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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, January 31, 2014

हमारे शिक्षक हमारे मित्र,दिग्दर्शक और अभिभावक हुआ करते थे

हमारे शिक्षक हमारे मित्र,दिग्दर्शक और अभिभावक हुआ करते थे

पलाश विश्वास

TaraChandra Tripathi


मेरी स‌मस्या यह है कि मैं वक्त निकालकर अपने शिक्षकों पर विस्तार स‌े लिख नहीं स‌कता।


हमारे स‌हपाठी स‌हपाठिनों ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो अपनी  विशिष्ट पहचान बनायी है,उसमें उनकी बड़ी भारी भूमिका है।


सत्तर के दशक में तो नैनीताल  डीएसबी कालेज  में अद्भुत माहौल था,जो स‌ीधे हमारे शिक्षक नहीं थे,डीएसबी के दूसरे विभागों में पढ़ाते थे,उन्होंने भी डीएसबी के उस जमाने के छात्रों को दीक्षित करने की पूरी जिम्मेदारी निभायी।


मजे की बात तो यह है कि मैं ताराचंद्र त्रिपाठी जी का प्रत्यक्ष छात्र नहीं था जीआईसी में,लोकिन उनकी अमिट छाप हमारे दिलोदिमाग में है।ग्यारहवीं के एक शरणार्थी छात्र के हिंदी प्रश्नपत्र की कापी जांचते हुए उन्हें कुछ अटपटा लगा और सीधे तलब किया।यह 1973 की बात है।तभी से उन्होंने मुझे भाषा पूर्वग्रह से मुक्त कर दिया और जनपक्षधर लेखन में जोत दिया।


इसी तरह चंद्रेश शास्त्री,बटरोही,शेखर पाठक,उमा भट्ट,कविता पांडे,अजय रावत जैसे कितने ही लोग कला और विज्ञान स‌ंकाय के कितने ही शिक्षक रहे हैं,जो स‌बको स‌मान दृष्टि स‌े देखते रहे हैं।ये तमाम लोग हमारे शिक्षक नहीं,वरन हमारे सबसे घनिष्ठ मित्र रहे हैं।चंद्रेश जी तो असमय चले गये।लेकिन बाकी लोगों से वह मित्रता अब भी अटूट है और हम अब भी परिवारी जन हैं।हमारे गुरुजी की दोनों बेटियां किरण और कल्पणा हमारे संपर्क में निरंतर है।हमें हमारे गुरुओं ने सिऱ्फ दीक्षित ही नहीं किया,हमें अपने परिवार का सदस्य बना लिया।हम जब बीए प्रथम वर्ष के छात्र थे,मोहन कपिलेश भोज और मैं त्रिपाठी जी के घर मोहन निवास में ही रहते थे,क्योंकि गुरुजी को हमारे होटल में डेरा डालना पसंद नहीं था।


उस जमाने में डीएसबी की खासियत यह थी कि स‌ारे शिक्षक छात्रों स‌े मित्रवत बर्ताव करते थे।बटरोही,शेखर ,चंद्रेश,कैप्टेन एलएम स‌ाह,फ्रेडरिक स्मेटचेक,चित्रा कपाही,प्रेमा तिवारी,दीपा खुलबे,मैडम अनिल बिष्ट,मैडम मधुलिका दीक्षित ने हमेशा मित्रवत बर्ताव किया।


इनके अलावा ताराचंद्र त्रिपाठी के अतिरिक्त एकदम शुरुआत में मैडम ख्रिष्टी और पीतांबर पंत जी ने हमें आखर पहचानने के वक्त ही जीवन दर्शन स‌े लैस करने का काम किया।


भाषा को स‌ीखने में जूनियर क्लासों में स‌ुरेशचंद्र शर्मा,इतिहास के लिए महेश वर्मा,विज्ञान के लिए गीता पांडेय,अर्थशास्त्र के लिए प्रेमप्रकाश बुधलाकोटी,अंग्रेजी के लिए शक्तिफार्म में हैदर अली  और जीआईसी में जेसी पंत,हिंदी के लिए शक्तिफार्म में प्रसाद जी और डीएसबी में इतिहास,अर्थशास्त्र,अंग्रेजी और हिंदी विभागों के तमाम शिक्षकों की अलग अलग शैली थी।


उन सब  पर अलग अलग लिखना शायद जरुरी है।


पेशेवर पत्रकारिता स‌े मुक्त होने के बाद शायद जिंदगी इसकी मोहलत दें,तो मैं नई पीढ़ी को बताना चाहता हूं कि हमारे जमाने में न ट्यूशन था और न कोचिंग,हमारे शिक्षक हमारे मित्र भी थे,दिग्दर्शक और अभिभावक भी।वरना आज मैं अपने गांव में खेत ही जोत रहा होता।


हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी जी के दिग्दर्शन से मैं 1973 से अब तक एक पल के लिए भी वंचित नहीं रहा।लिखते वक्त अब भी मैं सिर्फ उन्हीं से डरता हूं।गिरदा जबतक थे,उनका डर भी था।पर वे पत्रकारिता में हमारे सबसे बड़े गुरु होने के बावजूद, हमारे मित्र ज्यादा थे।जिनसे डरता नहीं हूं,लेकिन जिनकी परवाह शायद सबसे ज्यादा है वे हैं,नैनीताल में राजीव लोचन शाह,पवन राकेश और हरुआ दाढ़ी तो सोमेश्वर में कपिलेश भोज और दिल्ली में पंकज बिष्ट और आनंद स्वरुप वर्मा।


दरअसल आज हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी जी के मंतव्य पर यह लिखना जरुरी हो गया था।कृपया अन्यथा न लें।


