Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, August 2, 2013

कहीं परमा उड़नपुल का हश्र भी कोलकाता वेस्ट इंटरनेशनल सिटी जैसा न हो!

कहीं परमा उड़नपुल का हश्र भी कोलकाता वेस्ट इंटरनेशनल सिटी जैसा न हो!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​  


बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अभी अभी मुंबई जीत कर आयी है। समूचा उद्योग जगत ने पलक पांवड़े बिछाकर दीदी का स्वागत किया। मुकेश अंबानी से दीदी की अलग बातचीत भी हो गयी। अगले लोकसभा चुनाव में सत्ता पर तीसरे मर्चे के बढ़ते दावे और इसमें दीदी की संभावित भूमिका के मद्देनजर यह बहुत बड़ी घटना जरुर है। दीदी ने बाकायदा रवींद्र की पंक्तियों से उद्धरण देकर निवेशकों को बंगाल आने का न्यौता दे दिया। लेकिन इस कवायद के बावजूद बंगाल में निवेश का माहौल कितना सुधरा है, उसपर सवालों के जवाब अभी नहीं मिले हैं।दीदी बार बार कह रही हैं कि जमीन की कोई समस्या नहीं है। उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी भी ऐसा ही दावा कर रहे हैं।मां माटी सरकार के दो साल पूरे हो गये हैं। राज्य की मौजूदा आर्थिक हालात, वैश्विक परिस्थितियां और केंद्र सरकार के साथ बंगाल सरकार के समीकरण के मुताबिक बंगाल में उद्योग और कारोबार का माहौल सुधारे बिना राजकाज का मतलब नहीं सधता।


अब जमीन समस्या कैसी है, इसका एक नजारा ईस्ट वेस्ट मेट्रो परियोजना के लगातार लंबित होते रहने से मिली है। राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार का काम भी अटका हुआ है।- जमीन को लेकर बंगाल में विकास का मार्ग पहले से ही अवरुद्ध है। अब सूबे में राजमार्गो के विस्तार में भूमि अधिग्रहण बड़ी समस्या खड़ी कर रही है। तो विमान नगरी अंडाल में भी भूमि आंदलन जारी है।बर्दवान जिले के कटवा में जमीन की समस्या के कारण एनटीपीसी वहां पावर प्रोजेक्ट का काम शुरू नहीं कर पा रही है। अब तक कंपनी यहां सिर्फ 500 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर पायी है, लेकिन कंपनी को कम से कम यहां 850 एकड़ जमीन की जरूरत है। जब तक कंपनी को पर्याप्त मात्र में जमीन नहीं मिलती है, तब तक यहां पावर प्रोजेक्ट का काम शुरू कर पाना संभव नहीं है। अब लोग कहने भी लगे हैं कि  समस्या जमीन की या उद्योगों की नहीं है, समस्या पश्चिम बंगाल की राजनैतिक संस्कृति की है। पश्चिम बंगाल में जैसे हर मुद्दे पर अतार्किक, उग्र और हिंसक प्रतिक्रिया की राजनैतिक संस्कृति है, उसमें न उद्योग फल-फूल सकते हैं, न खेती ।इतना ही नहीं बागडोगरा एयरपोर्ट परियोजना के लिए भी जमीन बड़ी समस्या बनी हुई है।सत्ता में ाते ही दीदी ने आम जनता को  और उद्योग जगत को यह समझाने में कोई कोताही नहीं की कि किसानों से जमीन नहीं ली जाएगी और जो नहीं देना चाहते उनकी जमीनें लौटाई जाएंगी।


जमीन अधिग्रहण पर अपने स्टैंड को लेकर सख्ती बरतते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह जबरन भूमि अधिग्रहण से बेहतर मरना पसंद करेंगी। ममता बनर्जी ने कहा, 'मैं जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हूं। हम बंदूक की नोक पर किसानों से जमीन नहीं ले सकते। मैं जबरन भूमि अधिग्रहण के बदले मरना पसंद करूंगी।


ममता बनर्जी ने यह बात अगस्त, 2012 में  पांच जिलों के दौरे के दौरान दूसरे दिन दिनाजपुर जिले में कही। मुख्यमंत्री ने दिसंबर 2006 में 26 दिनों की भूख हड़ताल का हवाला देते हुए कहा कि मैंने किसानों के लिए मरने की हद तक लड़ाई की है। जिन किसानों से जबरन जमीन ली गई थी उन्हें टाटा मोटर्स को वापस करनी पड़ी। ममता बनर्जी के इस बयान को कांग्रेस सांसद दीपा दासमुंशी के उस बयान पर प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने रायगंज में एम्स के लिए जमीन न मिलने पर पश्चिम बंगल सरकार की आलोचना की थी। रायगंज की सांसद की दीपा दासमुंशी का नाम लिए बिना ममता बनर्जी ने कहा, 'मैं देख रही हूं कि कुछ लोग रायगंज में हॉस्पिटल के लेकर राजनीति करने में व्यस्त हैं।'


जमीन के मामले में दीदी का तेवर अभी बदला नहीं है। ममता बनर्जी ने सिंगूर में टाटा के संयंत्र के खिलाफ किसानों के आंदोलन का नेतृत्व किया था ... ममता बनर्जी ने कोलकाता में पत्रकारों से कहा, "सिंगूर के जो किसान अपनी जमीन नहीं देना चाहते उन्हें उनकी जमीन वापस मिल जाएगी।


