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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, August 5, 2013

इस संसद की भी कुंडली बांचें कोई!

इस संसद की भी कुंडली बांचें कोई!


पलाश विश्वास


संसद के मानसून सत्र के शुरुआती दिन, आज राज्यसभा की बैठक जब शुरू हुई, तो सबका ध्यान मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की ओर गया, जो सदन में अपनी सीट पर बैठे नजर आए।


संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन सोमवार को हंगामे के बीच खाद्य सुरक्षा अध्‍यादेश संसद में पेश कर दिया गया।


राज्य पुनर्गठन की कवायद कोई संवैधानिक लोकतंत्रिक प्रक्रिया होती और उसके कुछ सैद्धांतिक यथार्थ आधार होते तो जिस वक्त महाराष्ट्र से गुजरात को अलग राज्य बना दिया गया, उसी वक्त तेलंगाना अलग राज्य बन गया होता। लेकिन  राजनीतिक सुनामी के बिना जनआकांक्षाएं इस देश में अभिव्यक्त नहीं होती।


पंजाब और हरियाणा के विभाजन और चंडीगढ़ को लेकर रस्साकशी को याद करें जरा।


चंडीगढ़ का खेल अब हैदराबाद के मामले में दोहराया जाने लगा है।


राजनीतिक अवसरवाद के राजकाज और राजनीतिक समीकरण ध्रूवीकरण के मारे पूरा देश अग्निदेव को समर्पित है।


सांप्रदायिक ध्रूवीकरण की धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद अब क्षेत्रीय अस्मिता में देश के कोने कोने में अभिव्यक्त हो रही है और इसी के विरोध में प्रांतीयता के अंध उन्माद मने देश को एक दूसरे ही किस्म की सांप्रपदायिक आंदी के हवाले कर दिया है।


अलग राज्य की मांग लेकर भौगोलिक अस्पृश्यता,आर्थिक बहिष्कार और असंतुलित विकास के विरुद्ध जनसमुदायों का आक्रोश चरम पर है तो उनके अलगाव और पृथक अस्तित्व के जिहादी ऐलान के विरुद्ध हर राज्य में उन बागी जनसमुदायों के विरुद्ध एकतरफा घृणा अभियान की आाग में राजनीतिक रोटी सेंकी जा रही है।


जनसुनवाई की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संवैधानिक प्रावधानों की परवाह किसी को है नहीं।इसी के मध्य शांति जल छिड़कर संसद का मानसून सत्र शुरु हुआ है जहां सर्वदलीय सहमति से पेंशन से लेकर रक्षा समेत तमाम सेक्टर विदेशी पूंजी के हवाले करने की तैयारी है।


संसद के एजेंडे में खाद्य सुरक्षा अध्यादेश सहित अनेक महत्वपूर्ण विधेयकों के शामिल रहने के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी प्रबंधकों से सदन में पार्टी के ज्यादा से ज्यादा सांसदों की उपस्थिति को सुनिश्चित करने को कहा।


देश को आपरेशन टेबिल पर एनेस्थिया देकर आपरेशन करने में लगी है चिदंबरम, मोंटेक, निलकणि वगैरह वगैरह की कारपोरेट टीम और कारपोरेट चंदे से चलने वाली आरटीआई मुक्त राजनीति परदा टांगने को तत्पर है।


आम सहमति है कि विधेयकों को पास कराकर नरमेध यज्ञ को पूर्णाहुति दी जाये।


वित्त मंत्री पी चिदम्बरम भी बीमा और पेंशन सेक्टर को खोले जाने जैसे महत्वपूर्ण सुधार विधेयकों पर समर्थन के लिए भाजपा की ओर हाथ बढ़ा चुके हैं लेकिन वे इस संबंध में कोई आश्वासन हासिल करने में विफल रहे हैं।


चिदम्बरम ने वित्त विधेयकों पर भाजपा नेताओं सुषमा स्वराज और अरूण जेटली तथा यशवंत सिन्हा से बातचीत की थी जो सत्र के दौरान विचार के लिए सूचीबद्ध हैं।


