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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Thursday, October 30, 2014

वीरेनदा से मिलकर फिर यह यकीन पुख्ता हुआ नये सिरे से कि कविता में ही रची बसी होती है मुकम्मल जिंदगी जो दुनिया को खत्म करने वालों के खिलाफ बारुदी सुरंग भी है।

वीरेनदा से मिलकर फिर यह यकीन पुख्ता हुआ नये सिरे से कि कविता में ही रची बसी होती है मुकम्मल जिंदगी जो दुनिया को खत्म करने वालों के खिलाफ बारुदी सुरंग भी है।



पलाश विश्वास


सवा बजे रात को आज मेरी नींद खुल गयी है।गोलू की भी नींद खुली देख,उसकी पीसी आन करवा ली और फिर अपनी रामकहानी चालू।


जो मित्र अमित्र राहत की सांसें ले रहे थे,नींद में खलल पड़ने से बचने के ख्याल से बचने के लिए,उनकी मुसीबत फिर शुरु होने वाली है अगर मैं सही सलामत कोलकाता पहुंच गया तो,यानि आज से फिर आनलाइन हूं।


कल सुबह आठ बजे निकला था और नोएडा सेक्टर बारह, इंदिरापुरम,कलाविहार मयूरविहार होकर प्रगति विहार हास्टल रात के नौ बजे करीब लौटा।


आनंद स्वरुप वर्मा के वहां गहन विचार विमर्श,वीरेनदा से गहराई तक मुलाकात और पंकज बिष्ट के साथ उनके घर में बिताये कुछ अनमोल अंतरंग क्षणों के साथ दिल्ली की यह यात्री इसबार बहुत अनोखी बन निकली है और थकान से चूर चूर होकर दस बजे ही घोड़े बेचकर सो गया था लेकिन दिमाग के सेल दुरुस्त होते ही आंखें फिर उनींदी हैं।


अपने राजीव कुमार तो दिल्ली में आकर सन्नाटा जी रहे हैं बाकी गपशप तो गोलू,पृथू और मीना भाभी के साथ हो रही है और लग रहा है कि राजीव नये सिरे से कुछ बनाने की सोच रहा होगा।


इसबर वीणा और अरुण को खूब शिकायतें होंगी और अपने परिवार के बच्चों को भी कि मैं इस बारक सिर्फ दोस्तों से मिला हूं,परिजनों से नहीं।


मयूर विहार गया लेकिन झिलमिल नहीं गया वीणा के घर और नजहांगीर पुरी गया,जहां अरुण के बच्चे कृष्णा और तरुण को शायद अपने ताउ और ताई का इंतजार रहा है।


उनसे हम लोग मार्च तक मिलेंगे जरुर।नई दिल्ली के सीमेंट के जंगल में नहीं,अपने घर बसंतीपुर में।इसी उम्मीद के साथ आज दुरंतोे से कोलकाता लौट रहा हूं।


गनीमत है कि कोलकाता के बड़ाबाजार में धूल और ट्राफिक जाम में फंसे 14 अक्तूबर को सविता की तबियत इतनी खराब भी नहीं हुई और बसंतीपुर से होकर नैनीताल, देहरादून, बिजनौर होकर दिल्ली तक दौड़ दौड़कर कल रात बुलेटदौड़ से हम थक कर कब सो गये,पता ही नहीं चला और अबकी यात्रा की किस्त पूरी हो गयी और सविता मेरे साथ लगातार दौड़ती रहीं।उनका भी आभार।


पता नहीं कि ऐसी रात फिर कभी नसीब होगी या नहीं।


दिल्ली में अब भी एक बेचैन कवि आत्मा जिंदगी जीने का हुनर सिखा रही हैं हमें।


उन्हीं के साथ आज की सी कोई पूस की रात को नैनी झील के किनारे हम लोगों ने कड़कड़ाती सर्दी में आखिरीबार उधम मचाया था और उस कवि ने कहा था कि पलाश,तुम सिर्फ गद्य लिख सकते हो,कविता हरगिज नहीं लिख सकते और तब मैंने कहा था कि दा,जरुर लिख सकता हूं।


उस रात हमारे साथ एक और कवि थे पहाड़ और तराई में दिवानगी की हदतक काव्यधारा में बहनेवाले ,हमारे वजूद का हिस्सा जो अब भी बने हुए हैं,हमारे गिरदा।


