Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Wednesday, July 31, 2013

तेलंगाना आंदोलन का इतिहास

तेलंगाना आंदोलन का इतिहास

By  


अलग तेलंगाना राज्य कांग्रेस के गले की फांस बन गया है। लंबे समय तक चला तेलंगाना आंदोलन आज भी ठंडा नहीं पड़ा है और जब तब उबाल मार देता है। इस बार जैसे जैसे आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं तेलंगाना राज्य के गठन की कोशिश और विरोध दोनों तेज होते जा रहे हैं। एक बार फिर केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने अलग तेलंगाना राज्य के गठन की पहल की है। आइये देखते हैं तेलंगाना राज्य के आंदोलन का इतिहास क्या है?

आज जिस तेलंगाना राज्य को लेकर राजनीतिक गथिविधियां चरम हैं उसके लिए आंदोलन की शुरूआत 1969 में हुई. 1969 में हुए साल हुए आंदोलन में उस्मानिया विश्वविद्यालय के 350 से अधिक छात्र शहीद हो गये. इस आंदोलन का नेतृत्व एक कांग्रेसी नेता मरिचन्ना रेड्डी ने किया. उन्होंने अलग तेलंगाना राज्य के लिए जय तेलंगाना का नारा दिया और अलग से तेलंगाना प्रजा समिति की स्थापना की. लेकिन इंदिरा गांधी ने उन्हें दोबारा कांग्रेस में शामिल कर लिया और उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया.

असल में इंदिरा गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर आंदोलन को खत्म कर दिया था. इसके बाद 1971 में पीवी नरसिंहराव को भी आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री इसलिए बनाया गया क्योंकि वे तेलंगाना रीजन से ही आते थे. इसके कारण आजादी के बाद मुखर हुई अलग तेलंगाना राज्य की मांग एक तरह से दब गयी. लेकिन अलग तेलंगाना की मांग को एक बार फिर हवा दी के चंद्रशेखर राव ने जिन्होंने 2001 में टीडीपी से अलग होकर अलग तेलंगाना राज्य के लिए तेलंगाना राष्ट्र समिति की स्थापना की. 2004 के चुनाव में वाई एस राजशेखर रेड्डी ने टीआरएस का समर्थन करते हुए उन्हें भरोसा दिलाया कि वे अलग तेलंगाना राज्य की स्थापना में उनकी मदद करेंगे. इसका सीधा फायदा कांग्रेस को हुआ लेकिन अलग तेलंगाना की मांग ठंडे बस्ते में चली गयी और आखिरकार के चंद्रशेखर राव ने केन्द्र सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

तेलंगाना की मांग को समझने के लिए आंध्र प्रदेश के गठन का इतिहास समझना होगा. 1948 में निजामशाही का खात्मा हुआ और हैदराबाद राज्य की स्थापना हुई. 19 अक्टूबर 1952 को मद्रास स्थित महर्षि बुलुसु सांबामूर्ति के घर पर अलग आंध्र की मांग को लेकर महान गांधीवादी श्री अमरजीवी पोट्टीरामालु ने आमरण अनशन शुरू किया था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उनकी कोई सुध नहीं ली और 58 दिनों के बाद आखिरकार उनकी मौत हो गई। उनके इस त्याग के बाद जो बखेड़ा खड़ा हुआ वह किसी से छुपा नहीं है। तीन चार दिन के भीषण आंदोलन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू को अलग आंध्र प्रदेश बनाने की घोषणा करनी पड़ी। 1 अक्टूबर 1953 को अलग आंध्र प्रदेश का गठन हुआ और कुर्नूल को राजधानी बनाया गया। तब तक तेलंगाना एक अलग राज्य के रूप में विद्यमान था। 1 नवम्बर 1956 को स्टेट रिआर्गेनाइजेशन कमीशन की रिपोर्ट को दरकिनार कर तेलंगाना को आंध्र में मिला दिया गया। हैदराबाद अब इस नए आंध्र की राजधानी बन गया।

तेलंगाना के प्राचीन स्वरूप पर एक नजर डालें तो तेलंगाना से तात्पर्य है - 'तेलुगु की भूमि।' महाभारत में तेलंगाना के लिए तेलिंगा राज्य का जिक्र किया गया है एवं यहां के निवासियों को तेलावाना संबोधित किया गया है। इन्होंने पांडवों के पक्ष में महाभारत की लडाई में भी भाग लिया था। तेलंगाना के वारंगल जिले में स्थित पांडाचुलू गुहालू में इस बात के पर्याप्त साक्ष्य भी मिले हैं कि लाक्षागृह की घटना के बाद पांडवों ने अपनी माता कुंती के साथ काफी समय यहां गुजारा था। कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने अपने वनवास के दौरान अपनी पत्नी सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ खम्मम जिला स्थित भद्राचलम से 25 किलोमीटर दूर गोदावरी नदी के किनारे पर्णशाला में समय व्यतीत किया था।