सीमांध्र क्षेत्र से कांग्रेस और तेदेपा के कई सदस्य फैसले के विरोध में अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं लेकिन उन्हें स्वीकार नहीं किया गया है और कांग्रेस नेतृत्व अपने सांसदों और मंत्रियों को बगावत से रोकने में मनाने में लगा है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा विधेयक पर अध्यादेश समेत विधायी कामकाज को निपटाने में प्रधानमंत्री पहले ही विपक्ष का सहयोग मांग चुके हैं।


संसद के मानसून सत्र में कामकाज का भारी एजेंडा है। आज से शुरू होकर 30 अगस्त तक चलने वाले इस सत्र में खाद्य सुरक्षा विधेयक समेत कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित किया जाना है। भाजपा समेत कई दलों ने कहा है कि वे सैद्धांतिक रूप से खाद्य सुरक्षा विधेयक का समर्थन करते हैं लेकिन पृथक तेलंगाना राज्य पर फैसले समेत कई अन्य मुद्दे पहले कुछ दिन तक लोकसभा और राज्यसभा में अपना असर दिखा सकते हैं क्योंकि आंध्र प्रदेश के सीमांध्र इलाके के सदस्य इस घटनाक्रम पर उद्धेलित हैं।


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विपक्ष से संसद के सुचारू संचालन में सहयोग की आज अपील की और कहा कि सरकार मानसून सत्र के दौरान सभी मुद्दों पर चर्चा की इच्छुक है।


प्रधानमंत्री ने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा, हम पिछले दो-तीन सत्रों में काफी समय बर्बाद कर चुके हैं और उम्मीद है कि इस सत्र में यह दोहराया नहीं जाएगा। उन्होंने कहा, संसद में सभी मुद्दों पर हम चर्चा के इच्छुक है। इसके साथ ही उन्होंने विपक्ष से अपील की कि वह यह सुनिश्चित करे कि सत्र ठोस परिणामों के साथ वास्तव में फलदायी और सृजनात्मक हो।


रंग बिरंगी विचारधाराओं के पुरोहित दलबद्ध मंत्रोच्चार कर रहे हैं वैदिकी और भारतेंदु बहुत पहले लिख गये हैं कि वैदिकी हिंसा  हिंसा न भवति।


भाजपा नेताओं ने नियमित और जरूरी वित्तीय कामकाज में सहयोग पर सहमति जतायी है लेकिन संकेत दिया है कि पार्टी बीमा और पेंशन सेक्टरों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए और खोले जाने का विरोध करेगी।


लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने रूपये के अवमूल्यन , बढ़ती कीमतों और धीमी सकल घरेलू उत्पाद दर की पृष्ठभूमि में मौजूदा आर्थिक स्थिति पर बहस की मांग की है। मानसून सत्र में विचार के लिए करीब 40 विधेयक सूचीबद्ध हैं जिसमें कामकाज के लिए केवल 12 दिन मिलेंगे। हालांकि सरकार ने जरूरत पड़ने पर सत्र का विस्तार करने की इच्छा जतायी है।


हमारे सर्वशक्तिमान मीडिया दिग्गज लोकतंत्र की दुहाई देते हुए इन्ही कारपोरेट धर्मोन्मादियों के हक में चट्टानी गोलबंद हैं और जहां भी प्रतिरोध की आवाज सुनायी पड़ रही है, मेधा एकाधिकारी दिग्गज चड्डी पहनकर अखाड़ों में उतरकर चुनौतियां जारी करके मजमा लगाये हुए हैं और हम तालियां पीटकर मजा लेने वाले तमाशबीन हैं।


यह ऐसा लोकतंत्र है ,जहां सुंदर वन के मरीचझांपी द्वीप में देशभरके शरणार्थियों को विचारधारा बाकायदा आमंत्रित करके बसाती है अस्पृश्य शरणार्थियों को वोटबैंक सजाकर सत्ता दखल के लिए। फिर सत्ता मिल जाने पर दूसरे किस्म का वोट बैंक तैयार हो जाने पर अछूतों की मौजूदगी से समीकरण गड़बड़ाने की वजह से वही विचारधारा उनका, उन्ही सर्वहारा अस्पृश्यों का वध संपन्न करती है।श


रणार्थियों को बाघों का चारा बना दिया जाता है।


मनुष्यों को सुनामी, जलप्रलय और अनंत विस्थापन नागरिकताहीनता में विसर्जित करने वाला यही संसदीय तंत्र बाघों को गोद लेता है।


