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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, August 25, 2013

गढ़चिरोली क्या भारत का हिस्सा नहीं है ? ? यह देश दिनोंदिन तेजी से फासिज्म की ओर बढ़ रहा है

गढ़चिरोली क्या भारत का हिस्सा नहीं है ? ? यह देश दिनोंदिन तेजी से फासिज्म की ओर बढ़ रहा है


सवाल यह है कि क्या

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र का दम भरने वाले इस देश में

पुलिसिया आतंकराज ही चलेगा?

गढ़चिरौली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र और संस्कृतिकर्मी हेम मिश्रा की गिरफ्तारी

हेम मिश्रा

गढ़चिरौली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र और संस्कृतिकर्मी हेम मिश्रा की गिरफ्तारी कर पुलिस रिमांड पर लेने का देश भर में तीव्र विरोध हो रहा है। संस्कृतिकर्मियों, साहित्यकारों एवं छात्र युवासंगठनों ने हेम मिश्रा की गिरफ्तारी को लोकतंत्र पर बताते हुए भर्त्सना की है।

वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह ने कहा है- हेम मिश्रा की बेवजह गिरफ़्तारी निन्दनीय है। इसका भरपूर विरोध होना चाहिये। गढ़चिरोली जाना क्या अपराध है ? गढ़चिरोली क्या भारत का हिस्सा नहीं है ? क्या मैं एक पत्रकार के रूप में गढ़चिरोली जाऊँगा तो मुझे भी गिरफ्तार कर लिया जायेगा यह देश दिनोंदिन तेजी से फासिज्म की ओर बढ़ रहा है। हम हम सभी को बेहद चौकन्ना और पूरी तरह संगठित होने की जरूरत है।

फिल्म निर्माता और स्वतंत्र पत्रकार शाह आलम ने कहा- फिल्मकार हेम मिश्रा जे.एन.यू. के छात्र हैं और संस्कृति कर्मी भी हैं। सामाजिक-राजनीतिक मोर्चों पर हेम अपनी जनपक्षधर भूमिका के साथ निडर होकर खड़े रहते थे। उनकी फिल्म 'इन्द्रधनुष उदास है' कारगिल फिल्म फेस्टिवल में बीते वर्ष दिखाई गयी थी, उन्हें गड़चिरौली की अहेरी पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इसके बाद उन्हें दस दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया है। हम संस्कृति कर्मी हेम की फासीवादी गिरफ्तारकी निंदा करते हैं….

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्पक और हिंदी जगत के जाने-माने हस्ताक्षर आशुतोष कुमार कहते हैं – इस घटना की व्यापक निंदा और विरोध होना चाहिए। हेम का जीवन इतना सार्वजनिक है कि सर्विलांस के इस दौर में फेसबुक पर उसका मोबाइल भी पब्लिक है। पतित बाबाओं के सामने थरथराने वाली पुलिस स्वप्नदर्शी युवाओं के लिए खासी बर्बर हो सकती है।

जन संस्कृति मंच ने गढ़चिरौली में जेएनयू के छात्र और संस्कृतिकर्मी हेम मिश्रा की गिरफ्तार कर पुलिस रिमांड पर लेने और पुणे में पुलिस की मौजूदगी में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा एफटीआईआई के छात्रों पर हमले और हमले के बाद पुलिस द्वारा घायल छात्रों पर ही अनलाफुल एक्टिविटी का आरोप लगा देने तथा बलात्कार के आरोपी आशाराम बापू की अब तक गिरफ्तारी न होने की कठोर शब्दों में निंदा की है।

जसम साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शोषण-उत्पीड़न-भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाले तमाम वाम-लोकतांत्रिक संगठनों से अपील की है कि सांप्रदायिक फासीवादी संगठनों, काले धन की सुरक्षा, यौनहिंसा व हत्या समेत तमाम किस्म के अपराधों में संलिप्त पाखंडी धर्मगुरुओं तथा उनकी गुंडागर्दी को शह देने वाली सरकारों और पुलिस तंत्र के खिलाफ पूरे देश में व्यापक स्तर प्रतिवाद संगठित करें।

जसम की ओर से सुधीर सुमन द्वारा वक्तव्य में कहा गया है कि हेम मिश्रा एक वामपंथी संस्कृतिकर्मी हैं। वे उन परिवर्तनकामी नौजवानों में से हैं, जो इस देश में जारी प्राकृतिक संसाधनों की लूट और भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं। रोहित जोशी के साथ मिलकर उन्होंने उत्तराखंड के संदर्भ में सत्ताधारी विकास मॉडल के विनाशकारी प्रभावों पर सवाल खड़े करने वाली फिल्म 'इंद्रधनुष उदास है' बनाई है। उत्तराखंड के भीषण त्रासदी से पहले बनाई गई यह फिल्म हेम मिश्रा के विचारों और चिंताओं की बानगी है। सूचना यह है कि वे पिछले माह नक्सल बताकर फर्जी मुठभेड़ में पुलिस द्वारा मार दी गई महिलाओं से संबंधित मामले के तथ्यों की जांच के लिए गए थे और पुलिस ने उन्हें नक्सलियों का संदेशवाहक बताकर गिरफ्तार कर लिया है। सवाल यह है कि क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र का दम भरने वाले इस देश में पुलिसिया आतंकराज ही चलेगा? क्या उनके आपराधिक कृत्य की जाँच करने का अधिकार इस देश का संविधान नहीं देता?

