अभी मंहगाई की मार कहां पड़ी है? गैर राजनीतिक गैर संवैधानिक जिस बेरहम टोली ने अर्थव्यवस्था की कमान संभाली है, वह इतनी धुलाई करने वाली है कि आप सर्फ एक्ससेल की कारामात भूल जायेंगे!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
आखिर भारत सरकार किसकी सरकार है लोग समझते हैं, यह उनके वोचों से चुनी हुई सरकार है। पर वे कितनी गलतफहमी में हैं, इसका उन्हें कोई अंदाजा नहीं है। हम सभी जानते हैं कि देश अब खुला बाजार है और कारपोरेट लाबिइंग से राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों चलती है। फिरभी संसदीय राजनीति और जनता के प्रति जवाबदेही का नाटक १९९१ से चल ही रहा है। लेकिन मनमोहन सिंह के फिर वित्त मंत्रालय संभाल लेने, सत्तावर्ग के सर्वाधिनायक विश्वपुत्र प्रणव मुखर्जी के अगला राष्ट्रपति तय हो जाने से कारपोरेट इंडिया इतना बम बम है कि अब उसे लोकतांत्रिक मुलम्मे की भी परवाह नहीं है। आदि गोदरेज न वित्तमंत्री हैं और न प्रधानमंत्री और न वे जनता या भारत सरकार के प्रतिनिधि हैं, पर वे लंदन की धरती पर खड़े होकर बयान जारी कर रहे हैं कि अब आर्थिक सुधार तेज होंगे। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष आदि गोदरेज ने कहा कि देश में अगली तिमाही के दौरान आर्थिक सुधारों में तेजी आ सकती है। उन्होंने कहा कि भारत में निवेश का यह सही मौका है, क्योंकि मूल्यांकन तर्कसंगत हो गया है।वाह!उनके बयान का लब्बोलुआब यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस सप्ताह वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार संभाल लिया। वित्त मंत्री पद से प्रणव मुखर्जी के इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री ने मंत्रालय कार्यभार अपने हाथों में ले लिया। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया सहित प्रधानमंत्री के वरिष्ठ सलाहकार और वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिये कड़ी मेहनत में जुट गये हैं।कारपोरेट लाबिइंग का लाजवाब दबाव बनाते हुए उनकी दलील है कि चूंकि हालात 2008 के सुस्ती के दौर से भी ज्यादा खराब हो गए है, इसलिए अब सरकार के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अर्थव्यवस्था की विकास दर को पटरी पर लाए!किसका विकास, यह सवाल लेकिन बेमायने है।उन्होंने कहा कि पहली तिमाही में वृद्धि में तेजी लाने के लिए सुधार के लिहाज से बड़ी पहल दिख सकती है। उद्योग जगत सरकार को नीतिगत बदलाव का सुझाव दे रहा है जिससे निवेश और वृद्धि की प्रक्रिया फिर से तेज होगी।
जीएएआर की नई गाइडलाइंस से विदेशी फंड भी खुश नजर नहीं आ रहे हैं। एक्सक्लूसिव जानकारी मिली है कि हॉन्गकॉन्ग के एफआईआई एसोसिएशन ने सरकारी सिक्योरिटी से पैसा निकालने की धमकी दी है।हॉन्गकॉन्ग के निवेशक संगठनों ने वित्त मंत्रालय को चिट्ठी लिखी है। एफआईआई का कहना है कि अगर जीएएआर को लेकर मांगे मानी नहीं जाती हैं तो सरकारी बॉन्ड्स से निवेश निकाल लिया जाएगा।एफआईआई ने सरकार से शेयर बाजार के सौदों को जीएएआर से बाहर रखने की मांग की थी। एफआईआई की मुनाफे पर तय टैक्स लगाने की मांग थी। सरकार ने एफआईआई की दोनों मांगों को खारिज किया है।एशिया सिक्योरिटीज इंडस्ट्री एंड फाइनेंशियल मार्केट एसोसिएशन और कैपिटल मार्केट टैक्स कमेटी एसोसिएशन ने बजट के बाद वित्त मंत्रालय को सुझाव भेजे थे।
