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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, February 25, 2013

पूरे देश की अर्थव्यवस्था अब चिट फंड में ​​तब्दील!

पूरे देश की अर्थव्यवस्था अब चिट फंड में ​​तब्दील!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को मोहलत देने से इंकार कर दिया। सहारा फिर भी बड़ी कंपनी है, जो सेबी से उलझकर फंस गयी है। बाकी इस देश ​​में चिट फंड का कारोबार खूब फल फूल रहा है और सेबी उसका नियमन करने में असमर्थ है। राज्य सरकारे न सिर्फ चिट पंड चलानेवालीकंपनियों का संरक्षण करती है, बल्कि बुरीतरह आर्थिक संकट में फंसी होने की स्थिति में कर्मचारियों का वेतन तक चुकाने में असमर्थ है। सेबी शेयर​​ बाजार में विदेशी निवेशकों की आवाजाही के  दरम्यान करोड़ों छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा करने में असमर्थ है तो वहीं बीमा कारोबार निजीकरण के बाद पूरीतरह चिटफंड का जैसा हो गया है, जहां ग्राहकों के प्रीमियम तक लौटाने की गारंटी नहीं है। पूरे देश की अर्थव्यवस्था अब चिट फंड में ​​तब्दील है, जहां पेंशन और पीएफ तक को बाजार में झोंका जा रहा है। बैंकिंग लाइसेंस कारपोरेट घरानों के हवाले करने की स्थिति में पूंजी जुटाने के लिए वे हमारी जमा पूंजी को अपने निवेश में शामिल करने के बाद ठेगा नहीं दिखायेंगे , इसकी कोई गारंटी नहीं है।गौरतलब है कि सहारा इंडिया रियल इस्टेट कापरेरेशन ने 31 मार्च, 2008 तक 19,400.87 करोड़ और सहारा हाउसिंग इंडिया कापरेरेशन ने 6380.50 करोड़ रुपए निवेशकों से जुटाये थे। लेकिन समय से पहले भुगतान के बाद 31 अगस्त को कुल शेष रकम 24029.73 करोड़ ही थी। सहारा समूह को इस समय करीब 38 हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना पड़ सकता है जिसमें 24029.73 करोड़ मूलधन और करीब 14 हजार करोड़ रुपए ब्याज की राशि हो सकती है। सहारा समूह ने निवेशकों को धन नहीं लौटाने के अपना दृष्टिकोण सही बताते हुये कहा था कि न्यायालय के फैसले से पहले ही निवेशकों की अधिकांश रकम उन्हें लौटाई जा चुकी है।

बंगाल में करीब ५० -६० चिटफंड कंपनियो का कारोबार गांव गांव तक फैला है। वामजमाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई तो परिवर्तनकाल में भी वे बेखौफ हैं। उन्हें राज्य सरकार की क्या कहें, रिजर्व बैंक और सेबी के दिशा निर्देशों  की भी कोई परवाह नहीं। सहारा प्रकरण  के बाद भी वे ​​सेबी के नियमों का उल्लंघन करके बाजार से वसूली कर रहे हैं।इन योजनाओं में बड़ा जोखिम यह है कि कंपनी जितनी रकम उगाहती है, उतनी संपत्ति उसके पास नहीं होती। ऐसी ज्यादातर कंपनियां रियल एस्टेट और मीडिया से जुड़ी हैं, जिनकी परियोजना में बहुत वक्त लग जाता है। इसलिए नए लोगों से मिला निवेश ही पुराने लोगों को लौटा दिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक ऐसी हर कंपनी सालाना करीब पंद्रह हजार करोड़ रुपये जमा करती है।सीआईएस की रेटिंग घटाते हुए इक्रा ने कहा है कि अटकलों पर टिकीं इन योजनाओं पर रकम लौटाने का बोझ बहुत ज्यादा होता है और इनमें निवेश बेहद जोखिम भरा होता है। सेबी ने भी अपने एक आदेश में कहा कि इस मामले में वह मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता। पिछले साल दिसंबर में रिजर्व बैंक ने बिना अनुमति रकम जुटाने वाली 2 कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू की थी।सेबी के कोलकाता कार्यालय में एक अधिकारी ने बताया कि किसी भी सीआईएस योजना का पंजीकरण नहीं किया गया है और कुछ मामलों में अभियोजन प्रक्रिया चल रही है।पंजीकरण के बगैर चल रहे चिट फंड भी नियामकों को परेशान कर रहे हैं। पिछले साल सितंबर में तृणमूल कांग्रेस के सांसद सोमेन मित्रा ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा था कि भोले-भाले शहरी और कस्बाई लोगों को इनके जरिये ठगा जा रहा है। इन पर नजर राज्य सरकार को मनी सर्कुलेशन बैनिंग ऐक्ट के तहत रखनी होती है। रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक बीपी कानूनगो का कहना है कि पश्चिम बंगाल में कानून के इस्तेमाल में ही समस्या है।

