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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, February 25, 2013

एक मामूली ‘गालिब’ की कहानी, जो असदउल्‍ला खां नहीं है ♦ सोपोर से लौटकर विश्‍वदीपक

एक मामूली 'गालिब' की कहानी, जो असदउल्‍ला खां नहीं है

♦ सोपोर से लौटकर विश्‍वदीपक

क वो गालिब था. एक ये गालिब है…कितना फर्क है. वक्त खामोशी से हमें अपने इशारे पर नचाता जाता है और हमें पता भी नहीं चलता. 2006 में मासूम सा दिखने वाला बच्चा अब किशोकपन की राह से गुजर कर जवानी की दहलीज पर खड़ा है. जिन आंखों में पहले एक मासूमियत थी वहां अब एक खिंची हुई उत्सुकता है. हां, चेहरे पर विस्मय का भाव अब भी वही है जो उस वक्त था जब वो अपनी मां और दादी के साथ राष्ट्रपति भवन गया था, बाप के जीवनदान के लिए दया याचिका दाखिल करने. चश्मा लगाने वाली वो दादी, जो उस दिन स्लेटी रंग के चितकबरे कपड़े में थी, कुछ महीने पहले ही गुजर चुकी हैं. और बाप भी भारत की "सामूहिक चेतना" की बलि चढ़ चुका है. एक तरह से अब वो यतीम हो गया है. नाम है गालिब. उम्र होगी यही कोई 13-14 साल. उसकी पहचान कुछ और भी हो सकती थी लेकिन फिलहाल वो संसद हमले में गुनहगार करार दिए गए और तदनुरूप फांसी पर चढ़ाए गए अफजल गुरु का बेटा है. भारत के नजरिए से कहें तो एक "देशद्रही" का बेटा.
उम्र इतनी छोटी है कि उसे शायद ही न्याय, अन्याय और मानवाधिकार जैसे जुमलों का फर्क पता होगा. पर उसे इतना अहसास हो चुका है कि उसका बाप कुछ "खास" था. श्रीनगर से करीब 120 किलोमीटर दूर उसके गांव, सीर जागीर में मैं उससे मिलने गया था. सोपोर जिले में पड़ने वाला सीर जागीर खूबसूरत वादियों और भारतीय सेना के जवानों से घिरा है. इस गांव में घुसते ही एक आक्रामक बेचैनी, असुरक्षा, डर और अनिश्चिंतता के मिले जुले भाव का अहसास होता है.

घर के ऊपरी तल्ले पर बने बैठकखाने में मैं जब उसका इंतजार कर रहा था तो मुझे अल्लामा इकबाल की एक लाइन याद आ रही थी. यह लाइन गांव के मुहाने पर बनाए गए आर्मी चेक पोस्ट की दीवारों पर बड़े-बड़े अक्षरों में हरे रंग से पोती गई है. "हम बुलबुले हैं इसकी, ये गुलिस्तां हमारा".

बहरहाल, मेरा इंतजार खत्म हुआ और वो आया. वो वैसे ही आया जैसे कोई दूसरा लड़का आता है. मैंने कहा, "हेलो"और हाथ आगे बढ़ाया. हाथ मिलाते वक्त मुझे अहसास हो गया कि उसकी उंगलियां लंबी है. शरीर रचना विज्ञान कहता है कि जिसकी उगलियां लंबी होती है, वो कलाकार बनता है. तो क्या वो आगे चलकर गालिब जैसा ही बनता? कम से कम अफजल चाहता तो यही था. जाहिर है, उसने बच्चे का नाम भी बहुत सोच समझकर रखा था.