बाघों के अभयारण्य हैं, लेकिन वनाधिकार कानून बन जाने के बावजूद पांचवीं छठी अनुसूचियों, संविधान के प्रावधानों और यहां तक की सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन अवमानना के तहत जल जंगल जमीन नागरिकता आजीविका से बेदखली के लिए सैन्य राष्ट्र का अनवरत युद्ध जारी है निनानब्वे फीसद भारतीय जनता के विरुद्ध।


इसी वधस्थल की वैधता के लिए संसद का निर्लज्ज इस्तेमाल कर रहे हैं हमारे जन प्रतिनिधि।


अश्वमेधी कार्निवाल में मोमबत्ती जुलूस में ही अभिव्यक्त है नागरिकता।


न विरोध है, न प्रतिरोध है और न कहीं कोई जनांदोलन हैं।


सिर्फ मूर्तियां हैं, मूर्ति पूजा का कर्मकांड है और शास्त्रों के उद्धरण हैं।



सिर्फ तकनीक है। कला कौशल है। मनुष्यवध की निर्ममतम दक्षता है।


अमानवीयता की पराकाष्ठा है।


लूट है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां है।अबाध पूंजी प्रवाह है।


शेयर बाजार के सांड़ राजकाज चला रहे हैं।


ग्लेशियर पिघल रहे हैं।


नदियां घाटियां दम तोड़ रही हैं।


समुंदर में हलाहल है और संसदीय अमृतमंथन है।


फिर सुरों के लिए अमृत और असुरों के लिए हलाहल का शास्त्रीय प्रावधान हैं।


विधायें हैं। माध्यम हैं। मंच हैं। संगठन हैं। सौंदर्यशास्त्र हैं । व्याकरण हैं ।वर्तनी है।


सिरे से गायब है समाज और सामाजिक यथार्थ।


केदारघाटी में लापता पांच हजार से ज्यादा लोग जीवित है या मृत,अब यह सवाल कोई नहीं पूछता। कोई लाइव कार्यक्रम, रातदिन प्रसारण और हवाई यात्रा नहीं है।


पूजा आयोजन हैं। मठाधीश हैं। कैमरा ,प्रकास और ध्वनि समर्पित अलौकिकता के प्रति।


लौकिक जो लोग बचे हुए लावारिश है, भूकंप,भूस्खलन और जलप्रलय के थपेड़ों से निरंतर बचते हुए रोज मरमर कर जी रहे हैं, विधाओं से उनका बहिस्कार है।माध्यमों में उनकी अनंत अस्पृश्यता है।


मंचों पर काबिज हैं विद्वतजन और राजनेता।जो तमाम छिद्रो से परस्परविरोधी आवाज निकालने के दक्ष कलाकार हैं।


बाकी सड़क से संसद तक कंबंधों का अनंत मौन जुलूस है।सन्नाटा घनघोर जबकि सारा देश दावानल में दहक रहा है और कहीं पानी का एक बूंद तक नसीब नहीं है आग बुझाने के लिए।


किस मरुस्थल में मृगमरीचिका के पीछे भाग रहे हैं हम


हमारे एक परममित्र हैं, जो जवानी में नक्सली हुआ  करते थे। लखनऊ और दिल्ली होकर प्रगतिवादका परचम थामे विराजमान हुए कोलकाता में।


ज्योतिष के परमार्थ में लाल किताब उन्होंने समर्पित कर दी। पत्रकारों में वे अजब लोकप्रिय हैं।


जिस किसीकी कुंडली बनायी, वह सीधे संपादक बन गया!


।पूरे देश में ऐेसे सरस्वती के वरदपुत्र सारस्वत कुंडलीपुत्र कुंडलधारी हैं।


जिनकी महिमा अपरंपार।


जहर को अमृत बताने में उनकी कोई सानी नहीं।


आंकड़ों और परिभाषाओं के तिलस्म में वे ही दरहकीकत किलेदार हैं।


मैंने कितनी बार कहा। मेरे साथ दूसरे जो जनमजनम के लिए हाशिये पर धकेले गये हैं। उन ज्योतिषाचार्य से बार बार हमारे लिए भी कोई कुंडली बनाने को कहते रहे। वे जवाब में यही रटते रहे, होइहिं सोई जो राम रचि राखा।मूषिकस्य नियति।


