, क्रिकेट और एथलेटिक्स की धूम लगी होती थी। तब नैनीझील में हमारी जान बसी होती थी। झील के पानी के रंग के मुताबिक हमारा मिजाजा बनता बिगड़ता था। हम कविताएं लिखने के लिए सुबह तड़के चीना पीक, टिफिन टाप, स्नो ब्यू से लेकर लरियाकांटा तक हो आते थे। सातों ताल तब तक प्रकृति के अप्रतिम वरदान हुआ करते थे और हम जब तब पैदल ही उनके इर्द गिर्द भटकते रहते थे। नैनीताल से लेकर नौकुचिया ताल तक। तब सात ताल और तड़ाग ताल तक जाने का रास्ता नहीं बना था। और न ही अयारपाटा जैसे नैनीताल के शहरी इलाके और सात ताल जैसी विशुद्ध वन भूमि पर होटल, रिसार्ट, रेस्त्रा बने थे।उन दिनों दार्जिलिंग और कश्मीर की शांति की वजह से पर्यटन के नक्शे पर नैनीताल की प्राथमिकता काफी नीचे बनती थी। आपातकाल में विनाशकारी पौधे की खबर छपने के बाद तो करी ब दो साल तक नैनीताल में पंछी तक ने पर नहीं मारा। हर चेहरा अपना था। हर घर अपना। गोरखालैंड और कश्मीर आंदोलनों की वजह से नैनीताल जल्दी ही पर्यटन प्राथमिकता में ऊपर आ गया। प्लैट्स पर भी शापिंग माल का नजारा। हमने १९७९ में नैनीताल छोड़ा और जब भी वापस वहां गये, उसे जख्मी लहूलुहान पाया। नहीं जानता कि डीएसबी की फुटबाल हाकी टीमें अब हैं या नहीं या खेल प्रेमी एलएम साह जैसे कोई अध्यापक हैं या नहीं, पर अब नैनीताल को किसी सैय्यद अली के लिए गर्वित होने का मौका शायद कम ही मिलता है। ट्रेडर्स कप हाकी देश की सबसे पुरानी प्रतियोगिताओं में है। उसकी जो धूम रहती थी, अब उसके बारे में हमें खबर तक नहीं होती।नैनीताल तेजी से गंगटोक बनने लगा है। वह दिन दूर नहीं, जब नैनीताल में कदमभर चलने के लिए गंगटोक की तरह टैक्सी बुलानी पड़ेगी।इसके क्या भयंकर नतीजे हो रहे हैं, इस बारे में विनाशकारी पौदे से भी भयानक खबरें आ रही हैं।
दरअसल कल रात अरसे बाद यूरोकप सेमीफाइनल में पुर्तगाल के खिलाफ स्पेन को टाईब्रेकर में जीतते हुए देखा।स्पेन ने यूरो कप-2012 फुटबाल टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में पेनल्टी शूट आउट में पुर्तगाल को 4-2 से हराकर लगातार तीसरे बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में प्रवेश कर लिया है। दोनेस्क के डोनबास एरेना में अतिरिक्त समय के बाद भी स्कोर 0-0 से बराबर था जिसके बाद सेस्क फेब्रेगास ने निर्णायक स्पॉट कि को गोल में पहुंचाकर स्पेन को फाइनल में जगह दिला दी। पिताजी के नाम टूर्नामेंट चल ही रहा है। ऊपर से सानिया मिर्जा के सनसनीखेज पत्र ने होश उड़ा दिये।वरना बचपन से खेलप्रेमी होते हुए हमारी प्राथमिकता की सूची से कविता कहानी की तरह खेल भी खत्म हो गया है।फेस बुक वाल पर नैनीताल और भीमताल की जो तस्वीरे पोस्ट हो रही हैं, वे आतंकित करने वाली हैं। इस बीच अपने फुफेरा भाई करीब अस्सी साल के निताई दा से मिलने उनके गांव गया था तो पता चला कि बसंतीपुर में पद्मलोचन से उनकी बात हुई है और वहां पानी के लिए हाहाकार मचा है। पद्म लोचन ने मुझे मौसम के बिगड़ैल मिजाज के बारे में, तराई में अप्रैल में भयंकर ठंड और फिर भयंकर गर्मी की सूचना दी थी,पर जलसंकट जैसी कोई बात नहीं कही। बसंतीपुर में लोग पानी को तरस रहे हों, यह हमारे लिए भयानक सदमे की बात थी। लोचन को फोन किया तो उसने बताया कि रुद्रपुर में पानी के लिए मारामारी हो रही है और पहाड़ में पेयजल का भयंकर संकट है। झीलें और नदियां सूखने लगी हैं। फिर प्रयाग पांडेय की भीमताल और क्षिप्रा नदी के सूखने की रपटें पढ़ने को मिलीं। अब आशंका बनी हुई है कि पहाड़ के साथ साथ तराई, और मेरे गांव बसंतीपुर को भी पानी का मोहताज बनने में देरी नहीं है।