साथ थे,राजीव लोचन साह जैसे नख से शिख तक भद्रपुरुष और वैकल्पिक मीडिया की लड़ाई शुरु करने वाले हमारे सुप्रीम सिपाहसालार आनंदस्वरुप वर्मा भी।


शमशेर सिंह बिष्ट भी शायद आधी रात बाद बीच झील की तन्हा नैनीताल की उस रात के गवाह रहे हैं।शायद शेखर पाठक भी थे और हरुआ दाढ़ी भी।ठीक से याद नहीं है।


जाहिर है कि वह रात अब कभी नहीं लौटेगी,गिरदा के बिना वह रात लौटेगी नहीं।आनंद स्वरुप वर्मा ने कहा भी कि गिरदा के बिना नैनीताल सूना अलूना है और अब वहां जाना सुहाता नहीं है।पहाड़ों में गिरदा का न होना हमारे यकीन के दायरे से बाहर है।


आज की इस रात की सुबह तो यकीनन होगी ही और सुबह की न सही,शाम की गाड़ी से उस कोलकाता जरुर पहुंचकर फिर धुनि रमानी है,जहां इन्हीं कवि आत्मीय अग्रज ने मुझे सन 1991 को जबरन भेज दिया था कि कोलकाता को बदले बिना दुनिया नहीं बदलेगी और तबसे मैं कोलकाता को बदलने में लगा हूं ।


क्योंकि कवि हूं नहीं मैं फिरभी,एक अति प्रिय कविमित्र बड़े भाई के जुनूनी यकीन को सच में बदलने का जिम्मा मुझपर है कि दुनिया के गोलाकार वजूद की पूंछ वहीं से पकड़कर उस ऐसी पटखनी दूं कि सारी कविताएं सच हो जायें एकमुश्त।


मुझे कविताओं में रमने का मौका नहीं मिला तो क्या हमारे वीरेनदा और हमारे गिरदा कवि बतौर याद किये जाएंगे और देशभर के कवियों से लगातार मेरा दोस्ताना और दुश्मनी का रिश्ता जीने का मौका भी लगता है।


बाकी तोे बिजनौर के पास सविता के मायके गांव धर्मनगरी में एक युवा अति कुशाग्र बुद्धि के बीटेक इंजीनियर तापस पाल की राय में हमारी पीढ़ी के लोग कुल मिलाकर घंटा हैं। उससे मुठभेड़ के बारे में बाद में फिर।


इंदिरापुरम में जयपुरिया सनराइज शायद उस बहुमंजिली इमारत का नाम है,जिसमें हमारे समय के सबसे शानदार ,सबसे जानदार कवि का बसेरा है इसवक्त। आठवीं मंजिल में।जहां आनंदजी के वहां से हम लेट पहुंचे और वीरेनदा इंतजार में थके भी नहीं।परिवार में सिर्फ रीता भाभी से मुलाकात हो पायी।वे जस की तस हैं साबुत।लेकिन बच्चों से इस दफा मुलाकात हुई नहीं है।


कम से कम वीरेनदा से मिलने फिर इस शहर को आउंगा,जिसे मैं कभी प्यार नहीं कर सका क्योंकि वह लगातार लगातार जनपदों को चबाता जा रहा है और सारी सत्ता यहीं केंद्रित हैं और सारी साजिशें जनता के खिलाफ यही से शुरु होती हैं।


मन ही मन मैं शायद मणिपुरी हूं या तामिल या बस्तर दंतेवाड़ा का कोई सलवा जुड़ुम दागा आदिवासी क्योंमकि मैं जख्मी हिमालय भी हूं।


अबकी बार वीरेनदा से मिलकर लगा कि कविता दरअसल लिखने की कोई चीज होती नहीं है,कविता जीने की चीज होती है और कवि जबतक कविता में जीता है,तब तक जिंदगी बची होती है और तभी तक बनती बिगड़ती रहती है दुनिया।


कविता के बिना न सभ्यता होती है और न मनुष्यता।


यह सिरे से संवेदनाओं का ही नहीं,सरोकार का मामला है।


संवेदनाओं और सरोकार में जीनेवाली कविता की मौत होती नहीं है उसीतरह जैसे दुनिया को बदलने वाली जब्जे की मौत होती नहीं है।