इन दिनों वे कामरुप कामाख्या में कुंडली बना रहे हैं। गुवाहाटी में कोई हो तो उनसे इस संसद की कुंडली भी बनवा लें कि आखिर इसका हश्र स्टाक एक्सचेंज के अलावा और क्या क्या होना है।


फेसबुक बजरिये मेरा जो अंतःस्थल सार्वजनिक है, वह विधाओं के बंधन में नहीं है। न उसका कोई व्याकरण है और न कोई सौंदर्यशास्त्र।हमारी पहली और अंतिम प्राथमिकता सामाजिक यथार्थ है। विधायें खपती रहती हैं अंतर्ज्वाला  में। तो वही कुछ पंक्तियां अपने प्रियजन वीरेदा के लिए लिख दी।कुछ मित्रों ने इस अपने अपने ब्लाग पर चस्पां भी कर दिया। इसपर विद्वतप्रतिक्रिया आयी कि बकवास कविता है। कवि का चूतियापा है। वीरेनदा को कोई बड़प्पन ही दिखा,कवि का चूतियापा है। इनपंक्तियं में चापलूसी के अलावा कुछ नहीं है।


मित्रवर आपकी जानकारी के लिए,यही चूतियापा हमारा अलंकार है।


हम अपने प्रियजनों की चापलूसी कर रहे हैं।


कारपोरेट शक्तियों, सत्ता प्रतिष्ठान और महाशक्तिधर संपादकों, प्रकाशकों और आलोचकों की नहीं।


वीरेनदा और गिरदा जैसे लोगों के वजूद के हिस्सा हैं हम।


वे कवि हुए न हुए, उनके सामाजिक यथार्थबोध के ही अनुगामी हैं हम।


दिल्ली में आज जो मित्रमंडली वीरेनदा का जन्मदिन मना रही है, उम्मीद है की उन्हें भी चापलूसों की जमात कहने से परहेज नही करेंगे कुछ महामहिम, जिनका सामाजिक यथार्थ से कोई लेना देना नहीं है।


मैं किसान का बेटा हूं। विश्वविद्यालयी शिक्षा और करीब चार दशकों की अपरिवर्तित पत्रकारिता के डटर्जेंट ले लोगों को मेरे रोम रोम में रची बसीम माटी नजर नहीं आती। हम तो उसी माटी के हैं और माटी में मिल जायेंगे। माटी ही हमारा वजूद है और माटी ही हमारी नियति।


उनका क्या होगा श्रीमन, जिनके पावों के नीचे कहीं कोई जमीन नहीं है और जो हवाी यात्राओं और हवाई किलों के वाशिंदा हैं।गिरदा और वीरेनदा जैसे लोगों की चापलूसी हम लोग इसलिए करते हैं कि पावती रसीद की यहां जरुरत नही ंहोती, सिर्प अपनी माटी से जुड़े होने का अहसास होता है।


उम्मीद है कि पहाड़ों की बयार और माटी की सोंधी महक हमारे रंगबाजों, और हमारे मोर्चे परत तैनात साथियों को और ऊर्जावान बनायेगी।


हम चूंकि कोलकाता में है ,इसलिए तेलंगाना की तपिश यहां भी खूब महसूस कर रहे हैं।


देख रहे हैं शरारती राजनीति के लिए कैसे कैसे घृणामशाल जल रहे हैं हमारे चारों तरफ जैसे कि गोरखा इस देश के वासी न हों, शत्रुराष्ट्र की सेना है पहाड़ों की पूरी आबादी और उनके सफाये से हमें अपने भौगोलिक वर्चस्व बनाये रखना होगा।


बाकी आंध्र में क्या हो रहा है, क्या जज्बात  हैं असम और महाराष्ट्र में, क्या खेल है उत्तरप्रदेश के चार रोज्यों में विभाजन का, उल्कापात के दृश्यसमान मीडिया उद्भासित है।


परिवर्तन के बाद जो पहाड़ मुस्कुरा रहा था,वहां शोला क्यों हुआ शबनम इन दिनों?


पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग की सेहत का कितना ख्याल रखा विभाजित बंगाल ने


बंग भंग का सवाल जो उठा रहे हैं वे किस अखंड बंगाल की बात कर रहे हैं ?