मंहगाई से त्राहि त्राही कर रही जनता पर अभी मंहगाई की मार कहां पड़ी है, अभी ग्लोबल वार्मिंग की तर्ज पर इमर्जिंग मार्केट में आर्थिक सुधारों का असर होना बाकी है। सेवाकरों से शुरुआत भर होगी। आर्थिक सुधार के दूसरे चरण का एजंडा पूरा करने के लिए गैर राजनीतिक गैर संवैधानिक जिस बेरहम टोली ने अर्थव्यवस्था की कमान संभाली है, वह इतनी धुलाई करने वाली है कि आप सर्फ एक्ससेल की कारामात भूल जायेंगे।वित्तमंत्रालय से जाते जाते आम आदमी की ऐसी तैसी करने में प्रणवदादा ने अपने जहरीले बजट के मुताबिक कोई कसर नहीं छौड़ा। गार की वजह से कालाधन के वर्चस्व की लड़ाई में वे शहीद तो हो गये, पर कारपोरेट इंडिया के तवर से साफ जाहिर है कि आपकी खाल खींचने में कोई कोताही नहीं करेगी आपकी सरकार। बहरहाल महंगाई की असली चुभन अब महसूस होगी। रविवार से कोचिंग क्लासेस व प्रशिक्षण केंद्र से लेकर होटल में खाने-पीने और हवाई यात्रा तक सभी पर महंगाई टूट पड़ेगी। फिलहाल, रेल माल ढुलाई व यात्री किराए में रविवार से सेवाकर लगने को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। रेलमंत्री मुकुल राय ने कहा है कि रेलवे एक जुलाई से माल भाड़ा और यात्री किराए पर सेवाकर नहीं लगाएगा। इस बाबत उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा है, जिनके हाथों में ही इस समय वित्त मंत्रालय की कमान भी है। नई सेवा कर व्यवस्था के लागू होने के साथ ही कल यानी एक जुलाई से कई सेवाएं महंगी हो जाएंगी और लोगों को इनके लिए 12 प्रतिशत की दर से सेवा कर चुकाना पड़ेगा। हालांकि नकारात्मक सूची में शामिल 38 सेवाओं पर नई व्यवस्था का असर नहीं होगा। यह सूची भी एक जुलाई से ही प्रभावी मानी जाएगी।इस सूची में शामिल सेवाओं के अलावा अंतिम संस्कार से जुडी सेवाएं भी इसके दायरे में नहीं आएंगी। दूसरी ओर जिन सेवाओं को नई व्यवस्था के दायरे में लाया गया है उनमें कोचिंग और प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। हालांकि स्कूलों, विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा को इससे छूट दी गई है।नई कर व्यवस्था की सबसे बडी़ खामी यह है कि इसमें रेल माल ढुलाई तथा रेल यात्री किरायों पर सेवा कर को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अभी तक ऐसी सेवाओं की कुल संख्या 119 है। इसके साथ ही एक नकारात्मक सूची भी तैयार की गई है जिसमें वर्णित सेवाओं को सेवा कर के दायरे से बाहर रखा गया है। सेवाकर के दायरें को बढा़ने के पीछे सरकारी मंशा वस्तु एंव सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ना है।सरकार ने इस साल के बजट में सेवाकर का दायरा बढ़ाते हुए सेवाकर की परिभाषा को व्यापक बनाया है। अब तक 119 सेवाएं 'सकारात्मक सूची' में शामिल थी और उन्हीं पर सेवाकर लगाया जाता रहा।सेवाकर के दायरे को व्यापक बनाने का सरकार का नया कदम वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ने के तौर पर देखा जा रहा है।सरकार व स्थानीय प्राधिकरणों को एयरक्राफ्ट की मरम्मत और रखरखाव के लिए दी जाने वाली सेवाओं को भी नकारात्मक सूची में रखा गया है। इसी तरह वकीलों द्वारा दूसरे वकीलों और दस लाख रुपये तक का टर्नओवर रखने वाले व्यावसायिक संस्थानों को भी सेवाकर के दायरे से मुक्त रखा गया है। सार्वजनिक शौचालय भी इसके दायरे में नहीं रहेंगे। जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय नवीकरण मिशन [जेएनएनयूआरएम] व राजीव आवास योजना जैसी स्कीमों को भी नकारात्मक सूची में रखा गया है। वित्त मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष में सेवाकर से 1.24 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।