TaraChandra Tripathi

नई दिल्ली। नैतिकता और सिद्धांत की दुहाई देने वाले आप नेता कुमार विश्वास भी बिना पढ़ाए वेतन उठाते थे। उन पर यह आरोप कोई और नहीं बल्कि उनके सहयोगी टीचर लगा रहे हैं।

एक दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के अनुसार, कुमार विश्वास साहिबाबाद के लाला लाजपत राय कॉलेज में हिन्दी पढ़ाते थे। कॉलेज के शिक्षकों के अनुसार, कुमार विश्वास सामाजिक जीवन में नैतिकता और सिद्धांत की जमकर दुहाई देते हैं, परंतु स्टडी लीव पर चल रहे कुमार विश्वास शायद ही कोई क्लास लेते थे। प्रिंसिपल एस.डी कौशिक के अनुसार, कुमार विश्वास बिना क्लास लिए हर महीने अपना वेतन लेते थे। इसके साथ ही वह कविता पाठ के जरिए भी अपनी कमाई करते थे। कौशिक ने कुमार विश्वास पर सवालिया निशान लगाते हुए पूछा है कि क्या यह अनैतिक और सिद्धांत के खिलाफ नहीं है?

Unlike ·  · Share · 15 hours ago ·

  • You, चन्द्रशेखर करगेती and Kiran Tripathi like this.

  • 1 share

  • TaraChandra Tripathi किसी भी नवोदित चेतना को स्थापित होने के लिए लच्छेदार भाषणों की नहीं आचरण की आवश्यकता होती है. आचरण के बिना सिद्धान्त बकवास है. और यदि यह सच है तो कुमार विश्वास घोर अविश्वास हैं.

  • 15 hours ago · Like · 1

  • Palash Biswas Palash Biswas Hindi tool is not working.I am very happy that you are so active! I am proud of my Guruji.I am proud of the vision you planted in all your students.I do not know any other teacher who is the constant source of inspiration since full four ...See More

  • 12 hours ago · Like · 1

  • TaraChandra Tripathi यदि यह मेरे छात्रों को लगता है तो किसी भी अध्यापक की इस से बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है. अप्प्दीपो भव.

  • 45 minutes ago · Like

  • Palash Biswas प्रणाम गुरुजी।नई पीढ़ी का दुर्बाग्य है कि वे आपकी पीढ़ी के शि&कों का आशीर्वाद नहीं पा स‌कें।आज के मौजूदा स‌ंकट में युवापीढ़ी की दिशाहीनता का यह स‌बसे बड़ा कारण है।पहाड़ में आपने निरंतर जो अलख जलाये रखा है,आज भी वही हमारी आंकों की रोशनी है।

  • 40 minutes ago · Like

  • Palash Biswas मेरी स‌मस्या यह है कि मैं वक्त निकालकर अपने शि&कों पर विस्तार स‌े लिख नहीं स‌कता।हमारे स‌हपाठी स‌हपाठिनों ने जीवन के विभिन्न &ेत्रों में जो ्पनी पहचान बनायी है,उसमें उनकी बड़ी भारी भूमिका है। डीएसबी में तो अद्भुत माहौल था,जो स‌ीधे हमारे शि&क नहीं थे,डीएसबी के दूसरे विभागों में पढ़ाते थे,उन्होंने भी डीएसबी के उस जमाने के छात्रों को दी&ित करने की पूरी जिम्मेदारी निभायी।मैं ताराचंद्र त्रिपाठी जी का प्रत्य& छात्र नहीं था जीआईसी में,लोकिन उनकी अमिट छाप हमारे दिलोदिमाग में है।इसी तरह चंद्रेश शास्त्री,बटरोही,शेखर पाठक,उमा भट्ट,कविता पांडे,अजय रावत जैसे कितने ही लोग कला और विज्ञान स‌ंकाय के खितने ही शि&क रहे हैं,जो स‌बको स‌मान दृष्टि स‌े देखते रहे हैं।डीएसबी की खासियत यह थी कि स‌ारे शि&क छात्रों स‌े मित्रवत बर्ताव करते थे।बटरोही,शेखर ,चंद्रेश,कैप्टेन एलएम स‌ाह,फ्रेडरिक स‌्मैटचेक,चित्रा कपाही,प्रेमा तिवारी,दीपा खुलबे ने हमेसा मित्रवात बर्ताव किया।इसके अलावा ताराचंद्र त्रिपाठी के अतिरिक्त एकदम शुरुआत में मैडम ख्रिष्टी और पीतांबर पंत जी ने हमें आखर पहचानने के वक्त ही जीवन दर्शन स‌े लैस करने का काम किया।भाषा को स‌ीखने में जूनियर क्लासों में स‌ुरेशचंद्र शर्मा,इतिहास के लिए महेश वर्मा,विज्ञान के लिए गीता पांडेय,अर्थसास्त्र के लिए प्रेमप्रकाश बुधलाकोटी,अंग्रेजी के लिए शक्तिफार्म में हैदर अली और जीआईसी में जेसी पंत,हिंदी के लिए शक्तिफार्म में प्रसाद जी और डीएसबी में इतिहास,अर्थसास्त्र,अंग्रेजी और हिंदी विभागों के तमाम शि&कों पर अलग अलग लिखना शायद जरुरी है।पेशेवर पत्रकारिता स‌े मुक्त होने के बाद शायद जिंदगी इसकी मोहलत दें,तो मैं नई पीढ़ी को बताना चाहता हूं कि हमारे जमाने में न ट्यूशन था और न कोचिंग,हमारे शि&क हमारे मित्र बी थे,दिग्दर्शक और अभिभावक भी।वरना आज मैं अपने गांव में खेत ही जोत रहा होता।

  • 6 minutes ago · Like


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