फुटबाल और सानिया मिर्जा से पर्यावरण औरप जल संकट का क्या नाता है, आप सवाल कर सकते हैं। बता दूं कि सानिया मिर्जा का पत्र पढ़ने पर मुझे सबसे पहले उत्तराखंडी महिलाओं का जीवन संघर्ष याद आया। उनका निडर तेवर किसी इरोम शर्मिला से कम नहीं है। पहाड़ के तमाम जनांदोलन इसके सबूत हैंष फिर देश के कोने कोने में फैले आदिवासी समाज और शरणार्थी इलोकों, बस्ती में रहने वाली महिलाओं और मणिपुर समेत पूरे पूर्वोत्तर की महिलाओं, कश्मीर की झांकियां याद आयीं। महिलाओं को मानव व नागरिक अधिकारों से वंचित करने का सिलसिला जारी है जबकि समता और सामाजिक न्याय की लड़ाई को नेतृत्व देने में पुरुषों का जिक्र जरूर जरुरत से ज्यादा होता है, पर निर्णायक भूमिका हमेशा महिलाओं की होती है। कम से कम उत्तराखंड औरमणिपुर ने इसे साबित किया है। आदिवासी और शरणार्थी , बस्ती में रहने वाली औरतें इसे रोजाना साबित करती है।
सानिया मिर्जा का किस्सा इसलिए महज खेल का मामला नहीं है। इसीतरह फुटबाल कोई खेल नहीं है, सामूहिक समाज का दर्पण है, जहां टीम भावना ही निर्णायक होती है। स्पेन की जीत टीम की जीत है और महानायक रोनाल्डो का करिश्मा बेकार चला गया। जनाआंदोलन और पर्यावरण, भूमि सुधार, जल जमीन , जंगल, आजीविका के हक हकूक की लड़ाई में भी वहीं टीम भावना निर्णायक होती है, जहां प्रेसिंग फुटबाल, व्यक्तिगत करिश्मा और ताकत, स्पीड के बजाय ब्राजील और अर्जेंटिना, हालैंड और स्पेन की टीमगेम शैली, पासिंग पासिंग और पासिंग, तालमेल तालमेल और तालमेल गोल का मुहाना खोलने
और सामंती साम्राज्यवादी, कारपोरेट और बाजार की ताकतों का मुकाबला करने के लिए ज्यादा कारगर होती है।कल रात सेमीफाइनल के पहले मिनट से में स्पानी तिकिताका और तिकिताकानेचिओ की जीत के प्रति आश्वस्त था, रोनाल्डो के फ्रीकिक और लंबी दौड़ का मुझपर कोई असर नहीं हो रहा था।
पेनल्टी शूटआउट में पुर्तगाल को 4-2 से मात देकर गत विजेता स्पेन लगातार तीसरी बार यूरो कप के फाइनल में पहुंच गया है। अतिरिक्त समय के बाद भी मुकाबला गोलरहित रहा तो मैच पेनल्टी शूटआउट में पहुंच गया, जिसमें पुर्तगाल के ब्रुनो एल्विस की किक क्रॉसबार से टकराकर लौट आई जबकि जाओ माउंटिनो के शॉट का स्पेन के गोलकीपर ने बेहतरीन बचाव करके गोल पोस्ट में जाने से रोक लिया। वहीं दूसरी ओर स्पेन के सेस फेब्रेगस ने अपनी टीम को ओर से विजयी किक दागी।पहले सेमीफाइनल में तय समय के दौरान दोनों ही टीमों ने गोल करने की भरपूर कोशिश की लेकिन मुकाबला गोलरहित रहा और जब अतिरिक्त समय में भी कोई गोल ना हो सका तो पेनल्टी शूटआउट का सहारा लेना पड़ा।शूट आउट के दौरान दोनो ही टीमें अपना पहला मौका चूक गयीं। इसके बाद स्पेन के इनेस्ता ने पुर्तगाल के गोलची रूई पेट्रि्को को छकाते हुए गेंद गोल पोस्ट में डाल कर मैच का पहला गोल किया।