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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, August 25, 2013

तिलिस्म बेनकाब,अब हाथ तो बढ़ाइये!

तिलिस्म बेनकाब,अब हाथ तो बढ़ाइये!


पलाश विश्वास


अर्थ व्यवस्था के मौजूदा संकट के बारे में डालर की जमाखोरी और भारतीय कंपनियों के काले कारोबार का पर्दाफाश आज इकानामिक टाइम्स ने कायदे से कर दिया है।पूरी रपट  हमने अंतःस्थल में दर्ज की है। लिखा हैः


अर्थसंकट का भूत हमीं के कंधे वेताल

कर्ज खाये कंपनियां

ब्याज चुकाये हम

कालाधन उनका फिर फिर

शामिल अर्थ दुश्चक्र में

उन्हीं के हवामहल में कैद

हमारे ख्वाब तमाम

जिन साथियों ने नहीं पढ़ा कृपया पढ़ लें।अब सीनाजोरी देखिये कि मोंटेक सिंह आहलूवालिया रुपये के संकट को ही मटियाने लगे। कह रहे हैं कि रुपये के लिए कोई खतरे का निशान नहीं है। जाहिर है ,उनके हिसाब से अर्थ व्यवस्था के लिए भी कोई खतरे का निशान नहीं है।  


सरकार अब पूरी तरह से विदेशी बढ़ाने पर लग गई है। शनिवार को वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) रेटिंग एजेंसियों के प्रमुखों और बैंकिंग सेक्टरों के उच्चाधिकारियों से मुंबई में मुलाकात की। बंद कमरे में हुयी इस बैठक में रुपये की विनिमय दर भारी उतार चढ़ाव से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा की गई।सूत्रों के अनुसार चिदंबरम ने साफ तौर पर एफआईआई से कहा कि उन्हें आर्थिक उदार नीतियों को लेकर किसी प्रकार की आशंका पालने की जरूरत नहीं है। यूपीए सरकार अपने तय कदमों को वापस नहीं लेगी। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपनी बॉन्ड खरीद योजना को वापस लेने की शुरुआत करता है तो इस चुनौती से निपटने के लिये सरकार ने तैयारी कर ली। ऐसे में विदेशी निवेशकों को खुले मन से भारतीय मार्केट में कारोबार करना चाहिए।


डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट को थामने के लिए भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। इसी संबंध में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने शनिवार को बैंकों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बंद दरवाजे में बैठक की। इस बैठक में रुपये की विनिमय दर में भारी उतार-चढ़ाव से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा की गई। चिदंबरम ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कोई चर्चा नहीं की। माना जा रहा है कि बैठक में चालू खाते के घाटे के लिए पूंजी की व्यवस्था के उपायों पर भी चर्चा की गई। इसके बाद चिदंबरम ने कुछ विदेशी संस्थागत निवेशकों से भी मुलाकात की।


चालू खाते के घाटे (सीएडी) के लिए फंड का प्रबंध करने में विदेशी संस्थागत निवेश को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बैंकों के साथ बैठक में वित्तमंत्री के साथ आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम और वित्तीय सेवा सचिव राजीव टकरू भी शामिल हुए। बैठक में भारतीय स्टेट बैंक के प्रतीप चौधरी, आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर, एचडीएफसी बैंक के आदित्य पुरी, सिटी ग्रुप इंडिया के प्रमीत झावेरी, बैंक ऑफ इंडिया की विजय लक्ष्मी अय्यर, केनरा बैंक के आरके दुबे और स्टैंर्डर्ड चार्टर्ड इंडिया के अनुराग अदलखा और कुछ अन्य बैंकों के प्रमुख भी शामिल हुए।

बैठक के बाद आईसीआईसीआई बैंक की प्रमुख कोचर ने संवाददाताओं से कहा कि बैठक में मुख्य रूप से पूंजी प्रवाह को लेकर क्या किया जा सकता है, इस पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक बहुत अच्छी और सकारात्मक रही। भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन चौधरी से जब पूछा कि क्या वित्त मंत्री ने कोई निर्देश दिया है, तो उन्होंने कहा, कोई निर्देश नहीं दिया गया। केवल विचार-विमर्श किया गया।



देश बेचना अब वित्तीय प्रबंधन का पर्याय है और कारपोरेट प्रबंधकों को जनसमस्याओं से कोई मतलब है नहीं।दरअसल वे जनसमस्याओं की ही रचना में लगे हैं।उनकी इस रचनाधर्मिता की नायाब मिसालें मोंटेक के तमाम उद्गार हैं।


मीडिया के बनाये भारत उदय और सुपरपावर इंडिया है जो कब्रिस्तान में बदल गये भारतीय देहात के लहूलुहान सीने पर काबिज हैं।शुक्र है कि भारत की कृषि जीवी जनता को धर्म क्रम के अलावा कोई और बात समझ में नहीं आती।


अस्मिता की राजनीति कारपोरेट बंदबस्त को ही मजबूत करती जा रही है। जनादेश रचनाकर्म के तहतफिर बारुदी सुरंगों पर रख दिया गया है देश। पैदल सेनाएं एक दूसरे केखिलाप लामबंद हैं। किसीको अपने  कटे हुए अंग प्रत्यंग का होश है नहीं।


कंबंधों के जुलूस में मारामारी है बहुत। परिक्रमाएं और यात्राएं तेज हैं।मीडिया में रात दिन सातों दिन खबरें और सुर्खियां धर्मोन्माद के एजंडे को हासिल करने में लगी हैं।


सूचनाएं सिर्फ उद्योगजगत, कारोबारियों और सत्तावर्ग के लिए है। बाकी सबकुछ बलात्कार विशेषांक है या जबर्दस्त विज्ञापनी फैशन शो की चकाचौंध है।



अंध श्रद्धा आंदोलन के गैलिलिओ की हत्या के बाद कानून बने या न बने, अंध श्रद्धा का निरमूलन असंभव है। हम अपनी बनायी हुई मूर्तियों को कभी नहीं तोड़ सकते और यह व्यवस्था इसी तरह चलती जायेगी।


बंगाल में अंग्रेजी हुकूमतके दौरान जो भी समाज सुधार आंदोलन हुए, उसके पीछे आम जनता के सशक्तीकरण का तकाजा ज्यादा रहा है।


हरिचांद गुरुचांद ठाकुर का आंदोलन महाराष्ट्र में ज्योतिबा फूले से शुरु हुआ, लेकिन मतुआ आंदोलन और ज्योतिबा फूले सावित्री देवी फूले के आंदोलन में सशक्तीकरण ही मुख्य कार्यक्रम रहा है।


बंगाल के नवजागरण में भी इस सशक्तीकरण का कार्यक्रम मुख्य था।तब सत्ता में हिस्सेदारी या राजनीतिक लाब के समीकरण इन सामाजित आंदोलनो के प्रस्थानबिंदु थे ही नहीं।


समता ,सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता और आर्थिक सशक्तीकरण ही इन आंदोलनों के मुख्य तत्व रहे हैं। अंबेडकरी आंदोलन के भी मुख्य बिंदु ये ही थे। जो अंबेडकर के बाद अंबेडकर आंदोलन से सिरे से गयाब हैं।


 विडंबना यह है कि स्वतंत्र भारत में अस्मिता आंदोलन से सशक्तीकरण का विमर्श ही खत्म  हो गया। जबकि अब  प्रकृति और मनुष्य के सर्वनाश के राजसूयसमय में  नवजागरण, मतुआ आंदोलन या फूले की वैचारिक क्रांति की प्रासंगितकता पहले से कहीं है।


अंबेडकर की प्रासंगिकता भी पहले की तुलना में कहीं ज्यादा है। लेकिन इन सारे आंदोलनों और समाजकर्म को कृषि अर्थव्यवस्था से जोड़े बिना,एक दूसरे से हाथ मिलाकर देशभर में संपूर्ण मानव वृत्त की रचना किये बिना इस तिलिस्म और बहुमंजिली सदारोशन कत्लगाह से निकल बचने का कोई रास्ता निकलता ही नहीं है।