सन 1947 में आजादी मिलने के उपरांत जब हैदराबाद का निजाम स्वायत्ता चाहता था, तब भारत सरकार ने सेना के आपरेशन पोलो के तहत 17 सितम्बर 1948 को हैदराबाद को भारत के साथ मिला लिया। उस समय समूचे प्रांत को 22 जिलों में बांट दिया। इनमें से तेलंगाना के 9 जिले हैदराबाद राज्य में, 12 मद्रास में और एक अलग फ्रांस के नियंत्रण में यमन बनाया गया। तब भी तटीय आंध्र और रायलसीमा राज्य ब्रिटिश सत्ता के अधीन स्वतंत्र अस्तित्व बनाए हुए थे। उस समय यहां विकास की गति अति तीव्र थी। शिक्षा, चिकित्सा, कॉलेज, विश्वविद्यालय, सडक, उद्योग धंधे तेजी से फल फूल रहे थे। तेलंगाना आर्थिक रूप से बहुत कमजोर अपने राजनीतिक, भाषा और संस्कृति के लिए संघर्ष कर रहा था।

सन् 1953 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भाषा के आधार पर स्टेट रिआर्गेनाइजेशन कमीशन आयुक्त जस्टिस फजल अली को राज्यों की रूपरेखा तय करने का कार्य सोंपा। कमीशन ने 1954 में भारतीय राज्यों के पुनर्गठन की अनुशंषा रिपोर्ट तैयार की। फजल अली कमीशन उस समय तेलंगाना व आंध्र प्रदेश के विलय के पक्ष में नहीं था। रिपोर्ट के पैरा 382 में तेलंगाना के लोगों की असहमति का साफ तौर पर उल्लेख है, और इसमें यह भी जिक्र किया गया है कि इनके विलय हो जाने से भविष्य में पुनः समस्या उत्पन्न हो सकती है।  पैरा 386 में आंध्र व तेलंगाना को अलग प्रदेश बनाए जाने की बात कही गई है। इसके बावजूद कांगेस पार्टी जो उस समय आंघ्र में मजबूत स्थिति में थी, ने इस कमीशन को रिपोर्ट को दरकिनार कर इनके विलय को तैयार थी। यद्यपि इसके एवज में तेलंगाना के लोगों के साथ सत्ता और प्रशासन में भागीदारी का एक 'जेन्टलमैन एग्रीमेंट' कर उन्हें खुश कर करने की कोशिश जरूर की गयी। 1956 में तैयार इस जेन्टल मैन मसौदे को आंध्र के निर्माण के पश्चात कोई तवज्जो नहीं दी गई। तेलंगाना निवासियों की शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। हद तो तब हो गई, जब 1969 में इस मसौदे को ही खत्म कर दिया गया जिसके बाद एक बार अलग तेलंगाना राज्य की मांग ने जोर पकड़ लिया.

इसकी परिणिति हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी के छात्र आंदोलन के रूप में हुई। सरकारी कर्मचारी और विधानसभा में विपक्ष ने इन छात्रों का समर्थन किया। यह अभियान 'जय तेलंगाना'  के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसमें 360 छात्रों और सैंकडों अन्य निवासियों की जाने गई। लेकिन कांगेस के लोगों पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। उन्होंने इसे राष्ट्रविरोधी गतिविधि की संज्ञा दे डाली। इस स्थिति में कांग्रेस के इस व्यवहार से क्षुब्ध होकर एम. चेन्ना रेड्डी ने तेलंगाना पीपुल्स एसोसिएशन (तेलंगाना प्रजा समिति) की स्थापना की। तब से लेकर आज तक यह आंदोलन समय के साथ नए लोगों, नए विचारों के साथ चलता आ रहा है। इस बीच तेलंगाना की मुक्ति के लिए नई पार्टियां भी गठित हुई हैं।

वर्तमान में जिस तेलंगाना राज्य के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है उसकी भौगोलिक सीमा में वर्तमान आंध्र प्रदेश के 23 में से 10 जिले आते हैं जिसमें महबूब नगर, नलगोंडा, खम्मम, रंगारेड्डी, वारंगल, मेडक, निजामाबाद, अदिलाबाद, करीमनगर और हैदराबाद शामिल हैं. पूर्व में निजामशाही का प्रमुख हिस्सा रहे तेलंगाना के हिस्से में विधानसभा की 294 सीटों में से 119 सीटे आती हैं. जाहिर है राजनीतिक रूप से कांग्रेस या फिर किसी भी राजनीतिक दल के लिए आंध्र से अलग तेलंगाना के अस्तित्व को मान्यता देना बहुत मुश्किल फैसला होगा लेकिन स्थानीय संस्कृति और शेष आंध्र प्रदेश से अलग सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों के कारण अलग तेलंगाना राज्य की मांग नाजायाज भी नहीं है. आखिरकार, पूर्व में भी उसका अपना अलग अस्तित्व तो रहा ही है.

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV