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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, March 9, 2013

बराबरी की दुनिया परिवार के भीतर से बने तो बेहतर

बराबरी की दुनिया परिवार के भीतर से बने तो बेहतर

♦ आशिमा

साल 2013 के साथ महिलाओं की तरक्की का अध्याय तकरीबन अभी शुरू होता महसूस हो रहा था, और इस महिला दिवस के अलग मायने सेट करके सभी ने इस दिन के लिए तैयारी शुरू भी कर दी थी। दिल्ली गैंग रेप घटना के बाद जो सड़कों पर हुजूम उमड़ा, उससे यह साफ लगने लगा था कि मानो यह समाज ऐसी खौफनाक घटना के दोबारा न होने का वादा कर रहा हो। लेकिन एक के बाद एक अखबारों की सुर्खियों ने मानो गलतफहमी दूर कर देने का काम किया। छोटी बच्ची से दुष्कर्म, पंजाब में पुलिसवालों द्वारा एक युवती की बेरहमी से पिटाई के न्यूज चैनलों पर लगातार चलते वीडियो इस बात की गवाही दे रहे हैं कि भले ही अब सड़कों पर महिलाओं के हक में आवाज बुलंद होना शुरू हो गयी है लेकिन पुरुषवादी सत्ता को उखाड़ फेंकना अब भी बहुत दूर की बात है। क्योंकि जब तक समाज की इस जड़ पर जोरदार हमला नहीं होगा, तब तक किसी भी तरह के परिवर्तन की कामना करना हवा में तीर चलाने के ही बराबर साबित होगा। याद रहे भले ही सुरक्षा या कानून व्यवस्था का मामला उठाकर सरकार और पुलिस पर आरोप लगा दिये जाएं लेकिन याद रहे वह महिला जो पुलिस वालों के पास छेड़छाड़ की शिकायत करने आयी थी, उसे पीटने वाले वर्दीधारी भी इसी समाज का हिस्सा हैं। और उनका पालन पोषण और यहां तक कि 'नैतिक शिक्षा' की जिम्मेदारी भी इसी समाज की है। इसलिए खाली पुलिस प्रशासन पर आरोप लगाना ठीक नहीं क्योंकि वे इस समाज का हिस्सा हैं।

liberated womenबात की गंभीरता समझने के लिए यह भी काफी होना चाहिए कि देश में गिरते लिंगानुपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जतायी है। जब भी महिलाओं की दुर्दशा का प्रश्न उठाया जाता है तो अव्वल तो बोरिंग टॉपिक पर कौन अपने कान देता है। और अगर बात शुरू हो ही जाए तो तरह तरह के तर्क दिये जाते हैं कि महिलाएं आगे बढ़ तो रहीं हैं, आज उन्हें पढ़ने-लिखने, अपना करियर तक चुनने की आजादी है। माना कि है लेकिन आज भी जब शादी के लिए रिश्ते देखे जाते हैं, तो 'जरूरत से ज्यादा पढ़ी लिखी' लड़कियों को अधिकतर रिजेक्ट कर दिया जाता है। फिर कहा जाता है कि लड़कियां तरक्की कर रही हैं, मन से अपनी जिंदगी जीने को स्वतंत्र हैं, लेकिन फिर वही बात आ जाती है कि ऐसी लड़कियों के लिए आदरणीय पुरुषवादी समाज ने किस किस तरह के नाम बनाये हैं, शायद बताने की जरूरत नहीं।