बहुसंख्य कृषि जीवी समाज को ही खंडित करके मनुस्मृति व्यवस्था कायम है।सत्ता वर्चस्वजाति एकाधिकार में तब्दील अर्थ व्यवस्था है, जिसे न सत्ता में भागेदारी से  और न सिर्फ शिक्षा के अधिकार से तोड़ा जा सकता है। यह कोई धार्मिक परबंधन है ही नहीं। धार्मिकमिथकों और प्रक्षेपणों के विपरीत यह विशुद्ध अर्थव्यवस्था है और इसीलिए इस तिलिस्म को तोड़ने की कोई परिकल्पना अब तक नहीं बन सकी।


भूमि के स्वामित्व, संसाधनों के प्रबंधन और उत्पादन के तमाम संबंध अब भी उत्तरआधुनिक खुले बाजार के जमाने में भी पूरी तरह सामंती है। इस तंत्र को तोड़े बिना इस तिलिस्म  को तोड़ना असंभव है।


भूमि सुधार से इसीलिए सत्ता वर्ग को इतना परहेज है। किसी भी कीमत पर इसे मुख्य मुद्दा बनाने से रोकना ही राजनीति है।


अस्मिता आंदोलन सत्ता वर्ग के हितों को संवर्द्धित करने का माध्यम बन गया है।


कृषि व्यवस्था को प्रस्थान बिंदू बनाये बिना कोई विमर्श हमें परिवर्तन की दिशा में ले ही नहीं जा सकता।


परस्परविरोधी घृणा अभियान से भारतीय कृषि की हत्या का कोई प्रतिरोध हो ही नहीं सका।कृषि समाज को बेदखल करके सेवाओं पर आधारित नागरिक समाज का संगठन और जनपदों का विघटन भारत में सबसे बड़ा पूंजी निवेश है, जिसको हम अभी चिन्हित ही नहीं कर सकें है।


परिवर्तन की मशाले गांवों और जनपदों में ही जल सकती हैं, जहां योजनाबद्ध तरीके से समाज को विखंडित कर दिया गया है ताकि संसाधनों की खुली लूट निर्विरोध तरीके से जारी रह सके।


यही कारपोरेट राज का बीज मंत्र है और उसका मुख्य हथियार है जनसमुदायों में, सामाजिक व उत्पादक शक्तियों में परस्पर विरोधी वैमनस्य। जिसे तेज करने में धर्मोन्माद से ज्यादा धारदार कोई हथियार दूसरा हो ही नहीं सकता।


इसीलिए ग्लोबीकरण की प्रक्रिया में आर्थिक आक्रामक कारपोरेटीकरण और धर्मोन्मादी जिहाद का यह अद्बुत भारतीय सामंजस्य है, जिसमें जन गण के सशक्तीकरणके सारे पथ बंद हैं।


सबसे पहले सशक्तीकरण के वे तमाम  सामाजिक सांस्कृतिक लोक रास्ते खोलने होंगे।जो सामाजिक सांस्कृतिक अवक्षय विचलण में सिरे से गायब हैं।


इस वक्त संप्रभु भारत के राष्ट्रभक्त नागरिकों की साम्राज्यवाद और सामंतवाद के विरोध में गोलबंद होने की सबसे ज्यादा जरुरत है। अस्मिताओं के आंदोलन नहीं, बल्कि उत्पादक शक्तियों, सामाजिक शक्तियों और कृषिजीवी जाति विखंडित बहुसंख्य जनगण के जाति उन्मूलनकारी विराट आर्थिक कृषि आंदोलन की जरुरत सबसे ज्यादा है। सामाजिक एकीकरण और सशक्तीकरण के मार्फत ही एक प्रतिशत सत्तावर्ग के प्रभुत्व के खात्मे के लिए हम निनानब्वे फीसद जनता का मोर्चा बना सकते हैं,जिसक बिना इस अनंतअ अंधेरी रात का कोई अंत नहीं है।