रिजर्व बैंक ने शुक्रवार कहा कि वह रुपये की विनिमय दर में गिरावट थामने के लिए हर संभव कदम उठाना जारी रखेगा।
आइमा-सिटी वित्तीय साक्षरता संगोष्ठी में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के.सी. चक्रवर्ती ने कहा, रिजर्व बैंक के लिए जो कुछ भी संभव होगा, केंद्रीय बैंक निरंतर करता रहेगा।पिछले एक साल में डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा का मूल्य करीब 25 प्रतिशत गिरा है। पिछले वर्ष मई महीने में डॉलर के मुकाबले रुपया 45 के स्तर पर था जो अब 57 के स्तर पर आ गया है। रुपये के मूल्य में गिरावट का प्रमुख कारण वैश्विक स्तर पर कमजोर आर्थिक गतिविधियां हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का मानना है कि सुस्त आर्थिक वृद्धि के पीछे ब्याज दरें बहुत बड़ा कारक नहीं है और उसने दरों को अपरिवर्तित रखने के पीछे कई ठोस तर्क भी दिए, लेकिन उद्योग जगत ने उसके तर्कों को सिरे से खारिज कर दिया है। यथास्थिति बरकरार रखे जाने से कारोबारियों की हताशा बरकरार है।भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष और गोदरेज ग्रुप के चेयरमैन आदि गोदरेज ने बेहद आलोचनात्मक रुख अपनाते हुए कहा, 'वित्त मंत्री कह रहे हैं कि वह कटौती की उम्मीद कर रहे थे। मैं यह नहीं समझ पा रहा कि निष्क्रियता की क्या वजह रही। हमारी अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक वृद्धि की दरकार है जो प्रमुख दरों में कमी से ही संभव है। यदि नीतिगत निष्क्रियता के पीछे महंगाई संबंधी चिंताएं मुख्य वजह थीं, तो केंद्रीय बैंक की चिंताएं ठीक नहीं हैं। इस स्थिति में हमारा ध्यान स्थिर वृद्धि की ओर रहना चाहिए।'
प्रधानमंत्री ने मंगलवार को वित्त विभाग का जिम्मा संभाला था, इसके बाद से चार दिनों में सेंसेक्स करीब 550 अंक ऊपर चढ़ चुका है। उद्योग संगठन एसोचैम ने 150 सीईओ के बीच सर्वे किया है, जिसके मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब से वित्त मंत्रालय का जिम्मा अपने हाथ में लिया है, तब से कारोबारी जगत का भरोसा बढ़ा है। डॉलर के मुकाबले रुपये ने पिछले एक दशक में दूसरी सबसे बड़ी मजबूती शुक्रवार को हासिल की। यह 119 पैसे ऊपर चढ़कर 55..61 तक पहुंच गया, जो दो हफ्ते में सबसे ऊंचा लेवल है। उद्योग मंडल ऐसोचैम ने 150 कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के बीच त्वरित सर्वेक्षण के आधार पर शुक्रवार को एक बयान में यह बात कही। बयान में कहा गया कि उद्योग और निवेशकों के बीच अर्थव्यवस्था में नई उम्मीद जगी है।उद्योग मंडल ने कहा, 80 फीसद से ज्यादा मुख्य कार्यकारियों का मानना है कि वित्त मंत्रालय के अतिरिक्त प्रभार के साथ प्रधानमंत्री अब बिना समय गवांए काम करेंगे क्योंकि वह महसूस करते हैं कि अर्थव्यवस्था और अनिर्णय की स्थिति नहीं झेल सकती। देश के शेयर बाजारों के प्रमुख सूचकांकों में गत सप्ताह ढाई फीसदी से अधिक तेजी दर्ज की गई। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स आलोच्य अवधि में 457.47 अंकों या 2.70 फीसदी तेजी के साथ 17429.98 पर बंद हुआ। सेंसेक्स पिछले शुक्रवार को 16972.51 पर बंद हुआ था। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक निफ्टी आलोच्य अवधि में 132.85 अंकों या 2.58 फीसदी तेजी के साथ 5278.90 पर बंद हुआ।