और बदलाव की फल्गुधारा कविता की ही तरह हमारी रगों में बहती रहती है।


और हजारों रक्तनदियों की धार उसकी दिशा नहीं बदल सकती है।


न उसकी मंजिल कभी बदल सकती है भले भटक जाये या बदल जाये हमारे दिलोदिमाग, हमारे सरोकार लखटकिया करोड़पतिया कारोबार में।


सोलह मई के बाद की कविता के अन्यतम आयोजक रंजीत जी,अपने युवा भविष्य अभिषेक और अमलेंदु दोनों आज दिनभर हमारे साथ रहे जो आनंदस्वरुप वर्मा, वीरेनदा और हमारे सान्निध्य में अब तक हमारा कियाधरा को जारी रखनेवाले सबसे काबिल लोग हैं ।


अभिषेक,अमलेंदु,रियाज,सुबीर गोस्वामी,पद्दो लोचन,एकेसकैलिबर,शरदिंदु और आनेवाली पीढ़ियों के सहारे और उन तमाम युवा दिलोदिमाग जो आज की युवा स्त्रियों के खाते में भी हैं,हम छोड़ जायेंगे एक बेहतर दुनिया, साबूत सकुशल पृथ्वी,इसी तमन्ना में अटकी है हमारी जान जहां।


युगमंच का सिसिला अभी जारी है।


नैनीताल समाचार निकल रहा है।

समकालीन तीसरी दुनिया को बेहतर बनाने की तैयारी है और राजतंत्र फिर वापस नहीं लौटेगा और न फासीवाद मनुष्यता और सभ्यता का नाश कर सकता है।


पंकज दा हमें मयूर बिहार एक्सटेंशन तक पैदल छोड़कर फिर समयांतर के ताजा अंक को तराशने में लगे हैं,इससे बेहतर तस्वीरें हमारे लिए दूसरी हैं ही नहीं और न हो सकती हैं।


जैसे कि कविताएं सोलह मई के बाद अबी भी लिखी जा रही है चाहे गंगा के घाट बदले हों,पहाड़ में लालटेन जलती न हो और न कोई पौधा बंदूूक बन पाया हो और न कविता ने शहरों की घेराबंदी की हो।ये तस्वीरें बदलाव के यकीन को मजबूत बनाती हैं।


जिनके साथ पीढ़ियां भी कई हैं उतने ही प्रतिबद्ध,जितनी हमारी पीढ़ियां रही हैं और मकबरों के इस शहर से शायद जीने का शउर सिखाने वाले एक कवि की कविता में बेहद कैजुअल,आलसी कस्बाई जनपदीय जिंदगी रुप रस गंध के लोक में जीने की तमीज और कैंसर को हराने वाली कविता की औकात से मुखातिब होकर अब हमको पूरा यकीन है कि हम रहे न रहें,बची रहेगी जिंदगी फिर भी और हमेशा कि तरह बदलती रहेगी यह हमारी पृथ्वी भी।


जिसे गोलक बनाकर खेल रहे हैं दुनियाभर के आदमखोर लोग।


फिरभी यकीन है कि प्रकृति पर्यावरण,मनुष्यता,सभ्यता और लोक में बसे भिन भिन भाषा,अस्मिता और पहचान के लोग न उन्हें,उन आदमखोरों और मानवताविरोधी युद्धअपराधियों को  बख्शेंगे और न इस दुनिया को खत्म करने की कोई इजाजत देंगे।


यह तंत्र मंत्र यंत्र का तिलिस्म हम न तोड़ सकें तो क्या,नईकी फौजें आवल वानी और जइसा कि अपन गोरखवा कभी कहिलन,सच होइबे करें।


इस उपमहादेश में सर्वत्र आतंक के खिलाफ अमेरकिका के युद्ध के खिलाफ कोई शहबाग आंदोलन भी है और यादवपुर के छात्र अब भी सड़कों पर हैं और बाकी छात्र युवा भी कभी भी सड़कों पर उतर सकते हैं।


जैसे फिर कभी न कभी सड़कों पर उतर सकता है समूचा मेहनतकश तबका इस अबाध पूंजी के मुक्तबाजार के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध में।


कविता में आस्था यही सिद्ध करती है।

कविता धर्मांध राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति तो हरगिज नहीं हो सकती।

हर कविता की शक्ल वाल्तेअर जरुर है जिस के लिए मौत की सजा तय है।


सच वह भी अंतिम नहीं है जो तुलसी दास जी कहल वानी कि होइहिं सोई जो राम रचि राखा।राम जो रचि राखा,उसी को पलटने वाले कवि रहे हैं तमाम अगिनखोर।


