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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, February 1, 2012

आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू काटेगा! खामोश रहो!!

आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू काटेगा! खामोश रहो!!



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आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू काटेगा! खामोश रहो!!

1 FEBRUARY 2012 2 COMMENTS
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♦ गार्गी मिश्र

गार्गी पहली बार मोहल्‍ला लाइव से जुड़ रही हैं। उनका स्‍वागत है। अभिव्‍यक्ति के औजारों पर सरकार की टेढ़ी होती नजरों पर तंज कसते हुए उन्‍होंने यह गद्य लिखा है। इसमें व्‍यंग्‍य भी है और बेलौसपन भी, संवाद भी है और कविता भी, चिंता भी है और जंग की जिद भी। उनका स्‍वागत कीजिए : मॉडरेटर

सेंसर का बिच्‍छू

श्री : हेल्लो राज, मैं श्री बोल रहा हूं। यार मैंने तुझे अपने फेसबुक के अकाउंट का पासवर्ड क्या दे दिया, की तूने तो अकाउंट ही डिलीट कर दिया मजाक मजाक में। दोस्त उसमें मेरे काफी जरूरी प्रोफेशनल लिंक्स थे। मैं क्या करूंगा अब?

राज : नहीं श्री, मैंने तो ऐसा नहीं किया। जरूर कोई टेक्नीकल प्रॉब्लम होगी। वैसे तूने लास्ट स्टेटस क्या अपडेट किया था?

श्री : लास्ट स्टेटस। अ हां, कपिल सिब्बल की किसी घिनौनी राजनीति पे कोई कटाक्ष लिखा था।

राज : हा हा हा। दोस्त फिर तो तुझे सेंसर के बिच्‍छू ने डंसा है!


[और फिर फोन पे सन्नाटा]

हंसेगा तो फंसेगा

हंसी आ रही है? जी हां, ये कहानी सुन के जितना अफसोस हुआ होगा, उतनी ही हंसी भी आयी होगी, श्री के बेचारेपन पे। ऐसी कहानियां सुन के हमें न चाहते हुए भी हंसी आ जाती है। पर जनाब जो आबो हवा चली है, उससे चौकन्ना हो जाइए, कहीं आप भी हंसी के पात्र न बन जाएं।

अब आप सोच रहे होंगे कि भला आप क्यूं हंसी के पात्र बनेंगे। आखिर आपने ऐसा किया ही क्या है, जो आपकी चीजों पे कोई उंगली उठाये, आपकी बनायी हुई वेबसाइट्स को आप से बिना पूछे बैन कर दे। आपकी सोच पे और उसे प्रकट करने पे पाबंदी लगा दे।

इसका जवाब बड़ा सीधा सा है। ज्यादा कुछ नहीं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्यूंकि आपने आजादी चाही है। आपने चाहा है कि आजादी के 68 साल बाद कम से कम आप अपनी आवाज को दुनिया के सामने रख सकें। आपने चाहा है कि आप तलवार की जगह कलम उठा सकें। आपने चाहा है कि अपने बनाये हुए चित्रों में रंग भर सकें। आपने दरसल खुली हवा में सांस लेना चाहा है। पर हर चाह के लिए, हर अनाज के लिए हम लगान देते आये हैं। और हमारी सरकार अब वो लगान तो नहीं मांगती, पर अब वो लगाम लगा रही है हमारी हर आवाज पर। हर सोच पर। हर आजाद ख्याल पर। चलता है!

लगान तो फिर भी चल गया। ढो लिया किसी तरह। पर क्या लगाम को बर्दाश्त कर पाओगे? आज अगर आपके पास दो जोड़ी 'ली' की जींस न हो, तो चलेगा। अगर फास्ट ट्रैक की घड़ी न हो, तो चलेगा। अगर साथ में टहलने वाली सुंदर सी गर्लफ्रेंड न हो, तो भी चलेगा जनाब, पर क्या अगर कोई आपकी आवाज पे ताला लगा दे, तो चलेगा? कोई आपको अपने विचारों की अभिव्यक्ति से रोके तो चलेगा? अगर कोई आपकी आर्ट (लेखनी, कविताओं, रचनाओं, कार्टून्स, डीबेट्स, कहानी, ब्‍लॉग्स) पर पाबंदी लगा दे और आपसे बिना पूछे उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दे, तो क्या तब भी चलेगा? नहीं। शायद बौखला जाएंगे और घुटन सी महसूस होगी, आजाद देश का नागरिक होते हुए भी।

पर हमारी इसी "चलाने" वाली आदत की वजह से आज ऐसा हो रहा है। पहले हम खुद अनपढ़ चलते रहे। फिर अनपढ़ और भ्रष्ट नेताओं को चलाते रहे, और अब निराधार और बेबुनियाद पाबंदियों को चलाने की शह सरकार को दे रहे हैं। जी हां, हम खुद न्योता दे रहे हैं अपनी आजादी को खतम करने का।