इसके बाद पुर्तगाल के पेप ने गोल दागकर मुकाबला 1-1 की बराबरी पर कर दिया। स्पेन के पिक और पुर्तगाल के नानी ने गोल करके स्कोर 2-2 तक पहुंचाया। लेकिन जब स्पेन के सर्गिओ रैमो गोल करके अपनी टीम को 3-2 बढ़त दिलाई तो पुर्तगाल के ब्रुनो एल्विस उसे बराबर ना कर सके और उनका शॉट क्रॉसबार से टकराकर लौट आया और इसके बाद स्पेन के फैब्रेगस ने गोल दाग कर अपनी टीम को लगातार तीसरी बार फाइनल में पहुंचा दिया।
विश्व विजेता स्पेन इस टूर्नामेंट में अभी तक अपराजित रहा है। क्रिकेट को जूनून की हद तक प्यार करने वाली भारत की नामचीन हस्तियां यूरोप में चल रही बादशाहत की जंग का भरपूर मजा ले रही हैं और देर रात तक जागकर यूरो कप-2012 के मैचों को देख रही हैं।फुटबाल के इन दीवानों में सबसे ऊपर नाम आता है हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन का जो यूरो कप शुरू होने के साथ ही न केवल इसके मैच देख रहे हैं बल्कि उस पर अपने विचार भी साझा कर रहे हैं।अमिताभ ने स्पेन और पुर्तगाल के बीच खेले गए शानदार सेमीफाइनल मैच का पूरा आनंद उठाया। उन्होंने टि्वटर पर लिखा कि स्पेन और पुर्तगाल के बीच खेले जा रहे सेमीफाइनल मैच में पहला हाफ गोल रहित रहा। दोनों ही टीमें बहुत अच्छा खेल रही हैं। ऐसा लगता है जैसे बहुत लंबी रात है।बिग बी ने स्पेन की जीत पर कहा कि मैच बहुत अच्छा था, दोनों टीमों ने जीत के लिए बहुत मेहनत की। ऐसा लग रहा था कि पुर्तगाल की टीम पूरे मन से खेल रही थी और स्पेन की टीम जानती थी कि वे अच्छे हैं लेकिन गोल नहीं कर सकते हैं।मैच का आनंद ले रहे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने स्पेन की जीत पर ट्वीट किया कि स्पेन की टीम इस जीत की हकदार थी लेकिन फिर भी यह लॉटरी फुटबाल है। इसमें जो टीम अपना धैर्य अच्छे से बनाए रखती है वही जीतेगी। यह समय गोलकीपरों के हीरो बनने का है।
पहाड़ में हमने कम से कम चिपको आंदोलन के दौरान यह फुटबाल जरूर खेला है। जहां सानिया मिर्जा की चमक और स्पानी फुटबाल का तिकिताका एकाकार हुआ करते थे। पहाड़ और तराई में कोई दूरी नहीं थी। वैचारिक और राजनीतिक मतभेद से ऊपर उठकर हम जल, जंगल , जमीन के मुद्दे पर एकजुट थे। आज अचानक सबकुछ अलग अलग द्वीप समूह जैसा कैसे हो गया? कहां गायब हो गया है तिकिताका का छंद?
चूंकि हम बिखर गये, इसलिए हमपर भारी है हिंदुत्व और राजनीति। हमारे मुद्दे को गये। झीलें सूख रहीं है। नदियां लापता हो रही हैं और हम बेबस हैं।
पुलिनबाबू मेमोरियल फुटबाल से पुलिन बाबू को लोग कितना याद करेंगे, कितना याद करेंगे उनके आजीवन संघर्ष को और उनके मुद्दों को, हम .कीनन नहीं जानते, पर यह टूर्नामेंट चलता रहा तो पहाड़ और तराई में टूटे हुए संवाद सेतु को जोड़ने में जरूर मदद मिलेगी, ऐसी उम्मीद है। टूर्नामंट के उद्घाटन मैच में काशीपुर ने हल्द्वानी को हराया, यह प्रतीकात्मक है हमारे लिए। इस बहाने हम एक दूसरे के मुखातिब तो हो रहे हैं। पर पर्यावरण और उसकी हिपाजत के लिए, मानव और नागरिक अधिकारों के लिए, जल जंगल जमीन की लड़ाई के प्रति निस्पृह होकर अगर हम रोनाल्डो की तरह महा सितारा बनने की जुगत लगाते रहेंगे, तो न खेल संभव है और न ही जीवन!