बाकी दुनिया की तमाम कविताएं दरअसल बदलाव की नीयत की कविताएं हैं, जिनमें जीते जीते गोरख ऊबकर चल दिये,पाश आतंकवादियों के हाथों मारे गये,नवारुणदा कैंसर से जूझते जूझते चल दिये और पहाड़ों को हुड़के से जगाते रहे हमारे गिरदा और दिल्ली के मकबरों के बीच मुकम्मल जिंदगी का शापिंग माल हाईराइज खोल बैठे हैं हमारे वीरेनदा।


हमारे लिए कोई कवि महान नहीं होता।


हमारे लिए  कोई कवि अच्छा या बुरा नहीं होता।


नाम देखकर दाम तय करते हैं सौदागर मानुख और हम यकीनन सौदागर जमात के नहीं हैं।कविता लिख सकूं हूं या नहीं,हूं उसी गोरख,गिर्दा, पाश,नवारुण,चे,मायाकोवस्की वगैरह वगैरह के गोत्र का ही हूं और मेरे खून में भी डीएनए वहीं मूलनिवासी।


जिनके लिए कविता सौंदर्यबोध और व्याकरण नहीं है,न निहायत ध्वनियों का सिनेमाघर है,न भाषायी करतबी चमत्कार है,न जादुई यथार्थ है,न बंधी बंधायी कोई कैद गंगा है पवित्रतम सड़ांध।


बल्कि जिनके लिए  एक मुकम्मल जिंदगी है और दुनिया को उसकी धुरी पर चलते देने का गुरिल्ला युद्ध है निरंतर।


हम हर कविता में जनता का मोर्चा खोजते हैं।


हम हर कविता में जनसुनवाई खोजते हैं।


हम हर कविता में मुक्त बयार,उत्तुंग शिखर,अनबंधी नदियां और खिलते हुए बारुद के की देह में माटी की खुशबू के साथ एक मुकम्मल गुरिल्ला युद्ध प्रकृति पर्यावरण मनुष्यता और सभ्यता के हक में चाहते हैं।


ऐसी हर कविता के कवि हमारे वजूद में शामिल होते हैं और चाहे कविता वह रचे न रचे,असली कवि वही होता है जो माटी से गढ़ सके वह मुक्म्मल दुनिया रोज रोज,जिसे रोज रोज परमाणु विध्वंस के मुक्तबाजारी हीरक  चतुर्भुज के विकास सूत्र में तबाह करने लगे हैं तमाम रंग बिरंगे अमानुष युद्ध अपराधी और जो मनुष्यों की दुनिया को ग्लोब बनाकर अपनी ही शक्लोसूरत वाली क्लोन रोबोट रिमोट नियंत्रित डिजिटल पुतलियों की नई सभ्यता रच रहे हैं।


हम हर पल सोलह मई के बाद की कविता में वह कविता खोज रहे हैं जिसे हमारे तमाम प्रियकवि रचते रहे हैं और जिसे पाश नवारुण गिरदा सुकांत चेराबंडुराजू और गोरख आखिरी सांस तक जीते रहे हैं और जिसे जीते हुए हम सबसे ज्यादा जिंदा हैं अब भी हमारे वीरेनदा।


हमारे हिसाब से हर कवि को कवि चाहे हो या न हो वह,कविता चाहे वह रचे न रचे,आखिरी सांस तक चेराबंडू,पाश, गिरदा और वीरेनदा की तरह दुनिया को बदल देने के इरादे के साथ एक मुकम्मल इंसान भी होना चाहिए।


हमारे हिसाब से कवि होंगे बहुत सारे श्रेष्ठ,शास्त्रीय और कालातीत महान,लेकिन जिंदगी में कविता जीने वाले कवि कोई कोई होते हैंं और खुशकिस्मत हैं हम कि वे सारे कवि हमारे ही वजूद में शामिल हैं।



वीरेनदा से मिलकर इस रात के बीतने के बेचैन इंतजार को जी रहा हूं फिलहाल और कहने की जरुरत नहीं कि इसबार दिल्ली आना बेहद अच्छा लग रहा है।



वीरेनदा से मिलकर फिर यह यकीन पुख्ता हुआ नये सिरे से कि कविता में ही रची बसी होती है मुकम्मल जिंदगी जो दुनिया को खत्म करने वालों के खिलाफ बारुदी सुरंग भी है।


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