पश्चिम बंगाल में चिटफंड और ममता बनर्जी सरकार का चिटफंड को समर्थन का विरोध अब और तेज होने लगा है। कांग्रेस हर मौके पर ममता बनर्जी को चिटफंड मामले में घेरती आ रही है। अब आउटलुक ने भी इस मामले में एक स्पेशल रिपोर्ट पब्लिश की है। उसने बताया है कि पश्चिम बंगाल के अखबार चिटफंड धोखाधड़ी के मामलों से भरे पड़ें है एवं अकेले पश्चिम बंगाल में 15000 करोड़ से ज्यादा का गोलमाल हुआ है। आउटलुक् ने ग्राउण्ड जीरो से इस मामले की रिपोर्टिंग की एवं सभी पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया। यह पूरी की पूरी स्टोरी बंगाल में फैले चिटफंड माफिया के खिलाफ है।

पूर्व वित्तमंत्री असीम दासगुप्त हालांकि दावा करते हैं कि वाम सरकार ने लगातार सेबी से इन कंपनियों के खिलाप कार्रवाई करने को कहती ​​रही है, पर सेबी ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की।करीब तीन महीने  पहले पश्चिम बंगाल विधानसभा में चिटफंड कंपनियों के मसले पर सदन में कुश्ती होते-होते रह गई। दरअसल वामपंथी मोर्चे ने राज्य में जबरदस्त तरीके से फलफूल रहे इस कारोबार पर स्थगन प्रस्ताव पेश किया था। लेकिन इस पर हुई तकरार का बीज विधानसभा चुनावों से पहले माकपा के नेता गौतम देव ने डाल दिया था, जिनका आरोप था कि चिटफंड का पैसा उन टेलीविजन चैनलों में लगाया गया है, जिनका इस्तेमाल वाम मोर्चे को हराने में किया गया।

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने भी हाल ही में कहा था कि चिटफंड कंपनियां मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनियों के झंडे तले काम कर रही हैं और उन पर राज्य सरकार को ही अंकुश लगाना होगा। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने भी कड़े कदम उठाते हुए निवेशकों को इन कंपनियों की सामूहिक निवेश योजना के खिलाफ आगाह किया है।नियामकों की चिंता का सबब बने छोटे निवेश दरअसल मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनियों से जुड़े हैं। ये कंपनियां 'रेफरल मार्केटिंगÓ पर चलती हैं, जहां व्यक्ति को उत्पाद बेचने पर भी फायदा होता है और नए विक्रेता तैयार लाने पर भी।

