फिर महाराष्ट्र दुष्काल के शिकंजे में,पिछले चार दशकों का सबसे भयंकर सूखा!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
राज्यातील ६ हजार २५० गावांमध्ये दुष्काळी स्थिती असून ही संख्या वाढण्याची शक्यता आहे।अनेक गावांत पिण्याच्या पाण्याचे दुर्भिक्ष तर , काही ठिकाणी जनावरे जगविण्याचे संकट आहे।
फिर महाराष्ट्र दुष्काल के शिकंजे में,पिछले चार दशकों का सबसे भयंकर सूखा!महाराष्ट्र के 34 जिले सूखे से प्रभावित हैं जिनमें सबसे अधिक प्रभावित शोलापुर, अहमदनगर, सांगली, पुणे, सतारा, बीड और नासिक हैं।औद्योगीकरण की आंधी में महाराष्ट्र आोगे है।सूखे की मार से इस बार मुंबई महानगर का भी बच पाना नामुमकिन है। वैसे भी महानगर मुंबई में पानी की भारी किल्लत रहती है।भारत में अब भी दो तिहाई जनसंख्या खेती बाड़ी और पशु पालन से आजीविका चलाती है। सालाना मॉनसून इनके लिए जीवनरेखा के समान है क्योंकि भारत में दो तिहाई जमीन बारिश के पानी से सींची जाती है। 1972 में सूखे से देश भर में खाद्यान्न की कमी हुई और सारे खाद्य उत्पादों के दाम बढ़े. भारत सरकार को फिर आयात बढ़ाने पड़े. कुछ ऐसी हालत 2009 में भी हुई।महाराष्ट्र में सूखे ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। हालात ऐसी है कि अब सूबे में पानी के लिए दंगा-फसाद तक होने की आशंका है। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये बिगड़ते हालात राजधानी मुंबई के करीब पहुंच चुके हैं। मुंबई से सिर्फ 60 किलोमीटर दूर भिवंडी में पानी बटोरने के लिए मची मारामारी में अब तक 6 बच्चों की जान जा चुकी है। जबकि कई लोग जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो चुके हैं।18 साल का सलीम भी पानी भरने के दौरान अपनी जान गंवा बैठा। सलीम की मां नुसरत आज भी उस हादसे को याद कर कांप उठती है जब उसके बेटा उसकी आंखों के सामने मौत के मुंह में समा गया। सलीम तो अपनी बूढ़ी मां और बीमार पिता के लिए पानी लेने गया था। लेकिन उसे क्या पता था कि पानी के बदले उसे मिलेगी मौत।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने राज्य के सूखा प्रभावित क्षेत्रों की जानकारी हासिल करने के लिए मुंबई में कॉल सेंटर शुरू करने की घोषणा की है।राज्य के कई जिले सूखे की चपेट में है। लोगों को पीने की पानी, जानवरों को चारा और पानी नहीं मिल पा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा, सूखा प्रभावित क्षेत्रों को मुंबई के कॉल सेंटरों से जोड़ा जाएगा ताकि वहां की खबर सरकार को तत्काल मिल सके।सरकार सूखा से निपटने के लिए फौरी तौर पर कदम उठा सके इसके लिए मुंबई में कॉल सेंटर शुरू करने का निर्णय किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि सूखा से निपटने में पैसे की कमी आड़े नहीं आएगी. किसानों को बिना ब्याज की कर्ज मुहैया कराया जाएगा।
राज्य के 2,136 गांव में टैंकर से पानी की आपूर्ति की जा रही है। 150 से अधिक गांव अब भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
महाराष्ट्र में भंयकर सूखे से ऐसे हालत बने हैं कि वहां अब सूबे में पानी के लिए हिंसा तक होने की आशंका है। भीषण सूखे से जूझ रहे महाराष्ट्र में पानी के लिए कभी भी हिंसा भड़क सकती है।महाराष्ट्र पुलिस के ताजा सर्कुलर में इस बात की आशंका जताई गई है। मौजूद महाराष्ट्र पुलिस के सर्कुलर के मुताबिक सूबे में पानी की भारी किल्लत किसी भी वक्त हालात बिगाड़ सकती है। इसके तहत सभी पुलिस अधिकारियों को इस सिलसिले में ऐहतियात बरतने को कहा गया है।गौरतलब है कि सूखे और पानी की समस्या महाराष्ट्र के लगभग 1,633 गांव और 4,490 कस्बों को झेलना पड़ रहा है। महाराष्ट्र को रबी के सीजन में केंद्र सरकार ने 1800 करोड़ रूपये की मदद दी है। वर्ष 2012 में खरीफ के सीजन के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने 125 तालुकों को सूखा प्रभावित घोषित किया था।
पानी का टैंकर भिवंडी में सिर्फ 10 मिनट के लिए रुकता है और इन्हीं 10 मिनट के दौरान किसी हादसे की गुंजाइश लगातार बनी रहती है। लोग जानते हैं कि पानी के लिए इतनी जल्दबाजी खतरनाक है लेकिन ये बेचारे कुछ कर भी नहीं सकते क्योंकि और कोई चारा भी तो नहीं है।स्थानीय लोगो का कहना है कि खाना खाना दूर की बात है, एक बूंद कभी पीने का पानी नहीं हैं। पैसा देने के बाद भी हमें पानी नहीं मिलता। हम कहां जाएं। एक बॉटल बियर दे दो तो पानी देते हैं अगर एक बियर नहीं दिया तो पानी नहीं देतें हैं।
प्यास से मरती जनता की तकलीफ लेकर आईबीएन7 भिवंडी शहर के मेयर के घर पहुंचा। लेकिन यहां पहुंचकर हमें जो जानकारी मिली वो लेटलतीफी की जीती जागती बानगी थी।
भिवंडी महानगर पालिका ने 2006 में 16 पानी की टंकियां बनाने का निर्णय लिया। महाराष्ट्र सरकार से इसके लिए 72 करोड़ रुपये भी मुहैया कराए गए। लेकिन 7 साल बाद भी पानी की टंकियों को बनाने का काम अब तक पूरा नहीं हुआ
जिस भातसा डैम से पानी लाकर प्रशासन टंकियों को भरना चाहते है उसके लिए पाइप लाइन बिछाने में कम से कम 3 साल का वक्त लगेगा। 3 साल में पता नहीं हालात और कितने बिगड़ जाएंगे। लेकिन 6 बच्चों की मौत के बाद भी इलाके के पूर्व मेयर और स्टैंडिग कमेटी के सदस्य को गंभीरता का अहसास तक नहीं है।
6 बच्चों की मौत के बाद भी अगर प्रशासन नहीं जागा तो हो सकता है कि हालात बेकाबू हो जाएं। शायद तब जाकर सरकार को इसका अहसास होगा। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
सेनसेक्स अर्थव्यवस्था की राजधानी है मुंबई। जहां विदर्भ में किसानों की आत्महत्या और दुष्काल की खबरें अब तीज त्योहार की तरह रस्म अदायगी है, कोई मानवीय विपर्यय नहीं। सत्ता वर्ग ने खेती और ग्रामीण भारत की क्या गत कर दी, महाराष्ट्र इसका ज्वलंत सबूत है।महाराष्ट्र में सूखे के हालात को देखते हुए राज्य के मुख्यमंत्री ने लोगों से अपील की है कि वे सूखा पीड़ितों की मदद के लिए आगे आएं और सूखे से निपटने के लिए बनाए गए खास चीफ मिनिस्टर रिलीफ फंड में दान कर राज्य सरकार की मदद करें। राज्य सरकार ने इस बार के सूखे को पिछले चालीस सालों में सबसे भयंकर सूखा घोषित किया है।मुख्यमंत्री के मुताबिक ये पिछले चार दशकों का सबसे भयंकर सूखा है। 1972 में पड़े सूखे में खाने के सामान की किल्लत थी, लेकिन पीने के पानी की किल्लत इस बार के जितनी नहीं थी। महाराष्ट्र के कुल 34 जिलों के 11 हजार से ज्यादा गांव सूखाग्रस्त हैं। 7000 से ज्यादा गांव ऐसे हैं जो पीने के पानी के लिए पूरी तरह से पानी के टैंकर पर ही निर्भर हैं।