लेकिन अर्थ व्यवस्था की बदहाली का आलम यह है कि वित्त वर्ष 2012 में करंट अकाउंट डेफेसिट जीडीपी के 4.2 फीसदी के बराबर रहा, जो अब तक का सबसे ज्यादा घाटा है। कंरट अकाउंट डेफेसिट 46 अरब डॉलर से बढ़कर 78.2 अरब डॉलर रहा है।
वित्त वर्ष 2012 में निर्यात 23.6 फीसदी और आयात 31 फीसदी बढ़े। कच्चे तेल के आयात 47 फीसदी और सोने के आयात 49 फीसदी बढ़े।पूरे साल के लिए व्यापार घाटा बढ़कर 190 अरब डॉलर रहा। अप्रवासी भारतीयों द्वारा देश में भेजी गई पूंजी 19 फीसदी बढ़कर 66 अरब डॉलर रही। साथ ही, 22 अरब डॉलर एफडीआई के जरिए देश में आए।वित्त वर्ष 2012 की चौथी तिमाही में हालात सबसे ज्यादा बिगड़ते नजर आए। जनवरी-मार्च में करंट अकाउंट डेफेसिट 21.7 अरब डॉलर रहा, जो जीडीपी का 4.5 फीसदी है। चौथी तिमाही में निर्यात में सिर्फ 3.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जबकि आयात 22.6 फीसदी से बढ़े।जनवरी-मार्च में व्यापार घाटा बढ़कर 51.6 अरब डॉलर रहा। वहीं, अप्रवासी भारतीयों द्वारा देश में भेजी गई पूंजी 24 फीसदी बढ़कर 16.9 अरब डॉलर रही।रिकॉर्ड करंट अकाउंट डेफेसिट की वजह से वित्त वर्ष 2012 में बैलेंस ऑफ पेमेंट में 12.8 अरब डॉलर का घाटा हुआ है। जनवरी-मार्च में बैलेंस ऑफ पेमेंट में 5.7 अरब डॉलर का घाटा हुआ है।आरबीआई के मुताबिक करंट अकाउंट डेफेसिट और जीडीपी का रेश्यो बढ़ने की वजह जीडीपी में धीमी बढ़ोतरी है।
दूसरी ओर,देश में मॉनसून की कमी को लेकर चिंताएं गहराने लगी हैं। वो इसलिए क्योंकि जून का महीना खत्म होने जा रहा है और अबतक मॉनसून की चाल सामान्य से 27 फीसदी नीचे चल रही है।देश में मॉनसून की स्थिति अब खराब होती जा रही है। पहली जून से 29 जून तक देश में 27 फीसदी कम बारिश हुई है। 29 जून को देश में 71 फीसदी कम बारिश हुई है। सबसे ज्यादा कम बारिश उत्तर पश्चिम भारत में हुई है। यहां जून में 67 फीसदी बादल कम बरसे हैं।
मध्य भारत की हालत भी खराब है। यहां 38 फीसदी कम बारिश हुई है। दक्षिण भारत में भी 28 फीसदी मॉनसूनी बारिश कम है। हालांकि उत्तर पूर्वीय भारत में हालात कुछ बेहतर हैं। लेकिन यहां भी औसत में 1 फीसदी बारिश कम हुई है।
जाहिर है किसानों की आत्महत्या का सिलसिला फिर तेज होने वाला है। उर्वरकों पर सब्सिडी खत्म करने का मन बना चुकी सरकार किसानों को कोई राहत नहीं देने वाली क्योंकि कारपोरेट इंडिया ने अपना पैकेज हासिल कर लेने का चाक चौबंद इंतजाम किया हुआ है।कमजोर मॉनसून के चलते अब धान की फसल कमजोर होने का डर बढ़ गया है। इस साल अबतक कुल 31 लाख हेक्टेयर जमीन पर ही धान बोया गया है, जबकि पिछले साल इस दौरान 42 लाख हेक्टेयर जमीन पर बुआई हुई थी। वहीं कम बारिश के चलते अनाज तो अबतक आधा ही बोया गया है।पिछले साल 22 लाख हेक्टेयर जमीन पर अनाज की बुआई हुई थी, इस साल अबतक सिर्फ 10 लाख हेक्टेयर है। दालों की बुआई का भी यहीं हाल है, जहां पिछले साल 6 लाख हेक्टेयर जमीन पर दालें बोई गई थी, इस साल सिर्फ 4 लाख हेक्टेयर पर दालों की बुआई हुई है। ऑयलसीड्स यानि तिलहन की बुआई भी इस साल 17 फीसदी घट गई है।