पश्चिम बंगाल में चिटफंड कारोबार बहुत तेजी से फैल गया है। राज्य के गांव गांव तक चिटफंड कंपनियों का नेटवर्क मौजूद है। कांग्रेस ने भी ममता पर हमला करने के लिए चिटफंड को ही मुद्दा बनाया है, जबकि ममता बनर्जी के मुख्य विरोधी वामपंथी संगठन भी इसी विषय को लेकर हंगामा कर रहे हैं।कांग्रेस के सांसदों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पश्चिम बंगाल में चिटफंड कंपनियों के कामकाज की जांच की मांग की है। चिटफंड कंपनियों को खुला संरक्षण देने के तमाम आरोपों से घिरी ममता बनर्जी सरकार पर जब पॉलिटिकल पार्टियों के बाद आरबीआई जैसी सरकारी ऐजेन्सियों के गर्वनर ने भी तीखी टिप्पणी की तो ममता बनर्जी ने अपनी साख बचाने के लिए एक नया पॉलिटिकल गेम खेल लिया। उन्होंने बॉल राष्ट्रपति के पाले में डाल दी, ताकि वो कह सकें कि मामला राष्ट्रपति की लेटलतीफी के कारण साल्व नहीं हो रहा है।ममता बनर्जी पर आरोप यह भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने जहां एक ओर चिटफंड कंपनियों को संरक्षण दे रखा है वहीं दूसरी ओर बचत के दूसरे शासकीय माध्यमों में कर्मचारियों की नियुक्तियां ही नहीं की। मजबूरन लोगों को चिटफंड में इन्वेस्ट करना पड़ रहा है।राज्य के बचत निदेशालय में उपनिदेशकों के 20 पद हैं, परंतु वहां केवल 6 उपनिदेशकों को ही तैनात किया गया है। शेष पद खाली हैं। उपनिदेशक ही बचत योजनाओं को प्रमोट करते हैं। इसी प्रकार बचत विकास अधिकारियों के 290 पद खाली हैं। कुल मिलाकर ममता सरकार में सरकारी योजनाओं में बचत करने की मनाही कर दी गई है। कोई चाहे तो भी उसे कर्मचारी ही नहीं मिलते।  देश की आवाम को फर्जी एमएलएम कंपनियों से बचाने के लिए पश्चिम बंगाल एवं राजस्थान सरकार के बाद अब केन्द्र सरकार ने भी गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है। केन्द्र सरकार देश भर में हुए तमाम एमएलएम, चिटफंड एवं डायरेक्ट सेलिंग फ्राड से लोगों को बचाने के लिए एक नियामक बनाने की तैयारी कर चुकी है। इसका पूरा ग्राउण्ड तैयार हो गया है एवं उम्मीद है कि अगले दो हफ्तों में यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। बताया जा रहा है कि उपलब्ध तमाम कानूनों को शामिल करते हुए नियामक के अधिकार तय किए जाएंगे एवं राज्यों की पुलिस द्वारा इसे कार्रवाई में लाया जाएगा।

पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से भेजी गई सूचना में लिखा है कि राज्य सरकार ने चिटफंड कंपनियों पर नकेल कसने की तैयारी कर ली है। राज्य के वित्त विभाग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिटफंड पर लगाम लगाने संबंधी विधेयक को त्वरित गति से राष्ट्रपति से अनुमोदन के लिए पत्र लिखा।

वाममोर्चा के शासन काल में दिसंबर 2010 में चिटफंड कंपनियों पर नियंत्रण के लिए विधानसभा से पारित विधेयक के त्वरित गति से अनुमोदन की कोशिश में सरकार जुट गयी है। यह विधेयक फिलहाल राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए विचाराधीन है।
राज्य सरकार चाहती है कि राष्ट्रपति इस विधेयक को जल्द अनुमोदन दें, ताकि चिटफंड कंपनियों पर लगाम लगायी जा सके।उल्लेखनीय है कि हाल में राज्य के वित्त विभाग की ओर से सभी जिलाधिकारियों को चिटफंड कंपनियों की सूची तैयार करने का निर्देश दिया है।

जिलाधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे इस संबंध में वित्त विभाग को रिपोर्ट दें कि कौन-कौन चिटफंड कंपनियां काम कर रही हैं तथा किन-किन क्षेत्रों में चिटफंड कंपनियों ने निवेश किया है। ये चिटफंड कंपनियां भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा- निर्देशों का पालन कर रही हैं या नहीं।

उल्लेखनीय है कि हाल में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने भी राज्य में चिटफंड कंपनियों के प्रसार पर चिंता जतायी थी तथा कहा था कि यह राज्य सरकार का विषय है तथा राज्य सरकार इस संबंध में कार्रवाई करे। चिटफंड कंपनियों के प्रसार के कारण राज्य में लघु निवेश घट रहा है।लघु निवेश घटने से राज्य में मिलनेवाले ऋण की मात्रा में भी कमी आयेगी। विगत महीनों चिटफंड कंपनियों के खिलाफ लगभग 35000 शिकायतें मिली हैं। सरकार चाहती है कि गलत काम करनेवाली कंपनियों पर लगाम लगायी जाये।

पश्चिम बंगाल में ऐसी योजनाएं आम तौर पर कृषि उत्पादों और रियल एस्टेट कारोबार में ही हैं। ये कंपनियां सुरक्षित डिबेंचर, बॉन्ड और सीमित दायित्व वाली योजनाओं के तहत निवेशकों को रियल्टी परियोजनाओं में पैसा लगाने को कहती हैं और उन्हें दो से तीन साल के भीतर 20 से 50 फीसदी तक रकम वापस आने का भरोसा भी दिलाती हैं। इन्हें सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) कहा जाता है, जिसे 1990 के दशक में सेबी ने वित्तीय योजना के तौर पर मान्यता दी थी। 1990 के दशक के आखिरी सालों में सरकार ने बढिय़ा रिटर्न के वायदे के साथ कृषि और वृक्षारोपण बॉन्ड जारी होते देखे तो इन योजनाओं को सेबी के हवाले कर दिया।राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्र के मुताबिक कुछ चिटफंड तो छोटे निवेशकों से 15,000 से 16,000 करोड़ रुपये जुटा चुके हैं। इसके एवज में आलू बॉन्ड तक जारी किए गए हैं, जिनसे 15 महीने में 20 से 50 फीसदी रिटर्न की गारंटी दी जा रही है। यह बॉन्ड जारी करने वाली कंपनी दक्षिण पूर्वी देशों को आलू का निर्यात करती है और वहां से मिली रकम से निवेशकों का पैसा चुकाती है। बीज निर्यात करने वाली एक कंपनी अपने डिबेंचर में निवेश के बदले 40 फीसदी रिटर्न की गारंटी दे रही है।

झारखंड के देवगढ़ तथा पाकुर जिले में कुल मिलाकर 22 गैर.बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को सील कर दिया गया है।झुमरीतिलैया शहर के विभिन्न हिस्सों में संचालित चिटफंड कंपनियां जनता से प्रतिमाह करोड़ों रुपये फर्जी तरीके से वसूल रही हैं। ये कंपनियां ना तो आरबीआई के निर्धारित मानदंडों के अनुरूप संचालित हैं और ना ही सेबी के।ऐसी कंपनियां देश भर में बिना रोक टोक चल रही हैं।सिलीगुड़ी में पिछले दिनों शहर और हिल्स के लोगों को रुपये दोगुने करने का लालच देकर लाखों रुपये डकार जाने वाली चिटफंड कंपनी के दफ्तर पर गुरुवार को जमकर हंगामा हुआ। वहां विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों की शिकायत पर पुलिस ने कंपनी के दफ्तर को सील कर कोलकाता निवासी इसके प्रबंधक को गिरफ्तार कर लिया। फाइनेंस चिटफंड कंपनी ने अपना रानीगंज कार्यालय को बंद कर दिया है। जिसमें लाखों रुपये जमा करनेवाले ग्राहकों अपने रुपये वापस पाने के लिए शुक्रवार को कार्यालय पहुंचे लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी।गरीब और मध्यम वर्ग परिवार बढ़ती महंगाई के दौर में कुछ पैसे बचा लेता है तो उसकी उम्मीद उसे ऐसी योजनाओं में निवेश करने का होता है जिसमें उसे ब्याज के रूप में अधिक से अधिक फायदा मिल सके। इस वर्ग की मजबूरी को भांपते हुए देशभर में चिटफंड कंपनियों की बाढ़ आ गई है। केन्द्रीय कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय से जारी सूची के अनुसार वर्ष 2008 में 10 हजार से अधिक चिटफंड कंपनियां देश में काम कर रही हैं। इन कंपनियों को नियंत्रित करने के लिए चिटफंड विनिमय कानून भी है, लेकिन ऐसी कंपनियां अवैध रूप से यादा फायदा का लालच देकर गांव-गांव में एजेंट बनाती हैं। गांव के इन एजेंटों का काम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भोलेभाले लोगों को कंपनी में पैसा जमा कराने के लिए प्रेरित करना होता है। जिसके बदले एजेंटों को मोटा कमीशन मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में चिटफंड कंपनियों द्वारा जमाकर्ताओं से धोखाधड़ी के अनेक प्रकरण सामने आए हैं। आम आदमी कई सपने संजोकर लाखों रुपए इन चिटफंड कंपनियों में निवेश करता है, लेकिन कंपनियां धोखाधड़ी कर जब जमाकर्ता के पैसे नहीं लौटाती तो बेचारों का भविष्य तो छोड़ दें वर्तमान भी कष्टप्रद हो जाता है। ऐसी कंपनियों पर अंकुश लगाने की कोशिश भारत सरकार द्वारा करनी चाहिए।

भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर डी. सुब्बाराव ने भी देश भर में चिटफंड के बढ़ते कारोबार पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि यादातर चिटफंड कंपनियां आरबीआई के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करती हैं।ऐसी कंपनियां दावा करती है कि उनको भारतीय रिजर्व बैंक से मान्यता प्राप्त है, लेकिन इसकी आड़ में वे अवैध रूप से जनता का पैसा जमा करते हैं। इस तरह चिटफंड कंपनियां आरबीआई और आम आदमी दोनों को धोखा देती है। पोल तब खुलती है जब वह करोड़ों रुपए हजम कर रफूचक्कर हो जाती है।अब ये कंपनियां देश के अनेक हिस्सों में टीवी चैनल और अखबार भी चला रहे हैं।जाहिर है कि उनका सुरक्षा बंदोबस्त चाकचौबंद है और सामान्य ग्राहक उनसे अपनी पावती वसूल करने की हालत में हरगिज नहीं है।

अपने निवेशकों को 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने के लिए कुछ और मिलने की सहारा समूह की अंतिम उम्मीद उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को खत्म कर दी। प्रधान न्यायाधीश अलतमस कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सहारा समूह को और समय देने से इन्कार करते हुए फरवरी के प्रथम सप्ताह तक निवेशकों का धन लौटाने की न्यायिक आदेश का पालन नहीं करने के लिए उसे आड़े हाथों लिया।इसी खंडपीठ ने सहारा समूह की दो कंपनियों को निवेशकों का धन लौटाने के लिये पूर्व में निर्धारित अवधि बढ़ाई थी।

न्यायाधीशों ने सख्त लहजे में कहा,'यदि आपने हमारे आदेशानुसार धन नहीं लौटाया है तो आपको न्यायालय में आने का कोई हक नहीं बनता है।' उन्होंने कहा कि यह समय सिर्फ इसलिए बढ़ाया गया था ताकि निवेशकों को उनका धन वापस मिल सके।

सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय और इसकी दो कंपनियां सहारा इंडिया रियल इस्टेट कारपोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेन्ट कारपोरेशन पहले से ही एक अन्य खंडपीठ के समक्ष न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही का सामना कर रही हैं। इस खंडपीठ ने निवेशकों का धन लौटाने के आदेश का पालन नहीं करने के कारण छह फरवरी को सेबी को सहारा समूह की दो कंपनियों के खाते जब्त करने और उसकी संपत्तियां कुर्क करने का आदेश दिया था।

सहारा समूह के मामले की आज सुनवाई शुरू होते ही उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एम कृष्णामूर्ति ने खड़े होकर प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ द्वारा इसकी सुनवाई करने पर आपत्ति की।उनका कहना था कि इस पीठ को मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि निवेशकों को धन लौटाने का आदेश दूसरी खंडपीठ ने दिया था।

कृष्णामणि ने कहा,'बार के नेता के रूप में मुझे यही कहना है कि इस अदालत की परंपरा का निर्वहन करते हुए इस खंडपीठ को इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए और आदेश में सुधार के लिए इसे उसी पीठ के पास भेज देना चाहिए। इस मामले की सुनवाई करने की बजाय उचित यही होगा कि दूसरी खंडपीठ इसकी सुनवाई करे। नाना प्रकार की अफवाहें सुनकर मुझे तकलीफ हो रही है।'

प्रधान न्यायाधीश इस बात पर नाराज हो गये और उन्होंने कहा कि वह इस मामले के तथ्यों की जानकारी के बगैर ही बयान दे रहे हैं। उन्होंने कृष्णामणि को बैठ जाने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति कबीर ने कहा, 'आपको कैसे पता कि इस मामले में क्या होने जा रहा है। यदि कुछ हो तब आप कहिये। कृपया अपना स्थान ग्रहण कीजिये।' न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पिछले साल 31 अगस्त को सहारा समूह की दो कंपनियों को निवेशकों का करीब 24 हजार करोड़ रुपया तीन महीने के भीतर 15 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने का निर्देश दिया था। आरोप है कि कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन करके अपने निवेशकों से यह रकम जुटाई थी।