यह पहली घटना नहीं है, जब कारपोरेट लूट, दमन-शोषण और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होने वाले बुद्धिजीवियों और संस्कृतिकर्मियों को नक्सलियों का संदेशवाहक बताकर गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया है? डॉ. विनायक सेन और कबीर कला मंच के कलाकारों पर लादे गए फर्जी मुकदमे इसका उदाहरण हैं। खासकर आदिवासी इलाकों में कारपोरेट और उनकी पालतू सरकारें निर्बाध लूट जारी रखने के लिए मानवाधिकार हनन का रिकार्ड बना रही हैं। सोनी सोरी, लिंगा कोडोपी, दयामनी बरला, जीतन मरांडी, अर्पण मरांडी जैसे लोग पुलिस और न्याय व्यवस्था की क्रुरताओं के जीते जागते गवाह हैं। लेकिन दूसरी ओर गैरआदिवासी इलाकों में भी पुलिस नागरिकों की आजादी और अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन कर रही है और अंधराष्ट्रवादी-सामंती-सांप्रदायिक गिरोहों को खुलकर तांडव मचाने की छूट दे रखी है। न केवल भाजपा शासित सरकारों की पुलिस ऐसा कर रही है, बल्कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की सरकारों की पुलिस भी इसी तरह का व्यवहार कर रही है। फेसबुक पर की गई टिप्पणी के लिए दलित मुक्ति के विचारों के लिए चर्चित लेखक कंवल भारती पर सपा सरकार का रवैया इसी का नमूना है।

जसम की ओर से कहा गया है कि संघ परिवार, भाजपा, कांग्रेस और उनके सहयोगी दल जिस तरह की बर्बर प्रतिक्रियावादी प्रवृत्तियों और धुव्रीकरण को समाज में बढ़ावा दे रहे हैं, उसके परिणाम बेहद खतरनाक होंगे। विगत 20 अगस्त को मशहूर अंधविश्वास-विरोधी, तर्कनिष्ठ और विवेकवादी आंदोलनकर्ता डॉ. नरेंद्र डाभोलकर की नृशंस हत्या को अंजाम देने वाले हों या डॉ. डोभालकर की याद में आयोजित कार्यक्रम में एफटीआईआई के छात्रों द्वारा आनंद पटवर्धन की फिल्म 'जय भीम कामरेडके प्रदर्शन और कबीर कला मंच के कलाकारों की प्रस्तुति के बाद आयोजकों पर नक्सलवादी आरोप लगाकर हमला करने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता, जो उनसे नरेंद्र मोदी की जय बोलने को कह रहे थे, सख्त कानूनी कार्रवाई तो इनके खिलाफ होना चाहिए। लेकिन पुलिस ने उल्टे घायल छात्रों पर हीअनलाफुल एक्टिविटी का आरोप लगा दिया है। ठीक इसी तरह अंधआस्था और श्रद्धा की आड़ में बच्चों और बच्चियों को शिकार बनाने वाले आशाराम बापू जैसे भेडि़ये को अविलंब कठोर सजा मिलनी चाहिए, लेकिन वह अभी भी मीडिया पर आकर अपने दंभ का प्रदर्शन कर रहा है।

सुधीर सुमन ने जसम की ओर से कहा है कि मुंबई में महिला फोटोग्राफर के साथ हुए गैंगरेप ने साबित कर दिया है कि सरकारें और उनकी पुलिस स्त्रियों को सुरक्षित माहौल देने में विफल रही हैं, जहां अमीर और ताकतवर बलात्कारी जल्दी गिरफ्तार भी न किए जाएं और महिलाओं के जर्बदस्त आंदोलन के बाद भी पुलिस अभी भी बलात्कार और यौनहिंसा के मामलों में प्राथमिकी तक दर्ज करने में आनाकानी करती हो और अभी भी राजनेता बलत्कृत को उपदेश देने से बाज नहीं आ रहे हों, वहां तो बलात्कारियों का मनोबल बढ़ेगा ही। मुंबई समेत देश भर में इस तरह घटनाएं बदस्तूर जारी हैं।

जन संस्कृति मंच का मानना है कि हेम मिश्रा को तत्काल बिना शर्त छोड़ा जाना चाहिए और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। छात्र भेषधारी जिन सांप्रदायिक गुंडों ने एफटीआईआई के छात्रों पर हमला किया है और जो पुलिसकर्मी उनका साथ दे रहे हैं, उनके खिलाफ अविलंब सख्त कार्रवाई करनी चाहिए तथा आशाराम बापू को तुरत गिरफ्तार करके उनके तमाम आपराधिक कृत्यों की सजा देनी चाहिए। जसम की यह भी माँग है कि महिलाएं जिन संस्थानों के लिए खतरा झेलकर काम करती हैं, उन संस्थानों को उनकी काम करने की स्वतंत्रता और सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।


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