मूल अखंड बंगाल की राजनीत ने अपनी ही बंगाली अस्पृश्य जनसंख्या को कैसे देशभर में छितराकर सत्ता वर्चस्व कायम रखा है विभाजन के बाद से।


तीन फीसद का वर्चस्व है जीवन के हर क्षेत्र में।


कोई परिवर्तन इस सामाजिक यथार्थ को बदल नहीं सकता ठीक उसीतरह जैसे 1979 में मनुष्यों को बाघों का चारा बनाने का आजतक न्याय नही हुआ। कोई जांच आयोग नहीं बना।


इस देश में कोने कोने में मरीचझांपी सजा है और कहीं कोई रपट दर्ज नहीं होती।


इतिहास को पीठ दिखाकर जारी है विमर्श।


हम भूल गये कि अंग्रेजों की महिमा से ही आज नेपाल की पराजय के बाद उत्तराखंड और दार्जिलिंग के पहाड़ भारत के भूगोल में है।


लेकिन इस देश के संसदीय लोकतंत्र ने इस विजित भूगोल के साथ हमेशा युद्धबंदियों जैसा सलूक किया है।


न उनके नागरिक अधिकार है और न मानवाधिकार।


हमने इस वंचित जनसमुदाय को सिर्फ पर्यटन या धार्मिक पर्यटन दिया और दिया अपने विकास का विनाश।


हिमालय का चप्पा चप्पा लहूलुहान है।


नैसर्गिक दृश्यबंध और काव्यिक छंद,अलंकार व विंब संयोजन के पार हमने न पहाड़ के जख्म देखें और अलावों में सुलगती आग की तपिश महसूस की।


अब वंचितों की आवाज गूंजने लगी तो हम दमन और घृणा के स्थाईभाव में  निष्णात हैं।


हर राज्य में ऐसे अस्पृश्य भूगोल है, जिनके विरुद्ध सशस्त्र सैन्य अधिकार समेत तमाम कानून है, लेकिन कानून का राज कहीं नहीं है।


न कहीं संविधान लागू है भारत का और न कही भारतीय लोकतंत्र का नामोनिशन है।


सिर्फ वह अंतराल वद्ध निर्वाचन उत्सव की बारंबारता है।


बाकी वे देश के इतिहास भूगोल से अदृश्य है।

उनकी बुनियादी समस्याओं को संबोधित किये बिना सिर्फ शतरंज की बिसात बिछायी जाती रही।


मोहरे बदलते रहे।


अबाध लूटतंत्र जारी रहा।


सुबास घीसिंग और विमल गुरुंग का उत्थान अवसान में जनपदों का दमन का सिलसिला जारी रहा।


अब जब घाटियां गूजने लगीं,खेत जागने लगे, तो हमें प्रांतीय भौगोलिक पवित्रता के सिवा कुछ भी नजर नही आ रहा है।


ऐसा युद्ध बंदी भूगोल इस देश में हर कहीं एटम बम की तरह सुलग रहा है। धमाके होने पर ही हमें उनके वजूद का अहसास होता है। लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाने के बजाय, जन हिस्सेदारी के बजाय हम सिर्फ वर्चस्व की भाषा के अभ्यस्त हैं। यही है संसदीय लोकतंत्र। धिक्कार है इस पाखंड को।



इस अनुपम सृष्टि के स्रष्टागण अब संसद के मानसून सत्र में नरमेध यज्ञ की पूर्णाहुति की तैयारी में हैं और शांति जल से पवित्र भी हो चुके हैं। पूरी वैदिकी शुद्धता के साथ एकाधिकारवादी कारपोरेट आक्रमण के कर्मकांड को संपन्न करने की सहमति बन चुकी है जनादेश की जंग के बावजूद।


विडंबना यह है गुलामों के जनांदोलन, बहुजनों के जनांदोलन की दिशा और दशा बदलने के लिए, निनानब्वे फीसद की कथा व्यथा को अभिव्यक्त करने के लिए सही संदर्भ में सही बात कहने का जोखिम उठाकर हम अपनी प्रतिष्टा, सुविधा, हैसियत और लोकप्रिया को दांव पर लगे नहीं सकता। कंडोम और डियोड्रेंट में बदलते जनमत की आत्मरति मग्न देश में इसके अलावा कुछ संभव ही नहीं है।