लेकिन बाद में प्रधान न्यायाधीश कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पांच दिसंबर को सहारा समूह को अपने करीब तीन करोड़ निवेशकों का धन लौटाने के लिए उसे नौ सप्ताह का वक्त दे दिया था। कंपनी को तत्काल 5120 करोड़ रुपए लौटाने थे।

उस समय भी सेबी और निवेशकों के एक संगठन ने प्रधान न्यायाधीश से इस मामले को न्यायमूर्ति राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के पास भेजने का अनुरोध किया था लेकिन न्यायालय ने उनका यह आग्रह ठुकराते हुये निवेशकों के हितों ध्यान रखते हुये यह आदेश दिया था।

चिटफंड फ्राड में पश्चिम बंगाल व मध्यप्रदेश अव्वल

1 रुपए जमा कराओ, 3 साल बाद 2 रुपए पाओ। ऐसी तमाम योजनाएं चलाने वालीं चिटफंड कंपनियों द्वारा किए जा रहे अवैध गैर बैंकिंग कारोबार और घोटालों के मामले में पश्चिम बंगाल एवं मध्यप्रदेश का जिक्र किया गया है एवं कहा गया है कि यहां से ऑपरेट होने वाली कंपनियों ने बिना किसी लाइसेंस के लोगों से इन्वेस्टमेंट लिया और रिटर्न देने का वादा किया। सनद रहे कि दोनों राज्यों में चिटफंड कंपनियों के खिलाफ उल्लेखनीय कार्रवाई हुई है एवं अभी भी कई कंपनियों के डायरेक्टर्स जेल में हैं।
एमएलएम फ्राड के लिए राजस्थान नं. 1

एमएलएम फ्राड के मामले में राजस्थान की कंपनियों को सबसे ज्यादा सक्रिय माना गया। बताया गया है कि राजस्थान की फ्राड कंपनियों ने पूरे देश में नेटवर्क बनाया और 2 रुपए की वस्तु का दाम 10 रुपए तय करके, अवैध रूप से मनीसकरुलेशन किया। पिछले दिनों राजस्थान सरकार द्वारा की गई कार्रवाई को उदाहरण बताते हुए कहा गया है कि यहां सबसे ज्यादा धोखेबाज कंपनियां संचालित की जातीं हैं।
क्या होगा केरल व राजस्थान की गाइडलाइन का

इस केन्द्रीय नियामक के अस्तित्व में आ जाने के बाद यह पूरे देश में एक साथ प्रभावी होगा, ठीक वैसे ही जैसे बीमा उद्योग एवं टेली कम्प्यूनिकेशन में नियामक सक्रिय हैं। इसके प्रभावी हो जाने के बाद राज्य सरकारों की गाइडलाइनों का क्या होगा, वे यथावत प्रक्रिया में रहेंगी या शिथिल कर दी जाएंगी एवं राज्यों की ये गाइड लाइन्स राज्य में स्थापित कंपनियों के लिए प्रभावी होंगी या दूसरे राज्यों में स्थापित परंतु इन राज्यों में कारोबार करने वाली कंपनियों पर भी प्रभावी रहेंगी। इन सवालों के जबाव आना अभी शेष है।
डायरेक्ट सेलिंग एसोसिएशन ने किया स्वागत

एमवे, टवरवेयर, एवन और ऐसी ही तमाम मल्टीनेशनल कार्पोरेट डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों की लॉबी डायरेक्ट सेलिंग एसोसिएशन ने केन्द्र सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। सनद रहे कि डीएसए लगातार इस कोशिश में थी कि किसी भी तरह से कोई ऐसा कानून बने जिससे भारत की तमाम छोटी एमएलएम कंपनियां बंद हो जाएं एवं वही कंपनियां कारोबार कर पाएं जो डीएसए से रिलेटेल हों। देखते हैं केन्द्र सरकार का नियामक कार्पोरेट एमएलएम के हमले से कितना सुरक्षित रह पाता है।


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