आजादी बोलेगा, तो बिच्‍छू काटेगा

सही पढ़ा आपने। आजादी का नाम लिया, तो बिच्‍छू काटेगा। ये सेंसर का है बिच्‍छू। जी हां, आप इशारा सही समझ रहे हैं। सेंसर, ये नाम आपने पहले कई बार सुना होगा। शायद हाल में ही सुना हो। विद्या बालन की "डर्टी मूवी" के संदर्भ में सुना होगा। लेकिन ये शब्‍द अब सुनने और सुनाने से कही ज्यादा बढ़ चुका है। ये अब अपना डंक आपकी जुबां पे मारना चाहता है। हमारी भारत सरकार बड़ी ही चालाकी से आईटी एक्ट के तहत कुछ बेबुनियादी नियमों का झांसा देते हुए इंटरनेट और फ्री स्पीच पे पाबंदियां लगा रही है। सरकार का कहना है कि कुछ वेबसाइट्स मनमाना अश्लील, आपत्तिजनक, देश के खिलाफ भड़काऊ कंटेंट को बढ़ावा दे रही हैं। सरकार ये भी साबित करने में लगी हुई है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स जैसे गूगल, फेसबुक, ऑरकुट, ट्विटर आदि निरंकुश आपत्तिजनक कंटेंट को बढ़ावा दे रही है, जो कि सरकार के संविधान और एक सभ्य समाज के खिलाफ है।

ये सेंसर का बिच्‍छू कैसे हमला कर रहा है, जानिए इस छोटी सी कविता के माध्यम से।

आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू काटेगा

ये सेंसर का है बिच्‍छू
सरकार का है ये बिच्‍छू
आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू काटेगा

ये मुंह पे काटेगा
ये कलम को काटेगा
हल्लाबोल को रोके ये बिच्‍छू
हर मकड़ी को काटेगा
आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू काटेगा

ये गूंगा कर देगा
ये लूला कर देगा
हलक पे मार डंक
ये बिच्‍छू मुर्दा कर देगा
आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू काटेगा

ये ब्लॉग को डंसता है
ये आर्ट को पीता है
फेसबुक का दुश्मन बिच्‍छू
आवाम को डंसता है
आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू कटेगा

ये टूजी का है बिच्‍छू
ये राजा का है बिच्‍छू
ये नेता का है बिच्‍छू
ये बिच्‍छू बड़ा है इक्छु
आजादी बोलेगा तो बिच्‍छू कटेगा

डर मत, मुंह खोल, हल्ला बोल

लगान देने का जमाना नहीं रहा और लगाम तुझसे बर्दाश्त न होगी। तो करेगा क्या बंधु?

अरे डर मत, मुंह खोल और हल्ला बोल। भ्रष्ट सरकार और उसकी कार्यप्रणाली से तो हम और आप वैसे भी ग्रसित हैं। अब क्या आवाज भी दावं पे लगा देंगे? क्या अब भी अपनी आराम वाली कुर्सी पे बैठ के टीवी के रिमोट से खेलते रहेंगे? क्या इंतजार कर रहे हैं कि आपके सोने, उठने, बैठने, लिखने से लेकर आपकी निजी जिंदगी को भी सरकार सेंसर के नियमों तहत कंट्रोल करे?

क्या इंतजार कर रहे हैं कि राह चलते सरकार का नियम आ जाए कि इस रोड पे सर नीचे और पैर ऊपर कर के चलना है?

अगर नहीं, तो अपनी आवाज को बुलंद कीजिए। आगे आइए, सवाल पूछिए सरकार से, अपने हक के लिए लड़िए और अपाहिज होने से खुद को बचाइए।

अगर चुप रहे तो ऐसा भी होगा कि…

राज : श्री, मैंने कहा था तुझसे कि मैंने तेरा अकाउंट डिलीट नहीं किया है, फिर भी तूने मेरे विश्वास का गलत फायदा उठाया। तूने मेरे ब्लॉग को डिलीट कर दिया दोस्त?

श्री : राज मैं तो खुद ही फंसा हुआ हूं। मैं क्यूं भला ऐसा करूंगा। वैसे कल तूने कोई कार्टून बना के लगाया था क्या अपने ब्लॉग पे?

राज : हां वो, लोकपाल को जोकपाल बताया था… गलत क्या किया। यही तो हो रहा है।

राज : हा हा हा… अरे दोस्त तुझे भी सेंसर के बिच्‍छू ने डंस लिया है…


[और फिर फोन पे सन्नाटा]

(गार्गी मिश्र। पेशे से पत्रकार। मिजाज से कवयित्री। फिलहाल बेंगलुरु से निकलने वाली पत्रिका Bangaluredकी उपसंपादक और कंटेंट को-ऑर्डिनेटर। गार्गी से gargigautam07@gmail.com पर संपर्क करें।)

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