दिल्ली से खबर है कि कृषि मंत्री शरद पवार के नेतृत्व में महाराष्ट्र के सूखे पर अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह की बुधवार बैठक होगी।बैठक में चारे और पानी की किल्लत से जूझ रहे महाराष्ट्र के लिए राहत संबंधी पहलों पर फैसला किया जाएगा।सूत्रों ने बताया, 'मंत्रिसमूह की बैठक बुधवार सुबह होने वाली है. महाराष्ट्र के सूखे के मामले पर चर्चा होगी।'
सूत्रों ने बताया कि लगातार दूसरे साल बारिश कम होने के कारण सूखे का असर बढ़ गया है। राज्य में सूखे की स्थिति का आकलन करने वाले एक केंद्रीय दल ने रपट तैयार की है और बैठक में इस पर चर्चा की जाएगी।सूत्रों के मुताबिक, मंत्रिसमूह महाराष्ट्र सरकार से इस स्थिति से निपटने के लिए पेश 2,200 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के प्रस्ताव पर भी विचार करेगा।
सूखाग्रस्त 34 जिलों में से सोलापुर, अहमदनगर, सांगली, पुणे, सातारा, बीड और नासिक में हालात भयंकर हैं वहीं बुलढाणा, लातूर, उस्मानाबाद, नांदेड, औरंगाबाद, धुले, जालना और जलगांव में भी सूखे के हालात बेहद चिंताजनक हैं।राज्य के लिए चिंता का सबब आने वाले समय में अहमदनगर, औरंगाबाद, जालना, बीड और उस्मानाबाद में हालात और भी बदतर होने की आशंका है क्योंकि इन इलाकों में पीने का पानी महज इस महीने के आखिरी तक का ही बचा है। राज्य ने केंद्र सरकार से 1800 करोड़ रुपये की मदद मांगी थी। जिसके जवाब में केंद्र सरकार नेशनल डिसास्टर रिलीफ फंड के तहत 778 करोड़ रुपये महाराष्ट्र सरकार को दे चुकी है। अब राज्य सरकार ने दोबारा 2200 करोड़ रुपये की मदद का ताजा प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है।
इस बीच बंबई उच्च न्यायालय ने सूखा प्रभावित गांवों से बालू के उत्खनन की इजाजत देने पर पाबंदी लगा दी है और कहा है कि इससे लोगों और जानवरों के लिए पेयजल की कमी पैदा होगी ।अदालत राजेंद्र एकनाथ धांडे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सोलापुर गांव के करमाला तालुका के सूखा प्रभावित खाटगांव में बालू के उत्खनन पर रोक लगाने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई है ।
मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह और न्यायमूर्ति अनूप मोहता का मत था कि सूखा प्रभावित इलाकों में बालू के उत्खनन पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए क्योंकि इससे लोग जल पाने के अपने बुनियादी अधिकार से वंचित हो जाएंगे ।
अदालत ने पिछले हफ्ते एक आदेश में कहा कि सूखा प्रभावित इलाकों में पहले ही पेयजल की कमी है और अगर बालू के उत्खनन की अनुमति दी गई तो इससे समस्या बढेगी ।
न्यायाधीशों ने सोलापुर के जिला परिषद के ग्रामीण जलापूर्ति विभाग के कार्यकारी अभियंता द्वारा जारी प्रमाण पत्र पर विचार किया जिसमें कहा गया कि सूखा प्रभावित इलाकों में बालू का उत्खनन किऐ जाने से लोगों और जानवरों को पेयजल मिलने में गंभीर समस्या होगी । याचिका पर अगले हफ्ते फिर से सुनवाई होगी ।
मध्य महाराष्ट्र में पानी का अभाव इतना ज्यादा हो गया है कि 1972 में सूखा भी इसके आगे फीका पड़ रहा है। मुख्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण कहते हैं कि लिखित इतिहास में पहले कभी भी महाराष्ट्र के जलाशयों में इतना कम पानी नहीं था। चव्हाण पिछले दो सालों से मॉनसून को दोष देते हैं लेकिन आलोचकों का कहना है कि सरकार की नीतियों ने पानी के अभाव को खत्म करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। मॉनसून जून के महीने में महाराष्ट्र पहुंचता है और अब गाय भेड़ों को बचाने और मध्य महाराष्ट्र में लोगों को राहत पहुंचाने के लिए 2000 टैंकरों का बंदोबस्त किया गया है।
चव्हाण के मुताबिक, "हर एक दिन के साथ टैंकरों को और लंबे रास्ते तय करने पड़ते हैं. यह एक बड़ी समस्या है।" मुख्यमंत्री के दफ्तर से यह पता नहीं चल पाया है कि सूखे से ग्रस्त 10,000 गांवों में कितने लोग रहते हैं लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि लाखों लोग पानी के अभाव से परेशान हैं।
जालना जिले में अस्पताल चला रहे क्रिस्टोफर मोसेस कहते हैं इलाके में कंपनियां बंद हो गईं और किसान के फसल सूखने लगे। "यह सूखा है। गांववालों के पास खाने को कुछ नहीं है, वे अपने बर्तनों को खरोंचकर खाना खाते हैं...पानी से संबंधित बीमारियां फैल रही हैं, अब भुखमरी और कुपोषण से भी लोग पीड़ित होंगे। " मोसेस के मुताबिक पानी की समस्या की वजह से उन्हें अपने अस्पताल के कुछ हिस्सों को बंद करना पड़ेगा। अस्पताल के 117 साल पुराने इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है. सरकार की तरफ से पानी का बंदोबस्त- इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली है।
सूखे की चपेट में आए गांवों में माता-पिता अपनी बेटियों की शादी इसलिए नहीं कर पा रहे, क्योंकि उनके पास दहेज की मांग पूरी करने के लिए रुपये नहीं हैं। विडंबना यह है कि मराठवाड़ा में खेत बंजर पड़ रहे हैं, लोगों की जिंदगी में अभाव पसरता जा रहा है और दूसरी तरफ दहेज की मांग जोरों पर है। अभिभावकों की फिक्र व पीड़ा मुरझाती फसल के साथ गहराती जा रही है कि कहीं उनकी बेटियां कुंवारी न रह जाएं। महाराष्ट्र में पड़े सूखे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य के जलाशयों में इस वक्त महज 38 प्रतिशत पानी है और मराठवाड़ा जोन के जलाशयों में तो 13 प्रतिशत पानी ही बचा है। साफ है, स्थिति विकट है। सूखे की इन खबरों के बीच एक खबर यह भी है कि मराठवाड़ा के जेलना जिले में कई किसानों ने लड़कियों की शादी में दहेज देने के वास्ते अपने खेत और बगीचे तो बेच दिए, फिर भी शादी नहीं कर पाए, क्योंकि दहेज की मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है। गुजरे साल यहां 70 शादियां होनी थीं, पर केवल दो ही हो पाईं। जो लोग फसल सूखने के कारण अपने पशु सस्ते दामों में बेचकर या जो किसान मजबूरी में सरकार की रोजगार गांरटी योजना के तहत रोजाना 150 रुपये की दिहाड़ी पर मजदूरी करके किसी तरह इस महंगाई में परिवार चला रहे हैं, उन्हें बेटिया बोझ लगने लगी हैं। लेकिन इसमें कोई नई बात भी नहीं। अक्सर यह देखा गया है कि सूखा हो या पलायन या अन्य किसी प्रकार की विपदा, उसकी मार लड़कियों व महिलाओं की जिंदगी पर ज्यादा घातक साबित होती है।
चव्हाण ने कहा है कि अगर इस साल भी बारिश में कमी हुई तो हालत और खराब हो जाएगी। लेकिन सूखे को बढ़ावा देने का आरोप कुछ हद तक प्रशासन पर भी लग रहा है। आलोचकों का कहना है कि नेताओं और अधिकारियों ने जल परियोजनाओं में पैसे तो लगाए, लेकिन इन्हें पूरा नहीं किया. कई प्रोजेक्ट भ्रष्टाचार की वजह से पूरे नहीं हो पाए। 2000 से लेकर 2010 में सरकार ने कई अरब डॉलर जल सुरक्षा पर खर्च किए लेकिन सींची गई जमीन के उत्पादन में केवल 0.1 प्रतिशत से बढ़त हुई। महाराष्ट्र में काम कर रहे अर्थशास्त्री प्रोफेसर एचएम दसर्दा कहते हैं कि भ्रष्टाचार का सूखे में बड़ा योगदान है और बारिश के पानी को बचाकर रखने में भी लोगों की समझ कम है।उनका कहना है कि उपयोगी जल प्रशासन के लिए बड़े प्रोजेक्टों और डाम बनाने से हटकर समुदायों को अपने स्तर पर पानी बचाने की रणनीति बनानी होगी। देसर्दा कहते हैं कि जमीन के नीचे पानी निकालने पर भी कड़ा नियंत्रण करना होगा। लेकिन दसर्दा के मुताबिक "सूखा बारिश की कमी की वजह से नहीं, सरकारी नीतियों में कमी की वजह से है।"
प्रदर्शनों पर ध्यान नहीं दिया गया तो हिंसा फैल सकती है
सूखे से जूझ रहे महाराष्ट्र में पानी के लिए कभी भी दंगा भड़क सकता है। ये हम नहीं खुद महाराष्ट्र पुलिस के ताजा सर्कुलर में इस बात की आशंका जताई गई है। आईबीएन7 के पास मौजूद महाराष्ट्र पुलिस के सर्कुलर के मुताबिक सूबे में पानी की कमी किसी भी वक्त हालात बिगाड़ सकती है। इस सर्कुलर में पुलिस को ऐसे किसी भी हालात से निपटने के उपाय तक सुझा दिए गए हैं।
ये सर्कुलर 7 तारीख को लिखा गया और इसके बाद 19 फरवरी 2013 को एडिश्नल कमिश्नर के हस्ताक्षर के साथ जारी हुआ। महाराष्ट्र के सभी थानों में भेजे गए इस सर्कुलर में साफ-साफ लिखा है कि सूखे की वजह को लेकर प्रदर्शन हो सकते हैं। चुनाव के चलते राजनीतिक दल इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहेंगे। प्रदर्शनों पर ध्यान नहीं दिया गया तो हिंसा फैल सकती है।
साफ के इस खत से तमाम थानों में हड़कंप है। सर्कुलर में इस हालात पर काबू पाने के उपाय तक सुझाए गए हैं। आईबीएन7 के पास मौजूद सर्कुलर में सभी थानों को अलर्ट जारी किया गया है। सर्कुलर के मजमून के मुताबिक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए काफी धैर्य की जरूरत होगी। हालात बिगड़ने पर लाठीचार्ज का सहारा लिया जा सकता है। लेकिन इससे आगे की कार्रवाई बहुत सख्त जरूरत पड़ने पर ही की जाए।
आगे की कार्रवाई का मतलब फायरिंग से भी लगाया जा सकता है। यानी महाराष्ट्र पुलिस की माने तो हालात के हद से ज्यादा बेकाबू होने का खतरा मंडराने लगा है। सूबे के गृहमंत्री भी इस बात को मान रहे हैं कि ऐसे हालात बन सकते हैं।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी नौबत आई क्यों। शायद इसकी जिम्मेदार खुद सुबे की सरकार है। अगर सूखा पीड़ितों को मदद पहुंचाने के लिए राज्य सरकार गंभीर होती तो शायद वो प्रदर्शन के बारे में सोचते भी नहीं। शायद ये मशीनरी की लेटलतीफी और लापरवाही ही थी जिसने पानी में आग लगाने का काम किया है।
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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
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