मोंचेक सिंह आहलूवालिया निरंतर एक के बाद एक फतवा जारी करेंगे। एक के बाद एक वित्तमंत्री देश बेचने और प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी करते रहेंगे, जनसरोकार से जरा सा वास्ता रखने वाले तमाम तत्वों का निरंकुश दम न जारी रहेगा। फर्जी मुठभेड़ और आयातित युद्द गृहयुद्ध में मारे जाते रहेंगे लोग। जनविरोधी नीतियों और जनसंहार संस्कृति के मध्य हम एक अनंत आपात काल में जीने को अभिशप्त होंगे।


जाहिर है कि अब भी कृषि के यक्षप्रश्न निरुत्तर हैं जहां से तमाम संकटों की उत्पत्ति हो रही है। पर्यावरण का प्रश्न भी उतना ही कृषि से जुडा़है जितना कि तमाम आर्थिक प्रश्न प्रतिप्रश्न। हिमालयी सुनामी हो या समुंदर किनारे विपर्यय, कृषि से बेदखली से ही आपदाओं का उद्भव है। इस प्रश्थान बिंदू स विमर्श की शुरुआत न करें तो हम न प्रकृति और न मनुष्य को बचाने,न नागरिक और न मानवाधिकार हनन के कारपोरेट उपक्रम को रोकने में कामाब हो सकते हैं।


किसी पवित्र ग्रंथ, किसी ईश्वर या देवमंडल या ज्योतिष शास्त्र से हमें मोक्ष मिलने को कोई संभावना है ।


हमें अपना मुक्ति मार्ग का निर्माणस्वयं ही करना होगा, इस सामाजिक यथार्थ की जमीन पर खड़े हुए बिना हम भारत देश की एकता अखंडता और संप्रभुता को बताने में कामयाब हो नही सकते, जिन्हें खत्म करने के लिए लोकतंत्र और संविधान दोनो की हत्या हो रही है।स


संविधान और लोकतंत्र के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है हमारे पूर्वजों ने । हमने तो लोकतंत्र और संविधान को लागू करने के लिए भी कोई अभियान नहीं चलाया।


बेशर्म आत्मसमर्पण के तहत हम  इंफोसिस निलेकणि की डिजिटल बायोमेट्रीक प्रजा हैं और फिरभी उंगलियों की  छाप और पुतलियों की तस्वीर कारपोरेट हवाले करके अपनी निजता  गोपनीयता और संप्रभुता का सौदा करके हम अस्मिताओं की जली हुई रस्सियों में तब्दील हैं।


क्या हम अपनी विरासत को बचाने के लिए तनकर खड़े भी नहीं हो सकते?


डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में जारी गिरावट के बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने आज कहा कि सरकार ने रुपये की विनिमय दर की कोई सीमा तय नहीं की है। हालांकि, मोंटेक का मानना है कि रुपया का मूल्य जरूरत से ज्यादा गिर गया है। एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि सरकार या रिजर्व बैंक ने यह सोचा है कि रुपये की कोई सीमा रेखा तय की जाये। मेरे विचार से फिलहाल, रुपया जरूरत से ज्यादा गिर चुका है। उल्लेखनीय है कि गत बृहस्पतिवार को डॉलर की तुलना में रुपया अब तक के रिकॉर्ड निचले स्तर 65.56 रुपये प्रति डॉलर तक गिर गया था, लेकिन शुक्रवार को वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के अनुकूल बयान के बाद यह सुधर गया और 63.20 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया।


इस साल अप्रैल के अंत से अब तक रुपया 17 प्रतिशत से अधिक कमजोर हो चुका है। अहलूवालिया ने कहा कि रिजर्व बैंक द्वारा किए गए उपायों का बाजार में गलत अर्थ समझा गया। अहलूवालिया ने आगे कहा कहा कि बाजार जब मुश्किल दौर में होता है उस समय गंभीर निवेशक अधिकारियों की बातों पर ध्यान देते हैं।


उन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल चालू खाते के घाटे को सीमित रखने के लिए एक उपाय के तौर इस्तेमाल करने की वकालत की। उन्होंने कहा, मेरे विचार से यदि आप जरूरत के समय इस्तेमाल नहीं करते हैं तो आपके पास कितना भी विदेशी मुद्रा का भंडार है उसका कोई मतलब नहीं है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में इसे घटाकर 70 अरब डॉलर या जीडीपी के 3.7 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा है।