galib

गालिब से मैंने पूछा, "शौक क्या हैं आपके?" उसने कहा, किताबें पढ़ना. मैंने कहा, "कुछ लिखते भी हैं". उसने छोटा सा जवाब दिया, "नहीं." मैंने पूछा, "एक गालिब और थे. उनके बारे में जानते हैं आप? उसने कहा, "हां वो शायर थे. और दिल्ली में रहते थे." जव वो ये सब बातें कर रहा था तो अच्छी तरह से जानता था कि मैं उसके बहाने उसके पिता तक पहुंचना चाहता हूं. लोगों को अफजल नाम के आंतकवादी के इस पहलू के बारे में शायद ही पता होगा कि वो बेहद पढ़ाकू था. किताबों में उसकी जबरदस्त दिलचस्पी थी. 13 वीं शताब्दी के फारसी कवि रूमी उसकी पहली पसंद थे. रूमी को प्रेम का कवि भी कहा जाता है. तिहाड़ जेल में ही उसने सैमुअल हैंटिंगटन की मशहूर किताब "सभ्यता का संघर्ष (क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन)" पढ़ी थी. अफजल के चचेरे भाई यसीन/यासीन बताते हैं, " अफजल पढ़ने लिखने में काफी होशियार था. दूसरों से अलग सोचता था. जब हम जेल में उससे मिलने जाते थे वो हमें किताबों की लिस्ट दिया करता था. हमेशा कहता था कि तुम्हे ये किताबें पढ़नी चाहिए."

8वीं में पढ़ने वाले गालिब से जब मैंने उसके स्कूल और माध्यम के बारे में जानना चाहा तो उसने थोड़ा जोर देकर कहा,"स्कूल का नाम वेलकिन मेमोरियल ट्रस्ट है. मीडियम इंग्लिश है." अफजल इस बात से वाकिफ था का भविष्य ऊर्दू में नहीं अंग्रेजी में है. अफजल खुद अच्छी अंग्रेजी जानता था. विचार और दर्शन की दुनिया में क्या चल रहा है, उसे पता था. लोग कहते हैं कि वो सैमुअल हैटिंगटन के "सभ्यता का संघर्ष" सिद्धांत में यकीन भी रखता था.

गालिब का यकीन किस बात पर है ये पूछने की हिम्मत नहीं हुई. मैं जानना चाहता था क्या वो अपने बाप के "आजादी" के रास्ते पर यकीन करता है. पर सवाल कुछ इस शक्ल में सामने आया, "आगे चलकर क्या बनना चाहते हैं"? उसने कहा, "डॉक्टर". गालिब के जवाब से जाहिर है उसने जानबूझकर बाप का पेशा चुना है. अफजल ने भी डॉक्टरी की पढ़ाई की थी. उसने कुछ इस अंदाज में जवाब दिया देखना जो मेरा बाप नहीं कर सका वो मैं करके दिखाऊंगा! थोड़ी देर की गपशप के बाद वो वापस नीचे लगा गया. अब मैं खिड़की के बाहर देख रहा था. अफजल का गालिब किस रास्ते पर जाएगा—आजादी या मरीजों की सेवा, इसका लेखा जोखा भविष्य के कोख में दर्ज है. घर की सीढ़ियां उतरते वक्त एक बार नजरें फिर उससे टकराईं. देखा उसके बाल सधे हुए हैं. चेहरे पर चिकनाई भी है. शायद मां, तबस्सुम की सोच रही होगी कि बाहरवालों (प्रेस वालों से) मिलते वक्त ढंग का दिखना चाहिए. मैंने देखा दूर खड़ी पहाड़ की बर्फीली चोटी सुनहरी हो चली थी. शाम गहरा रही थी. मैंने देखा एक 'गालिब' कैसे मरता है!

Vishwadeepak copy(विश्‍वदीपक। तीक्ष्‍ण युवा पत्रकार। आजतक और डॉयचे वेले से जुड़े रहे हैं। रीवा के रहने वाले विश्‍वदीपक ने पत्रकारिता की औपचारिक पढ़ाई आईआईएमसी से की। विश्‍व हिंदू परिषद के डॉन गिरिराज किशोर से लिया गया उनका इंटरव्‍यू बेहद चर्चा में रहा। उनसे vishwa_dpk@yahoo.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

http://mohallalive.com/2013/02/26/awrite-up-on-afzal-so/


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