अब टीवी पर धारावाहिक मनोरंजन के चैनल बदल गये हैं। डिजिटल हो गया है टीवी पर मनोरंजन के ये राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल मुफ्त है। आइये, हस्त मैथुन उत्सव का आनंद लें।


संसद के मॉनसूत्र सत्र का आगाज आज हंगामेदार रहा। तेलंगाना और बोडोलैंड के मुद्दे पर लोकसभा और राज्यसभा दोंनों सदनों में हंगामा हुआ। इसके चलते पहले लोकसभा का प्रश्नकाल 10 मिनट पहले और राज्यसभा की कार्यवाही दोपहर 2 बजे तक स्थगित करनी पड़ी।


दोबारा सदन की कार्यवाही शुरू होने पर हंगामा खत्म नहीं हुआ और आखिरकार दोनों सदनों की कार्यवाही कल तक के लिए टाल दी गई। राज्यसभा में टीडीपी के सांसद सी एम रमेश और वाई एस चौधरी तेलंगाना पर मंत्री से व्यक्तव्य देने की मांग कर रहे थे, लेकिन मंत्री सदन में मौजूद नहीं थे।


लोकसभा में हंगामा

तेलंगाना राज्य के गठन के फैसले के विरोध में आंध्र प्रदेश के सदस्यों ने लोकसभा में मानसून सत्र के शुरुआती दिन जबर्दस्त हंगामा किया। इसकी वजह से प्रश्नकाल निर्धारित समय से 10 मिनट पहले खत्म कर दिया गया। कांग्रेस और तेलुगू देशम पार्टी के आंध्र प्रदेश के सदस्य प्रश्नकाल शुरू होते ही अध्यक्ष के आसन के सामने आकर नारेबाजी करनी लगे। वे तेलंगाना राज्य के गठन के फैसले के विरोध में वी वांट जस्टिस के नारे लगा रहे थे।


अध्यक्ष मीरा कुमार ने सदस्यों के जबर्दस्त शोर-शराबे के बीच प्रश्नकाल जारी रखा। इस दौरान सड़क परिवहन राज्यमंत्री सर्व सत्यनारायण ने सदस्यों के प्रश्नों के जवाब दिए मगर शोर-शराबे में कुछ भी सुन पाना मुश्किल था। अपने गले में अलग बोडोलैंड राज्य की मांग के सर्मथन में पोस्टर लटकाए बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के एस के विश्वमुतियारी भी अध्यक्ष के आसन के सामने आ गए। अखिल भारतीय अन्नाद्रमुक के सदस्य भी अपनी-अपनी सीटों पर खड़े दिखाई दिए।


सदस्यों के जोरदार हंगामे के बीच अध्यक्ष ने निर्धारित समय से दस मिनट पहले 11बजकर 50 मिनट पर सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। सदन की कार्यवाही की शुरुआत नवनिर्वाचित सदस्यों प्रभुनाथ सिंह, हरिभाई चौधरी, विट्ठलभाई रडाडिया, प्रतिभा सिंह और प्रसून बनर्जी के शपथ ग्रहण से हुई। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रिमंडल के नए सदस्यों का सदन का परिचय कराया।


राज्यसभा में भी हंगामा


पृथक तेलंगाना राज्य के गठन का विरोध कर रहे तेलुगु देशम के सांसदों ने राज्यसभा में भी कामकाज नहीं होने दिया, जिसके कारण सदन की कार्यवाही दो बजे तक के लिए स्थगित करनी पड़ी। इससे पहले सुबह भी बोडोलैंड बनाने की मांग और तेलंगाना के गठन के विरोध में सदस्यो ने हंगामा किया जिसके कारण सदन की कार्यवाही बारह बजे तक स्थगित करनी पड़ी और मानसून सत्र के पहले दिन ही प्रश्नकाल नहीं हो सका।


स्थगन के बाद बारह बजे सदन की कार्यवाही शुरू होते ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंत्रिमंडल के नए सदस्यो का परिचय कराया। इसके बाद उप सभापति पी जे कुरियन ने जैसे ही जरूरी दस्तावेज सदन पटल पर रखने के लिए सदस्यों के नाम पुकारने शुरू किए, टीडीपी के सी एम रमेश और वाई एस चौधरी आसन के निकट आकर पोस्टर लहराने लगे। दोनों सदस्य तेलंगाना के गठन का विरोध कर रहे थे।



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