अहलूवालिया ने कहा कि सोने का आयात घटने की वजह से चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा कम रहेगा और आर्थिक वृद्धि में नरमी की वजह से पेट्रोलियम उत्पादों की मांग भी सुस्त रहेगी। अटकी पड़ी परियोजनाओं से निपटने के लिए निवेश से संबद्ध मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा किए गए प्रयासों पर उन्होंने कहा कि 78,000 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता की बिजली परियोजनाओं के लिए इस महीने के अंत तक ईंधन आपूर्ति की व्यवस्था कर ली जाएगी।


कुमार मंगलम बिड़ला की अगुवाई वाले आदित्य बिड़ला समूह के इस बयान पर कि 10 अरब डालर मूल्य की उसकी परियोजनाएं अटकी हैं, अहलूवालिया ने कहा, हम स्पष्ट कर दें कि निवेश से संबद्ध मंत्रिमंडलीय समिति ने पहली प्राथमिकता उन बिजली परियोजनाओं को दी जो ग्रिड को बिजली आपूर्ति कर रही हैं। हम यह नहीं कह रहे हैं कि आदित्य बिड़ला का मामला महत्व का नहीं है। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि हमें उसे भी महत्व देना चाहिए, लेकिन यह अगले दौर के कैप्टिव बिजली संयंत्र में दिया जाएगा। उन पर अब विचार किया जा रहा है। राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के बारे में उन्होंने कहा, अगर आप राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के प्रति गंभीर हैं और आप पाते हैं कि इसके लिए पर्याप्त राजस्व नहीं है तो आपको खर्चे में कटौती करनी होगी और कोई भी वित्त मंत्री यह कर सकता है। यह करना सुखद नहीं है, लेकिन उन्हें (वित्त मंत्री) यह करना होगा। अन्य देशों के साथ अदला-बदली की व्यवस्था पर उन्होंने कहा, यदि आप एक सामान्य देश हैं और आपको नकदी संरक्षण की दरकार है तो आप अदला बदली व्यवस्था अपनायेंगे या फिर आईएमएफ के पास जाएंगे। हमें यह करने की जरूरत नहीं है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के चलते सरकारी सब्सिडी में वृद्धि की संभावनाओं पर अहलूवालिया ने कहा, यह सब्सिडी का महज एक खंड है। अगर हम पूरी सब्सिडी को नियंत्रित रखना चाहते हैं तो मुझे नहीं लगता कि आपको खाद्य सब्सिडी को इसमें गिनना चाहिए जो काफी संवेदनशील है।


रुपए में पिछले शुक्रवार को आई 135 पैसे की मजबूती का रूझान इस सप्ताह भी जारी रह सकता है क्योंकि निवेशकों को उम्मीद है कि सरकार और रिजर्व बैंक बाजार को स्थिर रखने के प्रयास जारी रखेंगे। बैंकों के कोष प्रबंधकों ने यह बात कही।


अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा बांड खरीद प्रक्रिया धीमी करने की आशंका के चलते 22 अगस्त को कारोबार के दौरान रुपया 65.56 के न्यूनतम स्तर को छू गया था। बाद में चालू खाते के घाटे (कैड) और राजकोषीय घाटे के बारे में वित्त मंत्री के अनुकूल वक्तव्य से 23 अगस्त को यह मजबूत होकर 63.20 के स्तर पर आ गया। चालू वित्त वर्ष में रुपए में अब तक 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हो चुकी है।


धनलक्ष्मी बैंक के कोषाध्यक्ष श्रीनिवास राघवन ने कहा, रुपए में इस सप्ताह भी शुक्रवार की तेजी का रख जारी रहना चाहिए। निवेशकों को उम्मीद है कि सरकार और आरबीआई विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव पर लगाम लगाने के लिए प्रतिबद्ध है। विदेशी संस्थागत निवेशकों की पूंजी नियंत्रण की आशंका और धन जुटाने की योजनाओं पर चर्चा के लिए वित्त मंत्री पी चिदंबरम और वरिष्ठ अधिकारियों ने इस सप्ताहांत शीर्ष बैंकरों और विदेशी निवेशकों से मुलाकात की।


