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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, January 21, 2014

न कोई दुर्योधन मारा जायेगा और न दुःशासन, युधिष्ठिर मिथक था और रहेगा

न कोई दुर्योधन मारा जायेगा और न दुःशासन, युधिष्ठिर मिथक था और रहेगा

न कोई दुर्योधन मारा जायेगा और न दुःशासन, युधिष्ठिर मिथक था और रहेगा

HASTAKSHEP


युधिष्ठिर की भूमिका में तब भी दुर्योधन का डबल रोल था और आज भी है

साहित्य पर हावी है मुक्त बाजार का छनछनाता अर्थशास्त्र



राथचाइल्डस के अट्टहास का समय है यह।

तुमने सौ साल पहले कहा। हम सौ साल बाद भी नस्ल, रंग, जाति, लिंग और धर्म के शोषण से घिरे हैं और तुम्हारी लड़ाई को जारी रखे हुये हैं। आबा, तुमने ठीक ही कहा था उलगुलान का अन्त नहीं हुआ है।

पलाश विश्वास

आबा, सचमुच तुमने सही कहा था कि उलगुनान का अन्त नहीं है और तुमने सौ साल पहले जो कहा, आज हम सौ साल बाद भी नस्ल, रंग, जाति, लिंग और धर्म के शोषण से बुरी तरह घिरे हैं और तुम्हारी लड़ाई को जारी रखे हुये हैं, ऐसा दावा हर मोर्चे से कर रहे हैं।

हालात बेहद संगीन हैं और हम तिलिस्म देश के लोग रंग-बिरंगे बहुआय़ामी तिलिस्मों से घिरे अय्यारों की अय्यारियों के शिकार हो रहे हैं, लड़ लेकिन कोई कहीं नहीं रहा है।

गीदड़भभकी से न वक्त बदलेगा और न यह देश, न सामन्ती सामाजिक संरचना बदलने जा रही है और न निरंकुश साम्राज्यवादी कॉरपोरेट अश्वमेध अभियान रुकने जा रहा है।

विचारशून्यता मुक्तबाजार की अनिवार्य शर्त है। विचारशून्य अराजकता ही भोगसर्वस्व वधस्थल का आदर्श परिवेश है, जिसके मध्य चक्रव्यूह में घिरा, मारे जाने वाले हर अभिमन्यु को लगता है कि वह अकेले जीत लेगा सत्ता विरोधी महायुद्ध।

सत्तावर्ग एक संगठित तकनीकी प्रबन्धकीय तन्त्र है विशुद्ध अर्थशास्त्रीय, राजनीतिक समीकरणों की अराजकता से कभी न कोई चक्रव्यूह टूटा है और न टूटेगा।

हर बार लेकिन मारा जाता है कोई न कोई अभिमन्यु।

हमारे लोग अभिमन्यु और एकलव्य के आत्मध्वँस को ही महाभारत मानकर चल रहे हैं और इसी पर चल रही है इन्द्रप्रस्थ की राजनीति और जारी है सत्तावर्चस्व का अर्थशास्त्र नस्ली नियतिबद्ध।

हमारी नजर दिल्ली के बाधित राजमार्गों पर किसी चुनी हुयी सरकार के सड़कीय राजकाज पर नहीं है, जयपुर के उस राजसूय कॉरपोरेट महायज्ञ पर है, जहाँ साहित्य पर हावी है मुक्त बाजार का छनछनाता अर्थशास्त्र, जहाँ लोक और मुहावरे सिरे से गायब है और विधाओं और मुक्त बाजार संक्रमित माध्यम में वैश्विक जनसंहारी जायनवादी व्यवस्था के स्विसबैंक पुरस्कृत महिमामंडित इवाराथचाइल्डसपति डॉ. अमर्त्य सेन सम्बोधित कर रहे हैं।

राथचाइल्डस को अब तक विश्वभर में, भूत भविष्य वर्तमान के कालातीत तमाम युद्धों और महायुद्धों में श्रीकृष्ण भूमिका का श्रेय है और उत्तर आधुनिक कर्मसिद्धान्त का छनछनाता विकास का जायनवाद उसी का है और भारत में आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम को लागू करने का एजेंडा पूरा करने का जिम्मा भी उसी को है।

दुर्योधन ने कहा था कि बिना युद्धे देंगे नहीं सूचाग्र मेदिनी, जो महाभारतीय कुरुक्षेत्र के युद्ध और तदनुसार श्री मद् भागवत गीता की आदर्श पृष्ठभूमि है। नतीजतन कर्मफल सिद्धान्त के तहत नस्ली असमानता और अन्याय का सिलिसला आज भी चल रहा है और सत्ता वर्चस्व का कुरुक्षेत्र जारी है।

किसी दुर्योधन का तब वध नहीं हुआ था और न कोई दुःशासन मारा गया था। तब भी दाँव पर था भारत और शतरंज पर बाजी जारी था। आज भी दाँव पर है भारत- द्रोपदी और सत्ता शतरंज जारी है और मारे जायेंगे इस देश के ही जनगण। न कोई दुर्योधन मारा जायेगा और न कोई दुःशासन।

कृष्ण सत्य है।

शाश्वत है गीतोपदेश।

युधिष्ठिर मिथक था और मिथक रहेगा। युधिष्ठिर की भूमिका में तब भी दुर्योधन का डबल रोल था और आज भी है।हम दशावतार के सम्मुख असहाय वध्य हैं।

हम भारतीय जन्मजात मिथकों से घिरे होते हैं। मिथकों से लड़ते हुये बिना लड़े ही मारे जाते हैं हवा में तलवारबाजी करते हुये।मिथकों को कोई तोड़ नहीं पाता।

सत्तावर्ग अपने अर्थशास्त्र को लागू करने के लिए रोज नया मिथक रचता है और हम मिथकों में उलझकर सर्वस्व खोने वाले सर्वहारा सर्वस्वहारा लोग हैं।

अस्मिताओं के मिथकों को तोड़ने की हमें कभी जरुरत ही महसूस नही हुयी और नाना किस्म की मूर्तिपूजा से उन मिथकों को हमने कालातीत बनाते रहे हैं।

उसी तरह हमारे लिये संविधान, कानून का राज, लोकतंत्र, न्याय, समता, भ्रातृत्व, समरसता, नागरिकता, आजीविका, मानवाधिकार, नागरिक अधिकार, प्रकृति, पर्यावरण… यानी सामाजिक यथार्थ का हर अनिवार्य तत्व मिथक मात्र है।

जो है नहीं, हम उसी के काल्पनिक यथार्थ में जी रहे हैं। वस्तुगत इहलोक हमारे लिए नरक योनि है और पुनर्जन्म से हम परलोक सुधारने के लिए इस लोक से सिधारने का चाकचौबंद इंतजाम में लगे रहते हैं।

पत्थर को मूर्ति बनाकर या किसी भी बेशकीमती जमीन को धर्मस्थल बनाने के धर्म को आजीवन पूजने वाले हम धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की पैदलसेनाएं हैं।

सत्ता हमारे लिये रोज किसी न किसी संतोषी माता के शुक्रवार व्रत का बंदोबस्त कर देती है। देव देवी भारत की जनसंख्या के पार हैं। रोज गढ़े जा रहे हैं। अपने-अपने हित साधने के लिये रचे जाते हैं मिथक। अपने अपने हितों के मुताबिक देव देवी अवतारमंडल, नक्षत्र समावेश, राशि चक्र, ज्योतिष।

अब चाय के मिथक से जूझ ही रहे थे कि सड़कों पर लोकतंत्र का नया मिथक अराजक रचा जा रहा है। हमारे विश्वकवि, मीडिया विश्लेषक गणतंत्र दिवस और संविधान की नयी नयी व्याख्याएं रच रहे हैं।

राथचाइल्डस हंस रहा है।

चायवाले का राज होगा तो दस रुपये कमाने वाले को भी उसी दर पर अनिवार्य टैक्स देना पड़ेगा जितना कि मुकेश अंबानी को।

राथचाइल्डस हंस रहा है।

मौजूदा तंत्र में गरीबी रेखा के आर पार जितने लोग हैं, उन सारों पर टैक्स लगा दिया जाये तो महामहिमों को चार करोड़ के बजाय चार हजार का टैक्स देना होगा।

राथचाइल्डस हंस रहा है।

लेकिन इस सामाजिक अन्याय और दनदनाते गिलोटिन को पढ़ा लिखा नवधनाढ्य मध्यवर्ग मुक्तिमार्ग बताने से अघा नहीं रहा है और करमुक्त भारत का स्वप्निल मिथक रच रहा है।

राथचाइल्डस हंस रहा है।

कॉरपोरेट राज का फतवा जारी हो गया है कि प्रधानमंत्री चाहे जो हो सुधारों की निरन्तरता रहेंगी अबाध। कॉरपोरेट राज आनेवाले भावी प्रधानमंत्री के एजेंडा भी टीवी पर तय कर रहे हैं।

राथचाइल्डस हंस रहा है।

भूमि से कृषि समाज को अन्तिम रूप में बेदखल करने और रेलवे, बंदरगाह और सार्वजनिक उपक्रमों की सारी जमीन देश की नदियों, पहाड़ों, खनिज संपदा, वनों और प्राकृतिक तमाम संसाधनों की तरह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हवाले किये जाना है।

राथचाइल्डस हंस रहा है।

अब चाहे चायवाल बने प्रधानमंत्री या चाहे सड़क पर राजकाज चलानेवाल खास आदमी या देवपुत्र कोई युवराज या अग्निकन्या कोई या बहुजन झंडेवरदार कोई, जनक्रांति का महादर्प से दनदनाते लोगों को मालूम नहीं नरसंहार के लिये आणविक रासायनिक जैविकी हथियार के अलाव भारतीय जनगण के खिलाफ रोबोटिक बायोमेट्रिक डिजिटल तन्त्र भी मोर्चाबन्द हैं। सबकी पुतलियाँ कैद हैं।

राथचाइल्डस हंस रहा है।

समर्पित हैं दसों उंगलियाँ और इंद्रियाँ मोबाइल शोर में बेकल हैं। आर्थिक सुधारों की बुलेट ट्रेन की पटरियों पर छनछनाते विकास की पांत पर पक्तिबद्ध जनगण कट मरने के लिए प्रतीक्षारत है।

राथचाइल्डस के अट्टहास का समय है यह।

About The Author

 पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना।

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