'पेड' करो प्रधानमंत्री बनो
भविष्य बताने की मीडिया दलाली
भाजपा के बड़े नेता भले ही सार्वजनिक रूप से मोदी के पक्ष में स्टेज पर तालियां पीट रहे हैं किंतु अंदर से सभी घबराये हुये हैं। नरेंद्र मोदी बुलडोजर हैं, जो भी सामने आ जाय उसे कुचल देते हैं. उनके अंदर कुचलने की क्षमता कितनी है, यह सभी लोग 2002 से ही देखते आ रहे हैं...
मोकर्रम खान
इस देश में दो ही व्यवसाय ऐसे हैं जिनमें बिना कोई निवेश किये अरबों रुपये कमाये जा सकते हैं, एक तो नेतागिरी दूसरे राजनीति का भविष्यफल बताना. कभी थोड़ी सी पूंजी से पत्रकारिता के क्षेत्र में भाग्य आजमाने वाले कुछ व्यक्तियों ने राजनेताओं से सांठगांठ कर इतना पैसा बना लिया कि आज वे देश के नामी-गिरामी धनाढ्यों में गिने जाते हैं. जब धन की अति हो जाती है तो मनुष्य दूसरों का भाग्य विधाता बनने का प्रयास करने लगता है. कई बार अपने आपको अपने गाडफादर्स का भी गाडफादर बताने लगता है.
कुछ ऐसा ही व्यवहार देश के कुछ मीडिया हाउस कर रहे हैं. जिन राजनेताओं की सहायता से वे धन-कुबेर बने, अब उनका ही भविष्य बांच रहे हैं. कुछ दिनों पूर्व एक साप्ताहिक पत्रिका ने एक तथाकथित सर्वे कराया और घोषणा कर दी कि नरेंद्र मोदी अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं क्योंकि उनके सर्वे के अनुसार मोदी को देश के 36 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. दूसरे नंबर पर राहुल गांधी हैं जिन्हें 22 प्रतिशत जनता प्रधानमंत्री के रूप में पसंद करती है. आडवाणी, सोनिया गांधी तथा सुषमा स्वराज को मात्र 5 प्रतिशत, मनमोहन सिंह को केवल 4 प्रतिशत, मायावती को 3 प्रतिशत, नीतीश, मुलायम और ममता को महज 2 प्रतिशत तथा चिदंबरम एवं शरद पवार को मात्र 1 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.
इस सर्वे रिपोर्ट से नरेंद्र मोदी तथा उनके समर्थक गदगद हैं. हालांकि भाजपा के बड़े नेता भले ही सार्वजनिक रूप से मोदी के पक्ष में स्टेज पर तालियां पीट रहे हैं किंतु अंदर से सभी घबराये हुये हैं. नरेंद्र मोदी बुलडोजर हैं, जो भी सामने आ जाय उसे कुचल देते हैं. उनके अंदर कुचलने की क्षमता कितनी है, यह सभी लोग 2002 से ही देखते आ रहे हैं. गुजरात की जनता जिसमें सभी धर्मावलंबियों का समावेश है, मोदी की बुलडोजर शैली को अपना भाग्य-लेख मान कर शिरोधार्य कर चुकी है परंतु क्या गुजरात ही संपूर्ण भारत वर्ष है जो बुलडोजर के नीचे आ कर अपना कचूमर निकलवाने को तैयार है.
यदि उक्त मीडिया सर्वे को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया जाय तो भी नरेंद्र मोदी को केवल 36 प्रतिशत लोग ही प्रधानमंत्री बनवाना चाहते हैं, 64 प्रतिशत लोग उन्हें स्वीकारने के लिये तैयार नहीं हैं फिर किस गणितीय फार्मूले के अनुसार 64 प्रतिशत लोगों के विरुद्ध 36 प्रतिशत लोगों की राय को महत्व दिया जा सकता है. इस सेल्फ कंट्रोल्ड सर्वे के अनुसार एक अपेक्षाकृत छोटे राज्य का मुख्यमंत्री जिसे केवल 36 प्रतिशत लोग पसंद करते हैं, 64 प्रतिशत लोगों की नापसंद को बुलडोज़ कर देश का प्रधानमंत्री बन सकता है.
इस सर्वे रिपोर्ट के अन्य दिलचस्प पहलू भी हैं, नीतीश कुमार जिनके नेतृत्व में बिहार जैसे पिछड़ेपन के रिकार्ड बना चुके राज्य की ग्रोथ गुजरात से भी ज्यादा है, को केवल 2 प्रतिशत लोगों की पसंद बताया गया है. राजनीति के अखाड़े में अपनी जवानी तथा प्रौढ़ावस्था गुजार कर जीवन के चौथे आश्रम में प्रवेश कर चुके शरद पवार तथा बुद्धदेव भट्टाचार्य को केवल 01 प्रतिशत लोगों की पसंद बताया गया है. सोनिया गांधी जो विश्व की शक्तिशाली महिलाओं में गिनी जाती हैं तथा भारत की राजनीति एवं शासन पर रिमोट कंट्रोल से नियंत्रण रखती हैं, को केवल 05 प्रतिशत मत दिये गये हैं.
देश के प्रधानमंत्री के रूप में 01 दशक पूर्ण करने जा रहे मनमोहन सिंह को केवल 04 प्रतिशत मत दिये गये हैं. हद तो यह है कि नरेंद्र मोदी के गुरु तथा भूतपूर्व संरक्षक आडवाणी को भी मात्र 06 प्रतिशत लोगों की पसंद बताया गया है. इस सर्वे रिपोर्ट का एक रोचक पहलू यह है कि मोदी की लोकप्रियता अगस्त 2012 में केवल 21 प्रतिशत बताई गई है जबकि जनवरी 2013 में 36 प्रतिशत. मात्र 04 माह में उनकी लोकप्रियता में सीधे 15 प्रतिशत का उछाल कैसे आ गया इसका उत्तर इस सर्वे के सूत्रधार ही दे सकते हैं क्योंकि इन 04 महीनों में कोई चमत्कारिक घटना नहीं हुई. न तो किसी सांप्रदायिक मुद्दे ने जोर पकड़ा न ही कोई दंगा-फसाद हुआ, न ही नरेंद्र मोदी ने किसी सौंदर्य अथवा शरीर सौष्ठव प्रतियोगिता में भाग ले कर कोई पुरस्कार जीता.
सर्वे में यह भी कहा गया है कि पंजाब के 48 प्रतिशत लोगों का कहना है कि मोदी को 2002 के गुजरात दंगों के लिये माफी नहीं मांगनी चाहिये, केवल 23 प्रतिशत सिख माफी मांगने के पक्ष में हैं. यह भी थोड़ा अविश्वसनीय है क्योंकि 1984 के दंगों के लिये सिखों ने कांग्रेस सरकार से माफी मंगवाने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था और अंतत: माफी तथा मुआवजे की मांग मनवा कर ही दम लिया. सर्वे में यह बताया गया है कि यदि कांग्रेस से कोई गैर गांधी परिवार का व्यक्ति प्रधान मंत्री बना तो पहले नंबर पर चिदंबरम होंगे.
उल्लेखनीय है कि चिदंबरम राजनीतिज्ञ कम प्रशासक अधिक हैं, जिनकी छवि जनविरोध की परवाह न करते हुये कड़े फैसले लेने वाले निरंकुश प्रशासनिक अधिकारी की है. कांग्रेस में कुछ ऐसे धुरंधर राजनीतिज्ञ भी हैं जो लगातार 10 वर्षों तक देश के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले राज्य के मुख्यमंत्री रहे तथा राजनीतिक चातुर्य में चाणक्य को भी मात देने की क्षमता रखने के कारण कांग्रेस के संकट मोचकों में से एक के रूप में जाने जाते हैं एवम विभिन्न राज्यों में लोकप्रिय भी हैं किंतु सर्वे में उनके नाम का कहीं भी उल्लेख नहीं है. शायद इसलिये कि वे अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा के कारण वर्तमान में किसी को प्रत्यक्ष वित्तीय लाभ प्रदान करने वाले पद पर नहीं हैं, संभवत: इसीलिये उक्त पत्रिका ने सर्वे में उनका नाम सम्मिलित नहीं किया.
(मोकर्रम खान राजनीतिक विश्लेषक हैं.)
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