जरा सानिया के पत्र पर गौर करें और आजमायें कि अपनी इजा या वैणी, या अम्म या मांया बहन का चेहरा जेहन में उभरता है या नहीं!महज 17 साल की उम्र से देश के लिए खेल रहीं सानिया ने हाल ही में फ्रेंच ओपन खिताब जीत कर एक बार फिर गर्व करने का अवसर दिया। उन्होंने महेश भूपति के साथ मिल कर ग्रेंड स्लेम जीता, लेकिन इसके बावजूद संघ ने उन्हें एक बधाई पत्र तक नहीं भेजा। उलटा उनका पेस और भूपति के बीच झगड़े को खत्म करने के लिए इस्तेमाल किया!यह पहली बार नहीं है जब अच्छे प्रदर्शन के बावजूद सानिया को नीचा देखना पड़ा है। सानिया पिछले एक दशक से लगातार भारत की नंबर 1 महिला टेनिस खिलाड़ी बनी हुई हैं। वर्ल्ड रैंकिंग में 27वें पायदान तक पहुंचने का कारनामा करने वाली सानिया को हमेशा आलोचना का शिकार होना पड़ा। पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाढ़ी शोएब मलिक से शादी के बाद तो बाकायदा उनके खिलाफ घृणा अभियान चलाया गया।
लिएंडर पेस और महेश भूपति का विवाद अभी ठीक से दबा भी नहीं था कि महिला टेनिस स्टार सानिया मिर्जा ने इस विवाद में फिर से नई चिंगारी लगा दी है। सानिया को ओलंपिक के लिए वाइल्ड कार्ड मिले घंटे भी नहीं बीते थे कि उन्होंने एक प्रेस रिलीज के जरिए लिएंडर पेस और टेनिस फेडरेशन की बखिया उधेड़ दी।सानिया मिर्जा के मुताबिक उन्हें पेस के साथ खेलने में कोई ऐतराज नहीं है क्योंकि वो देश के लिए वो कुछ भी कर सकती हैं। लेकिन, उन्हें इस बात का काफी दुख है कि जिस अंदाज में फेडरेशन ने उनको टेनिस टीम के चयन विवाद में एक मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया।
सानिया का कहना था, "एक पुरुष टेनिस खिलाड़ी को खुश करने के लिए भारत की नंबर एक महिला टेनिस खिलाड़ी को बतौर मुआवजा पेश किया गया ताकि वो पुरुष खिलाड़ी पुरुष डबल्स में ऐसे प्लेयर के साथ खेलने के लिए राजी हो जाएँ जिसके साथ वो खेलना नहीं चाहते. इस तरह नारीत्व के अपमान की निंदा की जानी चाहिए, फिर चाहे ये काम देश की सर्वोच्च टेनिस एसोसिएशन का हो।"
सानिया मिर्जा के बयान ने ये सवाल भी खड़ा किया है कि भारतीय खेल में लिंग भेद एक बड़ा मसला है।
भारत के कई जाने-माने वर्तमान और पूर्व खिलाड़ियों ने महिला खिलाड़ियों से भेदभाव के मुद्दे पर टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा की तरफदारी की है।टेनिस के जाने-माने कोच अख्तर अली का कहना है कि सानिया मिर्जा के साथ ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन को बेहतर पेश आना चाहिए था।बीबीसी से बातचीत में अख्तर अली ने कहा,"हिंदुस्तान में वो सबसे बढ़िया महिला टेनिस खिलाड़ी रही हैं. साथ ही उन्होंने देश के लिए खेलने के लिए कभी भी मना नहीं किया. उनकी ये बात सही है कि उनसे भी तो बात करनी चाहिए थी. वो उस मुकाम पर हैं जहां वो सोच सकती हैं कि किसके साथ खेंलें तो मेडल जीत पाएंगी।"
सानिया के समर्थन में बैडमिंटन सुंदरी ज्वाला गुट्टा भी उतरी हैं। उन्होंने ने मिर्जा के बयान को सही ठहराते हुए कहा कि संघ हमेशा पक्षपात करते हैं।गुट्टा ने कहा, "आईटा को पहले सानिया से संपर्क करना चाहिए था। उनसे बातचीत के बाद ही ओलिंपिक में जोड़ीदार का चयन किया जाना चाहिए था। संघ ने इसके स्थान पर खुद से ही फैसला लेना उचित समझा। इससे न सिर्फ खेल की छवि खराब हुई है, बल्कि देश में खेल प्रबंधन के सिस्टम पर भी प्रश्न चिह्न लग गया है।"
गुट्टा ने बताया कि उन्हें भी बैडमिंटन संघ के ऐसे पुरुषवादी फैसलों का शिकार होना पड़ा है। उन्होंने कहा, "यही कारण है कि लड़कियां खेल को अपना करियर चुनने से कतराती हैं। यहां सिर्फ पुरुषों के लिए फायदेमंद निर्णय ही लिए जाते हैं।"
ज्वाला गुट्टा साइना नेहवाल के साथ लंदन ओलिंपिक में खेलेंगी।
स्पोर्ट्स में वुमेन प्लेयर्स को किस तरह देखा जाता है, इस बात की झलक लंदन ओलिंपिक के लिए भारतीय टेनिस टीम के चयन के दौरान देखने को मिल गई। देश की नंबर 1 टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा को संघ ने किसी चारे की तरह इस्तेमाल किया। लिएंडर पेस को विष्णुवर्धन के साथ खेलने को राजी करने के लिए AITA ने उन्हें सानिया के साथ जोड़ी बनाने का लालच दिया। इस बात ने सानिया के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है।भारतीय टेनिस स्टार महेश भूपति ने एक और बयान देकर विवादों को हवा दे दी है।लंदन ओलंपिक के लिए वाइल्ड कार्ड मिलने के बाद अखिल भारतीय टेनिस संघ (एआईटीए) और लिएंडर पेस की कड़ी आलोचना करने वाली सानिया मिर्जा के समर्थन में उनके ग्रैंड स्लेम जोडीदार महेश भूपति उतर आए हैं। भूपति ने रोहन बोपन्ना के साथ विम्बलडन टेनिस चैम्पियनशिप के पुरुष युगल में दूसरे दौर में पहुंचने के बाद कहा, 'इन हालात के लिए एआईटीए जिम्मेदार है जिन्होंने सानिया को ऐसी स्थिति में डाल दिया। मेरी पूरी सहानुभूति सानिया के साथ है ... भूपति ने एक चैनल से कहा कि सानिया मिर्जा का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने कहा कि सानिया की राय जाने बिना ही उनका इस्तेमाल किया गया। वहीं अखिल भारतीय टेनिस संघ (एटा) ने आज सानिया मिर्जा द्वारा निकाली गई भड़ास पर अपना बचाव करते हुए कहा कि लंदन ओलंपिक के लिये चयन सिर्फ गुणवत्ता के आधार पर किया गया है और वह सानिया की काबलियत का लोहा मानता है ।ओलंपिक के लिये वाइल्ड कार्ड हासिल करने वाली सानिया ने एटा पर गुस्सा उतारते हुए कहा था कि एक असंतुष्ट धुरंधर (लिएंडर पेस) को मनाने के लिये उसका इस्तेमाल 'चारे' की तरह किया गया।एटा ने पेस को आश्वासन दिया था कि यदि वे लंदन ओलंपिक पुरूष युगल में जूनियर खिलाड़ी विष्णु वर्धन के साथ खेलेंगे तो मिश्रित युगल में उनकी जोड़ी सानिया मिर्जा के साथ बनाई जायेगी। महेश भूपति और रोहन बोपन्ना दोनों पेस के साथ खेलने से इनकार कर चुके हैं।
ऐसा करके एटा ने सानिया और भूपति की जोड़ी को तोड़ा जिसने हाल ही में फ्रेंच ओपन जीता है। एटा ने चयन प्रक्रिया को सही ठहराते हुए कहा कि सानिया की जोड़ी पेस के साथ बनाने का फैसला गुणवत्ता के आधार पर किया गया है और इससे सानिया को अंतरराष्ट्रीय टेनिस महासंघ से वाइल्ड कार्ड लेने में मदद मिली है।
एटा महासचिव भरत ओझा ने एक बयान में कहा,जहां तक टीम चयन का सवाल है तो नामांकन की आखिरी तारीख 21 जून तक चयन समिति ने पाया कि महेश भूपति और रोहन बोपन्ना एटा के तमाम प्रयासों के बावजूद लिएंडर पेस के साथ खेलने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा,इसके बाद समिति ने पेस और विष्णु वर्धन की जोड़ी बनाने का फैसला किया । विष्णु वर्धन एशियाई खेलों में रजत पदक विजेता भी है।
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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
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