कारोबारी जगत की प्रतिनिधि संस्था भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने मंगलवार को देश के आर्थिक विकास के लिए 10 सूत्री एजेंडे का एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया और रियायत को घटाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दो फीसदी तक लाने के विचार का समर्थन किया।परिसंघ के राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद अध्यक्ष आदि बी. गोदरेज ने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि
सीआईआई ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को जल्द से जल्द लागू करने का प्रस्ताव रखा और कहा कि इससे आर्थिक विकास दर में डेढ़ फीसदी तक का सुधार हो सकता है। अधिवेशन में पेश प्रस्ताव में रेपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती, नकद आरक्षित अनुपात में कटौती, उड्डयन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की ऊपरी सीमा को और ऊपर करने, बहु ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई की अनुमति और मशीनों तथा संयंत्रों में निवेश की अवमूल्यन की गति को बढ़ाकर 25 फीसदी तक करने जैसे अन्य उपाय सीआईआई के प्रस्ताव में शामिल हैं।
गोदरेज ने लंदन में सीआईआई के सालाना समारोह में कहा कि उद्योग को भरोसा है कि अगली तिमाही में वृद्धि में तेजी लाने के लिए सुधार के लिहाज से बड़ी पहल दिख सकती है।उन्होंने कहा कि उद्योग जगत सरकार को नीतिगत बदलाव का सुझाव दे रहा है जिससे निवेश और वृद्धि की प्रक्रिया फिर से तेज होगी। सीआईआई के सुझावों में मौद्रिक नीति को उदार बनाना, बुनियादी ढांचा परियोजना को तेजी से लागू करना और सब्सिडी पर नियंत्रण शामिल है।
वर्ष 2011-12 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों के 6.5 फीसदी तक गिर जाने पर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि उद्योग जगत को सरकार से तत्काल इकॉनोमिक रिवाइवल पैकेज की जरूरत है, क्योंकि स्थिति आर्थिक सुस्ती के दौर से भी खराब है।
सीआईआई के अध्यक्ष आदि गोदरेज ने शुक्रवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि वर्ष 2008-09 में जब आर्थिक सुस्ती का दौर था, उस समय भी भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.7 फीसदी थी। वर्ष 2011-12 में और गिर कर 6.5 फीसदी पर आ गई है। इसी तरह औद्योगिक उत्पादन की दर (इंडस्ट्रियल आउटपुट) को देखें तो यह 2008-09 में 4.4 फीसदी था जो कि बीते वर्ष गिर कर 2.8 फीसदी पर आ गई है। इससे पता चलता है कि हालात 2008 के सुस्ती के दौर से भी ज्यादा खराब हो गए है। इसलिए अब सरकार के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अर्थव्यवस्था की विकास दर को पटरी पर लाए।
उनका कहना था कि अभी सबसे महत्वपूर्ण बात मौद्रिक रुकावटों को दूर कर आर्थिक चक्र को फिर से घुमाना है। सीआईआई का सुझाव है कि रेपो दर में 100 बेसिस प्वाइंट की कमी की जाए ताकि ब्याज दरें घट सके। इसी के साथ नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी 100 प्वाइंट की कमी की आवश्यकता है। इससे बाजार में तरलता बढ़ेगी और उद्योग जगत के लिए आसानी से निधि का इंतजाम हो सकेगा। इसी के साथ बिक्री में भी बढ़ोतरी होगी।
गोदरेज का कहना है कि इन मौद्रिक उपायों के अलावा निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार को कुछ और उपाय भी करना चाहिए। इससे निवेश की धारणा बनेगी। हो सकता है कि सरकार प्लांट एंड मशीनरी में निवेश के लिए 25 फीसदी का एक्सीलरेटेड डेप्रिसिएशन की व्यवस्था करे। साथ ही ग्रीन इनिशिएटिव के लिए खर्च में 25 फीसदी की वेटेड टैक्स डिडक्शन की व्यवस्था कर उद्योग जगत को ग्रीन टेक्नोलॉजी के प्रति प्रेरित किया जा सकता है।