तो कुल मिलाकर मंथन की आवश्यकता इस बात को लेकर है कि आखिर नारी के किस रूप की तरक्की हो रही है, हमारे समाज में। आज यह बार बार सबको बताने की जरूरत पड़ती है किस तरह हमारे देश की लड़ाई में महिलाओं ने बराबर अंग्रेजों की लाठियां, गोलियां खायीं, रणभूमि में लड़ीं। और कुछ नहीं तो बार बार इतिहास बताने वाले इतिहास से ही सबक लेते तो भी था। आज भी दूर दराज के गावों में महिलाएं कभी शराब के ठेके हटवाने के लिए तो कभी पाकृतिक संपदाओं को बचाने के लिए पूरी तरह प्रयासरत हैं, लेकिन न मीडिया न ही आम लोग किसी का भी उनकी बहादुरी पर ध्यान नहीं गया। मगर विडंबना देखिए एक पोर्न स्टार जो एक दिन भारत आती है, तो वह इंटरनेट पर सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली महिला बन जाती है, हिंदी फिल्मों में इतना बड़ा ब्रेक ऐसे मिल जाता है जिसे पाने के लिए एक असल कलाकार की जिंदगी निकल जाती है। जहां आज भी आफिस में आमदनी को लेकर महिलाओं के साथ भेदभाव की बातें सामने आती हैं, वहीं एक आइटम नंबर करने वाली एक्ट्रेस करोड़ों के हिसाब से पैसे बटोरती है। यहां घड़ी की सुई की तरह बात घूम कर फिर वहीं आ गयी। इस पूरे सिलसिले में आपके उस भाषण का क्या, जिसमें आपने कहा था कि लड़कियां पढ़ने लिखने को, करिअर चुनने को स्वतंत्र हैं, क्योंकि आपके इस समाज में मेहनत करने वाली, समाज के लिए भलाई करने वाली औरतों की तो कोई जगह नजर ही नहीं आती।

जाहिर है समय और जरूरत' के हिसाब से पुरूष ने नारी के जिस रूप की कल्पना की उसी रूप की तरक्की स्वभाविक मानी गयी। गर्लफ्रेंड बनानी हो तो शहरी लड़की, जिसकी हर अदा में स्टाइल हो और स्टेटस सिंबल के हिसाब से एकदम परफेक्ट, लेकिन बस उससे शादी नहीं क्योंकि ऐसी लड़की को अपने मां बाप के सामने किस मुंह से लेकर जाएगा आदर्शवादी लड़का आखिर वह घर का एक जिम्मेदार लड़का है, इसलिए ऐसी लड़की केवल गर्लफ्रेंड बनने लायक बस उससे आगे शादी नहीं। फिर शादी की यदि बात आ जाए तो शादी के लिए हाउस वाइफ होनी चाहिए, आखिर घर बार देखना भी तो है। थके हारे घर पहुंचो तो कोई होना चाहिए कि बना हुआ खाना मिल जाए। यहां जिन जिन बातों का उल्लेख हुआ, वे भले ही एक बार को अजीब लगे लेकिन झूठ नहीं यह बात सभी जानते हैं।

जाहिर है कि यह समाज अब भी नारी के किस रूप की कल्पना करता है वह सामने है यहां हर कोई आज सरकार से कभी पुलिस प्रशासन से अपने हक को मांग रहा है। लेकिन असल बात यह है कि आपका हक इसी समाजिक व्यवस्था से मिलना है। और उसके लिए जरूरी है कि समाज की छोटी यूनिट परिवार से इसकी शुरुआत की जाए। जहां महिला पुरुष दोनों को बराबरी का दर्जा हो।

स्वामी विवेकानंद ने इस देश की तरक्की में ठहराव का एक कारण महिलाओं के प्रति अत्याचार बताया। समय बीत गया लेकिन महिलाओं के प्रति दोयम दर्जे की भावना पर लगाम नहीं लग पायी। समाज में आ रही अव्यवस्था को कम से कम अब इस समज को समझना होगा, और यह तब होगा जब हम नारी को उसके काम के लिए उसको प्रोत्साहन देने के साथ साथ उसकी बहादुरी और समाज के प्रति कर्मठता को सलाम करेंगे और निजी जिंदगी में भी उसकी कद्र करेंगे। तभी सही मायने में महिला दिवस मुकम्मल माना जाएगा।

Ashima(आशिमा। भारतीय जनसंचार संस्‍थान से पत्रकारिता में डिप्‍लोमा के बाद स्‍वतंत्र रूप से मीडिया में सक्रिय। जनसत्ता, नवभारत टाइम्‍स और दैनिक जागरण जैसे अखबारों में नियमित लेखन। उनसे blossomashima@gmail.com पर संपर्क करें।)

http://mohallalive.com/2013/03/08/article-on-womens-liberation-by-ashima-kumari/

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