बैठक के बाद वित्तीय सेवा सचिव राजीव टक्रू ने संवाददाताओं से कहा कि हफ्ते भर में निवेश आकर्षित करने से जुड़ी पहल की घोषणा होगी। चिदंबरम के साथ मौजूद आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम ने कहा, कैड के लिए धन की व्यवस्था के संबंध में अधिक परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह अच्छा है जो पहली तिमाही में यह 70 प्रतिशत बढ़कर नौ अरब डॉलर रहा है।


मायाराम ने कहा, हमारा मानना है कि निवेश में तेजी आएगी इसलिए हमें देखना होगा कि रुपए के मामले में हम स्थिरता प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जितनी निकासी हुई है उसके मुकाबले बहुत अधिक निवेश होगा।


पिछले सप्ताह चिदंबरम ने कहा था कि रुपए का जितना मूल्य होना चाहिए उससे कम है और जिस स्तर पर होना चाहिए उससे बहुत अधिक गिर गया है। उन्होंने कहा था कि अत्यधिक और बेवजह निराश होने की कोई जरूरत नहीं है।


मायाराम ने संवाददाताओं से कहा कि सरकार बढ़ते कैड के लिए धन की व्यवस्था ओर निवेशकों के रझान को प्रोत्साहित करने के लिए कई ढांचागत सुधार कर रही है। मायाराम ने कहा, इन सुधारों का नतीजा चालू वित्त वर्ष में ही दिखने लगेगा और हमें उम्मीद है कि इसका अगली तीन तिमाहियों की वृद्धि पर असर होगा।


वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम के अनुसार विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में हाल के दिनों में रुपये की गिरावट को थामने के लिये पूंजी नियंत्रण लौटने संबंधी आशंकाओं को कुछ ज्यादा ही तूल दिया गया। बाजार में ऐसी आशंका बन गई कि डॉलर के मुकाबले रुपये में तेज गिरावट को थामने के लिये रिजर्व बैंक एक बार फिर से पूंजी नियंत्रण के उपाय कर सकता है, इस हौव्वे को जरूरत से ज्यादा तूल दे दिया गया जिससे बाजार में उहापोह की स्थिति बनी। एसोचैम के एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है।


एसोचैम के सर्वेक्षण के मुताबिक, रुपये में गिरावट को लेकर जरूरत से अधिक हौव्वा खड़ा किया गया। यह इतना अधिक था कि इसने सरकार और रिजर्व बैंक को पूरी तरह से बेचैन कर दिया और एक समय ऐसा लगने लगा कि सरकार विदेशी पूंजी प्रवाह वापस विदेशी बाजारों में जाने पर घबराहट में है।


उल्लेखनीय है कि रुपया पर लगातार दबाव रहने के बीच रिजर्व बैंक ने हाल ही में कुछ सख्त उपाय किए जिसमें विदेश में निवेश करने वाली भारतीय कंपनियों पर पाबंदियां एवं देश से विदेश भेजे जाने वाले धन में कटौती आदि शामिल हैं। सर्वेक्षण में कहा गया, स्थिति इतनी भयावह नहीं थी कि रिजर्व बैंक व वित्त मंत्रालय को कुछ खास उपाय करने को बाध्य करे। हालांकि, वित्त मंत्रालय और आरबीआई के पर्याप्त प्रयासों से नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो गई।


रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को छोड़कर अन्य घरेलू कंपनियों द्वारा स्वत: स्वीकृत मार्ग से विदेश में निवेश के लिये प्रत्यक्ष निवेश को उनकी नेटवर्थ के 400 प्रतिशत से घटाकर 100 प्रतिशत कर दिया। हालांकि, आयल इंडिया और ओएनजीसी विदेश को इस सीमा से मुक्त रखा गया।


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