बड़ी परियोजनाओं को क्लियरेंस मिलने में आ रही दिक्कतों का जिक्र करते हुए गोदरेज ने कहा कि सरकार 50 बड़ी परियोजनाओं के लिए प्राथमिकता के आधार पर क्लियरेंस दे सकती है। इसके अलावा सिंगल ब्रांड रिटेल, मल्टी ब्रांड रिटेल जैसे महत्वपूर्णक्षेत्रों में विदेशी निवेश (एफडीआई) को खोलने के लिए कदम बढ़ा सकती है। उन्होंने कहा कि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए दो प्रतिशत के इंटरेस्ट सबवेंशन जैसे प्रोत्साहन की तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही है।इसके अलावा एसएमई एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए प्राथमिकता से काम किया जा सकता है। उनका कहना था कि वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली (जीएसटी) को लागू कर देने से ही ढेरों समस्याओं का समाधान हो जाएगा। जैसे ही जीएसटी व्यवस्था लागू होगी, बिना कुछ किये जीडीपी में दो फीसदी की बढ़ोतरी हो जाएगी क्योंकि इससे कारोबार जगत को भारी फायदा होगा।
गोदरेज ने कहा, `सौभाग्य से महंगाई का दबाव कम हो रहा है। मौद्रिक प्रोत्साहन के लिए यह सही समय है।` परिसंघ रियायत को घटाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दो फीसदी तक लाने के विचार का समर्थन किया। अधिवेशन में महसूस किया गया कि वित्तीय घाटा कम करने के लिए रियायत कम करना जरूरी है। गोदरेज ने कहा कि सीआईआई आम बजट में सरकार के इस प्रस्ताव का समर्थन करता है कि रियायत को घटाकर जीडीपी के दो फीसदी तक लाना चाहिए।
उन्होंने कहा, `रियायत से संसाधन की बर्बादी बढ़ती है। यदि बिजली मुफ्त मिलेगी, तो इसकी बर्बादी हो सकती है।` 2जी और खनन घोटालों का नकारात्मक असर निवेश पर पड़ने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि परिसंघ ने शासन व्यवस्था में सुधार के लिए दो सुझाव दिए हैं। सीआईआई ने भ्रष्टाचारियों को सजा दिए जाने के लिए लोकपाल कानून बनाने और ऐसी व्यवस्था अपनाने की सलाह दी, जिसमें मंजूरी के लिए हर मामले को अलग-अलग देखा जाना कम से कम हो, ताकि भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हो।
उन्होंने कहा, `काफी अच्छा रहेगा, यदि सरकार, कारोबार और जनता के बीच संवाद इंटरनेट के सहारे हो। सरकारी अधिकारियों और आम लोगों के बीच सम्पर्क को कम किया जाए। इससे भ्रष्टाचार कम होगा।` गोदरेज ने यहां कहा कि पाकिस्तान के साथ व्यापार और निवेश को बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि परिसंघ ने हाल ही में दो व्यापार प्रतिनिधि मंडल के पाकिस्तान और जापान भेजा था।
उन्होंने कहा, `पाकिस्तान के साथ व्यापार और निवेश बढ़ाना सम्भव है। पाकिस्तानी भी काफी अधिक इच्छुक हैं।` गोदरेज ने कहा कि जापानी भी भारत में निवेश करना चाहते हैं। परिसंघ देश में निवेश का माहौल बेहतर करने के लिए काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन, लातिन अमेरिका और दुनिया के कई अन्य हिस्सों में भी प्रतिनिधिमंडल जल्द ही भेजे जाएंगे।
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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
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Saturday, June 30, 2012
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