ऐसे में कोलकाता महानगर के सबसे लंबे उड़नपुल को लेकर भी जमीन की समस्या मुख्य बाधक बन गयी है।परमा फ्लाईओवर को कोलकाता का सबसे लंबा उड़नपुल बतौर बनाया जा रहा है। लेकिन जमीन की समस्या के कारण इस पुल का निर्माण भी रुक गया है।मालूम हो कि वामजमाने में इस पुल के निर्माण का ठेका दिया गया।लागत तब 317 करोड़ रुपये की बतायी गयी। इसके बाद तत्कालीन राज्यसरकार ने जितनी जमीन उपलब्द करायी,उसपर निर्माण संस्था ने दो सौ करोड़ रुपये का काम कर दिया।वह रकम निर्माण कंपनी को मिल भी  गयी।


इसी के बाद समस्या शुरु हुई और परमा उड़नपुल का हश्र कोलकाता वेस्ट इंटरनेशनल सिटी का जैसा नहीं होगा कहना मुश्किल है। गौरतलब है कि न सिर्फ कोलकाता वेस्ट इंटरनेशनल सिटी का निर्माण रुका हुआ है, बल्कि निर्माणाधीन इमारतें आधी अधूरी हालत में खंडहर में तब्दील हैं। वहां चारों तरफ भूतहा सन्नाटा है। राष्ट्रीय राजमार्ग छह पर हावड़ा जिले के सलप में इस अत्याधुनिक नगरी के पास बना सलप पुल भी लंबे अरसे से टूटा हुआ है और अक्सरहां वहा आये दिन होती दुर्घटनाओं की चर्चा होती रहती है। न नगरी का निर्माणदुबारा शुरु हो रहा है और न सलप पुल बन रहा है। वहां जमीन पहले से अधिगृहित है और जाहिर है कि समस्या जमीन को लेकर नहीं है। बल्कि सत्ता बदल जाने से नयी सरकार की नीति का मसला है यह।


अब संयोग ही है कि परमा उड़नपुल के पहले चरण के पूरा होते न होते बंगाल में परिवर्तन हो गया और मां माटी की सरकार सत्ता में आ गयी।वाम जमाने में शुरु तमाम परियोजनाओं की नये सिरे से समीक्षा होने लगीं और उन्हें खटाई में डाले जाने लगा।


परमा पुल के लिए बाकी काम पूरा करने के लिए भी अकस्मात भूमि समस्या हो गयी। दो सौ करोड़ के काम पूरे हो गये। बाकी 117 करोड़ का काम जमीन न मिलने से अटका गया। यानी राज्य के दो सौ करोड़ रुपये अब गहरे पानी में हैं।


बहरहाल परमा उड़नपुल के महत्व के मद्देनजर राज्य सरकार ने जमीन उपलब्ध भी करा दी। लेकिन इस विलंबित फैसले से और परियोजना का कार्य दीर्घकाल से बंद रहने के कारण लागत बढ़ गयी।निर्माम संस्था अब 117 करोड़ के बजाय कई गुणा ज्यादा रकम बाकी काम पूरा करने के लिए मांग रही है, लेकिन जाहिर है कि राज्य सरकार इस भुगतान के लिए कतई तैयार ने है।निर्माण संस्था ने अब 117 करोड़ के बजाय 346 करोड़ रुपये मांग लिये तो राज्य सरकार ने जवाब में कहा है कि उसे 346 नहीं बल्कि 201 करोड़ रुपये के बदले ही पूरा काम करना होगा।इसी के साथ राज्य सरकार ने निर्माण संस्था को यह अल्टीमेटम भी दे दिया है कि वह सरकार को 31 अगस्त तक यहजरुर बता दें की वह सरकार की शर्त मुताबिक काम पूरा करने को तैयार है या नहीं।अगर निर्माणसंस्था तैयार है तो उसे यह परियोजना अप्रैल , 2014 तक पूरी कर लेनी होगी।राज्य सरकार ने निर्माण संस्था को आगाह किया है कि वह परियोजना से अगर हटना चाहती है तो भी इसकी इत्तला सरकार को 31 अगस्त तक हर हाल में दे दें।


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को रिलायंस इंडिया लिमिटेड के प्रमुख मुकेश अंबानी और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के चीफ एन. चंद्रशेखर सहित टॉप उद्योगपतियों से मुलाकात की। ममता ने इन उद्योगपतियों से कहा कि बंगाल में इन्वेस्टमेंट का बेहतर माहौल है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने प्रदेश के विकास में सहयोग की अपील की।


मुख्यमंत्री की उद्योग जगत के करीब 40 टॉप लीडर्स के साथ एक घंटे तक बैठक चली। उन्होंने कहा कि इससे पहले खराब प्रशासन और हड़ताल की वजह से उद्योगों को बहुत नुकसान होता था। तृणमूल कांग्रेस सरकार में हड़ताल से काम के घंटे में होने वाले नुकसान में कमी आई है।


ममता ने कहा कि इन दिनों कार्यसंस्कृति बहुत अच्छी है। हम किसी हड़ताल या बंद का समर्थन नहीं करते। हमारा मानना है कि उद्योगपतियों और कामगारों के बीच अच्छा संबंध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने एक व्यापक भूमि उपयोग नीति बनाई है। एक नियुक्ति बैंक बनाने के अलावा औद्योगिक उद्देश्यों के लिए 10,000 एकड़ का एक भूमि बैंक भी बनाया है।




No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV